विजययात्रा – बप्पा रावल – पार्ट 2
उत्कर्ष श्रीवास्तव द्वारा लिखित
रिव्यू –
प्रस्तुत किताब बापा रावल पर आधारित श्रृंखला का दूसरा भाग है | “विजययात्रा – बापा रावल भाग 2” बापा रावल के जीवन की कहानी को जारी रखती है | “विजययात्रा” शब्द का अर्थ “विजय की यात्रा” या “विजय” होता है | यह पुस्तक उनके सैन्य अभियानों, राज्य विस्तार और महत्वपूर्ण उपलब्धियों पर केंद्रित है |
प्रस्तुत पुस्तक में उनके रणनीतिक कौशल, चुनौतियों का सामना करने और अपने राज्य को स्थापित करने या मजबूत करने में उनकी भूमिका का वर्णन किया गया है |
बापा रावल 8वीं शताब्दी मे होकर गए | वह एक महान ऐतिहासिक व्यक्ति थे | वह राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र के एक प्रसिद्ध शासक थे | उन्हें राजपूत इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति माना जाता है | उन्हे मेवाड़ राज्य के गुहिल राजवंश के संस्थापक के रूप मे भी जाना जाता है |
उनका असली नाम कालभोज था, लेकिन उनके शौर्य और वीरता के कारण उन्हें “बप्पा” की उपाधि मिली और वे “बप्पा रावल” के नाम से प्रसिद्ध हुए |
बप्पा रावल को भारत पर हुए अरब आक्रमणों को विफल करने का श्रेय दिया जाता है | उन्होंने सिंध से आगे बढ़कर अरबों को न केवल रोका, बल्कि उन्हें कई बार करारी हार दी और उन्हें ईरान तक खदेड़ दिया |
सन 734 ई. में, केवल 20 वर्ष की आयु में, उन्होंने चित्तौड़ के मौर्य शासक मानमोरी को पराजित कर चित्तौड़ दुर्ग पर अधिकार किया | ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने अपने साम्राज्य का विस्तार अफगानिस्तान तक किया था |
पाकिस्तान में स्थित रावलपिंडी शहर का नाम भी बप्पा रावल के नाम पर ही पड़ा है, क्योंकि यह कभी उनका एक प्रमुख चेकपोस्ट था |
वे एक धर्मपरायण शासक थे | उन्होंने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए कार्य किया | उदयपुर के कैलाशपुरी में स्थित प्रसिद्ध एकलिंगजी मंदिर का निर्माण 734 ई. में बप्पा रावल ने ही करवाया था |
लोककथाओं के अनुसार, बप्पा रावल हरीत ऋषि के शिष्य थे | इन्ही के आशीर्वाद से उन्हें मेवाड़ का राज्य प्राप्त हुआ था और मोक्ष भी जैसा की इस तथ्य को लेकर लेखक ने कहानी का अंत लिखा है |
कालभोज के जीवन में हरित ऋषि का महत्वपूर्ण स्थान है | इतिहास के तथ्यों लेकर लेखक ने एक अच्छी कहानी गढ़ी है जैसे की कश्मीर नरेश ललितादित्य की पत्नी का नाम “कमलदेवी” था | बाप्पा रावल के पुत्र का नाम “खुमाण” था |
बप्पा रावल ने राजनीति के तहत अलग-अलग धर्म के राजाओ की पुत्रीओ साथ विवाह किए थे | उन्होंने कुल 21 विवाह किए थे |
बप्पा रावल भारतीय इतिहास में एक ऐसे योद्धा के रूप में जाने जाते हैं, जिन्होंने अपनी वीरता, सैन्य क्षमता और दूरदर्शिता से विदेशी आक्रमणकारियों को रोका और भारत की सांस्कृतिक विरासत की रक्षा की |
प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – उत्कर्ष श्रीवास्तव
प्रकाशक है – रेड ग्रैब बुक्स प्राइवेट लिमिटेड
पृष्ठ संख्या – 284
उपलब्ध – अमेजन पर
लेखक अक्सर ऐतिहासिक विवरणों और कुछ हद तक काल्पनिक तत्वों का मिश्रण करते हैं ताकि एक आकर्षक कथा बनाई जा सके | आइए , थोड़ा लेखक के बारे मे भी जान लेते है |
लेखक उत्कर्ष श्रीवास्तव , इन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय से पोलिटिकल साइंस में डिग्री हासिल की है |
उन्होंने अपनी आरंभिक किताबे जिनमे रणक्षेत्रम की शृंखला और बप्पा रावल की शृंखला शामिल है | मुख्य रूप से हिंदी में लिखी | आनेवाली किताबे वह अंग्रेजी मे लिख रहे है ताकि उनकी पहुँच अंग्रेजी पढ़नेवाले पाठकों तक भी हो सके |
लेखक उत्कर्ष श्रीवास्तव की और एक उपलब्धि यह है की उन्होंने यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में ऑल इंडिया रैंक 498 हासिल किया है |
उन्होंने अपनी पढ़ाई और सफलता के पीछे अपनी व्यक्तिगत चुनौतियों को प्रेरणा में बदलने की बात कही है | वह इंकम टैक्स डिपार्ट्मन्ट मे असिस्टेंट के पद पर रह चुके हैं और फिलहाल केंद्रीय सचिवालय सूचना व प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार में सहायक अनुभाग अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं |
ऐतिहासिक लेखन के साथ – साथ वह कविताएं भी लिखते हैं | “हिंदी बोल इंडिया” जैसे पोर्टलों पर उनकी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं | यहाँ वे अपने विचारों को कविता के माध्यम से व्यक्त करने का आनंद लेते हैं | आइए अब देखते है , इस किताब का सारांश ..
सारांश –
सिंध के महाराज “दाहिरसेन” और उनके पूरे परिवार ने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया | मानमोरी के षड्यंत्र के कारण दाहिरसेन अकेले पड़ गए थे | अब वह अरबो से अकेले ही लोहा ले रहे थे |
अरबों के खलीफा ने कासिम के हाथों उन्हें संदेश भिजवाया था कि वह सिंध को बचाना चाहते हैं , तो अपनी अति खूबसूरत तीनों बेटियों को उसके हरम में भेज दे ! पर एक पिता यह कैसे कर सकता है ? चाहे फिर वह राजा ही क्यों ना हो ?
अरबों के खिलाफ हुए युद्ध में उनके परिवार के एक-एक सदस्य ने अपने प्राणों की कैसे आहुति दी ? इसके बारे में आप पिछली किताब में पढ़ पाओगे | कासिम के सैनिक अब तीनों राजकुमारीयों के पीछे पड़े हैं | अपने आप को बचाने के लिए “कमलदेवी” नदी में कूद जाती है | वह बच तो जाती है लेकिन बहुत दिनों तक नदी के कीचड़ में पड़े रहने के कारण उनके कान और गले में इंफेक्शन हो जाता है और वह अपनी याददाश्त के साथ-साथ बोलने और सुनने की भी शक्ति गवा बैठती है |
ऐसे में वह भृगु कन्याओं को मिलती है जो आजन्म ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करती है और ज्योतिष विद्या में पारंगत होती है | भृगु कन्याओं की मुखिया सिंधवाणी को कमलदेवी के बारे में सब कुछ पता चलता है फिर भी वह उसे भृगुकन्या बनाना चाहती है | यह जानते हुए भी कि वह महाराणा कालभोजादित्य की अमानत है |
देखा जाए तो कमलदेवी सिंधवाणी के षड्यंत्र का हिस्सा बननेवाली है पर किसी की जान बचाने के लिए … अब आपको किताब पढ़ कर जानना है कि कौन है वह ?
काम्हदेव और बाजवा के पराक्रम से कासिम के सैनिक हतोत्साहित है | इस कारण कासिम की माँ को लगता है कि कहीं उसका बेटा यह युद्ध न हार जाए | वैसे भी भविष्यवाणी के अनुसार कोई अपना ही उसके बेटे को दगा देनेवाला है |
इससे भी वह डरी हुई है | इसलिए वह चाहती है कि कासिम , भारतीय वीरों के शक्ति के स्रोत का पता लगाए | कासिम भी इस पर सहमत होता है क्योंकि उसने सिंध के महाराज दाहिरसेन , उनके शाही हाथी साक्या , सिंध के राजकुमार और राजकुमारियो की भी वीरता देख ली थी |
इसलिए वह काम्हदेव जहां पढ़ते थे | उस स्कूल में यानी के तक्षशिला में भेस बदलकर पहुंचता है | वहां उसकी मुलाकात किशोर ललित से होती है जो कर्कोटक वंश के और कश्मीर के राजकुमार है | बाद में यही महान सम्राट “ललितादित्य” के नाम से जाने जाते हैं |
यही ललितादित्य , कालभोज के साथ मिलकर अरबों को रोकने में सफल होते हैं | आचार्य शंभूदेव कासिम को पहेचानने के बाद भी अपनी शिक्षा का प्रदर्शन उसके सामने करते हैं , जिसमें ललित जीत जाता है | वह उसे बताते हैं कि उनकी शिक्षा का आधार तीन तत्वों पर आधारित है | पहला है “संतुलन” दूसरा है “त्याग” और तीसरा है “पैनी दृष्टि” |
कालभोजादित्य इन तीन सीखो मे पूरी तरह पारंगत है | इन्हीं तत्वों का पालन कर के उन्होंने मेवाड़ की प्रजा का मन जीता | राष्ट्रद्रोही मानमोरी को हटाकर मेवाड़ के महाराणा बने | वह सदैव राजा और प्रजा में संतुलन बनाए रखते हैं | इसीलिए वह सदैव विजयी रहते हैं |
इसके उलट कासिम ने यहां की प्रजा को अपार कष्ट दिए | वह चाहकर भी अब इनका मन नहीं जीत सकता | इसीलिए वह यह युद्ध हार जाएगा | तक्षशिला जाने के पहले उसने राजकुमारीयो का पता लगाने के लिए सिंध की प्रजा पर अनगिनत अत्याचार किए |
कइयों को मौत के घाट उतारा | सूर्य और प्रीमल से यह देखा नहीं गया और उन्होंने आत्मसमर्पण करने का निर्णय लिया | उन्होंने अपना अंतिम संदेश मोखा के पास छोडा | जो वह कालभोज को देनेवाला था क्योंकि एक बार बगदाद पहुँचने के बाद उनको उनकी मातृभूमि फिर कभी नसीब नहीं होनेवाली थी |
उनका अंत खलीफा का अंत करते हुए ही होनेवाला था | लेखक ने इन दोनों राजकुमारीयों के देशप्रेम , शौर्य और पराक्रम की गाथा को इस कदर शब्दरूपी मोतियों में पिरोया है कि इनकी गाथा आपको झकझोर कर रख देगी | ऐसी विरांगनाओं को हमारा शत-शत नमन !!!!!
तक्षशिला में रहते हुए कासिम को लगता है कि वह आलोर मे एक दिन लेट पहुंचेगा तो क्या हो जाएगा लेकिन इसी एक दिन मे सिंध की सेना , गुप्तचर और महाराज नागभट्ट प्रतिहार , सिंध के खजाने का सोना ब्राह्मणाबाद के सुल्तान से वापस ले लेते हैं | अब तक कालभोज , नागभट्ट , देवा , हरित ऋषि सब लोग सिंध में पहुंच चुके हैं | जिस तरकीब से यह लोग सोना वापस पाते हैं | उसे आप जरूर पढ़िएगा |
अब की बार इनका सामना ब्राह्मणाबाद के हाकीम सलीम जैदी से होता है | इसका सामना जब रावल से होता है तो वह अपनी जान बचाकर भाग जाता है | फिर भी वह कालभोजादित्य रावल को घायल करने में कामयाब होता है क्योंकि कालभोज अब तक सुबर्मन की हत्या से उबर नहीं पाए थे और उनको युद्ध के वक्त सलीम जैदी में सुबर्मन का चेहरा दिखाई दिया था |
कालभोज का उपचार होने तक कासिम सिंध में वापस आ गया था | तब तक सलीम जैदी ने ब्राह्मणाबाद और सिंध का सोना गवा दिया था | इसके बाद कासिम और कालभोज का युद्ध में आमना – सामना होता है |
कच्छ के टापू पर कासिम , कालभोज के बिछे जाल में फंस जाता है और युद्ध हारता है फिर भी भोज उसे छोड़कर एक और मौका उसे देते है ताकि वह सिंध के लोगों का दिल जीत सके |
कासिम अपनी रणनीति बदलकर यह युद्ध जीतने की भरसक कोशिश करता है पर कालभोज के सामने कम ही पड़ जाता है | सिंध का युद्ध जीतने के लिए दोनों पक्ष अपनी-अपनी रणनीतियां तैयार करते हैं |
इन रणनीतियों को आजमाने के क्षेत्र है सिंध का देबल | यह एक समुद्री तट है | जहां से विदेशी लोग समंदर के रास्ते सिंध में प्रवेश कर सकते हैं | ब्राह्मणाबाद , सिंध की राजधानी , आलोर , सिंध की उपराजधानी , भिन्नमाल और असीरगढ़ |
कासिम अपनी रणनीति बदलकर सिंध की जनता का मन जितना चाहता है ताकि इस युद्ध में वह उसका साथ दे और वह यह युद्ध जीत जाए पर ऐसा करते ही उसके अधिकारी उससे चिढ़ते है और उसे अरब सेना के सेनापति पद से ही हटा देते है |
एक तरफ वह अपने देश और इन अधिकारियों के साथ अपनी वफादारी साबित कर रहा है , तो दूसरी तरफ राजधानी बगदाद में उसके अपने उसके खिलाफ षड्यंत्र रच रहे हैं | इस षड्यंत्र के तहत अब उसकी जगह पर “अल जुनैद” को भेजा जाता है | वह यह पैगाम लेकर आता है की ,”कासिम खुद को कच्चे घोड़े के खाल में सिलवाकर , ताबूत में बंद कर के खलीफा के पास आए |”
पर इतने वफादार हकीम के साथ ऐसा क्यों होता है ? कौन है इस षड्यंत्र के पीछे ? क्या कासिम इस आज्ञा का पालन करेगा ? या खिलाफत के साथ बगावत कर के भारतभूमि में अपना नया राज्य स्थापित करेगा ? यह तो आपको किताब पढ़ कर ही जानना होगा और यह भी कि बगदाद पहुंच चुकी सिंध की राजकुमारीयां प्रीमल और सूर्य अपने मकसद में कामयाब हो पाती है या नहीं ?
बहेरहाल , आलोर का किला जीतने के लिए फिर से एक बार कासिम और महारावल का आमना – सामना होता है | इस किले को जीतने के लिए तीन मोर्चों पर तीन लड़ाइयां लड़ी जाती है |
पहले मोर्चे पर कासिम के उस्ताद अलाउद्दीन और देवा का युद्ध होता है | इसमें देवा विजयी होता है | अलाउद्दीन मारा जाता है | दूसरे में कालभोज विजयी होते हैं पर कासिम घायल होकर हार मान लेता है | तीसरे में अरब का नया सेनापति अल जुनैद ,नागभट्ट प्रतिहारी के हाथों अपमानित होकर जंगल में भाग जाता है परंतु इस मोर्चे पर सिंध का आखिरी वारिस , राजकुमार वेदांत वीरगति को प्राप्त होता है |
वैसे ही ब्राम्हणाबाद का किला जीतने के लिए हिंद सेना और अरब सेना में टकराव होता है | इसमें सुल्तान सलीम बिन जैदी बुरी तरह परास्त होता है | इसी किले में वंशपरंपरागत रूप से गणपति बप्पा की स्थापना होते आई थी |
सो , रावल के नेतृत्व में इस साल भी बप्पा की स्थापना बिना विघ्न होती है |इसीलिए सिंध के लोग अब महारावल को बप्पा रावल के नाम से पुकारने लगते हैं | रावल के गुरु हरित ऋषि के अनुसार मनुष्य पर जितनी बड़ी जिम्मेदारी होती है | उसको अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं का उतना ही त्याग करना पड़ता है | इसी के तहत रावल सुल्तान सलीम बिन जैदी की बेटी शहजादी अल मैया से विवाह करते है जबकि वह प्रेम कमलदेवी से करते हैं|
ब्राह्मणवाद का किला जीतते समय दुशल और विजय इन दोनों भाइयों की जोड़ी में से दुशल वीरगति को प्राप्त होता है | यह दोनों सिंध के बोधिसत्व ग्रुप के जासूस थे | इन्होंने ही बगदाद में प्रीमल और सूर्य की मदद की थी |
आलोर की हारी हुई सेना ने राजधानी बगदाद में कदम रखा | अल जुनैद और उसके साथियों ने वहां का तख्ता पलट कर दिया था | अल जुनैद अब भी नागभट्ट को बर्बाद करना चाहता था |
इसलिए उसने कासिम की ही योजना पर काम किया पर लंबे वक्त के लिए | इसी के तहत अब 19 साल बाद उसके गुप्तचर सामने आने लगे हैं | उन्होंने मेवाड़ , चालुक्य , पल्लवराष्ट्र , कश्मीर की परंपरागत फसलों को बर्बाद किया जिससे अपने आप ही राज्यों के कोष पर प्रभाव पड़ा |
अब उनके इस षड्यंत्र का पता बप्पा रावल के छोटे पुत्र विराट को चल चुका है | उसे क्या पता कि वह जिनको वर्षों से अपना विश्वस्त समझता आया है | असल में वह विदेशी है | उनके शत्रु है | ऐसे ही घुसपैठिये भारत के मुख्य राज्यों याने के पल्लवराष्ट्र , कन्नौज, कश्मीर , भिन्नमाल , ब्राह्मणाबाद में घुस चुके हैं |
उनके षडयंत्रों के कारण सब तरफ उथल-पुथल मची हुई है | इस युद्ध में हर किसी ने अपने को खोया है | अब यह षड्यंत्रकारी वर्षों से अपनों के भेस में यहां रहते आए हैं | यहां उन्होंने अपना परिवार बसाया है | उनका परिवार यहां बड़ा हुआ है , तो इनको ढूंढना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है | इसीलिए ज्योतिष विद्या में पारंगत भृगु कन्याओं की मुखिया कमलदेवी का कहना है कि इन घुसपैठियों को पूरी तरह नाकाम करने के लिए उनके शक्ति स्रोत को ही नष्ट करना होगा |
यानी की अरबो की राजधानी बगदाद पर ही हमला कर उम्यद खिलाफत को ही नष्ट करना होगा ताकि इन लोगों के पास तबाही मचाने का कोई मकसद ही शेष न रहे | इसीलिए भृगु कन्याओं की मुखिया कमलदेवी ने एक महीने के बाद की तारीख तय की है |
इस तारीख को अगर हिंद सेना अपनी यात्रा शुरू करेगी तो उसे विजय अवश्य मिलेगी | यही उनकी विजय यात्रा होगी लेकिन इतने बड़े युद्ध का निर्णय बप्पा रावल जल्दी नहीं ले पाए क्योंकि वह हिंसा को प्रधान्यता नहीं देते |
इसीलिए कमलदेवी यही प्रस्ताव कश्मीर नरेश ललितादित्य को भी देती है | अब हिन्द सेना का सेनापति पद पाने के लिए दो महान सम्राट आपस में लड़ बैठते हैं | इस परिस्थिति के लिए बहुत से कारण जिम्मेदार है |
कमलदेवी सोचती है की , अगर यह लड़ेंगे तो हिंद सेना कमजोर हो जाएगी | इसलिए कमलदेवी क्या करती है ? और कौन हिंद सेना का सेनापति बनता है ?
सबसे बड़ी बात यह विजययात्रा होती है कि नहीं ? यह जानने के लिए और इतिहास के इन वीरों और खलनायकों की रणनीति – कूटनीति , शौर्य – पराक्रम , त्याग – निष्ठा , सुख – दुःख , विजय- पराभव के बारे में जानने के लिए यह किताब जरूर पढिए |
लगता है जैसे लेखक युद्ध का वर्णन करने में सिद्धहस्त है | उन्होंने हर एक युद्ध का वर्णन बहुत ही बारीकी से किया है | किताब उबाऊ नहीं लगती | हमने किताब दूसरी बार भी उसी तन्मयता के साथ पढ़ी | जीतनी की पहली बार ….
यह तो हमने आपको बहुत-बहुत संक्षेप में बताया | महान शासक बप्पा रावल को और पास से जानने के लिए जरूर पढिए -बाप्पा रावल – श्रृंखला भाग दो “विजययात्रा”| तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते है और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ….
धन्यवाद !!
VIJAYAYATRA BOOK REVIEW SUMMARY HINDI
