GULSHAN NANDA’S WAAPSI NOVEL REVIEW (HINDI): यह क्लासिक क्यों पढ़ें?

गुलशन नंदा के 'वापसी' उपन्यास का कवर पेज, जिसमें भारतीय और पाकिस्तानी सैनिक, एक महिला का चित्र, और युद्ध की पृष्ठभूमि दिख रही है।"

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गुलशन नंदा द्वारा लिखित
रिव्यू –
प्रस्तुत उपन्यास गुलशन नंदा द्वारा लिखित है | यह उनके लोकप्रिय उपन्यासो मे से एक है | इसने पाठकों के बीच एक खास जगह बनाई थी | यह बचपन के बिछड़े दो जुड़वा भाइयों की कहानी को केंद्र मे रखकर लिखी गई है | गुलशन नंदा अपनी पीढ़ी के सबसे लोकप्रिय और सफल हिंदी लेखकों में से एक रहे है | उनके कई उपन्यासों पर फिल्में भी बन चुकी है | “नंदा जी की लेखन शैली की रफ़्तार बहुत तेज़ है। कहानी तेजि से आगे बढ़ती है | 

     उन्होंने सरल, बोलचाल की भाषा का उपयोग किया है जो कहानी में तुरंत खींच लेती है। उन्होंने जिस तरह से सैनिक जीवन के रोमांच और पारिवारिक भावनाओं को एक साथ गूंथा है, वह काबिले तारीफ है।” यह हमे एक बेहतरीन उपन्यास लगा अगर इसे रेटिंग देने की बात हो तो हम इसे 5 की ही रेटिंग देना चाहेंगे | 
प्रस्तुत उपन्यास की पृष्ठभूमि 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद की है | जब शांति काल चल रहा था | इसी शांति काल मे भारतीय सेना के कैदी जवानों को पाकिस्तान भारत वापस भेज रहा था | सेना के शांतिकाल मे भी सेना काम करते रहती है |
इन्ही भारतीय कैदियों मे रणजीत नाम का सैनिक है जिसकी शक्ल पाकिस्तानी सैनिक के साथ हूबहू मिलती है | इसी का फायदा उठाकर वह रणजीत की जगह लेकर भारत आना चाहता है ताकि भारतीय सेना की खुफिया जानकारी निकाल सके |
वह भारत आने पर अपनी असलियत जानता है और उस कप्तान की भी जिसे वह आज तक दुश्मन समझता आया था | देश के बंटवारे और युद्ध ने दो भाइयों को दो विपरीत दिशा मे खड़ा कर दिया था क्योंकि बड़े होकर एक भाई हिंदुस्तानी सेना में शामिल होता है और दूसरा पाकिस्तानी सेना में | यह कहानी कैप्टन रणजीत नाम के एक सैनिक की “वापसी” की है और साथ मे उसके माँ की भी | जो न सिर्फ अपने बेटे की युद्ध से वापसी चाहती है बलि अपने परिवार की भी | भारत-पाकिस्तान के बँटवारे और युद्ध के कारण एक माँ को गहरे मानसिक पीड़ा से गुजरना पड़ता है |
किसी माँ की चिंताएँ किसी राष्ट्र या धर्म से बंधी नहीं होती है | उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनका एक बेटा हिंदुस्तानी है और दूसरा पाकिस्तानी | वह बस उन्हे अपने बेटों के रूप मे प्यार करना चाहती है | रशीद की माँ का सपना है कि वह अपनी बहू सलमा को भी उन कपड़ों और ज़ेवरों से सजाए जो उसने शादी के दिन पहने थे | यह उसके जीवन की सामान्य, घरेलू खुशियों को दर्शाता है जो युद्ध और विभाजन के कारण असंभव है |
उपन्यास की कहानी प्रेम, कर्तव्य से भरपूर एक हृदयस्पर्शी कथा है | इसमे रोमांच का पुट भी है, विशेषकर सैनिक जीवन, युद्ध और जासूसी के तत्वों के कारण | उपन्यास की कहानी हमे बताती है की युद्ध , सीमाएँ और नफरत लोगों को अलग देती है लेकिन परिवार और प्रेम के बंधन, इन सीमाओं से परे होते हैं |
युद्ध के बाद जब हालात कुछ सामान्य होते हैं, तो उन लोगों को उम्मीद की एक किरण दिखाई देती है जिन्होंने बंटवारे मे अपने देश बदले थे और अभी पछता रहे थे | जैसे कि रशीद अपनी पत्नी सलमा से वादा लेता है कि जब हालात सुधरेंगे तो वह उसकी माँ से मिलने भारत के कुल्लू मे बसे मनाली ज़रूर जाएगी |
कहानी का पूरा फोकस मेजर रशीद पर ही रखा गया है | चूंकि रणजीत कारागार मे है | इसलिए प्रायः उसे परदे के पीछे ही रखा गया है | इसलिए हम इसके मुख्य पात्र मेजर रशीद के पात्र की ही समीक्षा करेंगे |
यह पात्र जटिलता और द्वंद्व से भरा हुआ है | वह अपना सैन्य जीवन छोड़कर जासूसी करने भारत क्यों आना चाहता है ? जब की इस काम के लिए उसके देश ने पहले से ही लोग लगा रखे है | या फिर शांतिकाल मे भी वह अपने देश के लिए कठिन कर्तव्य निभाना चाहता है | या फिर उसके माँ से मिलने की नियति उसे इधर बुला रही थी ? अगर वह यह निर्णय न लेता तो शायद उसका अंत वैसा ना होता | उसकी माँ उसे दूर से ही सही , हसता खेलता देखती |
यह पात्र विभाजन और युद्ध की मानवीय त्रासदी का भी प्रतीक भी है | बंटवारे और युद्ध ने एक ही परिवार को दो विरोधी ध्रुवों पर खड़ा कर दिया | उपन्यास में रशीद की अपनी एक प्रेम कहानी भी है | वह कराची में एक दोस्त के यहाँ मुशायरे में जाता है और वही उसकी मुलाकात सलमा से होती है | यह पहलू उसके चरित्र को केवल एक सैनिक के रूप में नहीं, बल्कि एक सामान्य मनुष्य के रूप में स्थापित करता है जिसके जीवन में प्रेम और कला याने शेरो-शायरी के लिए भी जगह है |
| प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – गुलशन नंदा
प्रकाशक है – भारतीय साहित्य संग्रह
पृष्ठ संख्या है – 265
उपलब्ध है – अमेजन पर

सारांश –

पाकिस्तान में कुछ भारतीय कैदी कैद है | उनमें से कैप्टन रणजीत की शक्ल मेजर रशिद से हुबहू मिलती है | अब मेजर रशीद के दिमाग में एक प्लान आता है कि वह कैप्टन रणजीत बनकर रिहा होनेवाले कैदियों के साथ भारत चला जाए और कैप्टन रणजीत बनकर वहां के सेना की खुफिया जानकारी इकठ्ठा करे |
इसके लिए वह अपने सीनियर अफसर को मना लेता है | वह जाने से पहले रणजीत को अपने घर अपनी पत्नी सलमा से मिलाने भी लाता है | इसी बहाने वह जांच करना चाहता है कि उसे रणजीत बनने के बाद रशीद के रूप में कोई पहचानता है कि नहीं |
आखिर , वह भारत पहुँच जाता है | यहाँ उसे रणजीत का मित्र गुरमीत मिलता है | उसकी और रणजीत की पोस्टिंग अभी कश्मीर में है | वही रणजीत को उसके मददगार मिलते हैं जो भारत में रहकर पाकिस्तान के लिए जासूसी कर रहे हैं |
एक तो उसके सीनियर ऑफिसर का ड्राइवर ही है | दूसरा है , जॉन और उसकी प्रेमिका रुखसाना | दोनों ओबेरॉय होटल में रहते हैं | रुखसाना वहां पर डांसर है | जॉन वहां काम करता है | इसी बीच रणजीत की प्रेमीका पूनम उससे मिलने आती है | इस घटना से वह नर्वस हो जाता है फिर भी वह पूनम को किसी तरह हैंडल कर लेता है | बीच में वैसे ही घटनाएं घटती है , जैसे की 70 से 80 के दशक के फिल्मों में दिखाई जाती थी |
बहेरहाल , वह पकड़ा नहीं जाता | अब जॉन और रुखसाना उसे एक पीर बाबा की जगह लेकर जाते हैं , जो आबादी से दूर है | लोग उसे भगवान का फरिश्ता समझते हैं पर असलियत में वह एक पाकिस्तानी जासूस है और उसकी जगह पाकिस्तानी जासूसों की खुफिया जगह …
रणजीत का मित्र गुरमीत फिर से कश्मीर वापस लौट आया है पर इस बार एक सैनिक बनकर नहीं बल्कि पाकिस्तानी जासूसों के बारे में पता करने आया है | उसके पास एक फिल्म है जिसे अब रशीद और उसके साथी हासिल करना चाहते हैं | इसलिए रुखसाना को उसके पीछे लगा दिया जाता है पर गुरमीत ही चकमा देकर रुखसाना का पीछा करता हुआ उनके खुफिया अड्डे पर पहुंच जाता है लेकिन वह जॉन से बच नहीं पता और मारा जाता है |
गुरमीत के मरने के बाद पुलिस और मिलिट्री दोनों सक्रिय हो जाते हैं | उन्हें गुरमीत के पास असली फिल्म भी मिलती है जिन में पाकिस्तानी जासूसों की जानकारी है | जॉन और रुखसाना के बारे में पुलिस को पता चल जाता है | उनके नाम के वारंट जारी हो जाते हैं पर रशिद की जानकारी उसमें नहीं है |
फिर भी वह छुट्टी लेकर रणजीत की माँ से मिलने मनाली जाने की तैयारी करता है | रुखसाना दिल्ली चले जाती है | जॉन पाकिस्तान जाना चाहता है पर बॉर्डर पर ही मारा जाता है | दिल्ली में पूनम , रशीद के साथ जिस हॉटेल मे खाना खाने आई है | वहीं उनकी मुलाकात “लिली” बनी रुखसाना से होती है |
रशिद चाहकर भी पूनम को अपना नहीं सकता | इस कारण रुखसाना उसे पाना चाहती है पर रशीद उसे गुस्से से बाहर निकाल देता है | वह इसे अपना अपमान समझकर उसकी सारी सच्चाई पूनम को बता देती है | दूसरे दिन उसे पकड़ने पुलिस आती है | वह शांति से गिरफ्तार हो जाती है परंतु पाकिस्तानी जासूसी रिंग 555 के लोगों द्वारा मारी जाती है |
इधर रशीद मनाली पहुंच जाता है | रणजीत की माँ का प्यार देखकर वह एक पल के लिए भूल ही जाता है कि यह उसकी नहीं रणजीत की माँ है पर यह उसकी भूल है | वह सिर्फ रणजीत की ही नहीं बल्कि उसकी भी माँ है | पर कैसे ? यही कहानी का ट्विस्ट है और यही आपको पढ़कर जानना है |
हाँ , एक बात और बता देते हैं कि उसकी माँ को रशीद के बचपन से लेकर तो उसकी शादी सलमा से होने तक की सारी खबर है | अब इसके पीछे क्या राज है ? जरूर पढ़िएगा और रणजीत की अपने देश वापसी होती है कि नहीं ? यह भी …. तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ….
धन्यवाद !!

“गुलशन नंदा के कई उपन्यासों पर फ़िल्में भी बन चुकी हैं। अगर आप उनकी एक और मार्मिक कहानी पढ़ना चाहते हैं, तो एक नदी दो पाट का रिव्यू यहाँ पढे |   https://saranshbookblogs.com/ek-nadi-do-pat-book-review-in-hindi/

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नीचे देखें और सबसे आम सवालों के जवाब पाएं।

सवाल है ? जवाब यहाँ है | (FAQs SECTION)

Q.1. ‘वापसी’ उपन्यास किस विषय पर आधारित है ?
A. बचपन के बिछड़े दो जुड़वा भाइयों की कहानी पर आधारित है जिसमे एक भारतीय , तो दूसरा पाकिस्तानी सेना मे शामिल होता है |
Q.2. क्या ‘वापसी’ उपन्यास पर कोई फ़िल्म बनी है?
A.नहीं |
Q.3. इस कहानी का मुख्य संदेश क्या है?
A.युद्ध , सीमाएँ और नफरत लोगों को अलग देती है लेकिन परिवार और प्रेम के बंधन नहीं | वह इन सीमाओं से परे होते हैं |
Q.4. ‘वापसी’ उपन्यास के मुख्य पात्र कौन हैं ?
A.भारतीय सैनिक कैप्टन रणजीत , उसका जुड़वा भाई पाकिस्तानी सैनिक मेजर रशीद, उनकी माँ , मेजर रशीद की पत्नी सलमा और रणजीत की प्रियसी पूनम |
Q.5. गुलशन नंदा की लेखन शैली कैसी है?
A.सामाजिक , भावनात्मक , हृदयस्पर्शी , तेज रफ्तारवाली और विषयों के अनुसार कभी – कभी रोमांचक |

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