VAARI BOOK REVIEW AND SUMMARY IN HINDI

वारी
व्यंकटेश माड़गुलकर द्वारा लिखित

रिव्यू –
पंढरपुर की यात्रा को “वारी” कहते हैं | जैसे चार धाम की यात्रा होती है वैसे ही यह भी होती है | पंढरपुर के मंदिर में भगवान विट्ठल विराजमान है | उन्हें “माउली” भी कहते हैं | इस तरह यह वारकरी लोगों के माता और पिता दोनों है | पंढ़रपुर की माउली भी भगवान विष्णु का ही एक रूप है |
प्रस्तुत कहानी कहानियों का संग्रह है जिसमें 14 कहानियां संकलित की गई है | लेखक ग्रामीण जीवन का दर्शन कराते हैं | वह अपनी कहानियो द्वारा वहाँ के लोगों के संघर्ष दिखाते हैं | उनकी कहानीयां ग्रामीण लोग , उनके खेत – खलिहान , आजू-बाजू के जंगली जानवर , उनके पालित पशु इनके इर्द – गिर्द घूमती है | ज्यादा से ज्यादा दूसरे गांव और जिले का थोड़ा बहुत समावेश होता है |
हर एक कहानी में अलग घटना और अलग किरदार होते हैं | उनकी कहानियां सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं है बल्कि वह आप को सोचने और महेसूस करने पर मजबूर कर देती है | वह ग्रामीण जीवन को जैसे अपने कहानियों से जीवंत कर देते हैं |
ग्रामीण जीवन है | इसलिए देहाती भाषा का उपयोग हुआ है | गरीबी प्रखरता से दिखाई देती है | इस पर भी अगर किसी को कुछ व्यसन है तो फिर वह आनेवाले अच्छे दिन भी नहीं देख पाता | ऐसी ही कहानी है “हे पाप कुठं फेडु” | “वारी” कहानी अस्पृश्य लोगों के समाज में लिमिटेशन के बारे में बताती है की कैसे उनको पंढरपुर के मंदिर में भगवान के दर्शन करना मना था |
“असलं लई बघितल्यात” में एक युवती उसको छेड़नेवाले अमीर युवक को अच्छा सबक सिखाती है | इस तरह वह अपनी लेखनी से मनुष्य के विविधरंग दिखाते है | इस बेहतरीन किताब के –
लेखक है – व्यंकटेश माड़गुलकर
प्रकाशक है – मेहता पब्लिशिंग हाउस
पृष्ठ संख्या है – 121
उपलब्ध है – अमेजॉन और किंडल पर

सारांश –
“वारी” कहानी में अर्जुन के पंढरपुर यात्रा की कहानी है | अर्जुन अब बूढ़ा हो चुका है | उसका अब प्रपंच में नहीं लगता | सिर्फ पंढरपुर की माउली उसके मन में समाई है | वह जैसे उसे अपनी ओर बुला रही है | इसलिए वह पंढरपुर जाना चाहता है |
विट्ठल माउली के पैरों पर अपना सर रखना चाहता है | वैसे भी अस्पृश्य होने के कारण पीढ़ियों से उसके पूर्वजों ने दूर से ही दर्शन किए है लेकिन अब स्वतंत्रता के बाद और बाबासाहेब आंबेडकर के प्रयत्नों से परिस्थितियाँ बदल गई है | उन्हें मंदिर में प्रवेश की अनुमति मिल गई है |
अब वह भगवान को पास से देख सकते है | उन्हें छू सकते है | इसलिए अब अर्जुन से रहा नहीं गया | बेटे और बहू से पूछ कर वह वारी को निकला | वहाँ पहुंचा भी पर वह भगवान के पैरों पर अपना माथा रख न सका | उसने अपने आप को इस काबिल ही नहीं समझा | वह उस सीढ़ी से ही दर्शन कर के लौटा जहां से उसके पूर्वज लौटते थे |
“वाटसरु” कहानी में एक आदमी भर बारिश मे , रात के अंधेरे में, जंगल में बनी एक कुटिया में आश्रय लेता है | अंदर जाने के बाद उसको वहां का वातावरण बड़ा खतरनाक दिखाई देता है | ऐसा लगता है कि उसके साथ कुछ बुरा होनेवाला है पर कुछ देर बाद वह आदमी भी डर से बाहर आता है | अब उसने भी अपने आप को तैयार कर लिया है | अब आपको ही पढ़कर यह जानना होगा कि किसने किसको धोखा दिया |
“नगरी” कहानी में गांव से बस शुरू हो गई | अब लोगों को लगा कि उनकी जिंदगी ज्यादा आसान हो गई | अब उन्हें शहर तक पैदल जाने की जरूरत नहीं रही | नाही तो , साइकिल चलाकर जाने की .. अब तो वह कितना भी सामान बस मे लेकर जा सकते थे | वह बहुत खुश थे पर इस खुशी में थोड़ी कमी थी |
बस का कंडक्टर टिकट के पूरे पैसे लिए बगैर किसी को सफर करने ही नहीं देता था | चाहे फिर वह गांव का अमीर आदमी ही क्यों ना हो ! वह उधारी और बाकी पैसे बाद में देने को भी ना बोलता था | जिसके पास पैसे नहीं , उसको बस से उतार देता था | वह किसी की भी जरूरत को समझता ही नहीं था |
ऐसे में कंडक्टर हमेशा ही स्टॉप के किनारे के खेतों से कुछ ना कुछ तोड़ लिया करता | इस पर खेत मालक ने उसे डांटा तो बस ड्राइवर और कंडक्टर ने उसे मारा | जब यह बात गांव में पता चली तो पूरे गांव ने ड्राइवर और कंडक्टर को धमकाकर छोड़ दिया | इन दोनों ने पुलिस में शिकायत की | गांव के कुछ एक लोग गिरफ्तार कर लिए गए | अब तो बसवाला और गांववालों में बातचीत बंद हो गई |
लोग बस से जाने की बजाय पैदल ही तालुका जाने लगे | बीते दिनों के साथ बारिश का मौसम आया | नदी – नाले , तालाब लबालब भर गए और ऐसे में एक दिन बस रेत में फंस गई | आजू-बाजू से बहुत – सा पानी मिट्टी लेकर अपने साथ आ रहा था | बस धीरे-धीरे रेत में फसती जा रही थी |
ड्राइवर और कंडक्टर ने गांववालों से मदद मांगी पर सबने आने का आश्वासन दिया पर आया कोई नहीं | पूरी बस कीचड़ में फंसकर खराब हो गई | जब पानी का प्रभाव कम हुआ तो बस मालिक आया | उसने कुछ लोगों की सहायता से बस निकाली और लेकर गया |
उसके बाद इन लोगों के गांव से दूसरी बस कभी शुरू ही नहीं हुई | लेखक का गांव “माड़गुल” भी पठार पर बसा हुआ है | यहां हमेशा ही पानी की किल्लत रही है | इसलिए उपजाऊ जमीन कम है | इसीलिए उत्पन्न कम है | इसीलिए गरीबी है | अभी भी माणदेश उत्पन्न के मामले मे पीछे है | इस कमतरता के चलते भी लेखक के गाँव मे एक तालाब बनाया गया जिससे खेती – बाड़ी अच्छे से होने लगी | लोगों का जीवनस्तर बढ़ने लगा |
ऐसे इस तालाब को लेखक ने अभी तक देखा ही नहीं था | उनमे इसे देखने की बड़ी उत्सुकता जाग गई | इसलिए एकदम सुबह-सुबह ही वह उसे देखने के लिए निकल पड़े | उस तालाब को देखते हुए उन्हें बड़ा गर्व महसूस हो रहा था | उन्हें वहीं पर एक बूढ़ा आदमी दिखा जो बहुत दुःखी था |
लेखक को पता चला कि उसकी जमीन , घर सब उस तालाब की जगह थे | सरकार ने उन्हें उसके बदले पैसे दिए | फिर भी वह दुःखी था | उसके अनुसार एक लंगड़े आदमी को उसका पैर वापस चाहिए होता है पर सरकार उसे सिर्फ पैसे दे सकती है | पैर नहीं !
उस बूढ़े आदमी को उसकी जमीन और घर के बिछडने का दुःख था | उसके लिए पैसों का उतना महत्व नहीं था | उसकी यह व्यथा सुनकर लेखक को उत्साह से भर देनेवाले वह तालाब अब उन्हे महत्वहीन लग रहा था |
“बाबू म्हातारयाचा शेवट” कहानी के बाबू म्हातारया से आप लेखक की पिछली किताबों में मिल चुके हैं | वह अब बूढ़ा हो चुका है | उसकी शक्ति अब कम हो गई है पर वह इस बात को स्वीकार ही नहीं कर पा रहा | वह हर बार अपनी ताकत का नमूना दिखाने की फिराक में ही रहता है | ऐसे ही एक प्रयत्न में उसकी जान कब चली जाती है शायद उसे भी पता नहीं लगता |
“हे पाप कुठं फेडू” और “असलं लई बघितल्यात” के बारे में थोड़ी हिंट तो हम आप को रिव्यू में ही बता चुके हैं | “लग्न” कहानी में एक अति गरीब लड़की की शादी बहुत ही अमीर लड़के के साथ होती है क्योंकि वह सुंदर है |
उसका भाग्य बहुत अच्छा है | लड़की के तीन भाई में से एक भाई के मन में आता है कि मेरे पिता ने पूरी लाइफ गरीबों की जिंदगी जी .. उसका बड़ा भाई भी थोड़ी बेहतर ही जिंदगी जी पाएगा | वह और उसका छोटा भाई भी पढ़ लिखकर गरीबी से थोड़ा अच्छा ही जीवन जी पाएगा पर उसकी बहन को बिना कुछ किए ही सबकुछ मिल गया क्योंकि वह सुंदर है और लड़की है |
इस वजह से उसका भाई जल – भून जाता है और अपने ही बहन से रिश्ता तोड़ देता है | अब आप ही बताइए | लड़के की सोच अच्छी है या ओछी | “जत्रा , रसूल , सोबत , जन्माच्या गाठी , वारसा , तो अटल बाल्या ” यह कहानीयां भी आपको जरूर पसंद आएगी | किताब लोगों को पसंद आई है | शायद इसीलिए इसे 4.5 स्टार की रेटिंग है | जरूर पढ़िए |
किताबों में बहुत पावर होता है | यह आपको उस हर एक सवाल का जवाब देती है जो आपको चाहिए होता है | बहुत बार सफल लोग कम पढे – लिखे होते है | वह भले ही कम पढ़े – लिखे हो ! किताबें जरूर पढ़ते हैं | आप भी पढ़िए | इसीलिए हम हर किताब के रिव्यु के आखिर मे लिखते हैं – “पढ़ते रहिए” | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ..
धन्यवाद !!

 

 

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