उर्मिला
अंकुश शिंगाड़े द्वारा लिखित
रिव्यू –
उर्मिला…. रामायण की और एक भूली बिसरी पात्र रामायण में श्रीराम जी के वनवास की बात कहे तो सबको श्रीराम ,सीता माता और लक्ष्मण मुख्यतः याद आते हैं | इनके बाद सबको इनके माता-पिता का दुख दिखाई देता है लेकिन कोई भी सीता माता की बाकी बहनों की तरफ ध्यान नहीं देता है | वैसे नए जमाने में जैसे-जैसे रामायण इस महान ग्रंथ की पढ़ाई ,अपने क्षेत्र में पारंगत लोग कर रहे हैं | वैसे वैसे रामायण का हर एक पात्र खुलकर सामने आ रहा है |
यह कहानी है ऐसे ही एक पात्र की …. जिसका नाम है “उर्मिला” | उर्मिला यह लक्ष्मण की पत्नी थी | उर्मिला लक्ष्मण के वनवास जाने पर कैसे एकाकी जीवन बिताती है ? यही इस किताब में लेखक ने हमें बताने की कोशिश की है | उनकी यह कोशिश कामयाब रही | उन्होंने अपनी यह किताब ई .साहित्य की वेबसाइट पर पब्लिश की है जो नए लेखकों को एक प्लेटफार्म प्रोवाइड करती है |लेखक के बारे मे जानकारी किताब के शुरुवात मे ही पढ़ने को मिलेंगी | आप उनको उनके व्हाट्स एप पर किताब के बारे मे अपने विचार बात सकते है | अब आप सोचेंगे कि… राजमहल में इतने सारे लोग होते हुए भी उर्मिला एकाकी जीवन कैसे जीती रही ? तो एक विवाहित महिला के लिए उसका पति ही उसकी पूरी दुनिया होता है | तब तो पति को परमेश्वर का दर्जा प्राप्त था |
अब पूरे 14 साल उसे अपने पति के बगैर गुजारने थे | लक्ष्मण अपना बंधु प्रेम निभाने के लिए श्रीराम जी के साथ गए | क्या उन्होंने उर्मिला के बारे में एक बार भी नहीं सोचा होगा | वह जाते वक्त उर्मिला को बता कर गए थे की वह कभी नहीं रोएगी और उनके माताओं की सेवा करते रहेगी | बाद में उन्होंने निद्रा देवी को भी उर्मिला के पास भेज दिया था | क्या आप जानते हैं श्रीराम जी ने जब रावण को हराया तो इस जित मे उर्मिला का भी बहुत बड़ा योगदान था | उसी के कारण रावण को हराना आसान हो पाया |
आइए जानते हैं कैसे ? मेघनाथ रावण का पुत्र था | वह महाप्रतापी योद्धा था | उसे उसके राज्य में स्थित देवी की पूजा पूर्ण करने के बाद एक रथ मिलने वाला था | जिसकी वजह से वह अजय होने वाला था | अगर उसे यह रथ मिल जाता तो वही अंतिम समय तक युद्ध लड़ते रहता | उसके रहते रावण कभी युद्ध भूमि में आता ही नहीं और जब रावण मरता नहीं तब तक युद्ध समाप्त कैसे होता ? मेघनाथ को वही व्यक्ति मार सकता था जो पिछले 12 वर्षों से सोया ना हो |
ऐसा एक ही व्यक्ति श्रीराम जी की और था और वही थे लक्ष्मण.. | जब निद्रा देवी लक्ष्मण की और आई थी तब वह पहरा दे रहे थे तब उन्होंने निद्रा देवी को बानो से बांधकर उर्मिला की ओर भेजा दिया था | उर्मिला ने पत्नी धर्म निभाते हुए यह सहर्ष स्वीकार किया | वह पूरे 14 सालों तक वह अपने पति के हिस्से की भी नींद लेती रही | वह बहुत थोड़े वक्त के लिए ही जागा करती |
उस वक्त मे वह अपने पति के मांओ की सेवा किया करती | इस तरह से हुई ना उर्मिला भी महान …. | उसने भी बहुत बड़ा त्याग किया है और दुख झेला है | वैसे ही भरत पत्नी मांडवी ने भी दुख झेला है क्योंकि उसका पति भी सन्यासी का वेश धरकर राज महल के बाहर कुटिया बनाकर रह रहा था | पति सामने होते हुए भी ,उसने पति वियोग का दुख झेला |
अब इन सब लोगों ने जिन कैकेयी और मंथरा के कारण दुख झेला | उन्होंने भी कितना महान कार्य किया | इस कार्य को करने के लिए उन्हें लोगों के सामने बुरा बनना पड़ा | उनकी उलाहना सहनी पड़ी | श्रीराम यह सब जानते थे कि उनके माता की यह इच्छा वनवासी बनकर ही पूरी की जा सकती है | इसीलिए शायद उनका अपने माता कैकेयी के प्रति प्रेम तनिक भी कम नहीं हुआ | लेखक ने किताब में और भी बातें बताई कि श्रीराम जी ने बाली को छुप कर क्यों मारा ? इसमें क्या रहस्य छिपा हुआ है |
बाली और रावण का संबंध ,और रावण बाली के राज्य से वह क्या लेकर गया जिसे हासिल करने के लिए श्री राम जी को वनवासी होना पड़ा क्योंकि उनकी माता को पूरा विश्वास था कि यह अनमोल धरोहर श्रीराम ही वापस ला सकते हैं | रावण भी बहुत ज्ञानी इंसान था | एक बार मंदोदरी ने पूछा कि सीता का हरण करते हुए आपने श्रीराम का रूप क्यों नहीं लिया ? तो उसने जवाब दिया कि , अगर मैं ऐसा करता तो ,लोगों का श्रीराम पर से विश्वास उठ जाता | अपने आखिरी दिनों में उसे इस बात का बहुत दुख हुआ कि उसने युद्ध का निर्णय लिया | अपनी शक्ति के घमंड में श्रीरामजी और वानर सेना को कम आँका |
उसने खुद मंदोदरी को विभीषण के साथ शादी करने के लिए कहाँ ताकि वह उसके जाने के बाद भी रानी बनकर अच्छे से जीवन जी सके पर मरते वक्त अक्ल आकर क्या फायदा ? जब कि श्रीरामजी ने उसे कितने ही मौके दिए थे | ऐसे महान ग्रंथ हमें इसीलिए पढ़ने चाहिए कि, हम अपनी जिंदगी सही तरह से जी सके और व्यक्तराहते सही निर्णय ले सके |
प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – अंकुश शिंगाड़े
प्रकाशक है – ई. साहित्य प्रतिष्ठान
पृष्ठ संख्या – 128
उपलब्ध- साहित्य पर
सारांश –
प्रस्तुत किताब आपको श्रीराम के जन्म के पहले की परिस्थितियां और कहानी से अवगत कराती है | ऋषि विश्वामित्र को अपना एक यज्ञ पूरा करने के लिए अयोध्या नगरी के राजकुमार श्री राम और लक्ष्मण की जरूरत थी क्योंकि यह दोनों बहुत बहादुर थे और विश्वामित्र के यज्ञ में परेशान करने वाले राक्षसों को मार सकते थे | इनका यज्ञ पूरा हुआ ही था कि विश्वामित्र को सीता स्वयंवर का पता चला तो अपने इन दोनों शिष्यों को लेकर वह वहां पहुंचे | श्रीराम ने धनुष तोड़ दिया | इसी के साथ सीता ने श्रीराम का वरण कर लिया |
श्रीराम के माता-पिता को बताए बगैर श्रीराम सीता का विवाह हो गया था | अब उनके नाराजी से बचने के लिए ऋषि विश्वामित्र ने राजा जनक द्वारा अपनी बेटी उर्मिला और छोटे भाई की बेटियां मांडवी और श्रुत्कीर्ति का भी रिश्ता भिजवाया | अयोध्या से इसे सहर्ष स्वीकार किया गया | किताब हमे और भी बातों से रूबरू कराती है जिसमें शामिल है –
१. महाराज दशरथ के जन्म की कहानी |
२. श्री राम के पूर्वज महाराज अज के शौर्य की कहानी | उनके शौर्य को देख रावण उनसे बिना लड़े ही वापस लौट गया था |
3. सीताजी के जन्म की कहानी जो बताती है कि शायद सीताजी रावण की बेटी थी |
४. महाराज दशरथ के वीरता की कहानी की क्यों उन्हें दशरथ कहा जाता है जबकि उनका असली नाम कुछ और ही था |
५. बाली के पराक्रम और उस को मिले वरदान की कहानी | की क्यों श्रीराम को उसे छुपकर मारना पड़ा | वैसे भगवान श्रीराम तो भगवान का अवतार थे लेकिन श्री राम जन्म में उन्होंने एक साधारण व्यक्ति के शक्तियों को कभी नहीं लांघा | इसीलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम कहा जाता है नहीं तो उनके पास इतना पावर तो था ही कि वह बाली को चुटकी में खत्म कर सकें | बाली और महाराज दशरथ के युद्ध में बाली की विजय हो जाने के पश्चात अयोध्या राज्य की शान एक वस्तु के रूप में अपने साथ ले जाता है | यह वस्तु महारानी कैकेयी , महाराज को छुड़ाने के बदले बाली को देती है क्योंकि इस युद्ध में महारानी कैकेयी भी महाराज के साथ होती है |
इसीलिए महारानी राज्य की धरोहर और शान को वापस लाने के लिए श्रीराम को चुनती है | वह श्रीराम से सचमुच बहुत प्यार करती है | उन्हें अपने बेटे से ज्यादा श्रीराम पर विश्वास होता है कि वही यह कार्य कर सकते हैं | बाली को हराने के बाद ,श्री राम को पता चलता है कि उनकी यह धरोहर रावण अपने साथ लंका लेकर गया है तो उन्हें रावण के साथ भी युद्ध करना पड़ता है |
६. रावण पत्नी मंदोदरी के जन्म की कहानी |
चलिए , तो फिर से हम अपने विषय पर लौट आते हैं कि कैसे उर्मिला ने यह विरह का दुख झेला और पति के आज्ञा का पालन करते हुए एक व्रती का जीवन बिताया | लक्ष्मण वह व्यक्ति है जो ना तो 12 साल तक सोए थे ना तो उन्होंने खाना खाया था और नहीं 12 सालों तक किसी स्त्री का मुख देखा था | उन्होंने पूरे 12 सालों तक ब्रम्हचर्य का पालन किया था | इसी गुणों के कारण वह मेघनाथ को मारने में सफल हो पाए और युद्ध जीत गए | युद्ध जीतने के बाद अब सब लोग अयोध्या वापस आते हैं | उसके कुछ ही दिनों में फिर से सीता को अयोध्या छोड़नी पड़ती है तब सीता के जाने के बाद उर्मिला बहुत दुखी रहती है क्योंकि चारों बहने हमेशा ही साथ में रही होती है | सीता के वन में जाने के कारण उर्मिला बीमार होकर जल्द ही इस दुनिया से भी चल बसती है और पीछे पीछे मांडवी और श्रुत्कीर्ति भी …. | इन लोगों के आदर्शों को हमारा नमन !!!!
आज के जमाने में अपनी ही परिजनों से लड़ने वाले लोगों को इन महान ग्रंथों से कुछ शिक्षा अवश्य लेनी चाहिए |किताब को जरूर पढे | अगर आप मैथोलॉजी से जुड़ी कहानियाँ सुनना चाहते है तो ..
मिलते है और एक नई किताब के साथ तब तक के लिए धन्यवाद !
धन्यवाद !!
Wish you happy reading…….!!