स्वामी
रणजीत देसाई द्वारा लिखित
रिव्यू – नमस्कार रीडर्स ,
सारांश बुक ब्लॉग मे आप सबका स्वागत है –
“स्वामी” यह मूलतः मराठी मे लिखी गई किताब रणजीत देसाई द्वारा लिखित है | यह उनका ऐतिहासिक कादंबरी लिखने का पहला ही प्रयास है | स्वामी का मतलब होता है लोगों का तारणहार या फिर मालिक जो अपने अधीन लोगों की हर तरह से रक्षा और देखभाल करता हो | जब कभी जनता अपने राजा को “स्वामी” नाम से बुलाती है | तब पता चलता है की वह लोगो के लिए कितना महत्व रखते है | ऐसी ही यह व्यक्ति है “माधवराव पेशवा” जिन्होंने सोलह साल की उम्र मे पेशवा पद संभाला और अपनी कर्तबगारी , सख्त अनुशासन और उचित न्याय से सारी अस्ताव्यस्त व्यवस्था को ठीक किया | अपने शांत और सुस्वभावी स्वभाव से सबको अपना बना लिया | पानीपत के युद्ध मे शाहिद हुए सारे सैनिकों के परिवारवालों का सहारा बने | ऐसे सबके प्यारे माधवराव जब कम उम्र मे चल बसे तो सारा देश दुख के सागर मे डूब गया |
हमे बॉलीवुड का धन्यवाद करना चाहिए जिनके वजह से कुछ ऐतिहासिक किरदार बहुत ज्यादा प्रसिद्ध हुए हैं जैसे कि बाजीराव मस्तानी .. | इन्हीं बाजीराव पेशवा को सेंटर में रखते हुए हम आपको इस किताब के पात्रों का परिचय करवाएंगे तो आपको समझने में आसानी होगी क्योंकि जब हमने यह किताब पढ़ने के लिए ली थी तो इसमें रचे पात्रों से हम अनजान थे | समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर इनका संबंध स्वराज्य से कैसा ? स्वराज्य मे इनका क्या योगदान रहा होगा ? इसीलिए हमने इन पात्रों का परिचय करवाती और भी किताबें पढ़ी जिससे हम इनके काल और कर्तबगारी के बारे में जान पाए और हमने .. और एक बार यह किताब शुरुवात से अंत तक पढ़ी | उसके बाद इसका रिव्यु और सारांश आपके लिए लेकर आए हैं | उम्मीद है आप को पसंद आए | पसंद आए तो कमेंट में लिखिएगा जरूर .. | देखते है इसके किरदारों का परिचय –
माधवराव पेशवा – बाजीराव पेशवा के पोते , नानासाहेब पेशवा के बड़े बेटे
नानासाहेब पेशवा – बाजीराव पेशवा के बड़े बेटे |
नारायणराव – नानासाहेब पेशवा के दूसरे बेटे |
राघोबादादा – बाजीराव पेशवा के दूसरे बेटे , माधवराव पेशवा के चाचा |
गोपीकाबाई – माधवराव की माता , राघोबादादा की भाभी और बाजीराव
पेशवा की बड़ी बहू
आनंदीबाई – राघोबादादा की पत्नी, बाजीराव पेशवा की दूसरी बहू |
रमाबाई – माधवराव पेशवा की पत्नी |
मल्हारराव होलकर – अहिल्याबाई होलकर के ससुर
गंगोबातात्या – मल्हारराव होल्कर का विश्वासु व्यक्ति लेकिन माधवराव
के आस्तीन का सांप |
सखारामबापू – राघोबादादा का विश्वासु व्यक्ति , माधवराव का दुश्मन ( धूर्त और कपटी )
नाना फड़निस – स्वराज्य की धुरा संभालने वाले आखिरी व्यक्ति | इनके बाद स्वराज्य अंग्रेजों ने हड़प लिया |
त्र्यंबकमामा – रघुनाथराव के मामा |
16 साल की उम्र में माधवराव इन्होंने पेशवा पद संभाला | तब स्वराज्य के दो पद हो चुके थे | एक कोल्हापूर मे और दूसरा सातारा मे | पेशवाई कर्जे मे डुबी हुई थी | निजाम स्वराज्य के प्रदेश पर प्रदेश जीतता चला जा रहा था | मैसूर के हैदर अली के साथ भी माधवराव की बहुत बार झड़प हुई | बाहर की परेशानियां क्या कम थी कि भाग्य ने उनको राघोबादादा जैसा कच्चे कान का व्यक्ति चाचा के तौर पर दिया जो जलते अंगारे से कम नहीं थे | वह सुनी सुनाई बातों पर यकीन कर लेते थे | वह पल भर में दयालु तो पल भर में रूद्र अवतार धारण कर लेते थे |
वह थोड़ी देर में माधवराव को अपना मानते थे और अगले ही पल उनसे दुश्मनी निभाने के लिए कुछ भी कर जाते थे | उनके इसी स्वभाव के कारण उनकी सारी शूरवीरता धूल मे मिल गई | पूरे जनमभर माधवराव को यह जलता निखारा संभालना पड़ा |
माधवराव के छोटे बंधु नारायणराव के खून का आरोप राघोबादादा की पत्नी आनंदीबाई पर लगा कि उन्होंने पत्र में “मा” का “धा” किया | जिससे नारायण राव का खून हुआ पर उन्हें इस बात का पता ही नहीं था | वह आखिर तक पूछती रही कि उन पर यह आरोप क्यों लगाया गया ? इतिहास कहता है कि आनंदीबाई राजकारण मे इतनी सक्रिय नहीं थी |
नारायण राव का खून कैसे हुआ ? इसका उत्तर इतिहास में अनुत्तरित ही रह गया | माधवराव इन्होंने विषम परिस्थितियो में भी खुद को इतना कर्तबगार पेशवा कैसे साबित किया ? यह आपको जरूर पढ़ना चाहिए |
लेखक की जब यह किताब प्रकाशित हुई तो उन्हें लोगों के बहुत सारे प्रेम भरे पत्र मिले | उनका ढेर सारा प्रतिसाद मिला | लेखक ने लोगों को उनके प्रेम के लिए किताब की प्रस्तावना में ढेर सारे धन्यवाद दिए हैं | किताब जब प्रकाशित हुई तो समाचार पत्रों ने विस्तृत लेख लिखकर इसका स्वागत किया | ज्येष्ठ और श्रेष्ठ साहित्यिक लोगों ने लेखक को पत्र भेजकर उनकी प्रशंसा की |
महाराष्ट्र राज्य सरकार ने “स्वामी” को सबसे पहला पुरस्कार दिया | रेडियो पर भाषण हुए | इन सबसे लेखक बहुत सदगदित हुए | उन्हें पत्र भेजने वाले लोगों ने किताब के बारे में बहुत से सवाल पूछे जैसे कि गोपिका बाई कभी वापस आई या नहीं | “स्वामी “माधवराव और उनकी पत्नी रमाबाई के संबंधों पर आधारित किताब है |
लेखक ने यह किताब लिखने के लिए बहुत सारी “बखर” का अध्ययन किया | उन सब के नाम किताब के अंत मे दिए गए है | माधवराव का जन्म 15 फेब्रुवरी 1745 को हुआ और मृत्यु 18 नवंबर 1772 को हुई | 1761 से लेकर तो 1772 तक उनका पेशवाई का काल रहा | इनपर मराठी मे पिक्चर भी बन चूंकि है और सीरियल भी | जरूर देखिएगा |
जैसे जैसे किताब के पृष्ठ आगे सरकते जाएंगे | वैसे आप को एक पृष्ठ पर “ग्रांट डफ” द्वारा माधवराव पेशवा की मृत्यु के लिए खेद प्रकट किया हुआ दिखेगा | ग्रांट डफ वह अंग्रेज व्यक्ति है जिन्होंने सम्पूर्ण मराठों का इतिहास लिखकर रखा |
आइए, अब थोड़ा लेखक के बारे मे जान लेते है –
इनका जन्म वर्ष 1928 में कोल्हापुर में हुआ | वह महाराष्ट्र के प्रसिद्ध लेखक रहे हैं | उनकी “श्रीमान योगी ” , “राधेय” यह किताब बहुत प्रसिद्ध हुई | उनको वर्ष 1962 में पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया | प्रस्तुत किताब “स्वामी” के लिए उन्हें 1964 में साहित्य अकादमी अवार्ड से सम्मानित किया गया | यह किताब माधवराव और उनकी पत्नी रमाबाई के जीवन पर आधारित है | किताब आपको सम्पूर्ण शनिवार वाडा के दर्शन कराती है जैसे की लोग अभी भी उसमे वास्तव्य कर रहे हो , चहल कदमी कर रहे हो |
किताब पढ़ते वक्त शनिवार वाडा के, गणेश दरवाजा , दिल्ली दरवाजा , हजार कारंजा और शनिवार वाडा के अंदर बसे महलों के दर्शन हो जाते हैं | इन दरवाजों की यह खासियत थी की अलग – अलग रुतबे के व्यक्ति अलग – अलग दरवाजों मे से प्रवेश करते थे | किताब आपको उस दौर के तौर तरीके ,परंपराओं और परिस्थितियों से अवगत कराती है |
अभी तो शनिवारवाडा एक टूरिस्ट प्लेस बन गया है लेकिन तब यह कितना महत्व रखता था यह आपको ऐसी ऐतिहासिक किताबें पढ़कर समझ आएगा | जिस ताकत को माधवराव पेशवा स्वराज्य को मजबूत करने के लिए लगाना चाहते थे | उसी ताकत को उन्हें अपने ही लोगों के लिए खर्च करना पड़ा | कम उम्र में ही उन पर और उनकी पत्नी रमाबाई पर शनिवार वाडा की जिम्मेदारी आने के कारण दोनों जल्द ही प्रौढ़ व्यक्ति बन गए |
स्वराज्य की जिम्मेदारी के कारण माधवराव रमाबाई को ना के बराबर वक्त देते थे | दोनों को उनके संसार के लिए कभी वक्त ही नहीं मिला और जब मिला तो भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया | 28 वे साल में माधवराव , रमाबाई को छोड़कर चल बसे | अब माधवराव की मृत्यु कैसे हुई ? यह तो आप को किताब पढ़कर ही जानना होगा | माधवराव और रमाबाई का रिश्ता एक प्राण दो शरीर के जैसा था | ऐसे मे माधवराव के बगैर रमाबाई कैसे रही होगी ? उस काल में लोग जादू टोने पर विश्वास करते थे लेकिन माधवराव प्रगत विचारों के थे | इसकी प्रचीती आपको किताब पढ़ते-पढ़ते आएगी | पानीपत के युद्ध का घाव उनको हमेशा ही खलता था परंतु माधवराव के अंतिम दिनों मे ,उनके योद्धाओ ने , इस घाव पर मरहम लगा ही दिया | माधवराव पेशवा इन्होंने यह बात साबित कर दी कि कुछ करने के लिए लंबा जीवन जीना जरूरी नहीं बल्कि जिंदगी बड़ी होनी चाहिए | किताब पढ़कर आप जान पाएंगे की वह कितने महान थे | ऐसे महान व्यक्ति को हमारा शत – शत नमन |
आईए , इसी के साथ देखते है इस किताब का सारांश –
सारांश – कहानी शुरू होती है माधवराव के पेशवाई दरबार से .. राघोबादादा को लगता था कि भले ही माधवराव पेशवा हो लेकिन राज्य में सिर्फ उनकी ही चलेगी | इस बात को माधवराव में भरे दरबार में झूठा साबित कर दिया | इससे राघोबादादा नाराज हो गए | ऊपर से उनके कान भर दिए गए | माधव कर्नाटक की लड़ाई पर गए तब भी उनके चाचा उनसे नाराज हुए | कोल्हापुर वालों के साथ तह कर लिया | छत्रपति को गद्दी पर बिठाया | यह सब रघुनाथ राव के मर्जी के विरुद्ध हुआ |
शनिवार वाडा में मराठा सरदारों का आना जाना लगा ही रहता था | ऐसे ही मल्हारराव होलकर अपने सैनिकों के साथ शनिवार वाडा आए थे | उनके सैनिकों को देखकर सखाराम बापू ने राघोबादादा को माधवराव के खिलाफ उकसाया | उन्होंने विश्वास कर लिया और रातों-रात शनिवारवाड़ा छोड़कर निजाम के साथ हाथ मिलाया | अब दोनों मिलकर मराठाओ के प्रदेशों को लूटने लगे | उन्हे बेचिराख करने लगे | अपने चाचा को रोकने के लिए माधवराव युद्ध की तैयारी करते है | इस युद्ध मे भी उनके चाचा , उनके साथ धोका करते है |
परिस्थितियों को मध्य नजर रखते हुए माधवराव अपने चाचा को शरण चले जाते है | वह राज्य के सारे सूत्र उनके हाथ मे दे देते है | वह सबसे पहले माधवराव के सारे मित्र सरदारों को उनसे दूर करना शुरू कर देते हैं | कभी उन पर हमला कर के , कभी उनकी पदवियाँ निकालके , तो कभी उनकी सरदारकी छिनके .. !
ऐसे ही माधवराव के अति विश्वासु “गोपालराव” के राघोबादादा बहुत बुरा हाल करते हैं | ऐसे मे गोपालराव निजाम से जाकर मिल जाते है | वह माधवराव की बनाई सुव्यवस्था को तहस – नहस कर देते है | अब राघोबादादा को पता चलता है कि निजाम भोंसले के साथ जाकर मिल गया है और राघोबादादा पर चढ़ाई करने की तैयारी में है | यह सब जानकर राघोबादादा और सखाराम बापू डर जाते हैं | अब इस बिगड़ी हुई परिस्थिति को माधवराव किस तरह अपने बस में कर लेते हैं | यह सब आप को किताब पढ़कर जरूर जानना चाहिए |
राघोबादादा ने हर पल माधवराव को धोखा दिया , तकलीफ दी | फिर भी उन्होंने अपने चाचा का कभी अपमान नहीं किया | कि उनकी अवहेलना नहीं कि | अपने बड़ों का इतना मान सम्मान करने वाले कुछ ही बिरले लोग होते हैं |
माधवराव जब अपने चाचा के शरण मे थे तब निजाम ने पुणे पर हमला करके उसे तहस-नहस कर दिया | माधवराव एक प्रजावत्सल राजा है | पुणे वालों का सारा नुकसान वह खुद के खजाने से भरते हैं | जब उन्हें पता चलता है कि उनके मामा ने पेशवा के साथ गद्दारी करके पुणे लूटने में निजाम के लोगों की मदद की तब माधवराव उन्हें दंड के रूप में पैसे भरने का फैसला सुनाते हैं | यह प्रकरण इतना बढ़ जाता है कि उनकी मां उन्हें हमेशा के लिए छोड़ कर दूसरी जगह रहने चली जाती है | इससे इन्हे बहुत दुख होता है | वह अंदर से टूट भी जाते है लेकिन अपना दुख रमा बाई के अलावा किसी को बता नहीं पाते | जिम्मेदार व्यक्तियों को अपना कर्तव्य निभाते समय ऐसी चोटे भी सहन करनी पड़ती है |
पीढ़ीयो से दुश्मन रहा निजाम माधवराव का मित्र बन जाता है लेकिन वही उनके अपने उनके लिए किसी शत्रु से कम नहीं | राघोबादादा उस हैदर के साथ तह करने के लिए कहते है जिसे माधवराव आसानी से हरा सकते थे | निजाम के साथ मित्रता करना माधवराव की एक सोची समझी राजनीतिक चाल थी | यह सखाराम बापू और माधवराव के वार्तालाप से पता चलता है |
शनिवारवाड़ा मराठा राज्य का केंद्र था | इसी राजनीति के चलते अंग्रेजों का वकील मॉस्टीन उनसे मिलने आया | जैसे ही उसने महाराष्ट्र स्थित “वसई ” मांगी | तभी माधव राव ने कहा कि हमें भी तुम्हारे देश में ऐसी ही एक जगह दिलवा दो | यह सुनते ही वह खामोश हो गया | जैसे आया था वैसे ही चला गया | माधवराव अपनी मातृभूमि से बहुत प्यार करते थे | गंगोबा तात्या ने मराठा राज्य के साथ गद्दारी की | इन्हें भी माधवराव ने अच्छा सबक सिखाया |
उन्होंने अपने जीवन मे कर्नाटक की दो मोहीम की , हैदर का पूरा पराभव किया ,पीढ़ीयो से दुश्मन रहे निजाम को मित्र बनाया , सारे गद्दारों को सजा दी या नजरकैद मे रखा , घोड़पे की लड़ाई जीती , जीतने प्रदेश छत्रपती शिवाजी महाराज के वक्त थे , उतने सारे जीतकर स्वराज्य मे मिलाए , पानीपत मे हुई हार का बदला लिया |
खैर , जबतक माधवराव शनिवारवाड़ा मे रहे तबतक सारा राज्य कारभार वही से होता रहा | जब वह थेऊर रहने चले गए तो , तो सारा कारभार वही से होने लगा | किताब पढ़कर आप यह जरूर जाने की उन्हे शनिवार वाडा क्यों छोड़ना पड़ा ? महज 28 वे साल में उनकी मौत कैसे हुई ? उनके बाद रमाबाई और नारायणराव का क्या हुआ ? अगर आप यह किताब पढ़ चुके है तो हमे अपने विचार कमेन्ट मे जरूर बताए ! धरती पर घटित इन सत्य घटनाओ को जरूर पढे | उस वक्त उनके मन मे चल रही उलाढाल को , उनके जीवन मे आए संकटों को , उनपर उनकी मात करने की प्रवृत्ति को लेखक ने बहुत ही अच्छे से चित्रित किया है | इस अप्रतिम किताब को जरूर – जरूर पढे |
धन्यवाद !
Wish you happy reading …..!!