SOMNATH BOOK REVIEW SUMMARY IN HINDI

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सोमनाथ

आचार्य चतुरसेन द्वारा लिखित

रिव्यू –

सोमनाथ …. भारत के गुजरात मे स्थित एक अती प्राचीन देवालय जिसमे भगवान शिव की पूजा होती है | इस देवालय को , इसके वैभव के कारण , बार -बार लूटा गया और भगवान शिव के भक्तों द्वारा इसका बार – बार जीर्णोद्धार किया गया |

पुरानो मे यह कथा प्रचलित है की जो भी भगवान सोमनाथ के दर्शन एक – बार भी कर लेता वह सीधे स्वर्ग पहुँच जाता | इसलिए लोगो के झुंड के झुंड भगवान सोमनाथ के दर्शन के लिए आने लगे और मरने पर सीधे स्वर्ग जाने लगे | इससे स्वर्ग मे इतनी गर्दी हो गई की वहाँ पैर रखने के लिए भी जगह नहीं बची | इसकी वजह से बाकी सारे लोक खाली रहने लगे |

अब इसके उपाय के लिए भगवान शिव ने गणपतीजी को काम मे लगा लिया | अब उन्होंने इस परेशानी से सबको कैसे छुटकारा दिला दिया | यह हम बाद मे कभी देखेंगे | पुरानो मे एक और जिक्र मिलता है की जब चंद्रदेव को उनके ससुर द्वारा श्राप मिला था तो इसी स्थान पर चंद्रदेव ने भगवान शिव की आराधना की थी | इसीलिए इस धाम का नाम सोमनाथ है | सोम याने के चंद्र ..

अब आते है सोमनाथ मंदिर के निर्माण पर .. | इतिहास के अनुसार भारशिव और वाकाटक राजाओ ने भारत मे शैव धर्म की स्थापना की | शैव संप्रदाय के ग्रंथ “आगम ” नाम से जाने जाते है | चूंकि इस किताब का विषय भगवान शिव के मंदिर पर बेस है इसलिए किताब के अखिरी पन्नों मे लेखक ने शैव धर्म पर जितनी भी रिसर्च की है | वह आप को पढ़ने को मिलेगी | इतिहासकारों को यह सारी जानकारियाँ शिलालेखों , ताम्रपत्रों , राजाओ द्वारा चलाए गए सिक्कों और बाकी सारे दस्तावेजों से मिलती रहती है | सोमनाथ महालय भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों मे से एक है | यह प्रमुख ज्योतिर्लिंग है |

किताब के अनुसार , सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना शायद वल्लभी वंश के राजाओ ने पाँचवी या छठी शताब्दी मे की होगी | जरूरी नहीं की राजा के वंश के सारे लोग एक ही धर्म का पालन करते हो | एक ही वंशावली के अलग – अलग राजा कभी कभी अलग – अलग धर्म का पालन करते थे | लोगों के लिए धर्म बहुत मायने रखता था | वह अपने धर्म का बहुत कड़ाई से पालन करते थे | सेनापति भट्टारक ने वल्लभी वंश की स्थापना की जो खुद एक शैवधर्मी थे | यह उनके ताम्रपत्रों और शिलालेखों से पता चलता है |

वैसे सोमनाथ महालय पर दर्जनों बार आक्रमण हुए लेकिन सबसे ताकतवर आक्रमण सन 1025 मे महमूद गजनी का था | उसने भारत पर 17 बार आक्रमण किये | उसका यह आक्रमण इतिहास मे इसलिए भी प्रसिद्ध है क्योंकि यह प्रबल आक्रमण होने के साथ – साथ गजनी का आखरी आक्रमण भी था |

इतिहास मे सोमनाथ महालय के ऐश्वर्य का वर्णन पढ़कर आप का मुह खुला का खुला रह जाएगा | इतिहास कहता है की मंदिर के कोश मे इतनी रत्न राशी थी की , उसका दसवा भाग भी किसी राजा के पास नहीं था |

मंदिर के लूट जाने के बाद महज 7 साल के अंदर , गुजरात के महाराज भीमदेव ने फिर से मंदिर का जीर्णोद्धार कराया | भारत के पास तब भी बहुत धनराशि थी | गुजरात के उस दौर के बहुत सारे ग्रंथों मे तो इस लूट का कोई जिक्र भी नहीं है | जैसे कुछ हुआ ही न हो ! इसी अमीरी के कारण शायद भारत को “सोने की चिड़िया” कहते होंगे |

अब उस मुद्दे पर आते है की भारत पर बाहरी आक्रांता बार – बार हमला क्यों करते ? क्या उन्हे यहाँ रोकने वाला कोई नहीं था ? या यहाँ के राजा और प्रजा मे इतना बल नहीं था की उनको रोक सके ? लेखक ने इन बातों पर भी प्रकाश डाला है – जैसे की , भारत मे जातपात का वर्चस्व था जिसके चलते सबको एक जैसे अवसर नहीं मिलते , भले ही उनमे कितनी भी प्रतिभा क्यों न हो ? राजा का धर्म अलग होता और मंत्री सेठ ,साहूकार प्रजा का अलग | इस प्रकार सत्ता मंत्रियों के हाथों मे रहती |

गुजरात का राज्य मूलराज प्रथम ने स्थापित किया | इन सारे घटनाओ की जानकारी “प्रबंध चिंतामणी ” नामक ग्रंथ मे मिलती है | जब गुजरात के सोमनाथ मंदिर पर गजनी का आक्रमण हुआ तब गुजरात के राजा चामुंडराय थे | इस आपत्तिकाल मे उन्हे हटाकर उनके पोते भीमदेव को महाराज बनाया गया | सारे गुरजेश्वर के वंशावली की जानकारी यहाँ मिलेगी |

लेखक को इस विषय पर लिखने के लिए पूरे 25 सालों का इंतजार करना पड़ा क्योंकि इस विषय पर ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं थी | इसलिए फिर उन्हे बहुत सारे गुजराती ग्रंथों का अभ्यास करना पड़ा | लेखक का जन्म स्वतंत्रता के पहले हुआ | उन्होंने भारत विभाजन का दौर देखा | तब लोगों को जिन दुखों , परेशानियों और परिस्थितियों से गुजरना पड़ा | उन सारी बातों को उन्होंने उन बंदियों के जीवन मे दिखाया है जिन्हे गजनी के लोगों ने बंदी बनाया था और खंभात से पट्टन पैदल लेकर आए थे |

प्रस्तुत किताब उन बातों को बताती है की महमूद जब गजनी से पट्टन जाने के लिए निकला तो रास्ते मे उसे कौन से राज्य पड़े ? उनमे से कौन से राजा ने उसे आगे बढ़ने के लिए रास्ता दिया और कौन से राजा ने अपने कर्तव्य का पालन किया ? उसको इतने लंबे रास्ते मे कौन सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा | रास्ते मे पड़ने वाले गाँवो के साथ उसने क्या किया |

इन सारी योजनाओ को अमल मे लाने के लिए उसने अपने कितने साथियों को कहाँ – कहाँ पर काम मे लगाया था | इतने लंबे और कठिन सफर पर उसके साथ आनेवाले खतरनाक सैनिक आखिर उसके साथ किसलिए आए थे ? इतनी बड़ी मोहीम को अंजाम देने के पहले यहाँ की परिस्थितियों का जायजा लेने खुद महमूद गजनी भेस बदलकर पट्टन आता है | वह यहाँ का ऐश्वर्य खुद अपनी आँखों से देखना चाहता है ताकि वह इस लूट की प्लैनिंग कर सके | वह यहाँ की परिस्थितियों का जायजा लेता है जिसमे उसे पता चलता है की यहाँ के राजाओ मे एकता की कमी है |

इनमे एक राष्ट्र की भावना नहीं है | पश्चिम की दिशा मे कोई रखवालदार नहीं है | पश्चिम दिशा इसलिए क्योंकि यह आक्रमण के लिए सुयोग्य दिशा थी | इसप्रकार उसने पाया की पश्चिम दिशा “बिना द्वार का दुर्ग ” है | लेखक इतनी प्रभावकारी भाषा का उपयोग करते है की लगता है जैसे यह सारी घटनाओ के हम स्वयं साक्षी है | इतिहास से हमे रूबरू कराने वाली इस अप्रतिम किताब के –

लेखक – आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक – राजपाल एण्ड सन्स

पृष्ठ संख्या – 400

उपलब्ध – अमेजन , किन्डल

आइए इसी के साथ देखते है इसका सारांश –

सारांश –

कहानी पट्टन के सोमनाथ महालय के मुख्य पुजारी गंग सर्वज्ञ से शुरू होती है | मंदिर मे चढ़ाए जाने वाले निर्माल्य को लेकर वहाँ ( भगवान शिव के दर्शन को आए हुए यात्री ठहरते थे ) कुछ फसाद हो जाता है | वही पर महाराज भीमदेव , गंग सर्वज्ञ की मुलाकात भेस बदलकर आए हुए गजनी से होती है | उसके बाद कहानी आगे बढ़ते हुए एक -एक पात्रों को आप के सामने लेकर आती है | इसमे गुजरात के महाराज और साथ मे अपने देश का भी भला चाहने वाले लोगों से आप रूबरू हो पाओगे |

इनका और इनसे जुड़ी घटनाओ का जिक्र आप को इतिहास मे मिल जाएगा | इनमे शामिल है महाराज भीमदेव , गुजरात के कोषाध्यक्ष और महामंत्री विमालदेव शाह , चंड शर्मा , कूटनीतिज्ञ दामोदर महता , दुर्लभदेव आदि.. | यह सब मिलकर गुजरात के महाराज के खिलाफ होने वाले षड्यन्त्र का पर्दा फ़ाश करते है साथ मे पट्टन की ओर बढ़ रहे गजनी को रोकने के लिए युद्ध की तैयारिया भी करते है | गजनी से लड़ते हुए घोघाबापा और धर्मगजदेव वीरगति प्राप्त करते है | इनके मरने के बाद इनके दुर्ग की सारी और राज्य की बहुत सारी महिलाये जौहर करती है |

पट्टन पहुंचकर अमीर मंदिर को लूटने मे कामयाब हो जाता है | बहुत सारे वीरगति प्राप्त करते है | महाराज भीमदेव बहुत घायल हो जाते है | बाकी सब लोग उन्हे बचाने मे लग जाते है |

उन्हे बचाने के लिए वह उन्हे अलग – अलग जगहों पर लेकर जाते है क्योंकि अमीर उनका हर जगह पीछा करता है | गुजरात की लूट के बाद अमीर कुछ महीनों तक यही पर रहता है इस दौरान हारे और घायल राजा अपनी शक्ति और सैन्य को फिर से जोड़ते है और उसको हरा देते है | वह ऐसा जाल बिछाते है की उसे वापसी के लिए कच्छ के भयानक रन से होकर जाना पड़े |

यही कच्छ का रन उससे उसका सबकुछ छिन लेता है | कहानी मे कही कही आप को उसका गुस्सा आएगा तो कही कही उसके उच्च आदर्शों को देखकर आप की भावनाए उसके लिए कोमल हो जाएगी | यहाँ आप को उच्च आदर्शों वाली प्रेमकहानीया भी पढ़ने को मिलेगी तो कुछ चरित्रों मे आपको उच्च कोटी का राष्ट्रप्रेम भी देखने को मिलेगा | साथ मे बुराई ,भलाई , कूटनीति , आदर्श ऐसे बहुत सारे गुणों को अलग – अलग चरित्रों मे पिरोकर लेखक यह कहानी आप के लिए लेकर आए है | इस अप्रतिम किताब को जरूर – जरूर पढिए | इतिहास पसंद करने वालों को यह किताब जरूर पढनी चाहिए |

धन्यवाद !

Wish you happy reading………..

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