SHATRANJ KE KHILADI- PREMCHAND BOOK REVIEW

शतरंज के खिलाड़ी और अन्य कहानियाँ मुंशी प्रेमचंद की किताब का कवर हिंदी में

शतरंज के खिलाड़ी
प्रेमचंद द्वारा लिखित

रिव्यू –

लेखक प्रेमचंदजी की जानकारी –

लेखक प्रेमचंद हिंदी के विश्वस्तरीय साहित्यकार है | साहित्य में वह अपना एक विशिष्ट स्थान रखते हैं | उन्हें बिसवी सदी के उन लेखकों में से माना जाता है जिन्होंने अपनी रचनाओं में यथार्थ की जीती जागती तस्वीर पाठकों के सामने रख दी | उनकी ज्यादातर रचनाओं की पृष्ठभूमि ग्रामीण भारत की है |
बनारस के एक छोटे से गाँव लमही में उनका जन्म हुआ था | साल था 31 जुलाई 1880 | उनका असली नाम “धनपत राय श्रीवास्तव” था | उन्हें बचपन से ही किताबो से लगाव था | पहले-पहल उन्होंने “नवाबराय” नाम से उपन्यास लिखे | बाद में उन्होंने “प्रेमचंद” नाम धारण किया |
उनके प्रसिद्ध उपन्यासों में शामिल है ,”गबन , गोदान , सेवासदन , रंगभूमि , कर्मभूमि इत्यादि | उनकी किताबों का साहित्य में वह उच्च स्थान है कि उन्हें शालेय पाठ्यक्रमों में भी शामिल किया गया है | उनके इस उपन्यास को हम पूरे 5 मे से 5 स्टार देते है |  उनकी रचनाएं आज भी बहुत प्रसिद्ध है | उपन्यासों के अलावा उन्होंने कई कहानियां भी लिखी |
वह ब्रिटिश भारत में जन्मे और उसी में उनका निधन हुआ | वह स्वतंत्र भारत देख नहीं पाए फिर भी स्वतंत्र भारत में देश की स्थिति अच्छी रहेगी | इस कल्पना को हम उनकी कहानियों में महसूस कर पाते हैं |
8 अक्टूबर 1936 को मात्र 56 वर्ष की आयु में ही उनका निधन हो गया | जब प्रेमचंद जी 13 साल के थे तब मौलाना शरर , पंडित रतननाथ , सरशार , मिर्जा रुसवा , मौलवी मोहम्मद अली जैसे उर्दू उपन्यासकारों की धूम मची हुई थी | साथ मे “रेनॉल्ड” प्रसिद्ध थे | लेखक को उर्दू उपन्यास पढ़ने का शौक था और जहां पढ़ने को मिले पढ़ लेते थे |
उनके उपन्यास ग्रामीण भारत में फैली शोचनीय जाति व्यवस्था को प्रखरता से दिखाते हैं जिनमें उच्च व्यक्तियों के आचरण के प्रति कटु आलोचना व्यक्त की जाती है | प्रायः इनके दुष्ट व्यवहार के आगे मानवता हार जाती है | प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – प्रेमचंद
प्रकाशक है – शिक्षा भारती
पृष्ठ संख्या है – 175
उपलब्ध है – अमेजॉन पर

लेखक की पहली रचना – 

लेखक ने किताब की शुरुआत में अपना आत्मकथन बताया है जिसमें उन्होंने पहली रचना के बारे में बताया कि कैसे उनके एक अधेड़ उम्र के अविवाहित चाचाजी को उनके ही यहां काम करनेवाली युवा स्त्री से प्रेम हो जाता है पर जाती बीच में आ जाती है और उनकी जमकर पिटाई होती है |
एक महीने तक तो वह अपने शरीर की मरम्मत करते रहे जैसे ही चलने फिरने लायक हुए लेखक के घर या धमके | इतना सब होने के बाद भी उनका दम – खम वही था | वह लेखक को खेलने या उपन्यास पढ़ते देखकर बिगड़ जाया करते और लेखक के पिता को शिकायत करने की धमकी देते पर अब लेखक यह क्यों सहने लगे ?
एक दिन लेखक ने उनके चाचा के साथ हुई उस दुर्घटना को एक नाटक के रूप में लिख डाला | उन्होंने इसे अपने मित्रों को भी सुनाया | सब ने इस कहानी के बहुत मजे लिए फिर लेखक ने इसे एक कागज पर लिखकर उनके चाचाजी के सिरहाने रख दिया और स्कूल चले गए |
स्कूल से वापस आकर क्या देखते हैं कि उनके चाचाजी और उनकी पहली रचना कहीं नहीं है | लेखक को अब तक पता ही नहीं चला कि उनके चाचाजी ने उस रचना को चिराग की आग में जला डाला या अपने साथ स्वर्ग ले गए |

प्रस्तुत उपन्यास की जानकारी – 

खैर छोड़िए , प्रस्तुत किताब में कुछ 22 कहानीयां है | इनमें से कुछ कहानियां हमने मानसरोवर – भाग 1 इस किताब में भी पढ़ी है | माने की वह यहां रिपीट हुई है जिनमें शामिल है,” ईदगाह , पूस की रात , गुल्ली डंडा , सुभागी “| इसलिए इन कहानियों के बारे में हम उसी किताब में देखेंगे | इसमें से “ईदगाह” तो बच्चों के पाठ्यक्रमों में भी है | आपने अपने बच्चों को पढ़ाते वक्त शायद पढ़ी भी हो !
अगर नहीं … तो कमेंट में बता दीजिएगा | अगले किसी किताब में इसका जिक्र कर लेंगे | फिलहाल बात करते हैं प्रस्तुत किताब की , तो इसमें सम्मिलित 22 कहानियों में से हमें “शतरंज के खिलाड़ी , बड़े भाई साहब , बड़ौम और प्रायश्चित” हमें ज्यादा अच्छी लगी | इसलिए इसी के बारे में रिव्यू और सारांश मे बताएंगे | बाकी कहानियों के नाम है ,”परीक्षा , रामलीला , कजाकी , सुजान भगत , आत्माराम , मंत्र” इत्यादि |
प्रस्तुत पुस्तक “शतरंज के खिलाड़ी” प्रसिद्ध भारतीय लेखक मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित एक मशहूर किताब है | यह कहानीयो का संग्रह है | किताब के टाइटल नाम “शतरंज के खिलाड़ी” का नाम ही पहले कहानी का नाम है | यह कहानी उस समय के भारतीय अभिजात्य वर्ग की निष्क्रियता और गैर-जिम्मेदाराना जीवनशैली पर एक तीखा व्यंग्य करती है |
प्रस्तुत कहानी की पृष्ठभूमि 1856 में लखनऊ शहर में सेट है, जो उस समय अवध की राजधानी थी | कहानी की शुरुआत ठीक उस समय होती है जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी इस रियासत पर कब्ज़ा करनेवाली थी |
यह कहानी 19वीं शताब्दी के मध्य में भारतीय शासक वर्ग की स्थिति पर एक शक्तिशाली व्यंग्य है | प्रेमचंद ने दो शतरंज खिलाड़ियों का उपयोग पूरे समाज के लिए एक रूपक के रूप में किया है, जो विलासिता और व्यक्तिगत सुख-सुविधाओं में इतना खोया हुआ था कि वह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के विस्तार का विरोध करने में असमर्थ था |
प्रेमचंद ने नवाब वाजिद अली शाह के शासनकाल में लखनऊ की पतनशील संस्कृति का जीवंत चित्रण किया है | शहर को भोग -विलास की स्थिति में डूबा हुआ दिखाया गया है, जहाँ अमीर लोग , यहाँ तक कि आम लोग भी राज्य के मामलों की बजाय कविता, नृत्य, संगीत और अन्य फुर्सत की गतिविधियों में डूबे हुए थे |
व्यक्तिगत भोग और राष्ट्रीय जिम्मेदारी के बीच तीव्र विरोधाभास है | यह इस कहानी का केंद्रीय विषय है | दोनों मुख्य पात्र अपने राज्य की भलाई की तुलना में एक खेल को प्राथमिकता देते हैं, जो कुलीन वर्ग की व्यापक उदासीनता का प्रतीक है | प्रेमचंद का सुझाव है कि इस स्वार्थ और अजागरूकता की कमी ने भारत की अधीनता में महत्वपूर्ण योगदान दिया |
यह कहानी सामाजिक यथार्थवाद को दर्शाती है | इसमें बताई गई बातें और स्थितियां आज भी हमारे समाज में मौजूद हैं और लोगों को प्रभावित करती हैं | प्रेमचंद ने इसका उपयोग उदासीनता, स्वार्थ और दूरदर्शिता की कमी के खतरों के खिलाफ चेतावनी देने के लिए किया है | यह संदेश आज भी प्रासंगिक है, यह याद दिलाता है कि किसी समाज का पतन उसके लोगों की सामूहिक उदासीनता के कारण हो सकता है |

दूसरी कहानी “बड़े भाई साहब” है |

   यह एक अत्यंत ही लोकप्रिय और मार्मिक कहानी है | कहानी शिक्षा के महत्व पर आधारित है, जिसमें हास्य और व्यंग्य का भी पुट है | कहानी हमे यह संदेश देती है कि किताबी ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण जीवन का व्यावहारिक ज्ञान और अनुभव होता है |
यह कहानी दो भाइयों के बीच के प्यार, सम्मान और जिम्मेदारी के रिश्ते को खूबसूरती से दर्शाती है | बड़े भाई का डर और सम्मान, दोनों ही भावनाओं को बहुत सरलता से दिखाया गया है |
बड़े भाई का पात्र दिखाता है कि सिर्फ उम्र में बड़ा होने से नहीं चलता बल्कि जिम्मेदारी का एहसास होने पर ही व्यक्ति बड़ा बनता है | वे अपने छोटे भाई के लिए एक आदर्श बनने की कोशिश करते हैं |
प्रसिद्ध लेखक प्रेमचंदजी ने कहानी में हास्य का उपयोग किया है, खासकर बड़े भाई साहब की उपदेश देने की आदत और उनके बार-बार फेल होने की घटना में | यह कहानी को रोचक बनाता है |
“बड़े भाई साहब” आज भी हिंदी साहित्य की एक कालजयी रचना मानी जाती है, जो हमें रिश्तों की गहराई और जीवन के सच्चे मूल्यों के बारे में सिखाती है

तीसरी कहानी है – “प्रायश्चित” की सिख 

यह कहानी एक व्यक्ति के पश्चाताप और उसके पापों के प्रायश्चित की भावनात्मक यात्रा को दर्शाती है | प्रस्तुत कहानी दिखाती है कि एक व्यक्ति अपने किए गए बुरे कर्मों का कितना गहरा पश्चाताप कर सकता है |
कहानी में मदारी लाल के चरित्र में आया बदलाव यह सिखाता है कि व्यक्ति अपने स्वार्थ और ईर्ष्या को छोड़कर मानवीयता और दया का मार्ग अपनाकर अपने पापों को धो सकता है | बुरे कर्मों का फल हमेशा बुरा ही होता है, लेकिन पश्चाताप और सही मार्ग पर चलने से व्यक्ति उस पाप के भार से मुक्त हो सकता है |
कहानी का अंत यह संदेश देता है कि पूजा-पाठ या धार्मिक कर्मकांडों से ज्यादा सच्चा प्रायश्चित , किसी की निस्वार्थ सेवा करना है जैसे मदारी लाल ने वर्षों तक सुबोध के परिवार की सेवा करके ही अपने पाप का प्रायश्चित किया |

चौथी कहानी है – बौड़म  मे बताई  सिख 

प्रेमचंद अपनी सरल और प्रभावशाली शैली में यह दर्शाते हैं कि जिसे समाज ‘बौड़म’ कहता है, वह असल में इतना मूर्ख नहीं है | उसकी सोच, व्यवहार और समझ समाज के आम लोगों से अलग है | कहानी में कई ऐसी घटनाएं होती हैं जो यह साबित करती हैं कि जिस व्यक्ति को लोग मूर्ख समझते हैं, वह वास्तव में बहुत ही विवेकपूर्ण और समझदार है | उसका “बौड़म” होना, उसकी अपनी पसंद है या फिर समाज द्वारा उस पर थोपा गया एक तमगा |
कहानी इस बात पर केंद्रित है कि किस तरह लोग किसी को बिना जाने-समझे ही उसके बारे में राय बना लेते हैं और उसे एक खास दायरे में कैद कर देते हैं | आईए , अब देखते है इसका सारांश –

सारांश –

“शतरंज के खिलाड़ी” कहानी का सारांश  

कहानी के केंद्र में दो अमीर, आलसी और रईस व्यक्ति हैं जिनका नाम “मिर्ज़ा सज्जाद अली और मीर रोशन अली” है | वे गहरे दोस्त हैं और शतरंज के खेल के प्रति बेहद जुनूनी हैं |
दोनों दोस्त शतरंज खेलने के इतने आदी हैं कि वे अपनी जिम्मेदारियों, अपने परिवारों और अपने आस-पास की बिगड़ती राजनीतिक स्थिति की पूरी तरह से उपेक्षा करते हैं | वे दिन-रात शतरंज खेलते रहते हैं | वे इस बात से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं कि उनके राजा, नवाब वाजिद अली शाह, को ब्रिटिशों द्वारा गद्दी से हटाया जाने वाला है | कहानी में हास्य और दुखद तरीके से उनके जुनून को दिखाया गया है, जो उन्हें अपने घरों और अंततः अपने शहर से भागने के लिए मजबूर करता है ताकि वे अपना खेल जारी रख सकें, जबकि ब्रिटिश सेना शहर में प्रवेश कर रही थी |
कहानी तब अपने चरम पर पहुँचती है जब शतरंज के खेल के दौरान एक चाल को लेकर हुई बहस एक द्वंद्व में बदल जाती है और वे एक दूसरे को मार डालते हैं | शतरंज की बिसात पर अपने “राजा” को बचाने के लिए की गई उनकी हताश कोशिश में, वे अपनी जान गँवा देते हैं, और इस बात से पूरी तरह बेखबर रहते हैं कि उनके राज्य के साथ असल “शह और मात” हो चुकी है |
सन 1977 में प्रसिद्ध निर्देशक सत्यजीत रे ने इस कहानी पर एक फिल्म बनाई थी जो बेहद प्रशंसनीय रही | “शतरंज के खिलाड़ी” नामक इस फिल्म में संजीव कुमार, सईद जाफरी, शबाना आज़मी और नवाब वाजिद अली शाह के रूप में अमजद खान ने अभिनय किया था | इस फिल्म ने कहानी के विषयों का विस्तार किया और एक अधिक विस्तृत ऐतिहासिक संदर्भ प्रदान किया |

बड़े भाई साहब कहानी का सारांश

कहानी दो भाइयों की है, जो हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करते हैं | बड़े भाई है तो उम्र में छोटे लेकिन बड़े होने के नाते खुद को बहुत गंभीर और जिम्मेदार मानते हैं | वे हमेशा पढ़ाई में लगे रहते हैं, लेकिन उनका मन पढ़ाई में नहीं लगता | वे हर समय कुछ-न-कुछ पढ़ते रहते हैं, लेकिन अक्सर परीक्षाओ मे फेल हो जाते हैं | वे अपने छोटे भाई को सही रास्ते पर रखने के लिए हमेशा उसे उपदेश देते रहते हैं |
इसके उलट उसका छोटा भाई पढ़ाई में होशियार हैं और बड़े भाई साहब की तुलना में आसानी से पास हो जाता हैं | उसे खेल-कूद, पतंगबाजी और दोस्तों के साथ मस्ती करना बहुत पसंद है | वह अपने बड़े भाई साहब से डरता हैं और उनके उपदेशों को सुनकर अक्सर निराश हो जाता हैं | प्रस्तुत कहानी हमे शिक्षा के महत्व के बारे में बताती हैं | एक बार छोटा भाई अपने बड़े भाई से छिपकर पतंग उड़ाते रहता हैं तभी उसका सामना अपने बड़े भाई से होता है | कहानी का सबसे महत्वपूर्ण मोड़ तब आता है जब बड़े भाई साहब उसे डांटते हैं और कहते हैं कि भले ही तुम मुझसे छोटे हो, लेकिन मैं तुमसे बड़ा हूं और मुझे तुम्हें सही रास्ता दिखाने का अधिकार है |
इसी दौरान, आकाश से एक कटी हुई पतंग उनके सामने से गुजरती है | बड़े भाई साहब तुरंत उस पतंग को पकड़ने के लिए दौड़ पड़ते हैं | यह देखकर छोटा भाई आश्चर्यचकित रह जाता है और उसे एहसास होता है कि बड़े भाई भी आखिर इंसान ही हैं |
इस घटना के बाद, छोटे भाई का बड़े भाई के प्रति सम्मान और भी बढ़ जाता है | वह समझ जाता है कि बड़े भाई सिर्फ उपदेश नहीं देते, बल्कि अपनी जिम्मेदारियों को भी समझते हैं और उनका व्यवहार भी उनके मन का ही एक हिस्सा है |

प्रायश्चित कहानी का सारांश

कहानी का मुख्य पात्र मदारी लाल एक सरकारी दफ्तर में हेड क्लर्क है | वह ईर्ष्यालू और स्वार्थी स्वभाव का व्यक्ति है | सुबोध चंद्र , मदारी लाल का बचपन का मित्र है और साथ मे पढ़ा है | वह एक सज्जन, योग्य और दयालु व्यक्ति है |
मदारी लाल को जब यह खबर मिलती है कि उसका सहपाठी सुबोध चंद्र अब उसका बॉस बनकर आ रहा है , तो वह घबरा जाता है क्योंकि उसे याद आता है कि उसने सुबोध के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया था | मदारी लाल और सुबोध बचपन से ही प्रतिद्वंद्वी थे | सुबोध हर चीज में मदारी लाल से बेहतर था, चाहे वह पढ़ाई हो या व्यवहार | मदारी लाल ने हमेशा सुबोध से ईर्ष्या की और उसे नीचा दिखाने की कोशिश की |
अपनी ईर्ष्या के चलते मदारीलाल ऑफिस के 5000 रुपये चुरा लेता है जिसकी जिम्मेदारी सुबोध की है | उसे यह पैसे एक ठेकेदार को देने है । सुबोध इस घटना से इतना परेशान होता है कि वह आत्महत्या कर लेता है | वह अपने पीछे उसकी पत्नी और दो बच्चों को रोता बिलखता छोड़ जाता है |
सुबोध की मौत के बाद मदारीलाल को अपनी गलती का एहसास होता है जब वह सुबोध के घर जाता है | वहाँ की दुखद स्थिति देखकर उसका हृदय परिवर्तन हो जाता है | वह रामेश्वरी और उसके बच्चों को देखकर बहुत दुखी होता है | वैसे भी मरते वक्त तक सुबोध , मदारीलाल को अपना हितैषी ही समझता रहा | इससे भी मदारीलाल की ग्लानि और बढ़ गई |
अपने पाप का प्रायश्चित करने के लिए, मदारीलाल सुबोध के परिवार की जिम्मेदारी उठा लेता है | वह उसके अंतिम संस्कार और अन्य सभी कार्यों का खर्च उठाता है | इसके बाद वह रामेश्वरी और उसके बच्चों को अपने घर ले आता है और उनकी देखभाल करता है | वह बच्चों को पढ़ाता-लिखाता है और उनकी शादी करवाता है |

बौड़म  कहानी का सारांश –

कहानी एक 20- 22 साल के युवक की है जिसका नाम खलील है | उसके अपने कुछ उसूल है | वह उन्ही पर चलता है | वह घर का बहुत अमीर है पर रहता एकदम सिम्पल है | वह रेशमी कुर्ते के बजाय खादी का कुर्ता पहेनता है क्योंकि देश ने विदेशी कपड़ों का त्याग किया है | वह अपने इस आचरण से देश की सेवा करना चाहता है |
वह सादा खाना खाता है क्योंकि उसके देश मे बसे गरीब भाई बंधुओ को भूख का सामना करना पड़ता है | पर यह उच्च विचारों की बातें यह नादान गॉववाले कैसे समझे ? शक्कर मिल का कामकाज देखने जब इन्हे भेजा जाता है तो देखते है की मजदूरों पर अत्याचार किए जा रहे है तो यह उनको सब छूट देते है |
उनके इस दया के लिए भी उन्हे मूर्ख समझा जाता है | शक्कर मिल का अफसर खुद तो सही वक्त पर काम नहीं करता पर मजदूरों को पाँच मिनट की देरी पर भी बड़ी सजा देता है तो खलील उसे फटकारता है फिर से इन्हे वापस बुला लिया जाता है |
गाँव के कुछ धूर्त लोग गरीब बनिए को झूठे आरोपों मे फंसाना चाहते है तो बौड़म अपने तेजतर्रार व न्यायबुद्धी से सबका झूठ सामने लाता है | उसके बुद्धी की यह तीव्रता देखकर लेखक तो दंग रह जाते है | वह जिसे लेखक बौड़म नाम सुनकर बौड़म समझने लगे थे | असल मे वह एक नीतिवान , बुद्धिमान और चरित्र का पक्का व्यक्ति निकलता है | उसके सामने लेखक को उसको बौड़म कहनेवाले लोग ही बौड़म लगने लगते है |
बाकी की कहानियों को भी आप जरूर पढ़िएगा | आप को उनमे भी कुछ न कुछ सिख अवश्य मिलेगी | जब भी वक्त मिले किताबे जरूर पढिए | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते है और एक नई किताब के साथ तब तक ले लिए ….
धन्यवाद !!

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सवाल है ? जवाब यहाँ है | (FAQs SECTION)

Q1. शतरंज के खिलाड़ी कहानी के लेखक कौन हैं ?
उत्तर: इस प्रसिद्ध कहानी संग्रह के लेखक हिंदी के महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद हैं | यह कहानी पहली बार 1924 में प्रकाशित हुई थी |
Q2. शतरंज के खिलाड़ी कहानी का मुख्य विषय (Theme) क्या है?
उत्तर: मुख्य विषय अवध के शासक वर्ग की निष्क्रियता, जिम्मेदारी से भागना और विलासिता में डूबे रहना है | प्रेमचंद ने शतरंज के खेल को राष्ट्रीय जिम्मेदारी की उपेक्षा का प्रतीक बताया है |
Q3. शतरंज के खिलाड़ी की पृष्ठभूमि क्या है ?
उत्तर: इस कहानी की पृष्ठभूमि 1856 में लखनऊ शहर में सेट है | यह ठीक उस समय की है जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी अवध रियासत पर कब्ज़ा करने वाली थी |
Q4. नवाब वाजिद अली शाह का इस कहानी से क्या संबंध है ?
उत्तर: नवाब वाजिद अली शाह उस समय अवध के शासक थे, जिन्हें ब्रिटिशों ने गद्दी से हटा दिया था | कहानी उनके शासनकाल के पतनशील माहौल को दर्शाती है |

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