रस्टी के कारनामे
रस्किन बॉन्ड द्वारा लिखित
रिव्यू –
जब आप कोई भारी – भारी किताबे पढ़कर बोर हो जाओ तो मन को ताजा करने के लिए आप रस्किन बॉन्ड की किताबों का सहारा ले सकते है | उनके किताबों के विषय काफी हल्के – फुल्के लेकिन काफी रोचक होते है | हम हमेशा अपने मूड को फ्रेश करने के लिए उनकी ही किताबों को पढ़ते है | अब थोड़ी सी जानकारी लेखक के बारे मे बताते है | उनकी बहुत सारी किताबों का रिव्यू भी हमारी वेबसाईट पर उपलब्ध है | आप उन्हे भी एक बार जरुर देखे |
रस्किन एक इंडियन लेखक है जिनके पूर्वज ब्रिटिश थे | उनका जन्म सन १९३४ में कसौली में हुआ | उनके दादा – दादी देहरादून में रहा करते | उनके दादाजी फ़ोरेस्ट ऑफिसर थे | उनके पिताजी वायुसेना में थे | जब वे चार साल के थे तब उनके माता पिता का तलाक हो गया |
उनकी माता ने दूसरी शादी कर ली | रस्किन को एक छोटा सौतेला भाई था | जब उनके पिता दिल्ली में सेना के टेंट में रहा करते तब वे भी अपने पिता के साथ रहा करते | दिल्ली के बाद उनके पिता का तबादला कलकत्ता में हुआ | जब वे 10 साल के थे तब उनके पिता का निधन हो गया | उनके दादा और दादी का भी…… | अब वे अकेले रह गए थे | कुछ दिन वह अपनी माँ और सौतेले पिता के साथ रहे | उनके बाद उनकी जिम्मेदारी उनके अलग – अलग रिश्तेदारों ने निभायी | जब वे थोड़े बड़े हुए तो लन्दन चले गए लेकिन लंदन उन्हें रास नहीं आया | भारत में पले – बढे रस्किन को भारत देश बहुत याद आ रहा था | इसलिए सबकुछ छोड़कर वे भारत चले आये | यहाँ आने के बाद न तो उनके कोई नौकरी का ठिकाना था न तो उनके रहने का ……| ऐसे में उनको एक पत्र मिला जो अदालत की तरफ से था | जिसमे लिखा था की उनके केन अंकल ने उनका छोटा सा मसूरी का बंगला उनके नाम कर दिया था | उनके केन अंकल की याद समझकर उन्होंने उसे अपना पर्मनंट बसेरा बना लिया | अब वे मसूरी में ही रहते है | वे हमेशा से लेखक बनन चाहते थे | उनका यह सपना अब पूरा हो चूका है | वे साहित्य अकादमी पुरस्कृत लेखक है | यह पुरस्कार उनको सन 1993 में मिला | सन 1999 में पद्मश्री और 2014 में पद्मभूषण उनको प्रदान किया गया |
किताब के लेखक है – रस्किन बॉन्ड
प्रकाशक है – नैशनल बुक ट्रस्ट , इंडिया
प्रकाशन वर्ष – 2005
पृष्ठ संख्या – 96
सारांश –
पुस्तक मुख्य रूप से तीन बातों पर प्रकाश डालती है | एक तो रस्टी के दादी की पाककला , रस्टी के अंकल केन के किस्से , रस्टी और दलबीर की यात्रा |
जिस तरह से किताब मे अंकल केन के किस्सों की भरमार है | हमे लगता है की किताब का नाम , “रस्टी के कारनामे ” नहीं बल्कि , “अंकल केन के कारनामे ” होना चाहिए था | रस्टी के अंकल केन किसी भी नौकरी मे एक महीने से ज्यादा टिकते नहीं थे | इसलिए वह अपने जीवन यापन के लिए अपनी बहनों और आंटियों पर आश्रित रहते थे | वह जो भी काम करने जाते उसका उल्टा ही नतीजा मिलता | एक महाराज से तो वह हारने के चक्कर मे गलती से जीत जाते है तो अपनी नौकरी गवां बैठते है |
रस्टी ने अपने दादी के पाककला की दिल खोलकर तारीफ की है और ढेर सारे व्यंजनों के नाम भी गिनाए है | उसके बाद है रस्टी के स्कूल का किस्सा जिसमे वह अपने दोस्त दलबीर के साथ भाग जाता है क्योंकि वह अपने अंकल के जहाज से दुनिया घूमना चाहता है | इस यात्रा मे उनको कौन – कौन सी परेशानिया झेलनी पड़ती है और डाकुओ से वह खुद को कैसे बचाते है ? यह आप को किताब पढ़कर पता चलेगा | यह कहानी रस्किन बॉन्ड के अन्य किताबों मे भी मिलती है | आप तब तक हमारे ब्लॉग पर दिए किताबों को पढिए |
तब तक के लिए धन्यवाद !