RAKTTRUSHNA BOOK REVIEW SUMMARY HINDI

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रक्ततृष्णा

चंद्रप्रकाश पाण्डेय द्वारा लिखित

रिव्यू –

आज की हमारी किताब है “रक्ततृष्णा” | पहले हमे लगा की यह “अवन्तिका , विषकन्या” इस त्रय की तीसरी किताब है लेकिन हमारे सारे अरमानों पर पानी फिर गया | यह किसी अन्य विषय पर लिखी किताब निकली | अवन्तिका और विषकन्या इन दोनों के रिव्यू और सारांश भी आप को हमारे वेबसाईट पर मिल जाएंगे | चलिए अब यह किताब पढ़ ही ली है तो इसके बारे मे जान लेते है | इस किताब का विषय “डायन” है | यह प्रायः महिला पात्र होती है और बुराई से इसका संबंध जोड़ा जाता है | इनके बारे मे बहुत सारी किवदंतिया भी फैली होती है |

    किसी के अनुसार यह पारलौकिक शक्तियां है तो किसी के अनुसार यह वह औरते होती है जो जादू के बहुत सारे इल्म जानती है | किताब के पात्रो के अनुसार इनका जादू सिर्फ जादू होता है | वह न तो अच्छा होता है , न तो बुरा !! यह तो उस व्यक्ति पर निर्भर करता है की वह इन शक्तियों का उपयोग अच्छे के लिए करता है , या फिर बुरे के लिए !!!!!!! | दुनिया के बहुत सारे क्षेत्रों मे ऐसी औरतों को डायन समझा जाता था | फिर उस गाँव मे कुछ भी बुरा होने पर , उनको ही दोषी करार दिया जाता | परिणाम , सजा के तौर पर ,उन्हे एक पेड़ से बांधकर जींदा जला दिया जाता | इस कुप्रथा की आड़ मे बेकसूर औरते मारी जाती | डायन समझी जानेवाली औरतों की सुरक्षा के लिए सरकारने बहुत सारे नियम बनाए | उन नियमों के बारे मे आप किताब के प्रारंभ मे पढ़ सकते है | अब बात करते है | लेखक और लेखक के लेखन शैली की…. | लेखक ने अपनी लेखनशैली का जो बेंच मार्क सेट किया है | उसको देखते हुए और प्रस्तुत किताब पढ़ते हुए यह लगता है की किताब किसी नए लेखक ने लिखी है | आप को किताब मे तब इन्टरेस्ट आने लगेगा जब किताब के 2 से 3 अध्याय खत्म होने लगेंगे | उसके बाद आप लेखक की चिरपरिचित लेखन शैली से अवगत हो जाओगे | बहेरहाल, किताब अच्छी है | आप इसे एक बार जरूर पढ़ सकते है | इस किताब के लेखक है – चंद्रप्रकाश पाण्डेय

प्रकाशक – थ्रिल वर्ल्ड

उपलब्ध – किन्डल / फ्लिपकार्ट

आइए इसी के साथ देखते इसका सारांश –

कहानी शुरू होती है , पश्चिम बंगाल के एक मेंटल अस्पताल से | जहां एक बीमार पड़ी औरत को सुधारने के लिए एक डायन आती है जिसका चेहरा देखकर उस अस्पताल की नर्स , उस औरत का पति और उस की बेटी सारे सहम जाते है | इसके बाद किताब सीधे 17 साल बाद की कहानी बयां करती है | इसी बीमार औरत की बेटी बड़ी होकर लोगों को डायन बाधा से बचाती है | जिसका नाम है – प्रियदर्शिनी | प्रियदर्शिनी का कहना है की उसने यह इल्म अपनी माँ से सिखा है | लेकिन उसकी माँ को यह विचक्राफ्ट सिखाया किसने ? क्योंकि उसकी माँ तो एक सफल लेखिका रह चुकी थी और पापा पुरातत्व विभाग मे | तो यह गूढ विद्या उनके पास आयी कहाँ से ? उन्हे ऐसी कौन सी बीमारी थी जिसे डॉक्टर नहीं सुधार पाए ? जिसे सुधारने के लिए , प्रियदर्शिनी के पिता को , एक बुरी शक्ती का सहारा लेना पडा |

दूसरी तरफ इस कहानी का नायक है जिसकी दादी भी आखिरी बार “डायन” शब्द उच्चारकर मर जाती है | चूंकि, कहानी का नायक साकेत अपनी दादी के बहुत करीब है | वह उनके मौत के राज तक पहुंचना चाहता है | साकेत के गाँव के जंगल मे एक यक्षिणी मंदिर है | किवदंती है की पुरणमासी की रात डायन अपनी साधना करने ले लिए , यक्षिणी मंदिर के तालाब मे नहाने आती है | जो कोई मनुष्य उसे साधना के दौरान देख लेता है | उसकी जिंदगी महज 15 दिनों मे सिमट जाती है | उसकी जुबान बंद हो जाती है ताकि वह किसी से कुछ कहे न सके | उसकी ऊँगलिया टेढ़ी हो जाती है ताकि वह लिखकर किसी को कुछ बता न सके | डायन , आँखों के जरिए उसका खून सोख लेती है | आखिर रक्त की कमी के कारण उसकी मौत हो जाती है |

साकेत एक पढा – लिखा इंसान होने के कारण उसका इन सब बातों पर विश्वास नहीं | प्रियदर्शिनी , खुद पर आजमाया हुआ टोटका उस पर आजमाने के लिए , उसे मना लेती है | जिससे साकेत को डायन दिखाई देने लगती है | उसे और प्रियदर्शिनी को एक जैसे ही सपने दिखाई देने लगते है | लेकिन क्यों ? उन दोनों मे ऐसा क्या कॉमन है ? जिस वजह से दोनों एक शापित जीवन जी रहे है | कहानी मे दामोदर नाम के व्यक्ति का एक अहम रोल है | उसका संबंध साकेत और प्रियदर्शिनी की माँ से भी है और दोनों के पिता से भी…. | आखिर है कौन यह दामोदर ? यह इनका हितैषी है या फिर दुश्मन ? यह तो आप को किताब पढ़कर ही जानना होगा | साकेत और प्रियदर्शिनी अपने सारे सवालों के जवाब ढूंढते – ढूंढते आखिर साकेत के गाँव मे स्थित यक्षिणी मंदिर मे पहुँच जाते है जहां साकेत को पता चलता है की उसकी भाभी कामिनी ही डायन है | क्या यह सच है क्योंकि कामिनी तो अपना नाम सुनस्त्रा बता रही है | तो क्या सचमुच कामिनी ही डायन है या फिर कामिनी की काया पर और कोई हावी है ? उन दोनों के सारे सवालों के जवाब सुनस्त्रा अपने जुबानी देती है | साकेत और प्रीय दर्शिनी के साथ – साथ , पाठकों की भी जिज्ञासा शांत होती है | जैसा की पहले बताया , एक – दो अध्याय के बाद कहानी बहुत अच्छी लगने लगती है | इसीलिए किताब को एक बार जरूर पढिए | लेखक की मेहनत और सोच को सराहिए | लेखक को एक प्रशंसक के तौर पर यह बताना चाहेंगे की हमे अभी भी उनके द्वारा लिखी अश्वत्थामा रहस्यकथा त्रय की तीसरी किताब का इंतजार है | लेखक को उनकी आनेवाली किताबों के लिए शुभकामनाए !

धन्यवाद !

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