राधेय
रणजीत देसाई द्वारा लिखित
रिव्यू –
राधेय ! कर्ण का दूसरा नाम .. क्योंकि उसकी माँ का नाम “राधा ” था | इस नाम से उसे सिर्फ उसके पास के लोग ही बुला सकते थे , जो उसके अपने हो | उनको ही इसका हक था | प्रस्तुत किताब कर्ण के जीवन के बारे मे बताती है | यह उन घटनाओ और व्यक्तियों के बारे मे बताती है , जो कर्ण के जीवन से जुड़े थे | पूरे जीवनभर कर्ण अकेलेपन का भार सोसता रहा जो पूरे महाभारत मे किसी ने नहीं झेला | पूरे जीवनभर वह किसी और के किए की सजा भुगतता रहा | क्षत्रिय होकर भी सुतकुल मे पलने के कारण वह अपना पुरुषत्व किसी को दिखा न सका | इन सब विषम परिस्थितियों के बावजूद वह एक महान दानी था | उसके जैसा और कोई नहीं बना | अपने अच्छाई और सच्चाई के कारण वह भगवान श्रीकृष्ण का कृपा पात्र भी बना | न की पांडवों मे से एक होने के कारण .. |
कथानक एक ही जगह पर रेंगता नहीं बल्कि स्पीड से आगे बढ़ता है | इसलिए किताब बोर नहीं करती | कर्ण के बारे मे सुनकर , पढ़कर बहुत बार मन मे खयाल आता था की कर्ण ने दान देने का संकल्प क्यों किया ? तो इसका उत्तर है – ऐसी कीर्ति पाने के लिए , जो एक क्षत्रिय को अपना क्षत्रिय धर्म निभाकर मिलती थी | पर सुतकुल मे पलने के कारण , उसके समाज ने उसको शस्त्र उठाने का अधिकार नहीं दिया | जिस वजह से वह अपना पराक्रम दिखाकर वह कीर्ति पा न सका |
यह उसे अधिकार दिया उसके मित्र दुर्योधन ने , उसे अपना मित्र और अंगदेश का राजा बनाकर | इसलिए , दुर्योधन का उसके जीवन मे महत्व का स्थान था | दुर्योधन ने उसके गुणों को देखा न की उसका सुतकुल | दुर्योधन ने उच्च – नीच का भेद भुलाकर , समाज की और अपने लोगों की चिंता किए बगैर , कर्ण से मित्रता की और उसे पूरे जीवनभर निभाया | दुर्योधन को चाहनेवाले लोगों ने भी उसे वही मान – सन्मान दिया जो दुर्योधन उसे देता था | दुर्योधन को हमेशा ही एक बुरे व्यक्ति के रूप मे दिखाया गया है |
इसके बावजूद उसमे कुछ अच्छाइयाँ भी थी जैसे की मरते समय कर्ण ने उसे बताया था की मद्रराज शल्य को सेनापति मत बनाना | वह पांडवों का भला चाहता है और एक सेनापति के तौर पर वह उसे हरा देगा | तब दुर्योधन ने बताया की , वह यह जानता है फिर भी उसे अपना वचन निभाने के लिए , शल्य को अपना सेनापति बनाना ही होगा |
दुर्योधन के अनुसार , पांडव जब अपना हक मांगते है तो उसे लगता है की इससे हस्तिनापुर के टुकड़े हो जाएंगे | इसलिए वह उनको एक सूई के नोंक के बराबर की भी धरती नहीं देना चाहता क्योंकि वह पांडवों को पांडु के पुत्र भी नहीं मानता | खैर , दुर्योधन की इस सोच का क्या परिणाम हुआ ? यह तो सब जानते ही है | जब भी कर्ण की बात होती है , दुर्योधन एक प्रमुख किरदार के रूप मे उभरकर आता है | कर्ण , का जीवन शायद दुर्योधन के बगैर अधूरा है |
आचार्य द्रोण और पितामह भीष्म यह सब लड़ते तो है कौरवों की ओर से लेकिन जीत चाहते है पांडवों की | इसलिए उन्होंने स्वेच्छामरण स्वीकारा | स्वेच्छमरण , इसलिए की जब शिखंडी सामने आई तो , भीष्म शस्त्र न उठाकर , रणभूमि मे दूसरी तरफ जा सकते थे और गुरु द्रोण अपने बेटे अश्वत्थामा के मृत्यु की बात सुनकर शस्त्र त्याग करते है | उसी वक्त दृष्टद्युम्न तलवार से उनका सर काट देता है | तो क्या गुरु द्रोण को उनका बेटा अश्वत्थामा मृत्युंजय है | यह नहीं पता था या वह जानबूझकर इस चीज को नजर अंदाज करते है | इस तरह के और भी की तर्क आप को किताब मे पढ़ने को मिलेंगे | यह बात सच है शायद .. | महाभारत को जो जैसा पढ़ता है वह उसे वैसे ही दिखाई देता है |
कर्ण महादानी था | उसके जैसा न तो कभी कोई था और न ही कभी कोई होगा क्योंकि खुद भगवान इन्द्र उससे दान मांगने आते है जिनके स्वर्ग मे सारे ऐश्वर्य पानी भरते है | कुरुक्षेत्र के युद्ध के पहले ही कर्ण के पिता अधिरथ की रथ परीक्षण करते समय मृत्यु हो जाती है | पती के जाने के बाद कर्ण की माता भी नदी मे स्वेच्छामरण स्वीकारती है | कर्ण का मित्र , भाई और तीन बेटे भी कुरुक्षेत्र के युद्ध की भेंट चढ़ जाते है | कर्ण के परिवार मे बचती है तो सिर्फ उसकी पत्नी वृषाली |
बहुत बार , महाभारत का ग्रंथ पढ़कर या सुनकर इतना ही पता चलता है की घटनाए कैसी घटी ? किस रफ्तार से घटी ? किस क्रम से घटी ? लेकिन लेखक के जैसे दिग्गज लोग उन घटनाओ के पीछे की त्रासदी , उससे जुड़े लोगों की भावनाए और मन की दशा को ऐसी किताबों के रूप मे हमारे सामने रखते है | ऐसा लगता है जैसे इन घटनाओ के चित्र हमारे सामने चल रहे हो | उन लोगोंके मन की वेदनाओ को हम खुद भी झेल रहे हो | हम अनायास ही उन लोगों के दुख मे शामिल होकर , उनके बारे मे सोचने लगते है जैसे की वह हमारे कोई आप्त स्वकीय , संबंधी हो ….
बहेरहाल , अब थोड़ा सा लेखक के बारे मे भी जान लेते है | इनका जन्म कोल्हापूर मे 1928 मे हुआ | वह महाराष्ट्र के प्रसिद्ध लेखक रहे है | उनकी “श्रीमान योगी ” यह किताब बहुत प्रसिद्ध हुई | इसका रिव्यू भी हमारे वेबसाईट पर आप को मिल जाएगा | अगर आप को इसका विडिओ देखना है तो हमारे यू -ट्यूब चैनल “सारांश बुक ब्लॉग ” को भेट दे | उनको 1962 मे पद्मश्री सन्मान से नवाजा गया | वही उनकी दूसरी कादंबरी “स्वामी ” के लिए उन्हे 1964 मे “साहित्य अकादमी अवॉर्ड ” से सन्मानित किया गया | स्वामी यह किताब पेशवा माधवराव और उनकी पत्नी रमाबाई के जीवन पर आधारित है | प्रस्तुत पुस्तक अप्रतिम है | इस अप्रतिम किताब के लेखक है – रणजीत देसाई
प्रकाशक है – मेहता पब्लिशिंग हाउस
पृष्ठ संख्या – 272
उपलब्ध है – अमेजन , किन्डल पर
सारांश –
कहानी तब से शुरू होती है जब कुरुक्षेत्र का युद्ध खत्म हो चुका था | उसके बाद युधिष्ठिर पावन नदी गंगा के पात्र मे खड़े होकर उनकी सेना के सारे सैनिकों को एक – एक कर के श्रद्धांजली दे रहे थे | तब कुंती आँखों मे पानी भर के कृष्णजी की तरफ देखती है | तब कृष्णजी , युधिष्ठिर को कहते है की और एक योद्धा सन्मान पाने का रह गया | उनके मुह से कर्ण का नाम और उसके पांडवों के साथ असली रिश्ते की सच्चाई सुनते ही वहाँ उपस्थित हर एक व्यक्ति दंग रह जाता है | युधिष्ठिर अपनी माता से रुष्ट हो वहाँ से चला जाता है | उसके पिछे चार पांडव और द्रौपदी भी …. |
अब कहानी फ्लैशबैक मे शुरू होती है | जब कर्ण गंगा किनारे अपनी रोज की आराधना कर रहा है तब कृष्णजी उसकी पूजा खत्म होने की रह देख रहे है | यह इन दोनों की पहली मुलाकात है फिर भी कर्ण को ऐसे लगता जैसे वह कृष्णजी को जन्म – जन्मांतर से जानता हो | उनका सान्निध्य उसे अच्छा लगता है | कर्ण उन्हे अपने घर लेकर जाता है और उनका अच्छे से अदरातिथ्य करता है | कर्ण का बेटा वृषसेन उन दिनों उनका लाड़ला हो जाता है |
उनके जाने के बाद कर्ण अपने काम मे पूर्ववत लग जाता है | दुर्योधन ने कर्ण को अंगदेश का राजा बनाया था लेकिन कर्ण ने उस राज्य को तब तक स्वीकार नहीं किया जब तक वहाँ की जनता के मन को अपने पराक्रम से जीत नहीं लिया | तब तक वह चंपानगर मे ही राज्य करता था | यह राज्य उसने जरासंध को मल्लयुद्ध मे हराकर जीता था और साथ मे जरासंध की मित्रता भी | जरासंध उस वक्त पृथ्वी पर अकेला ही मल्लयुद्ध विजेता था |
किताब मे उस प्रसंग का वर्णन है जब अश्वमेध यज्ञ के चलते भीम चंपानगरी पर आक्रमण करता है | कर्ण और उसके सैनिक बड़े पराक्रम से उसका पहले दिन सामना करते है | उस युद्ध मे कर्ण के प्रिय मित्र का बेटा काल का ग्रास बन जाता है | लड़ाई कर के कर्ण भीम को आसानी से हरा सकता था लेकिन हस्तिनापुर से आए आदेशानुसार उसे भीम का स्वागत कर के , भीम को “कर” के रूप मे कुछ धन भी देना पड़ता है | इससे कर्ण की प्रजा उससे नाराज हो जाती है | यह नाराजी प्रजा किस प्रकार दिखाती है यह आप किताब मे जरूर पढे |
दिन गुजारते जाते है | दुर्योधन की तरफ से , कर्ण को पांडवों की खबरे मिलती रहती है | फिर वह दिन आता है जब दुर्योधन कर्ण को द्रौपदी के स्वयंवर मे ले जाने के लिए आता है | कर्ण के बहुत बार ना कहने के बावजूद भी दुर्योधन उसे वहाँ ले जाने मे सफल हो जाता है | वहाँ द्रौपदी कर्ण का अपमान करती है | अपमानित होने के बाद कर्ण अपने घर आकर वह अपमान भूलने की कोशिश करता है | और फिर एक बार वह दुर्योधन के साथ पांडवों के अश्वमेध यज्ञ मे जाता है | इस यज्ञ मे दुर्योधन और उसके सारे भाई अपने बड़ों की आज्ञा के अनुसार , उनके हिस्से मे आए हुए कार्य बखूबी निभाते है |
पांडवों का मयमहल देखते हुए द्रौपदी दुर्योधन का भी अपमान करती है | अब दुर्योधन अपमान की आग मे सुलगता हुआ और एक डाव रचता है | वह यज्ञ का बहाना बनाकर द्यूत प्रेमी युधिष्ठिर को द्यूत का आवाहन देता है | इस प्रसंग मे क्या – क्या घटित होता है यह तो सब जानते ही है | तब कर्ण आवेश मे आकर द्रौपदी का चीरहरण करने का बोल जाता है और यही एक वाक्य उसके पतन का कारण बन जाता है जो उसके किए गए सारे पुण्यों पर भारी पड जाता है | हालाँकि , उसके कुछ ही क्षणों बाद उसे उसके किए पर पछतावा होता है लेकिन तब क्या फायदा जब तीर कमान से निकाल चुका हो |
इसीलिए शायद बड़े बुजुर्ग कहते है की जबान संभालकर बात करनी चाहिए | जिस देश मे स्त्री को देवी की तरह पूजते है उस देश मे स्त्री का ऐसा अपमान कौन सहेगा ? हमने किसी और किताब मे पढ़ा है की जब द्रौपदी पर अन्याय हुआ था | उसके बाद पूरे आर्यावर्त मे स्त्रियों पर अत्याचार बढ़ गए थे | इन अत्याचारों को रोकने के लिए और धर्म की फिर से एक बार स्थापना के लिए युद्ध लडा गया | वही कुरुक्षेत्र का युद्ध है , वही धर्मयुद्ध है |
लेकिन इस युद्ध ने सबका सबकुछ छिन लिया | पीछे बचे तो सिर्फ बच्चे – बूढ़े महिलाये और युद्ध से जुड़ी त्रासदी …. |
महाभारत के प्रसंग चाहे आपने कितनी बार ही क्यों न पढे हो , सुने हो , देखे हो फिर भी यह किताब पढ़ते – पढ़ते आप किताब मे खो जाएंगे | कभी – कभी युद्ध का वर्णन सुनते – सुनते आप के रोंगटे खड़े हो जाएंगे तो किसी के धारातीर्थि पड़ते ही आँखों मे आँसू आ जाएंगे | जैसे की हमने बताया ,पुरानी किताबे हमे हमेशा ही अप्रतिम लगती है तो इस अप्रतिम किताब को जरूर पढिए |
धन्यवाद !