PREMA – PREMCHAND BOOK REVIEW HINDI

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प्रेमा

मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित

रिव्यू –

       प्रस्तुत उपन्यास एक प्रेमकहानी है |मुंशी प्रेमचंद इनके उपन्यास हमे स्वातंत्र्य पूर्व भारत मे लेकर चलते है | तब की झलक दिखलाते है | यह उपन्यास तब के स्त्री की हालत बयां करता है जो अपने पति को ही अपनी दुनिया मानती थी और निर्वाह के लिए पति पर ही निर्भर रहती थी | उसके पति के जाने के बाद उसका या फिर उसके पति का कोई सगे – संबंधी उसके उदर – निर्वाह की जिम्मेदारी ले लेता था | प्रस्तुत उपन्यास “विधवा विवाह ” का समाज पर होनेवाला प्रभाव दर्शाता है | विधवा विवाह का समर्थन करने वाले समाजसुधारकों पर अपनी भड़ास निकालने के लिए समाज के कुछ लोग किस हद तक गिर सकते है | इसका अच्छा – खासा प्रदर्शन प्रस्तुत किताब करती है |

         किताब के स्त्री पात्रो द्वारा प्रायः खड़ी बोली , बोली जाती है क्योंकि वह ज्यादातर अशिक्षित ही रहती थी | शिक्षित होने के कारण पुरुषों की भाषा अच्छी है | समाज सुधार के लिए जब विधवा विवाह होने लगते है तब ब्रिटीश सरकार क्रुद्ध जनता की तरफदारी करती है या फिर समाजसुधारकों का साथ देती है | यह आप किताब मे पढिए |

किताब की महिला पात्र हमेशा ही एक सुंदर लड़की होती है और सारी चीजों की मुबलकता वाले पति के घर मे राज करती है | ज्यादातर उपन्यासों की पृष्ठभूमि लेखक इसी तरह की रखते थे क्योंकी उनकी पत्नी काली और उम्र मे उनसे बड़ी थी | इतने मशहूर लेखक होने पर भी उनके घर धन का अभाव रहा | इसीलिए शायद उनके किताबों के पात्र हर एक चीज की मुबलकता लिए होते है |

किताब मे कुल 13 अध्याय है जिनमे से कुछ के नाम इस प्रकार है – सच्ची उदारता , जलन बुरी बला है , झूठे मददगार , जवानी की मौत ई . | प्रस्तुत किताब के लेखक है – मुंशी प्रेमचंद

प्रकाशक – मेपल प्रेस

पृष्ठ संख्या -132

उपलब्ध – अमेजन , किन्डल

आइए देखते इसका सारांश ……

सारांश –

     कहानी बनारस शहर कि पृष्ठ भूमि पर आधारित है | इसी शहर का अमृतराय एक रईस , सभ्य और खानदानी व्यक्ति है | इनपर अंग्रेजी विचारों का पगड़ा है | इनकी शादी प्रेमा के संग होने वाली है | प्रेमा उनसे बहुत सालों से प्यार करती है , जब से शादी तय हुई है | अमृतराय के अलावा वह किसी और के बारे मे सोच भी नहीं सकती | इन दोनों के शादी मे देर इसलिए हो रही है क्योंकि अमृतराय चाहते थे की , प्रेमा के बालिग होने के बाद ही उनकी शादी हो | इतने मे अमृत राय को समाज सेवा का भूत चढ़ जाता है इसलिए वह ऐसी संस्था के सदस्य बन जाते है जिसके बहुत सारे लोग विदेशी है या फिर उनपर अंग्रेजी विचारों का पगड़ा है | इस कारण प्रेमा के पिता जो एक कट्टर हिन्दू है | इन दोनों का विवाह तोड़ देते है | उधर अमृतराय का मित्र दाननाथ इसी ताक मे रहता है की कब इन दोनों की शादी टूटे और वह प्रेमा के साथ शादी कर ले |

प्रेमा की एक बहुत ही गहरी सहेली है , “पूर्णा” | जब पूर्णा विधवा हो जाती है तो उसके उदर – निर्वाह का खर्चा अमृतराय उठाते है | इसी चक्कर मे उन्हे पूर्णा से प्यार हो जाता है लेकिन पूर्णा तो एक विधवा है | उससे विवाह करना मतलब बवाल खड़ा करना लेकिन अमृतराय पर तो समाजसेवा और पूर्णा का प्यार सवार है | फिर भी वह इन सब बातों के बावजूद पूर्णा से विवाह कर लेते है | विवाह के वक्त सम्पूर्ण बनारस शहर मे जो भी परिस्थितियाँ व्याप्त रहती है | उसका विवरण आप उपन्यास मे ही पढिए | शादी के बाद पूरा शहर अमृतराय और उसके परिवार को बॉइकॉट कर देता है | तब वह इन सारी परिस्थितियों को कैसा संभालते है ? इसका विवरण भी आप उपन्यास मे पढिए |

प्रेमा की शादी दाननाथ के साथ हो जाती है फिर भी वह अमृतराय के प्राणों का दुश्मन क्यों बन जाता है और पूर्णा के रहते अमृतराय प्रेमा को पत्नी बनाकर क्यों ले आते है ? ऐसा तो तभी हो सकता है जब पूर्णा को कुछ हो गया हो | तो क्या हो जाता होगा पूर्णा को ?

इन सारे ससपेन्स का जवाब पाने के लिए आप को उपन्यास पढ़ना होगा | कहानी का अंत बहुत ही अच्छा है | जरूर पढिए |

धन्यवाद !

Wish you happy reading…………..!!!!!!

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