सुधा मूर्ति द्वारा लिखित तीसरी किताब का नाम है – पितृऋण
रिव्यु –
“पितृऋण” सुधा मूर्ति द्वारा लिखित कन्नड उपन्यास है जिसका मराठी अनुवाद हमने पढ़ा है | प्रस्तुत उपन्यास मे एक पारिवारिक कहानी है जिसमे बसे पात्रों के माध्यम से लेखिका सुधा मूर्ति इन्होंने मनुष्य मे बसी कई भावनाओ को उजागर किया है क्योंकि भावनाओ के बगैर मनुष्य कैसा ? किताब का शीर्षक “पितृऋण” उस कर्तव्य को दर्शाता है जो एक संतान अपने पिता के प्रति निभाती है |
लेखिका सुधा मूर्ति की कहानियाँ अक्सर कर्म, ऋण, कृतज्ञता और जीवन के मूल्यों पर ज़ोर देती हैं | यही मूल्य बच्चों को बचपन से सीखाने के लिए उन्होंने एक यूट्यूब चैनल शुरू किया है | जो कई भाषाओ मे आप को मिल जाएगा | जो कहानियों के माध्यम से बच्चों को इन मूल्यों की शिक्षा देता है | उस चैनल को जरूर चेक करे |
“पितृऋण” शब्द का अर्थ ही ‘पिता का ऋण’ या ‘पूर्वजों का ऋण’, होता है | जो इस बात पर जोर देता है की , हमारे जीवन पर हमारे पूर्वजों और हमारे माता-पिता के त्याग और प्यार का प्रभाव होता है | संक्षेप में, यह एक ऐसी किताब है जो आपको मानवीय मूल्यों और रिश्तों की गहराई के बारे में सोचने पर मजबूर करेगी |
लेखिका की जानकारी हमने “तीन हजार टांके” इस किताब के रिव्यू मे दी है | उस ब्लॉग को भी आप जरूर चेक करे | बात करते है , प्रस्तुत किताब की तो , उपन्यास मनुष्य जीवन की जटिलताओं को दर्शाता है जैसे की नातों की उलझन, भावनाओं की गहराई और जीवन मे होनेवाली अप्रत्याशित घटनाएं …..
किताब मे ऐसे रिश्तों तो दिखाया है जो वक्त की परत के निचे दबकर धुंधले हो गए है पर जैसे ही यह धूल छटेगी | वह एक स्पष्ट सबंधों के रूप मे उभरकर आएंगे | यह कहानी है व्यंकटेश की जो एक पुत्र के रूप मे अपने पिता के अधूरे कर्तव्यों को पूरा करने के लिए खुद को समर्पित करता है और उसकी बेटी उसकी इस भावनात्मक यात्रा में उसका साथ देती है क्योंकि वह भी अपने पिता की परछाई है | उनके उलझनों को समझती है | उनके भावनाओ की कद्र करती है |
उसके उलट व्यंकटेश की पत्नी और बेटा है जो भावनात्मक रूप से उनसे दूर है | वह सीमित विचारोंवाले व्यक्ति है | स्वार्थ से परे दूसरों के हित के लिए नहीं सोच पाते | वह बस अपना सोशल स्टैटस मेनटेन रखना चाहते | व्यंकटेश के साथ उनका संबंध सिर्फ औपचारिक बनकर रहे गया है |
जिस पथ पर जीवनसाथी का साथ न हो उस पर अगर अकेले चले तो अधिक अकेलापन महसूस होता है | यही व्यंकटेश के साथ होता है फिर भी वह अपने पुत्र होने के नाते जो उनके कर्तव्य है | उस पर डटे रहते है |
उनका बेटा आधुनिक, व्यस्त और व्यावसायिक जीवन जीता है | वह पिता के भावनात्मक संघर्षों से अलग-थलग रहता है क्योंकि उन के बीच भावनात्मक संवाद की कमी है |
जहाँ उनका बेटा अपने पिता को समझने की कोशिश नहीं करता, और व्यंकटेश भी उससे अपेक्षा नहीं रखते | यह उपन्यास कर्तव्य, प्रेम और आत्मबल की कहानी है, जो पाठक को सोचने पर मजबूर करती है कि हम अपने पूर्वजों के प्रति क्या ऋणी हैं ?
व्यंकटेश का चरित्र यह दर्शाता है कि पिता के अधूरे कार्यों को पूरा करना केवल एक सामाजिक जिम्मेदारी नहीं होती बल्कि यह आत्मिक मुक्ति का मार्ग भी हो सकता है | उनका चरित्र एक ऐसे व्यक्ति का है जो तर्क और भावना के बीच संतुलन बनाते हुए पितृऋण चुकाने की कोशिश करता है | वे आश्चर्य, संशय और आत्ममंथन से गुजरते हैं | उनके विचारों में कर्तव्यबोध, परिवार के प्रति उत्तरदायित्व और सत्य की खोज प्रमुख हैं | उनकी यात्रा एक बौद्धिक खोज से शुरू होती है क्योंकि अपने जैसा आदमी देखकर वह ऐसे ही उस बात को जाने नहीं देते बल्कि उसकी गहेराई तक पहुचने की कोशिश करते है |
जब उन्हे अपने पिता का सच पता चलता है तो उसे वह भावनात्मक रूप से स्वीकार करते है और अपने पिता के अधूरे कर्तव्यों को पुरा करने की ठानते है जबकी इन जिम्मेदारियों को निभाने के लिए उनपर किसी का दबाव नहीं | यह वह अपने पिताके प्रति आदर और प्रेम के कारण करते है | वैसे भी एक बेटे पर उसके पिता का ऋण होता है |
बेटा उससे तब तक उऋण नहीं हो सकता जब तक उसका पिता उसे मुक्त न कर दे | व्यंकटेश के माध्यम से लेखिका सुधा मूर्ति यह संदेश देना चाहती है की पितृऋण केवल एक धार्मिक या सांस्कृतिक विचार नहीं बल्कि एक पुत्र की एक भावनात्मक और नैतिक यात्रा है | यह उपन्यास दर्शाता है कि पितृऋण चुकाने की यात्रा कभी-कभी एकाकी हो सकती है | परिवार मे अलगाव ,संवाद की कमी एक गहरी पीड़ा बन जाती है |
सुधा मूर्ति की लेखन शैली सीदी – सरल, भावनात्मक और विचारशील होती है | “पितृऋण” में उन्होंने पारिवारिक संबंधों की बारीकियों को बहुत ही संवेदनशीलता से प्रस्तुत किया है | यहाँ उन्होंने विविध रिश्तों को जैसे- माता-पिता, बच्चे, दोस्त और अन्य सामाजिक संबंधों को दर्शाया है |
यह उपन्यास उन लोगों को विशेष रूप से पसंद आएगा जो भारतीय पारिवारिक मूल्यों और भावनात्मक गहराई को समझना चाहते हैं | उनकी कहानियाँ दिल को छू लेनेवाली होती है और पाठकों को सोचने पर मजबूर करती है |
किताब बहुत छोटी है | जैसा की आपने किताब के मुखपृष्ठ पर देखा होगा की एक जैसे दो व्यक्तियों की फोटो है जैसे की मिरर इमेज हो लेकिन गौर से देखने पर पता चलता है की उनमे से एक व्यक्ति उम्र में बड़ा है और इसी में इस किताब की कहानी निहित है | मुखपृष्ठ हमेशा ही कहानियो को बयां करनेवाले होते है |
प्रस्तुत किताब की लेखिका है –
मूल लेखिका – सुधा मूर्ति ( कन्नड़ भाषा में )
मराठी अनुवाद – मन्दाकिनी कट्टी
पृष्ठ संख्या – 92
प्रकाशक – मेहता पब्लिशिंग हाउस
उपलब्ध – अमेज़न
सारांश –
यह धरती पर बसे ,मानवजाती में जन्मे व्यक्ति के भावनाओ के एक छोटेसे अंश की कहानी है | जो माने तो पितृऋण है ना माने तो कुछ भी नहीं | धरती पर मानवजाति ही ऐसी है जिसमे भावनाए बसी होती है | बिना भावनाओ के मनुष्य कुछ भी नहीं
ऐसे ही यह व्यंकटेश नाम के व्यक्ति की कहानी है जिनके लिए पैसो से ज्यादा लोगो का दुःख और सुख मायने रखता है | उनकी बेटी गौरी भी उनके जैसे ही आदर्शवादी है | जो मेडिकल की पढाई पूरा कर के डॉक्टर बनने के सपने को पूरा कर रही है | व्यंकटेश की पत्नी शांता और बेटा एकदम उनके उलट व्यवहारदक्ष, भावनाशुन्य व्यक्ति है | जिन्हें अपना पैसा , स्टेटस ,बिजनेस के अलावा और कोई नहीं दिखता |
व्यंकटेश बैंक में मेनेजर है | एक बार उनकी बदली हुबली गाँव में हो जाती है | तब उन्हें हर दूसरा व्यक्ति किसी और ही नाम से पुकारता है तब उन्हें लगता है की यह कोई इत्तफाक नहीं बल्कि उनके जैसा ही दिखनेवाला व्यक्ति वही कही आस – पास रहता है | उनके मन में विचार आता है | हमारे कोई रिश्तेदार इधर नहीं | मेरे माता पिता भी किसी और शहर के है | अगले व्यक्ति के पिता का नाम भी दूसरा है | फिर यह व्यक्ति एकदम मेरे जैसा ही कैसे ? इसी उधेड़बुन में व्यंकटेश , उस व्यक्ति और उसकी माँ से मिलते है | उससे मिलकर उन्हे जो सच्चाई पता चलती है | भविष्य मे वह उसपर अग्रसर होना चाहते है | अब वह उनके कोई करीबी है या फिर उनके कोई रिश्तेदार है ? या फिर वह उन कहानी में से एक है जिसमे कहा जाता है की धरती पर एक जैसे चेहरे के सात लोग होते है | पढ़कर जरूर जनिएगा | एक है – किताब के आखिरी में गौरी द्वारा कहा गया वाक्य मन को छू जानेवाला है जिसे पढ़कर एकदम गला भर आये | किताब बहुत अच्छी है , इसे एकबार जरूर पढ़िए | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते है | और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ….
धन्यवाद !
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