रिव्यू –
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पिंजर प्रसिद्ध लेखिका “अमृता प्रीतम” द्वारा लिखित उपन्यास है जो यथार्थवाद को दर्शाता है | यह ऐसी लड़कियों की दुख भरी कहानी है जो पीढ़ियों से चली आ रही दुश्मनी का शिकार हुई | देश में हुए बटवारे का शिकार हुई |
परिस्थितिया चाहे जैसे भी हो शिकार सिर्फ लड़कियां ही हुई | उनका कुछ दोष न होते हुए भी सजाए सिर्फ उन्हें ही भुगतनी पड़ी | इन्हीं सजाओ के कारण वह एक हसती खेलती लड़की से एक पिंजर बन जाती है |
“पिंजर” सिर्फ एक हड्डियों का ढांचा.. जिस पर मांस सिर्फ नाम के लिए ही लटक रहा है | जिसकी ना खुद की अपनी सोच है ,ना ही तो विचार …
उसके लिए जो दूसरे तय करे वही स्थिति अच्छी है | यह उन ब्याहता लड़कियों की कहानी भी है जिनके मायकेवालो को पता है की बेटी ससुराल में दुःखी है फिर भी वह उसे अपने घर में जगह नहीं दे सकते सिर्फ समाज के डर के कारण ..
उस समाज के कारण जिस की सोच बहुत ही रूढ़िवादी है | जाति भेद भी कहानी का एक भाग है | प्रस्तुत किताब पर फिल्म बन चुकी है जिसमें उर्मिला मातोंडकर और मनोज बाजपेई इन्होंने अभिनय किया है |
फिल्म के किरदारों में सारे डायलॉग किताब के ही बोले गए हैं | हाँ , कहानी में थोड़ा फेर बदल जरूर है जैसा की किताब की कहानी और फिल्म में प्रायः होता है | पुरो का मुख्य किरदार अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर इन्होंने किया है जो हमेशा अपने मायके वालों की याद करके तड़प कर रह जाती है लेकिन पूरो के मायकेवाले उसे याद करना तो दूर घर वापस आने पर भी उसे स्वीकार नहीं करते |
इन सारी लड़कियों के दुख को देखकर और ऐसे सामाजिक बंधनों को देखकर .. ऐसा लगता है कि , अच्छा हुआ कि हम अभी के जमाने में रह रहे हैं |
पिंजर आजादी के दौर के भारत की कहानी है | यह वह कहानी बयां करती है जब एक ही देश के दो टुकड़े हुए | एक हिंदुस्तान और दूसरा पाकिस्तान | पिंजर में स्त्री की पीड़ा है , वेदना है , संताप है ,त्याग और ममता है तो पुरुषों द्वारा किए गए अपराध और पश्चाताप भी है जैसा कि आखिर में मनोज बाजपेई का किरदार करता है |
यहाँ हिंदू है और मुसलमान भी .. | दोनों के मनों में विभाजन की पीड़ा भी | पुरो का किरदार धर्म के विरुद्ध जाकर अपने मानवीय मूल्यों को जपता है | तभी तो वह मुसीबत में फसी लड़कियों की मदद करती है |
इसीलिए फिर उपन्यास की नायिका पुरो अंत में अपने वास्तविक स्थिति को कबूल कर सबके गुनाह माफ कर देती है | वह फिर से जिंदा हो उठती है | भविष्य की अनंत संभावनाओं के साथ | वह पिंजर से एक खुशहाल व्यक्ति बनने की तरफ पहला कदम उठाती है | इस बेहतरीन कहानी की –
लेखिका है – अमृता प्रीतम
प्रकाशक है – पेंगुइन बुक्स इंडिया
पृष्ठ संख्या है – 160
उपलब्ध है – अमेजॉन पर
लेखिका बहुत ही प्रसिद्ध हस्ती है अतः किस परिचय की मोहताज नहीं फिर भी उनकी जानकारी हम उनकी किसी अन्य किताब के रिव्यू में देंगे |
आईए , इसी के साथ देखते हैं इसका –
सारांश –
पुरो “सयाम” की रहने वाली है | उसका परिवार उसकी शादी के लिए अपने पुरखों के गांव छत्तोंवाणी जाते हैं | वहीं पर उसके लिए एक अच्छा सा लड़का देखकर शादी करना तय होता है | रत्तोवाल गांव का रामचंद्र नाम का लड़का उसके लिए पसंद कर लिया जाता है |
पुरो उसके साथ अपनी शादी के सपनों में खोई ,अपनी शादी की तैयारीयो में ही लगी रहती है की रशीद नाम का लड़का उसको घोड़ी पर भगाकर ले जाता है क्योंकि रशीद के घराने में और पूरो के घराने में पुरखों का बैर चला आ रहा है |
बदला लेने के लिए पुरो का जीवन उजाडा जाता है | पुरो जैसे तैसे बचकर घर भाग आती है तो उसके माता – पिता उसको स्वीकार करने के बजाय , उसका साथ देने के बजाय , उसको ही मरा हुआ घोषित कर , उसको घर से जाने के लिए कहते हैं |
रशीद ने किया सो किया लेकिन वह पूरो से बेहद प्यार करता है | वह बाहर कुएं के पास उसकी राह देखता रहता है | कुए के पास इसलिए क्योंकि सब तरफ से निराश होने के बाद कुएं में अपनी जीवनलीला समाप्त कर देना ही प्रायः लड़कियों को आसान लगता था |
रशीद यह बात जानता था और यह भी के पूरो के माता – पिता उसे स्वीकार नहीं करेंगे | अब परो का इकलौता सहारा वह खुद है | वह उससे शादी कर लेता है | शादी के बाद दोनों दूसरे गांव चले जाते हैं | वहां पुरो को हमीदा बना दिया जाता है | पुरो के मन पर कितनी चोटे पड़ती है जब हमीदा नाम उसके हाथ पर लिखा जाता है | वह किसी को बता नहीं सकती |
रशिद उस से जितना प्यार करता है | पुरो उस से उतनी ही नफरत …. अपनी यह नफरत वह अपने खान-पान से , रहन-सहन से जाहीर करती है | इस दौरान वह एक बेटे की मां भी बन जाती है फिर भी रशीद पुरो के मन को जितना चाहता है |
कुछ घटनाओं के चलते पुरो रत्तोवाल भी हो आती है | फिर से उसे उसके पुराने सपने दिखने लगते हैं | उसने लाल जोड़ा पहन रखा है | उसे मेहंदी लग रही है | तेल चढ़ रहा है | हल्दी लग रही है | उसने बहुत भारी-भारी कलीरे पहन रखे हैं |
लड़की के जीवन के यह बहुत ही महत्वपूर्ण सपने होते हैं जिसे वह सिर्फ जीवन में एक बार ही जीती है | उस के यह सारे सपने स्वाहा हो गए थे |
रत्तोवाल में वह रामचंद्र से भी मिलती है | रामचंद्र उसे पहचानता नहीं लेकिन उसे उसके पुरो होने का शक जरूर होता है | अब तक पुरो का भाई बड़ा हो चुका है | सब पुरो को भूल गए लेकिन वह अभी भी अपनी बहन को खोज रहा है |
कुछ साल बीत गए और देश का बंटवारा हो गया | फिर से लड़कियों पर जुल्म शुरू हो गए | इसी के चलते पुरो की भाभी को रत्तोवाल के कुछ लोग उठाकर ले जाते हैं |
पुरो की भाभी “लाजों” का पता लगाने में रशिद अपनी जान जोखिम में डालकर उसकी पूरी मदद करता है | लाजो का पता लग जाता है | रशिद लाजों को भी घोड़ी पर से वैसे ही भगा कर ले जाता है जैसे वह पुरो को लेकर गया था लेकिन तब हर क्षण के साथ उसका गिल्ट उस पर हावी हो रहा था | अभी वही गिल्ट हर क्षण के साथ उतर रहा था क्योंकि अभी वह एक जिंदगी बचा रहा था |
आखिर छः महीने बाद लाजो को ले जाने के लिए उसके परिवार वाले बॉर्डर पर आ जाते हैं | रशीद लाजों के साथ-साथ पुरो को भी वहाँ ले जाता है ताकि बरसों बाद पुरो अपने भाई से मिल सके |
पुरो को पूरा यकीन था कि लाजो को उसके घर वाले अपना लेंगे क्योंकि बंटवारे के चलते दोनों देशों से लोग अपनी – अपनी बहू बेटियों को वापस अपने घर ले जा रहे थे |
पूर्व का भाई भी उसे अपने साथ वापस चलने के लिए कहता है | अब की स्थिति के मद्देनजर पुरो के लिए यह आसान भी है | आप लोगों को क्या लगता है ? पुरो कौन सा फैसला लेगी ? हिंदुस्तान अपने परिवार के पास वापस आने का या रशीद के साथ रहने का ?
पुरो का फैसला जानने के लिए किताब पढ़िए या फिल्म को देख लीजिए | तब तक पढ़ते रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ तब तक के लिए ..
धन्यवाद !!