OCTOBER JUNCTION BOOK REVIEW IN HINDI

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अक्टूबर जंक्शन

दिव्य प्रकाश दुबे द्वारा लिखित

रिव्यू –

जंक्शन वह जगह जहां अलग-अलग पटरियों पर दौड़ने वाली ट्रेन मिलती है | यहाँ थोड़ी देर रुक कर फिर अपने – अपने गंतव्य की ओर निकल पड़ती है | यानी कि मिलती है और बिछड़ती है | इसी तरह किताब के नायक और नायिका अक्टूबर की 10 तारीख को सिर्फ एक दिन के लिए मिलते है फिर बिछड़ जाते हैं |

यह सिलसिला उनका 2010 से चालू होकर 2018 तक चलता रहता है | अब 2018 तक ही क्यों चलता है ? इसका जवाब पाने के लिए आपको यह किताब पढ़नी पड़ेगी | कहानी पढ़ने के बाद सचमुच यह आपके दिलों दिमाग पर छप जाती है | कहानी के किरदार याद हो जाते है | बहुत देर तक हम उनके बारे में ही सोचते रहते हैं | लगता है , जैसे कहीं यह पात्र हमारे आसपास तो नहीं | किताब जैसे-जैसे आप पढ़ते जाएंगे , आपको इसे नीचे रखने की इच्छा ही नहीं होगी |

हमने तो यह किताब एक ही सिटिंग मे पढ़ ली | अगर आप एक ही तरह की किताबे पढ़ कर बोर हो चुके हैं तो यह किताब पढ़ कर आप फ्रेश फ़ील कर सकते हैं | sabsastaa.com ने इसे टॉप 20 किताबों की लिस्ट मे शामिल किया है | इसी वेबसाईट पर आप इसे फ्री मे पढ़ सकते है और कम कीमत पर खरीद भी सकते है |

लेखक ने बीच-बीच में खुद को उजागर भी किया है और अपने विचार भी रखे हैं | आजकल मे प्रचलित स्टार्ट – अप और जल्दी रिटायर होनेवाले विचारों पर भी भरसक लिखा गया है क्योंकि कहानी का नायक इसी विचार से प्रेरित है | यह भी एक बात है कि अगर जल्दी रिटायर हो गए तो करेंगे क्या ? इसके भी जवाब आपको शायद किताब मे मिल सकते है ?

कहानी का नायक एक स्टार्ट – अप से जुड़ा होता है और नायिका एक उभरती हुई लेखिका है | इसलिए इन दोनों क्षेत्रों से संबंधित कंपनीयो और लेखकों के असली नाम किताब में इस्तेमाल किए गए हैं | इसीलिए किताब के यह पात्र असली है या नकली इसका संभ्रम होता है |

जब किताब का नायक सुदीप सेलिब्रिटी रहता है तो चित्रा दुनिया के लिए अनजान रहती है | जब चित्रा सेलिब्रिटी बनती है तो सुदीप दुनिया की नजरों से ओझल हो जाता है | दुनिया ऐसे ही चलती है | सब लोग सिर्फ सफलता के पीछे ही दौड़ते हैं | और हां , यह एक प्रेमकहानी भी नहीं है क्योंकि , नायक और नायिका एक दूसरे से प्रेम भी नहीं करते | फिर ऐसा क्या है इन दोनों के बीच जो यह कहानी हमें इतना प्रभावित करती है ? इसके लिए आपको यह किताब पढ़नी होगी | हमने तो पढ़ ली है | इस अप्रतिम किताब के –

लेखक हैं – दिव्य प्रकाश दुबे

प्रकाशक है – हिन्दू युग्म

पृष्ठ संख्या – 114

उपलब्ध – अमेजन , किन्डल

आईए , जानते है इसका सारांश –

सारांश –

चित्रा एक 25 – 26 साल की तलाकशुदा लड़की है | उसे तलाक के बाद अपने पति से कुछ रकम मिली जिससे उसका कुछ सालों तक गुजारा हो जाएगा |आगे की जिंदगी के लिए वह लेखिका बनना चाहती है | उसका जन्म स्थान भोपाल है और कर्मभूमि दिल्ली | कहानी की तलाश में वह बनारस आती है |

सुदीप एक प्रसिद्ध पैसेवाला बिजनेसमैन है | उसके व्यवसाय में कुछ परेशानीया चल रही है | इसके कारण वह डिप्रेशन में है | इसलिए उसका डॉक्टर उसे सलाह देता है कि , वह कुछ दिनों की गैप ले ले जिससे उसकी तबीयत में सुधार आ जाए | वह अपनी दोस्त की शादी के लिए और तबीयत में सुधार के लिए बनारस आता है |

बनारस शहर के एक कैफै मे , वहाँ का वेटर इन दोनों को एक ही टेबल पर बिठा देता है क्योंकि वहां बहुत भीड़ है | यहीं से इन दोनों की कहानी शुरू होती है | लेखक ने सही कहा है | कभी-कभी कोई कहानी शुरू करने के कुछ लोग जिम्मेदार होते हैं लेकिन उनको यह पता ही नहीं होता | जैसे कि कैफै का वह वेटर .. | उसका काम इन दोनों की जिंदगी में बस इतना ही था |

एक-दो दिन की मुलाकात में चित्रा सुदीप को एक किताब भेट देती है | उस पर वह उस दिन की तारीख लिख देती है जब उनके बिछड़ने का वक्त आता है तो सुदीप वही किताब चित्रा के आगे बढ़ाता है | चित्रा अनायास ही उस पर लिखी तारीख के एक साल बाद की तारीख लिख देती है और फिर यही सिलसिला अगले नौ सालों तक चलता रहता है |

बनारस में वह दोनों एक दूसरे के सामने रो देते हैं क्योंकि दोनों अलग-अलग प्रकार से दुखी रहते हैं | रोना एक ऐसी प्रक्रिया है जो लोगों को और करीब लेकर आती है | As compare to हंसना |

वह साल मे सिर्फ एक दिन मिलते हैं | देश की अलग-अलग जगह पर .. | मिलकर धमाचौकड़ी करते हैं | एक दूसरे के सुख और दुख बाँटते हैं | जब चित्रा अपने करियर के लिए स्ट्रगल कर रही होती है तब सुदीप पैसे और प्रसिद्धि के पीक पॉइंट पर होता है | बिजनेस में प्रॉब्लम तो तब आता है जब वह अपने शेयर बेच देता है ताकि कंपनी को आगे लेकर जा सके | इसी के चलते उसके साझेदार उसके काम में दखल देने लगते हैं | एक दिन कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर उसे कंपनी के सीईओ के पद से निकाल देते हैं | उसके सारे डेबिट ,क्रेडिट कार्ड बंद करवा देते हैं | इससे उसे बहुत दुख पहुंचता है | वह अपनी ही कंपनी पर केस करता है |

इस दौरान वह अपनी घर लखनऊ जाता है | जहां उसके रिटायर्ड प्रिंसिपल पापा अकेले ही बड़े से घर में रह रहे हैं | अकेले इसलिए क्योंकि उसकी माताजी पति के तानों से आहत होकर जल्दी ही चल बसती है | ताने इसलिए क्योंकि उनका बेटा सुदीप बारवी क्लास के बाद पढ़ाई लिखाई छोड़ कर व्यवसाय करने का सोचता है | वह अपनी कर्मभूमि मुंबई आ जाता है | उसकी सफलता पाने के पहले ही , उसकी माता चल बसती है |

सुदीप अपने इन बुरे दिनों मे ,अपने पापा के , और करीब आ जाता है | वह अपने पुराने सपनों को जीने लगता है | उसे भी बच्चों के लिए कहानियां लिखने का शौक होता है | वह उसके इस शौक को पूरा करता है | उसका यह शौक भी दुनिया में तहलका मचा देता है | इसके बारे में जानकारी , चित्रा अपनी स्पेशल तारीख 10 अक्टूबर 2020 के प्रेस कॉंनफेरेंस में देती है |

बहेरहाल , सुदीप अपनी केस जीत जाता है | उसे करोड़ों रुपए मिलते हैं | वह बहुत सारे पैसे दान दे देता है | बाकी पैसों से वह अपनी कार से दुनियाँ इक्स्प्लोर करना चाहता है | फिर दोनों अपने – अपने रास्ते चल देते हैं | इस बार 10 अक्टूबर 2018 के बाद याने के अगले साल सुदीप चित्रा को मिलने नहीं आता | क्यों ? इस क्यों का जवाब ही तो आप को पढ़कर जानना है | किताब का अंत आपको बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देगा | अंदर से आपको हिला भी देगा | कहानी पढ़ने के बाद बहुत देर तक आपके दिलो-दिमाग पर छाई रहेगी | बहुत ही अप्रतिम किताब है | जरूर पढ़िएगा | मिलते हैं एक और एक नई किताब के साथ .. | तब तक के लिए .. |

धन्यवाद !!

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