मुर्दे की अंगूठी
ओमप्रकाश शर्मा द्वारा लिखित
रिव्यू और सारांश –
प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – ओम प्रकाश शर्मा
प्रकाशक है – नीलम जासूस कार्यालय
पृष्ठ संख्या है – 101
उपलब्ध है – अमेजॉन पर
कहानी एक अंगूठी के इर्द-गिर घूमते रहती है | अंगूठी पुरातत्व विभाग को खनन में मिले एक “ममी” के उंगली में मिलती है जो बेशकीमती है | इस अंगूठी के साथ भी मनगढ़ंत कहानियाँ जुड़ जाती है जैसा प्रायः ऐसी पुरातत्ववादी वस्तुओं के साथ होता है | इस कहानी में भी वैसा ही होता है |
जब इस अंगूठी की नीलामी होती है तो एक अमीर अमेरिकन आदमी इसे खरीद लेता है | अंगूठी पहनने के बाद ही उसे जानलेवा हार्ट – अटैक आता है |
वह घबराकर इसे लंदन के एक चित्रकार को बेच देता है | वह तो अंगूठी पहनने के बाद मृत्यु को ही प्राप्त हो जाता है | तब फिर से एक बार इस अंगूठी की नीलामी की जाती है | अब की बार इसे भारत में रहने वाले अमीर जमींदार कुंवर ज्ञानसिंह खरीद लेते हैं | उनसे उनकी भाभी वह अंगूठी मांग लेती है और पहन लेती है |
अब की बार अंगूठी का कहर आशा रानी पर टूट पड़ता है | वह मर जाती है | मर कर फिर जिंदा हो जाती है लेकिन अबकी बार उनके पूरे शरीर से खतरनाक मांस जले जैसी बदबू आने लगती है |
वह एक ही वक्त में किले और श्मशान भूमि दोनों मे देखी जाती है | इससे उत्तर प्रदेश के इस बिहारीपूर गांव में आशारानी पिशाचिनी होने की बात फैल जाती है जिससे वहां का सामान्य जनजीवन बहुत प्रभावित हो जाता है | अब इस पहेली को सुलझाने के लिए बिहारीपुर के पुलिस स्टेशन से दिल्ली के “केंद्रीय खुफिया विभाग” का एक जासूस बुलाया जाता है |
अब की बार यह जिम्मेदारी पड़ती है – जगन पर.. जिनका पूरा नाम है जगन्नाथ मिश्रा | यह शागिर्द है – आंतरराष्ट्रीय ठग “जगत” के | इसीलिए इनका स्वभाव भी उन्हीं के जैसा है | यह बिहारीपुर जाना नहीं चाहते लेकिन केंद्रीय खुफिया विभाग के मुख्य मिस्टर चक्रवर्ती के कहने पर इन्हें वहां जाना ही पड़ता है |
इस केस को हाथ में लेने के एक महीने पहले दिल्ली के जमुना नदी में जब गुरु जगत और चेले जगन में तैरने की शर्त लगी रहती है तब वह नदी में कूद कर जान देने वाली एक महिला की जान बचाते हैं | यही महिला “आशारानी” है | यह जगन को किले में जाकर पता चलता है |
इसीलिए फिर वह यह केस सुलझाने के लिए जगत की भी मदद लेते हैं | केस के सिलसिले में जगन जासूस जमींदार के किले में ही अपना डेरा डालते हैं | तब वह वहां के सारे लोगों से मिलते हैं जिनमें 14 तो नौकर ही है | तीन जमींदार भाई है | पहले मानसिंह विदुर है | वह दूसरा विवाह नहीं करना चाहते | दूसरे है – सुजान सिंह |
उनकी ही पत्नी है आशारानी है | तीसरे है – ज्ञानसिंह उनकी अभी तक शादी ही नहीं हुई है | उनकी एक पर्सनल नौकरानी है | पहले तो जासूस जगन को इन्हीं दोनों पर शक होता है | बाद में उन के शक की सुई रानी की तरफ घूमती है क्योंकि वह उनके खाने में अफीम मिला देती है |
बाद मे वह 5 लाख के जेवरों के चोरी का आरोप भी जगन पर लगाती है | इधर जगत को भी हीरा और उसके साथी पहेलवान के बारे मे पता चलता है |जगत इन दोनों को अपने झांसे मे लेकर सारा सच उगलवा लेते है |
इसके बाद दिल्ली से अव्वल नंबर के जासूस “राजेश” और उनके ही विभाग के रसायनशास्त्री “मिस्टर भण्डारी” किले मे पहुंचते है | अब पुराने पाठक तो जानते ही है की राजेश जी के सामने इन दोनों की बोलती बंद हो जाती है | उन्हें यह बड़े भाई का सम्मान देते हैं |
राजेशजी के सामने जगन सारी पहेलियां सुलझाता है | वह बताता है कि इन सारे षड्यंत्रो के पीछे जमींदार परिवार का फैमिली डॉक्टर है | वही आशारानी के साथ उनके मायके से यहां आया है | वह आशा रानी को वर्षों से ब्लैकमेल करता आ रहा है जिससे आशा रानी का जीना दूभर हो गया है |
चोरी के नाम पर 5 लाख के जेवर भी आशारानी ने उसी को दिए हैं | हीरा और पहलवान डॉक्टर के इशारों पर भूतों का डर गांव में फैलाते हैं | आशा रानी के शरीर से आने वाली बदबू का राज भी उसी डॉक्टर को पता है लेकिन वह कौन सा राज है ? किसके बलबूते पर डॉक्टर आशा रानी को इतने सालों से ब्लैकमेल कर रहा है ?
यह आपको किताब पढ़कर ही जानना होगा | बहेरहाल, आशा रानी को जीवन जीने के लिए अच्छी परिस्थितियों का निर्माण कर देना | राजेश और जगन अपनी जिम्मेदारी मानते हैं |
इसके लिए वह क्या – क्या उपाय करते हैं ? इस के लिए आप को किताब जरूर पढ़ना चाहिए | लेखक ओमप्रकाश शर्मा द्वारा निर्मित यह पात्र सच्चे लगते हैं | लगता है जैसे वह हम में से ही एक हो !
यह अपने कर्तव्य पूरी निष्ठा से निभाते हैं | चाहे फिर वह जासूस बनकर देश के लिए हो ! या फिर देश के नागरिक बनकर समाज के लिए .. यह समाज के हर रिश्ते के लिए अपनी मर्यादाएं भी जानते हैं | अपने पोजीशन और पावर का रौब कहाँ , किस पर दिखाना है और किस पर नहीं ?
कहा भीगी बिल्ली बनना है और कहा शेर ? यह भी यह लोग बखूबी जानते हैं | लेखक ओमप्रकाश शर्मा इन्होंने अपनी लेखनी से इन सब पात्रों को जीवंत कर दिया है | उनकी लेखनी हास्य का पुट लिए हुए भी होती है जो आपको मिस्ट्री और सस्पेंस जैसा विषय पढ़ते वक्त भी किताब से जोड़े रखती है |
बहेरहाल , जगन कहानी के अंत में गांव वालों के मन से भूत प्रेत और पिशाचीनी के डर को निकालने में कामयाब हो जाते हैं | इस तरह से वह अंधश्रद्धा निर्मूलन भी करते हैं | लोगों को तरक्की की ओर अग्रसर करते हैं | नए विचारों की ओर बढाते हैं | उम्मीद है , आपको भी लेखक के उपन्यास पसंद आएंगे !उनकी किताबों को पढ़िए जरूर | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए..
धन्यवाद !