MANORAMA- PREMCHAND BOOK REVIEW

मनोरमा

मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित

रिव्यू –

यह प्रेमचंद द्वरा लिखा एक सामाजिक उपन्यास है | इसके

लेखक है – मुंशी प्रेमचंद

प्रकाशक है – डायमंड पॉकेट बुक्स प्रा. लिमिटेड

पृष्ठ संख्या – 238

उपलब्ध – अमेजन , किन्डल

प्रेमचंद द्वारा लिखे इस उपन्यास से हमे उस वक्त की स्थिति के बारे मे पता चलता है जैसे की तब कौन सी प्रथाये प्रचलन मे थी ? पारिवारिक व्यवस्था कैसे रहती थी ? सामाजिक व्यवस्था कैसे थी ? शासन प्रणाली कैसे थी ? उनके लिखे उपन्यास हमे उस दौर का आँखों देखा हाल बताते है | उनके उपन्यास के ज्यादा तर पात्र अहिंसा के मार्ग पर चलने वाले होते है जो कभी – कभी अपने डगर से भटक तो जाते है लेकिन फिर उसी रास्ते पर वापस आ जाते है |

वह अपने पात्रों को ऐसा इसलिए गढ़ते होंगे क्योंकि वह खुद भी गांधीजी के अहिंसा के विचारों से प्रेरित थे | उपन्यास की मुख्य पात्र “मनोरमा” अपने गुरु “चक्रधर” से प्रेम करती है | इधर चक्रधर के पिता उसका विवाह अहल्या के साथ तय करते है तो चक्रधर अहल्या से ही विवाह करना चाहता है | इसलिए यह दोनों उनके परिवार के द्वारा चुने हुए साथियों के साथ ही विवाह करते है | उस दौर मे बहु – प्रथा विवाह प्रचलन मे था |

बूढ़े व्यक्तियों के साथ भी नाबालिग लड़कियों की शादी कर दी जाती | इसी प्रथा के चलते मनोरमा की शादी राजा विशालसिंह के साथ हो जाती है | मनोरमा यह राजा विशालसिंह की छठी पत्नी है | जब मनोरमा से राजा गुस्सा हो जाते है तो वह सातवे विवाह की भी तैयारी करते है | वह मनोरमा से सारी सुखसुविधाये छीनकर उसे एक नौकरानी का जीवन जीने पर मजबूर कर देता है | यह वाकया यह बताता है की उस जमाने मे स्त्रियों की हालत कितनी बदतर थी | जहां उनके पास कोई भी अधिकार नहीं थे , नाही तो मायके मे , नाही तो ससुराल मे …. |

अब आते है मनोरमा के पिता पर , वह राजा के राज्य मे दीवान है | अतः अपने बेटी की शादी वयस्क राजा के साथ नहीं करना चाहता पर चक्रधर के पिता ऐसी चाल चलते है की मनोरमा के पिता को यह शादी करवानी पड़ती है | मनोरमा एक अच्छी बेटी होने के नाते इस शादी के लिए मान जाती है क्योंकि अगर राजा नाराज हो गया तो उसके पिता और परिवार का जीना दूभर हो जाएगा | शादी करेगी तो यह परिस्थितियां सुखमय हो जाएगी |

उपन्यास के हर एक पात्र की अपनी एक कहानी है | कहानी के कुछ – कुछ पात्र परिस्थितियों के वश होकर , अपना असली स्वभाव त्यागकर , कुछ और ही हो जाते है | देखते है कौन – कौन से पात्र इन परिस्थितियों की परीक्षा मे खरे उतरते है ? आईए इसी के साथ देखते है इसका सारांश ……

सारांश –

यह कहानी शिव की नगरी वाराणसी जिसे काशी भी कहते है और आग्रा की पृष्ठभूमि पर आधारित है | चक्रधर एक उत्साह से भरा , शरीर से हट्टा – कट्टा नौजवान है | वह अपने देश और लोगों के लिए बहुत कुछ करना चाहता है | उसने अपना जीवन समाजसेवा के लिए अर्पित किया है | कुछ सामाजिक मुद्दों को छुड़ाने के चक्कर मे उसे जेल हो जाती है | वह लोगों की नजरों मे हीरो बन जाता है | चक्रधर की शादी उसके पिता अहल्या नाम की लड़की के साथ तय करते है | बाद मे पता चलता है की अहल्या उसके माता – पिता की असली बेटी नहीं है | अब इस बात को लेकर जात – पात की बहस शुरू हो जाती है की अहल्या के साथ चक्रधर का विवाह होना चाहिए या नहीं ?

चक्रधर फिर भी अहल्या से ही विवाह कर लेता है | चक्रधर के माता – पिता अहल्या के हाथ का खाना नहीं खाते | वह अपनी परम्पराओ से चिपके रहते है | लेखक इस बात को इतनी आसानी से अपने उपन्यास मे दर्शाते है जैसे की यह उन लोगों के लिए रोजमर्रा की बात हो या फिर घर – घर की कहानी हो | उस वक्त जातीय दंगे भी चरम सीमा पर रहते थे लेकिन जाती के नाम पर एक दूसरे को दुश्मन समझने वाले भी , दूसरे की मौत पर आँसू बहाते थे और उसकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना भी करते थे |

चक्रधर जो समाजसेवा करना चाहता था ,उससे उसे शांति तो मिलती थी पर पैसा नहीं | घर ग्रहस्ती पैसे की मांग करती है | इसलिए वह समाजसेवा छोड़कर लेखक बन जाता है जिससे उसे अच्छी आमदनी होने लगती है | इससे उसका परिवार तो खुश है लेकिन वह नहीं | ऐसे मे चक्रधर और अहल्या को राजपाठ मिलता है | अब अचानक यह राजपाठ कैसे ? यह तो आप किताब मे पढिए | यह राज पाठ पाकर अभी सीधी – साधी अहल्या भी विलासिनी बन जाती है | दिनभर नौकरों पर चिल्लाती है |

अब उसे अपने घर से ज्यादा राजपाठ प्यारा लगने लगता है | चक्रधर उसे हमेशा के लिए छोड़कर चला जाता है | चक्रधर पहले तो अहिंसा के मार्ग पर चलकर लोगों के नजरों मे हीरो बन जाता है लेकिन वह भी राज पाठ पाकर क्रूरता का प्रदर्शन करने लगता है जिसके कारण एक गरीब किसान की उसके हाथों मौत हो जाती है | अपने चरित्र का ऐसा पतन चक्रधर को बर्दाश्त नहीं होता |

इसलिए इस फसाद की जड़ उस राजपाठ को ही हमेशा के लिए छोड़ वह सन्यासी हो जाता है | चक्रधर के ऐसे अचानक छोड़कर जाने से मनोरमा भी बहुत दुःखी हो जाती है | अब चक्रधर के पीछे उसके माता – पिता , पत्नी और बेटे शंखधर का क्या होता है ? यह तो आप को किताब पढ़कर ही जानना होगा | कहानी मे मनोरमा की माँ का नाम लौंगी है जो उसकी असली माँ तो नहीं है लेकिन मनोरमा और उसके भाई को अपने बच्चों जैसा ही प्यार दिया है | इस कहानी से यह साबित होता है की , सौतेली माँ हमेशा बुरी नहीं होती | मनोरमा का पति राजा विशालसिंह भी अपने पोते को पाकर एक उदार राजा बन जाता है तो पोते के जाने के बाद एक क्रूर राजा …… |

कहानी के हर एक पात्र पर उनकी बदलती परिस्थितिया असर करती है , सिर्फ एक मनोरमा ही है जो हर परिस्थिती मे अडिग रहती है | इसीलिए शायद इस उपन्यास का नाम “मनोरमा ” है जो इस कहानी की मुख्य नायिका भी है | उस दौर के समाज के हर एक स्तर की कथा और व्यथा बताने वाली इस किताब को जरूर पढे |

धन्यवाद !

Wish you happy reading……

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