माणदेशी माणसं
व्यंकटेश माड़गुलकर द्वारा लिखित
रिव्यू –
लेखक को जितनी शिक्षा मिली उतनी उन्होंने की | उसके बाद वह अपने गांव “माड़गुल” में ही रहने लगे | उन्हें चित्रकार बनना था | कुछ दिन उन्होंने जानवरों की रखवाली की | होटलो के नेमप्लेट की पेंटिंग की | रोड के किनारे लगे मिलो के पत्थरों पर नंबर डालें | इसके बाद वह कुछ दिन प्राथमिक स्कूल में टीचर भी रहे | पर इन सारी चीजों में उनका मन लगता नहीं लगा |
अपनी इसी मनःस्थिति का वर्णन लेखक ने प्रस्तुत किताब के “झेल्या” इस अध्याय में किया है | टीचर की नौकरी करते समय वह स्कूल की लाइब्रेरी से किताबें पढ़ते रहे | उन्होंने “गडकरी ” और “केशवसूत” जैसे मराठी के दिग्गज लोगों की कविताएं पढ़ी |
इससे उन्हें कविताएं लिखने का शौक चढ़ गया | चित्रकारी , कविता इसमें मन नहीं लगा तो उन्होंने एक कहानी लिखी | उसका नाम “काल्या तोंडाची” था जो उन्होंने अपनी ही पाली हुई कुत्ती पर लिखी थी |
यह कहानी बहुत ही प्रसिद्ध हुई | यह कहानी “अभिरुचि” मासिक में छपकर आई | इस तरह उन्होंने वह बातें कहानियों के द्वारा बताई जो वह कविता और चित्रकारी के द्वारा नहीं बता पाए थे | इससे उन्हें समाधान मिला | उनके पात्र ,गांव की भाषा में ही बात करते हैं | इसीलिए इसमें कोई बनावटीपन नहीं लगता |
लेखक हर छोटी से छोटी चीज का वर्णन करते हैं जैसे कोई बहुत देर तक खुली पीठ के साथ धूप में बैठा है तो उसकी पीठ पर खुजली होगी | तो वह खुजाएगा | यही क्रिया करते-करते सामनेवाले से बात भी करेगा | सबके बोलने के ढब अलग , चलने का अंदाज अलग , कपड़े पहनने का अंदाज अलग होता है |
वह निसर्ग के हर एक वस्तु का उसके रंगों के साथ वर्णन करते है जैसे बाजरे की मोटी रोटी (भाकरी) का कलर हरा दिखेगा | बाजरे पर फूल खिलेंगे तो वह जामुनी कलर के होंगे | यह सब इसलिए होता होगा क्योंकि एक चित्रकार के रूप में यह सारे रंग उनके ध्यान में आते होंगे | वैसे भी सृष्टि में कितने रंग है , आकार है , प्रकार है | सचमुच , भगवान रूपी चित्रकार बहुत ही महान आर्टिस्ट है |
किताब में पूरे 16 लोगों की कहानियाँ है | सारे लेखक के गांव मे रहते है | सब लोगों में एक बात कॉमन है | वह यह कि यह लोग मेहनती होने के बावजूद अति गरीबी का जीवन जीते हैं |
उनके अच्छे रोजगार के लिए सरकार ने अब तक कोई योजनाएं लागू नहीं की है क्योंकि देश को स्वतंत्र हुए अभी कुछ ही वक्त हुआ है | किताबों के पात्रों की जिंदगी गांधीजी की हत्या की घटना से प्रभावित होती है | गांव में व्याप्त शोचनीय जाती – व्यवस्था प्रखरता से दिखाई देती है |
उच्च – वर्णीय कभी-कभी अस्पृष्यों पर कैसा अमानुष अत्याचार करते हैं ? वह भी दिखाई देता है | यह सब पढ़कर बाबासाहब आंबेडकर के लिए मन में बहुत सम्मान बढ़ जाता है क्योंकि उन्होंने इन लोगों की और उनके आनेवाले पीढ़ियों की जिंदगी किस हद तक अच्छी की | इसका ज्ञान होता है | सचमुच ! वह महामानव थे | अब बात करते हैं “सतारा” मे बसे “माड़गुल” गाँव की |
यह गांव अपने गरीबी के लिए ही प्रसिद्ध था | इस गाँव मे कोई भी अपनी लड़की ब्याहना नहीं चाहता था | अभी भी यह गरीब प्रदेशों में ही आता है | किताब के पात्रों को गरीबी के कारण शिक्षा मिलती ही नहीं | जिसे मिलती है | वह इसे लेना नहीं चाहते या फिर इसे छोड़ कोई दूसरा काम करते हैं |
इनमें अभी तक वह जागरूकता ही नहीं आई है की पढ़ाई से जीवन बेहतर किया जा सकता है | जहां पढ़ाई नहीं | रोजगार नहीं | गरीबी जहां बाहे पसारे खड़ी है | वहां यह अपना गुजर- बसर कैसे करें ? इसी गरीबी के कारण शायद चोरी , छल -कपट और व्यभिचार से पैसे कमाने के विचार उनके मन में आते हैं |
कुछ-कुछ किरदार इतने भोले है कि उनका भोलापन आपका मन मोह लेता है | कुछ-कुछ कहानियों का अंत ऐसा है कि पढ़ने के बाद मन सोच – विचार में डूब जाता है | ऐसे विविधरंगी लोगों के दर्शन कराती इस किताब के –
लेखक है – व्यंकटेश माड़गुलकर
प्रकाशक है – मेहता पब्लिशिंग हाउस
पृष्ठ संख्या – 150
उपलब्ध – अमेजॉन और किन्डल पर
किताब के हर एक किरदार के चित्र भी आप को यहाँ मिलेंगे | आईए , अब देखते हैं इसका सारांश –
सारांश –
पहले है – “धर्मा रामोशी” | यह व्यक्ति लेखक की माँ के साथ उनके मायके से आया था | पूरी उम्र उसने उनके माता-पिता के घर के , खेत – खलिहान के काम करके अपनी रोजी-रोटी कमाई | वक्त के साथ बुढ़ापे ने उसके शरीर में दस्तक दी | अब उससे वह सब काम नहीं होते जो पहले होते थे |
वह रोज अनाज लेने के लिए लेखक के घर आता है ताकि उसका आटा पीसकर वह कुछ कमाई कर ले | लेखक बार-बार कहते हैं कि वह मदद के लिए अपने बेटी को साथ ले ले | पर वह कोई जवाब नहीं देता | बस कुछ बेबसी है जो प्रकट नहीं होती | एक दिन हिम्मत करके वह लेखक को उनकी पुरानी धोती मांगता है | वही धोती दूसरे दिन “धर्मा रामोशी” की बेटी लुगडे के जैसे पहनकर आती है |
यह देखकर लेखक को सारी बातें समझ में आती है | उनके यहाँ इतनी गरीबी रहती है की उसकी बेटी के पास एक जोड़ी कपड़े तक नहीं रहते |
दूसरी कहानी है “झेल्या” | तीसरी कहानी है – “मुलाव्याचा बकस” – यह कहानी हमें बहुत ही हृदयद्रावक लगी | बकस का असल नाम “खुदाबख्श” था | वह थोड़ा पागल है | 20 -22 साल का है | माता-पिता गुजरने के बाद चाचा उस पर ध्यान नहीं देता | चाची खाने को नहीं देती | खेती के सारे काम उसी से लिए जाते हैं | सारी मेहनत वह करता है पर अन्न के एक दाने पर भी उसका अधिकार नहीं |
उससे बात करने के लिए कोई व्यक्ति नहीं तो बेचारा जानवरों को ही अपना मित्र बना लेता है | पागल बोलकर ध्यान न देना अलग बात है पर पीठ पर घाव पड़ने तक मारना | कहाँ का न्याय है ? उसका चाचा उसको बहुत मारता है | दूसरे दिन आंखों में पानी भरकर बकस अपने घाव लेखक को दिखाता है |
चौथी कहानी है – “बाबाखान दरवेशी” भालू का खेल दिखाकर अपना गुजर – बसर करता है | उसकी पत्नी थोड़ी पागल है | अपने 7- 8 बच्चों को लेकर गांव में घूमते रहती है | अपने इन बच्चों को अल्लाह की मेहरबानी कहनेवाला बाबाखान गुस्सा आने पर इसी मेहरबानी पर कहर बनकर टूट पड़ता है |
एक बार उसका भालू उसके छोटे बच्चों को पकड़ लेता है | वह तो गनीमत के लोग उसे थोड़े से जख्मों के बाद छुड़ा लेते हैं | बाबाखान को यह देखकर बहुत गुस्सा आता है | लोगों को लगता है कि अब भालू की खैर नहीं पर वह भालू को कुछ नहीं करता |
अपनी बीवी को छोटी – छोटी बात पर पिटनेवाला बाबाखान कहता है – बीवी मरी तो दूसरी आ जाएगी , पर सीखा – सिखाया जानवर मरा तो कहां मिलेगा ? इसी से उसका गुजर – बसर होता है | हो गए ना आप भी .. लेखक के जैसे अवाक् ! उसका जवाब सुनकर .. .
“माझा बाप” कहानी में – देशपांडे सर “सेहत और स्वास्थ्य” से रिलेटेड विषय पढ़ाते हैं | “नरसू तेली” का बेटा उनकी क्लास में पढ़ता है | इस बच्चे को टीचर ने लसीकरण करवाने के लिए कहा है क्योंकि उसकी साथ चल रही है | इस बात को लेकर टीचर और नरसू तेली के बीच में बहुत पत्र व्यवहार होता है पर पुराने विचारों का और कम पढ़ा – लिखा नरसू तेली टीचर की बात को समझ ही नहीं पाता |
वह बच्चे को लसीकरण न करवाने के विचार पर ही कायम रहता है | इस बात को बच्चे की माँ समझ जाती है | वह चोरी – छिपे बच्चे का लसीकरण करती है | इस तरह वह अपने बच्चे को महामारी के प्रकोप से बचा लेती है |
“बीटा काका” लेखक के चाचा की कहानी है जो पुलिसलायक शरीरयष्टि ना होने के बावजूद जीवन भर पुलिस की नौकरी करते रहे | वह लेखक को बेहद प्यार करते थे | लेखक की उन्होंने बहुत बार स्कूल फीस भरने के लिए मदद भी की |
लेखक अपने बीटा काका के खुशी में खुश और दुख में दुखी होते थे | लेखक की किताबे जरूर पढे | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ..
धन्यवाद !