MALVIKAGNIMITRA BY KALIDAS BOOK REVIEW

महाकवि कालिदास द्वारा रचित नाटक मालविकाग्निमित्रम् (Malvikagnimitra) के कवर पेज की तस्वीर।

मालविकाग्निमित्र
कवि कालिदास द्वारा रचित

रिव्यू –

कवि कालिदास की जानकारी – 

प्रस्तुत नाटक , कवि चुड़ामणि कालिदास द्वारा रचित है | यह एक ऐतिहासिक नाटक है | संस्कृत भाषा में ऐसी बहुत ही कम रचनाएं रची गई है | इसलिए इसका ऐतिहासिक महत्व भी ज्यादा है | कवि कालिदास की जानकारी हमने हमारी वेबसाइट “सारांश बुक ब्लॉग” पर उपलब्ध “अभिज्ञान शाकुंतल” इस ब्लॉग में दी है | उसका लिंक भी साथ में दे रहे हैं | https://saranshbookblogs.com/abhigyaan-shakuntal-by-kalidas-book-review/ जरूर चेक करें | हमारी तरफ से इसे 5 स्टार की रेटिंग है | 

प्रस्तुत नाटक विदर्भ की राजकुमारी मालविका और मगध के राजा अग्निमित्र की प्रेम कहानी है | अग्निमित्र के पिता पुष्यमित्र ने अपना सैन्य बल दिखाने के बहाने से मौर्य वंश के आखिरी राजा बृहद्रथ की 185 बी. सी. में हत्या कर दी | उसके मंत्री को भी बंदी बना लिया | वह खुद सेनापति ही बना रहा लेकिन उसने अपने पुत्र अग्निमित्र को मगध का राजा बना दिया |
मगध जिसे विदिशा के नाम से भी जाना जाता है | अग्निमित्र ने 149 बी. सी. से लेकर तो 142 बी. सी. तक राज्य किया | इसी अग्निमित्र की कहानी को महाकवि कालिदास ने अपने काव्य की पंक्तियो में समाहित किया | महाकवि कालिदास तब समुद्रगुप्त के पुत्र दूसरे चंद्रगुप्त जिन्होंने विक्रमादित्य की पदवी धारण की थी के समय में 376 से 413 ईस्वी मे वर्तमान थे | इसी अवधि में उन्होंने यह नाटक लिखा | नाटक की कहानी पांच अंकों में विभाजित है | प्रस्तुत नाटक के –
रचनाकार है – महाकवि कालिदास
हिंदी रूपांतरकर है – विष्णु प्रभाकर
प्रकाशक – सत्साहित्य प्रकाशन
पृष्ठ संख्या – 33
उपलब्ध है – अमेजॉन और किंडल पर

नाटक के बारे मे –

भारतीय संस्कृत साहित्य बहुत ही समृद्ध है | भारतीय जीवन का शायद ही कोई ऐसा अंग हो जिससे जुड़ी मूल्यवान सामग्री का अनंत भंडार संस्कृत साहित्य में उपलब्ध न हो ! बस मलाल इस बात का है कि संस्कृत न जानने के कारण लोग इससे वंचित रहते हैं |
उन्हें जिज्ञासा तो रहती है उस साहित्य के बारे में जानने की परंतु वह इसे हिंदी के माध्यम से जानना चाहते हैं | ऐसे ही स्थिति में संस्कृत – हिंदी के विद्वान हमें मदद करते हैं | इन्हीं विद्वानों की मदद से हम संस्कृत के कई कवियों और नाटककारों की विशिष्ट रचनाओं को जान पाते हैं |
मालविकाग्निमित्र के रचयिता अभिज्ञान शाकुंतल की रचना करनेवाले कालिदास ही है | यह उनकी पहली रचना थी | इसकी रचना करते समय इसकी सफलता को लेकर उनके मन में शंका थी | साथ में यह विश्वास भी था कि प्राचीन कवियों के नाटकों में जो बातें नहीं पाई जाती है | वह इसमें मिल जाएगी |
यह नाटक केवल एक प्रेम कहानी नहीं है, बल्कि यह उस समय के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का चित्रण करता है | इसमें राजदरबार की राजनीति, कला, संगीत और प्रेम संबंधों को दर्शाया गया है |
भाषा की सुंदरता और पात्रों के मनोभावों का चित्रण इसे एक उत्कृष्ट साहित्यिक रचना बनाता है | इस नाटक में कालिदास ने प्रेम और सुंदरता को बहुत ही सुंदर तरीके से दिखाया है |

नाटक का नायक व नायिका – 

प्रस्तुत नाटक में शुंग – वंशी राजा अग्निमित्र और विदर्भ की राजकुमारी मालविका की प्रेम कहानी है | यह नाटक उस काल के राज समाज का जीता जागता चित्र पाठकों के सामने प्रस्तुत करता है | राजा की कामुकता , रानियो की जलन , राजमहल के षड्यंत्र सभी इसमें मूर्त रूप में दिखाई देते हैं |
इसके साथ ही महारानी धारिणी की धीरता , राजा की न्याय – बुद्धि , सेनापति की स्वामीभक्ति इन सब का भी सुंदर वर्णन मिलता है | प्रत्येक पात्र का चरित्र – चित्रण अच्छे से किया गया है | प्रस्तुत नाटक की काफी आलोचना भी हुई है |
इस नाटक में जिस प्रकार सत – रज – तम इन तीन गुणों के अनुरूप अनेक रसों का उपयोग जिस कुशलता से हुआ है | उसे सिर्फ कवि कालिदास ही कर सकते थे | प्रस्तुत नाटक मे श्रृंगार रस की प्रधानता है | यह ग्रंथ उन्हीं के द्वारा रचित माना जाता है | आईए , अब देखते हैं इसका –

सारांश –

माधवसेन और यज्ञसेन- 

माधवसेन और यज्ञसेन दोनों चचेरे भाई थे | दोनों विदर्भ की गद्दी हासिल करना चाहते थे | इसलिए अपनी ताकत बढ़ाने के लिए माधवसेन ने अपनी बहन मालविका का विवाह मगध के राजा अग्निमित्र के साथ करना तय किया |
जैसा की इतिहास प्रेमी जानते हैं कि मगध तब का शक्तिशाली राज्य था | माधवसेन अग्निमित्र की शक्ति के बलबूते यज्ञसेन को हराकर विदर्भ का राजा बनना चाहता था | इसलिए वह अपनी बहन मालवीका का विवाह अग्निमित्र के साथ करना चाहता था |

अग्निमित्र – 

अग्निमित्र की पहले से दो रानियां थी | धारिणी और इरावती | धारीनी पटरानी थी | इनका वसुमित्र नाम का पुत्र और वसुलक्ष्मी नाम की पुत्री थी | माधवसेन , मालविका के विवाह के संबंध में ही मगध जा रहे थे कि रास्ते में यज्ञसेन की सेना ने उन पर आक्रमण कर , उन्हें बंदी बना लिया | जब यह बात अग्निमित्र को पता चली तो उन्होंने यज्ञसेन को पत्र लिखकर माधवसेन , उसकी पत्नी और बहन मालविका को छोड़ने के लिए कहा |
इस पर यज्ञसेन ने अग्निमित्र से सौदा करते हुए कहा कि अगर वह इन सब को छोड़ दे तो अग्निमित्र को भी उसकी पत्नी के भाई मौर्य सचिव को छोड़ना होगा जो की अग्निमित्र के कारागार मे बंदी था | इसपर अग्निमित्र को बड़ा गुस्सा आया | इसे उसने अपना अपमान समझा |
उसने अपने मंत्री वीरसेन को यज्ञसेन पर आक्रमण करने की आज्ञा दी | उसके मंत्री वीरसेन की भी यही इच्छा थी | उसने भी अच्छा प्रबंध कर के यज्ञसेन पर पर हमला किया |
विदर्भ पर आक्रमण करने की आज्ञा देने के बाद महाराज अग्निमित्र उनके विदूषक गौतम के साथ बात करने लगे | एक्चुअली यह दोनों मिलकर एक प्लान बना रहे थे | वह यह की महाराज की बड़ी रानी धारिणी के पास एक दासी थी | वह बहुत ही खूबसूरत थी | महाराज ने उसे सिर्फ चित्र में देखा था | वह उसे आमने – सामने देखना चाहते थे |
इसीलिए वह दोनों मिलकर यही प्लान बना रहे थे कि उसे सामने कैसे लाया जाए ? क्योंकि महारानी उसे कभी महाराज के सामने आने ही नहीं देती थी | इस दासी को महारानी के दूर के भाई वीरसेन ने अपनी बहन के पास उपहार स्वरूप भेजा था | यह वीरसेन , अनंतपाल किले का किलेदार था जो नर्मदा नदी के किनारे बसा था |

नाट्यशास्त्र की जांच – 

उन्होंने जिस कन्या को अपनी बहन के पास नृत्य – गान सीखने के लिए भेजा था | उसका नाम मालविका था | महारानी ने उसे नाटककला सिखाने के लिए गुरु गुणदास को रखा हुआ था |
वह कन्या यह कला सीखने के लिए स्वभाव से ही निपुण थी | मालविका को देखनेवाले हर व्यक्ति को ऐसा लगता था कि वह किसी बड़े खानदान की है क्योंकि तब उच्चकुल की कन्याएं ही नाट्यशाला सिखती थी |
महाराज और गौतम ने अपने प्लान के तहत गुरु गुणदास और हरदत्त में झगड़ा लगवाया | अब यह दोनों अपने आप को श्रेष्ठ सिद्ध करने के चक्कर में पड़ गए | इन दोनों के झगड़े का निर्णय महाराज ने महारानी धारिणी पर डाल दिया |
इस निर्णय के वक्त उनकी सखी संन्यासी कौशिकी भी उनके साथ रहनेवाली थी क्योंकि कौशिकी एक विदुषी थी और पक्षपात से दूर रहनेवाली थी | उनमें गुण – दोष का विचार करनेवाली बुद्धि थी |
अब महाराज की अभिलाषा पूर्ण होनेवाली थी क्योंकि नाट्यशास्त्र की जांच दिखाने से होती है | सिर्फ बातचीत से नहीं और गुरु गुणदास का पक्ष साबित करने के लिए मालविका को ही आना पड़ेगा क्योंकि वही उनकी श्रेष्ठ शिष्या थी और इस तरह मालविका महाराज के सामने आई | हालांकि , महारानी धारिणी ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी कि यह मुकाबला ना हो ! पर उनकी एक न चल सकी |
महाराज मालविका का सौंदर्य देखकर अभिभूत हो गए | मालविका ने अपनी कला सादर की | देवी कौशिकी ने उसकी विद्या को दोषरहित पाया | गुरु गुणदास विजयी हुए |

मालविका और महाराज का प्रेम – 

मालविका और महाराज के बारे में दासियो में बातें होने लगी कि महाराज , मालविका को चाहते हैं पर महारानी के डर से कुछ भी नहीं बोलते | महाराज की दूसरी रानी इरावती ने उन्हें वसंत – उत्सव के बहाने झूला झूलने के लिए प्रमदवन में बुलाया था | महाराज ने यह निमंत्रण स्वीकार कर लिया था |
वसंत ऋतु में हर पेड़ पर फूल खिले थे | इन फूलों की सुगंध चारों तरफ फैल रही थी | कोयल कूक रही थी | भवरे भिन – भीना रहे थे | पंछी चहे – चहा रहे थे | ऐसे ऋतु में जिन वृक्षों पर फूल नहीं आए थे | उनके लिए कुमारी और सौभाग्यवती नारियां सज – धज कर प्रमदवन में जाति और उन पेड़ों पर अपने पैरों से प्रहार करती ताकि उन पर फूल खिल सके |
ऐसा ही एक काम महारानी धारिणी ने मालविका को दिया था क्योंकि झूले से गिरकर धारिणी के पैरों में मोच आ गई थी | मालविका के पैरों के प्रहार से अगर उस अशोक वृक्ष में 5 दिन के भीतर फूल खिल जाते हैं तो महारानी उसका नववधू जैसा श्रृंगार कर के देनेवाली थी |
इसी सिलसिले में मालविका वहां आई हुई थी और महाराज भी | मालविका के साथ महारानी की दासी वकुलवलीका थी | उनकी बातों से महाराज और गौतम को पता चला कि मालविका भी उनसे प्रेम करती है | महाराज और गौतम इन दोनों की बातें छुपकर सुन रहे थे |

महारानी इरावती का क्रोध – 

अब यह दोनों मालविका और वकुलवलिका के सामने प्रकट हो गए | महाराज ने अपना प्रेम निवेदन मालविका से किया | अब इन सब की बातें महारानी इरावती भी छुपकर सुन रही थी | महाराज का मालविका से प्रेम निवेदन सुनकर अब उनसे रहा नहीं गया | वह सामने आई और महाराज को खूब डांटा |
महाराज ने उन्हें बहुत मनाया पर उनका क्रोध शांत नहीं हुआ | रानी इरावती अत्यंत क्रोधीत थी | उसने यह सब बातें महारानी धारिणी को बताई | महारानी धारिणी ने रानी इरावती का क्रोध शांत करने के लिए मालविका और वकुलवलिका को कारागार की अंधेरी कोठरी में बंद कर दिया |
उनको छुड़ाने का कोई उपाय नहीं था क्योंकि द्वार की रखवाली करनेवाली माधवीका को महारानी की आज्ञा थी कि जब तक उनकी नागमुद्रा ना दिखाई जाए तब तक किसी को छोड़ा ना जाए |
जब महाराज महारानी धारिणी का कुशल क्षेम पूछने गए थे | तब उन्हें यह बात पता चली | महाराज चुप बैठनेवालों में से नहीं थे | उन्होंने फिर से अपने विदूषक गौतम के साथ मिलकर एक प्लान बनाया | इस प्लान के तहत उन्होंने मालविका और वकुलवलिका को छुड़ाकर उन्हे समुद्रगृह में रखा |
जब महाराज और मालविका बातें कर रहे थे तब गौतम समुद्रगृह के बाहर चिकने पत्थर पर सो रहा था और सपने में मालविका से बातें कर रहा था | इतने में रानी इरावती वहां आई | उसने यह दृश्य देखा |
उसने गौतम को सबक सिखाने के लिए अपने दासी को सांप जैसी टेढ़ी-मेढ़ी लकड़ी गौतम के ऊपर फेंकने को कहा और खुद छिपकर यह तमाशा देखने लगी | गौतम की चिल्लाहट सुनकर महाराज और मालविका भी बाहर आ गए |
यह सब देखकर रानी इरावती भी बाहर आ गई | वह अत्यंत क्रोधीत थी | सब लोग उसके कोप का भाजन बनने ही वाले थे कि प्रतिहारी जयसेना ने आकर बताया की राजकुमारी वसुलक्ष्मी खेलते वक्त बंदर से डर गई है और बेहोश हो गई है |
यह सुनकर रानी इरावती का क्रोध भी जाता रहा | वह भी उन सबके साथ चली गई | मालविका का डर फिर भी कम नहीं हुआ था | इसी दौरान उस अशोक वृक्ष पर फूल खिल गए जिस पर मालविका ने अपने पैरों का प्रहार किया था |
इसी के साथ राजभवन में सुखद समाचार आने लगे | महारानी धारिणी के भाई वीरसेन ने विदर्भ राज्य पर अधिकार कर लिया था | उसने माधवसेन को छुड़ाकर अच्छे-अच्छे उपहार महाराज के पास भेजे थे | अशोक पर फूल खिलने के कारण महारानी धारिणी ने मालविका को वधू – वेश में सजाया |

मालविका की असली पहेचान –

इस समय महारानी धारिणी के भाई वीरसेन के भेजे हुए उपहारो में दो युवतियां भी थी | महारानी धारिणी ने मालविका से इन युवतियों में से किसी एक को अपनी साथिन के रूप में चुनने को कहा | जैसे ही उन दो युवतियों ने मालविका को देखा | वह आश्चर्य से भर गई |
उन्होंने अपनी राजकुमारी को पहचान लिया था | उन दोनों ने झुक कर मालविका को प्रणाम किया और फिर गले मिलकर खूब रोई | सब लोग यह देखकर हैरान थे | पूछने पर पता चला कि यही मालविका विदर्भ नरेश माधवसेन की बहन है |
इन्हीं का विवाह महाराज अग्निमित्र के साथ होनेवाला था | इन्हीं को लेकर वह मगध आ रहे थे | जब यज्ञसेन ने उनके काफिले पर हमला किया तो मंत्री सुमति मालविका को लेकर छुपते – छुपाते कहीं चले गए | उसके बाद क्या हुआ ? यह वह युवतियाँ नहीं जानती थी |

मालविका दासी के रूप मे क्यों ? 

इस पर कौशिकी ने आगे की कहानी बताई क्योंकि वह मंत्री सुमति की बहन थी | वह उस वक्त मालविका और अपने भाई के साथ थी | अब मालविका को विदिशा तक पहुंचाना की जिम्मेदारी मंत्री सुमति ने ले ली थी |
उनको रास्ते में एक व्यापारियों का दल मिला | वह उनके साथ मिलकर यात्रा करने लगे | जब वह लोग जंगल से जा रहे थे , तब उन पर डाकुओं ने हमला किया | मंत्री सुमति मारे गए | डाकू मालविका को ले गए | कौशिकी बेहोश हो गई | जब उसे होश आया तो उसने अपने भाई का अंतिम संस्कार किया |
वह अपने देश वापस चली गई और सन्यासिनी बन गई | वीरसेन ने मालविका को डाकूओ से छुड़ा लिया और महारानी के पास भेज दिया | असलियत जानकर दोनों महारानियों को बड़ा पछतावा हुआ |
कौशिकी ने भी यह बात इसलिए छुपाई क्योंकि वह जानती थी कि एक सिद्ध पुरुष की भविष्यवाणी के अनुसार मालविका का एक वर्ष तक दासी बनकर रहना उसके भाग्य में है | उसके बाद एक योग्य पुरुष से उसका विवाह हो जाएगा और वह वही थी जहां उसे होना चाहिए था |
महाराज अग्निमित्र ने माधवसेन और यज्ञसेन के लिए कुछ निर्णय लिए थे | क्या थे वह ? यह आप किताब पढ़ कर ही जान लीजिएगा | तभी अग्निमित्र के पिता पुष्यमित्र का भी पत्र आया | उस पत्र के अनुसार पुष्यमित्र ने अश्वमेध यज्ञ करने का प्रण लिया था |
उनके यज्ञ के घोड़े को विदेशियों ने पकड़ लिया था | इस पर राजकुमार वसुमित्र और उसके 100 साथी राजकुमारों ने विदेशियों के साथ घमासान युद्ध किया और घोड़े को छुड़ा लिया | अब पूष्यमित्र अश्वमेध यज्ञ कर रहा है | इसलिए उसने अपनी बहूओ को भी साथ मे बुलाया था |
इस खुशी के अवसर पर महाराज ने बाकी बंदियों के साथ-साथ यज्ञसेन के पत्नी के भाई को भी छोड़ दिया | दोनों रानियो ने मालविका का विवाह महाराज के साथ कर दिया |
इस प्रकार इसकी सुखद सांगता हुई | कहानी की बाकी छोटी-मोटी डिटेल आपको कहानी पढ़ते वक्त पता चल ही जाएगी | इसे पढ़िएगा जरूर | अमेजन से अभी खरीदे और पढे | https://amzn.to/43A7Oz0

तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए …….
धन्यवाद !!

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” FAQ सेक्शन में आपका स्वागत है |  

सवाल है ? जवाब यहाँ है | (FAQs SECTION)

Q.1.कालिदास रचित “मालविकाग्निमित्र” की कहानी क्या है ?
A. प्रस्तुत नाटक विदर्भ की राजकुमारी मालविका और मगध के राजा अग्निमित्र की प्रेम कहानी है |
Q.2.कालिदास रचित तीन किताबो के नाम क्या है ?
A. 1. अभिज्ञान शाकुंतल
     2. रघुवंश
     3 ऋतुसंहार
Q.3 .मालविकाग्निमित्र में मुख्य विषय कौन-कौन से हैं?
A. प्रेम , राजनीतिक षड्यन्त्र , नाट्यकला , अभिनय , तब की संस्कृति और समाज की रचना |
Q.4 .क्या मालविकाग्निमित्र की कहानी सच्ची है ?
A.कहानी गढ़ने के लिए कवि ने थोड़ी स्वतंत्रता का उपयोग किया है पर किरदार असली ऐतिहासिक पात्र है |

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