मल्हार – संग्राम सिंधु गाथा
रिव्यू –
प्रस्तुत किताब में जंबूद्वीप के व्यापार और उससे जुड़े लोगो और परिस्थितियों का वर्णन मिलता है | किताब की कहानी वहीं से शुरू होती है जहां से पहले किताब की कहानी खत्म होती है | यानी के विधान , धनंजय और रविदास की संथार से वापसी | “मल्हार ” असुरो की राजधानी बताई गई है |
यह दूसरा भाग असुर देश मुंद्रा , सौराष्ट्र और ऊसर की रोमांचक यात्रा करते हुए आगे बढ़ता है | संग्राम सिंधु गाथा का यह दूसरा खंड “मल्हार” असुरों का व्यापार , उनकी राजनीतिक स्थिति और भविष्य में होने वाले युद्ध में उनकी क्या भूमिकाए होगी | इसके बारे में बताता है | व्यापार को रास्ता बनाकर सब लोग दुनिया पर अपना एक छत्र अमल स्थापित करना चाहते हैं फिर वह चाहे दानव हो या असुर .. |
मल्हार की कहानी आगामी देवासुर संग्राम पर आधारित है | इसमें क्या देव , क्या दानव , असुर , नाग सब भाग लेने वाले हैं और सभी चाहते हैं कि युद्ध में उनका पक्ष जीते |
जंबूद्वीप पर उनका एक छत्र राज्य कायम हो | इसीलिए सब लोगों ने अपनी अपनी तैयारी शुरू कर दी है | किसी की प्रयोगशाला में नए हथियार बनाए जा रहे हैं , तो कोई नया संशोधन करके नई चीज बना रहा है | कोई बुद्धि से चालाकी कर रहा है तो कोई युद्ध कला में पारंगत हो रहा है |
अब इतने सारे लोग इस युद्ध में भाग लेने वाले हैं तो जाहिर है कहानी में बहुत सारे पात्र होंगे | और है भी ..
एक-एक करके सब का परिचय प्राप्त होता है | कहानी भले ही पुरातन युग का जामा पहने हुए हैं पर संपूर्ण जंबूद्वीप में व्याप्त परिस्थितियां आधुनिक समाज जैसी ही है | जहां शोषित वर्ग प्रायः गरीब है |
कहानी मुख्यतः असुरों की व्यापार पर पकड़ और उनकी राजनीतिक स्थिति दर्शाती है | आगामी देवासुर संग्राम के कारण एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं जो इससे अछूता हो |
सब युद्ध में अपनी-अपनी भूमिका तय करने में लगे हुए हैं | अब कौन – सी भूमिका किसको मिलती है ? यह तो लेखक की आने वाली किताब में ही पता चलेगा क्योंकि किताब की कहानी अभी भी अधूरी ही है | लेखक को उनकी आने वाली किताबों के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं | उम्मीद है जल्द ही पाठकों को इसका अगला भाग पढ़ने को मिले | इस बेहतरीन किताब के –
लेखक है – विवेक कुमार
प्रकाशक है – हिन्दी युग्म
पृष्ठ संख्या – 256
उपलब्ध – अमेजॉन पर
इसी के साथ देखते है इसका सारांश –
सारांश –
विधान अर्थला के पश्चिम दिशा में स्थित आखिरी छावनी में सही सलामत पहुंच गया था | यह वैसे तो देखने से सैन्य छावनी लगती थी लेकिन यह एक व्यापारिक जांच चौकी थी | इस छावनी के सैनिक व्यापारियो और वस्तुओं की डाकुओं से सुरक्षा करते थे |
पूरे जंबूद्वीप में दानवों के साथ कोई व्यापार नहीं करता था लेकिन दानवों के पास रेयर से भी रेयर एक ऐसी वस्तु थी जो किसी के पास नहीं थी | वह थी – विस्फोटक चूर्ण |
इसे बनाने का फार्मूला देवों के सिवाय सिर्फ दानवों के ही पास था | इस पर एक प्रकार से उनकी मोनोपोली थी | इस विस्फोटक चूर्ण को दानवो ने अर्थला के शत्रु राज्य को बेचा | इस से अर्थला के दुश्मन ज्यादा शक्तिशाली हो गए |
अपनी रक्षा करने के लिए आखिर अर्थला को भी दानवों के साथ व्यापार करना पड़ा | इसके बदले दानव देश “संथार ” को अन्न के भंडार प्राप्त होने लगे |
“संथार ” की राजधानी के बाहर एक बहती नदी थी | वह अगिन क्षेत्र को पार कर अर्थला में प्रवेश करती थी | यह नदी ही व्यापार करने का एकमात्र औपचारिक मार्ग था | इसी नदी के तट के पास वह छावनी थी जहां “मातरम” नाम के अनजान व्यक्ति ने विधान , धनंजय , रविदास और “गु” को छोड़ा था |
जब वह गुरु कान के कुंडल लेकर सीमा पार कर रहे थे | यह लोग कुंडल तो वहां से ले आए लेकिन क्या दक्षान जैसा व्यक्ति हार मान जाएगा | उसकी पत्नी ने कुंडल विधान को दे दिए | इसीलिए दक्षान को ना चाहते हुए भी प्रजा के कहने पर अपने राजमाहिषी को मृत्युदंड देना पड़ा |
क्या वह इसमें सफल होता है ? या अपने स्वभाव अनुसार कोई तिकड़म लगाकर राजमाहिषी को बचा लेता है ताकि उसको बाद में सजा दे सके क्योंकि उसकी हार के लिए एक तरह से वह भी जिम्मेदार थी |
“गु ” जो अगिन क्षेत्र से विधान के साथ लाया गया था | अब वह विधान का मित्र बन चुका है जबकि दोनों एक दूसरे की भाषा सिर्फ भावों से ही समझ लेते है | रविदास अयोध्या के राजा है और हर परिस्थिति में खुश रहते हैं | वह घमंडी बिल्कुल नहीं है साथ मे वह बहादुर भी है |
विधान और बाकी लोगों की जान बचाने वाले “मातरम” का साथी “यौधेय” भी सिद्धि धारक शक्तियों का स्वामी है लेकिन वह रक के सामने कम पड़ जाता है | असुर राजधानी संथार मे उत्पात मचाने के बाद धनंजय दानव सम्राट दक्षाण के प्रति क्रिया की राह देखते हैं लेकिन दक्षाण अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाता इसीलिए नाग प्रमुख धनंजय चिंतित है |
बहुत सारी परिस्थितियों पर फिर से एक बार विचार करने के बाद उन्हे दक्षाण की प्रखर बुद्धि का परिचय होता है | वह हमेशा असंभव करने वाले काम संभव करके दिखाता है | दानव जलमार्ग वाला कोई व्यापार नहीं करते लेकिन वह समुद्री डाकू लुटेरो के संपर्क में जरूर है |
यह समुद्री डाकू असुरों और विदेशियों के जहाज को लूटते थे | इन डाकुओं को दक्षाण का पूरा समर्थन प्राप्त है | दक्षाण ने असुरों से 50 ,000 ढाले खरीदी थी | इन ढालों को लेकर आने वाले जहाज दानव देश से अब तक वापस नहीं गए है क्योंकि दक्षाण सौराष्ट्र के रास्ते जंबूद्वीप में प्रवेश करने की योजना बना रहा है |
अब असुरों की बात करते हैं | श्रेष्ठी लीक्ष्वि मारंग व्यापार संघ के प्रमुख का बेटा है | मारंग ने व्यापार से संन्यास लिया है लेकिन उसका प्रभाव अभी भी “मल्हार” राजधानी में दिखाई पड़ता है क्योंकि मल्हार के व्यापारी राजघराने से भी ज्यादा अमीर है |
इसलिए मारंग भी राजघराने इतना ही शक्तिशाली और प्रभावशाली है | असुर राजघराना अपनी मोनोपोली स्थापित करने के लिए मारंग के एक मात्र बचे हुए पुत्र श्रेष्ठी लीक्ष्वि को खत्म करना चाहता हैं |
इस षड्यंत्र में वह काका सुर गण को शामिल करते हैं | मारंग और वज्जी को जब इस बात का पता चलता है तो वज्जी अपनी सिद्धि धारी शक्ति से काकासूर गण के पूरे गांव को ही कत्ल कर देता है |
किसी जमाने में वह कुख्यात “लाल रहस्य” असुर के नाम से प्रसिद्ध था | मारंग और वज्जी पुराने मित्र है और अभी बुढ़ापे में साथ रहते हैं | वज्जी लीक्ष्वि को अपने बेटे जैसा मानता है |
वज्जी के सिद्धी धारी शक्ति का , उसकी क्रिया और प्रतिक्रियाओं का वर्णन लेखक ने बहुत खूबी से किया है | इसीलिए शायद वज्जी का पात्र अच्छा लगता है जो बुराई के साथ अच्छाई भी समेटे हुए हैं |
अभी मारंग व्यापार संघ का मुखिया लीक्ष्वि है | वह युवा व्यापारियों की एक नई पीढ़ी तैयार करना चाहता है जो व्यापार के सही अर्थों को समझे | असुर देश में आमिर बहुत ज्यादा अमीर है और गरीब मूलभूत सुविधाओं के लिए भी तरसता है |
असुर शस्त्र व्यापार के लिए पूरी तरह दूसरे देशों पर निर्भर है | लकड़ियों के वस्तुओं का व्यापार गरीब व्यापारि कर लेते थे | इसीलिए लीक्ष्वि चाहता था कि बाकी के छोटे-छोटे असुर लोग भी व्यापार मे भाग ले ताकि अलग-थलग पड़े रहने वाले यह लोग एक दूसरे के साथ मिलकर रहना सिखे और अपना जीवन स्तर बढ़ाए |
“मुसर” व्यापारी मार्ग में पडने वाला एक गांव है जहां व्यापारी लोग यात्रा के दौरान रुक कर आराम करते हैं | छावनी से अर्थला वापस आने के बाद विधान रविदास को सत्तू से मिलाता है क्योंकि सत्तू रविदास का बहुत बड़ा प्रशंसक है याने के फैन है |
अब रविदास ने ऐसा कौन सा काम किया जिस कारण लोग रविदास के प्रशंसक है ? यह तो आपको किताब में पढ़ना होगा | लीक्ष्वि पर हुए हमले के मामले में मारंग को जाबाल पर शक है | जाबाल , मारंग के बाद दूसरे नंबर का अमीर व्यापारी है लेकिन मारंग उससे चार गुना अमीर है |
जाबाल , मारंग की जगह लेना चाहता है इसलिए मारंग को उस पर शक है लेकिन वह इस मामले में अपराधी नहीं ? तो फिर लीक्ष्वि पर हुए हमले के पीछे कौन है ? क्या वज्जी उसे छोड़ेगा ? यह भी आप किताब पढ़कर ही पता लगाइए |
जाबाल असुरों के राजा कालयवन के साथ मिला हुआ है | अपने खाली राजकोष के कारण सत्ता उसके हाथों से फीसली जा रही है | सत्ता को बरकरार रखने के लिए वह मारंग व्यापार संघ के विरुद्ध षड्यन्त्र रचता है |
वह भी देवासुर संग्राम में जीतने के लिए अपने प्रयोगशाला में “अग्निप्रेत “बनवा रहा है जिसके लिए आसपास के गांव के लोगों का अपहरण किया जाता है | जब लोग इसके खिलाफ आवाज उठाते हैं तो मजबूरन काल यवन को इसका सारा दोष उसके साइंटिस्ट “शुक्र “पर डालना पड़ता है |
वह खुद को बचाने के लिए शुक्र को कारावास मे रखता है | जब उसे प्रयोग के लिए उसकी जरूरत पड़ती है तो वह चोरी छुपे उसे कारावास से निकालकर दूसरे राज्य में स्थित प्रयोगशालाओं में पहुंचा देता है | यहां का नियंत्रक जाबाल है |
इसी शुक्र को “करिया “नाम का व्यक्ति “जावा” के साथ मिलकर कारागार से छुड़ा लेता है | छुड़ाकर वह उसे “ऊसर” लेकर जाना चाहता है क्योंकि शुक्र का होमटाउन ऊसर है |
करिया भी असुर है और ऊसर का राजा है | जावा उसका अति विश्वासु व्यक्ति है | ऊसर दक्षाण का ससुराल है | करिया “अमरखंड ” का विद्यार्थी रह चुका है | इसीलिए उसे देवों की पांडुलिपियों के बारे में पता है |
उन्ही का उपयोग कर के उसने ऊसर में अपनी प्रयोगशालाओं में नए-नए वेपन बनाए हैं क्योंकि वह आगामी देवासुर संग्राम का नेतृत्व करना चाहता है | अमरखंड में पढ़ने के कारण वह धनंजय को बहुत मानता है | इसीलिए जब धनंजय उससे अर्थला की ओर से मदद मांगने आते हैं तो वह राजी हो जाता है |
करिया को सिद्धीधारकों से नफरत है | जब वह शुक्र को लेकर ऊसर आते रहता है तो वह भी उसी जगह पहुंचता है जहां “रक “उस बच्चे को लेकर पहुंचता है जिसके पास “कोबू “नाम का कुत्ता है |
वह बच्चा थोड़े दिन पहले ही राजकुमार “यज्ञ “का मित्र बना था | राजकुमार यज्ञ भी अपनी यात्रा के दौरान इसी जगह पहुंचते हैं जहां रक और करिया है |
यहाँ कुछ गांव वालों को असुरों ने अग्निप्रेत बनाने के लिए किडनैप किया है | उस बच्चे की मां भी इन्हीं लोगों में है | मुंद्रा के ठग को और बाकी बहुत से लोगों को मौत के घाट उतारने वाला वायुसिद्धि धारी रक बच्चे के प्यार के सामने पिघल जाता है |
वह उसकी मां को बचाने के लिए असुरों से भीड़ जाता है | इसी लड़ाई की आवाज को सुनकर करिया और मुंद्रा का राजकुमार यज्ञ वहां पहुंचता है | रक की वायु सिद्धि देखकर करिया रक से युद्ध करने लगता है |
उसके पास अलग-अलग रंग के पत्थर है जिससे वह अलग-अलग ऊर्जा निकलता है | उसके पास दुर्लभ “स्वर्ण भस्म” भी है | इन दोनों की लड़ाई का फायदा उठाकर यज्ञ बच्चे और कुत्ते को लेकर भाग जाता है |
इधर विधान भी कुंडलों के साथ अपना अभ्यास शुरू कर देता है | लेकिन उसके साथ कुछ अजीब घटनाएं घटनी शुरू हो जाती है | जल – दस्युओ का मुखिया “जटायु” करिया का चाचा है और नाग श्रेष्ठ धनंजय के पिता का कातिल भी ..
धनंजय जटायु के साथ संधि करना चाहते हैं पर क्या अपने पिता की सच्चाई जान चुप रहेंगे या जटायु को मार देंगे ?
दक्षाण तो सौराष्ट्र पर आक्रमण करने जंबूद्वीप जा रहा है | साथ में “दारा ” को भी लेकर जा रहा है | दारा के बारे में आप पहले भाग में पढ़ पाओगे |
तब तो उसका राज्य अरक्षित रह जाएगा फिर वह अपनी यह मुहिम कैसे करेगा ? कौन उसका इन परिस्थितियों में साथ देगा ? इस मुहिम का नेतृत्व कौन करेगा ? कौन संथार के पार जंबूद्वीप में बैठे धनंजय जैसे बुद्धिमान व्यक्ति को टक्कर देगा ?
इन सारे सवालों के जवाब जानने के लिए किताब जरूर पढ़िए |
तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते है और एक नई किताब के साथ तब तक के लिए ..
धन्यवाद !