LAKIR KA FAKIR BOOK REVIEW IN HINDI

लकीर का फकीर

राजीव पटेल और संजय कुमार सिंह द्वारा लिखित

रिव्यू –

किताब बहुत ही छोटी है | किताब का विषय , भारत मे मनाने वाले त्योहार और उनसे जुड़ी कहानियों पर आधारित है | इसमे बताया गया है की भारत के लोग जो त्योहार मनाते है , उसके पीछे की असली वजह क्या आपने जानने की कोशिश की है की असल मे उन प्रथाओ का क्या महत्व है या फिर लेखक के शब्दो मे कहे तो लकीर के फकीर बने हुए है | या कही ऐसा तो नहीं की किसी ने अज्ञानता वश कोई काम शुरू कर दिया हो और अगली पीढ़ी उन्हे किसी प्रथा के रूप मे निभाती आ रही हो | भारत मे आए दिन त्योहार मनाए जाते है | इसीलिए शायद भारत को त्योहारों का देश भी कहाँ जाता है | त्योहार जैसे विजयादशमी , होली ,धनतेरस ई. |

किताब मे उन्होंने एक अंधे दम्पत्ति की कहानी बताई है की जब वह अंधे आदमी की पत्नी खाना बनाती थी तो बिल्ली रोटिया लेकर भाग जाती चूंकि यह दोनों देख नहीं पाते थे तो इन्हे पता ही नहीं चल पता था की क्या हो रहा है ? ऐसा लगातार चार – पाँच दिन होता रहा | फिर उस अंधे पती ने एक तरकीब निकाली | जब उसकी पत्नी खाना बनाती तब वह जमीन पर लंबे बांस से फटका मारते रहता था | इससे बिल्ली उनके पास भी नहीं भटकती थी | अब यह बांस का फटका उनकी दिनचर्या का हिस्सा हो गया | कुछ सालों बाद उनके यहाँ बेटे का जन्म होता है | वह दिन ब दिन बडा होकर आखिर एक दिन शादी शुदा हो जाता है | जब उसकी पत्नी खाना बनाती है तब वह भी बांस का फटका मारते रहता है | क्यों ? क्योंकि उसने यह प्रक्रीया बचपन से देखी है | वह इसे एक प्रथा के रूप मे जारी रखता है | उसकी पत्नी बड़ी सुशील और समजदार होती है | उसे यह सब देखकर बडा आश्चर्य होता है तब वह इसकी सच्चाई जानने के लिए अपने सास के पास जाती है | बड़े ना – नुकूर के बाद उसकी सास उसे सच्चाई बता देती है | यह सच्चाई वह बड़े ही समझदारी के साथ अपने पती को भी समझाती है | समझदार पती भी मान जाता है | इस तरह प्रथा रूपी उस फटके को वह लोग छोड़ देते है |

इस के बाद एक – एक पर्व के नाम उन्होंने बताए है और इनसे जुड़े तथ्य और कहानियाँ भी | जैसे धनतेरस को ही ले ले | कहाँ जाता है की इस दिन सोने की खरीदारी करने वालों पर कुबेर देवता की कृपा होती है तो लेखकों का तर्क कहता है की अगर खरीदना शुभ है तो बेचना अवश्य ही अशुभ होगा | ऐसे मे सारी दुकाने बंद होनी चाहिए क्योंकि जानबूझकर अपना अशुभ कौन करवाना चाहेगा ? वैसे भी 1795 से पहले बहुजन और अनुसूचित जातियो को धन और अन्न संचय करने का अधिकार नहीं था | यह हक उनको अंग्रेजों ने दिया | फिर इसी हक को डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर इन्होंने संविधान मे भी लिखा | चूंकि लेखक बहुजन हित के लिए लिखते है तो उनके मतानुसार फिर यह कुबेर देवता किस पर प्रसन्न होते थे क्योंकि लोकसंख्या का 75 से 80 प्रतिशत बहुजन समाज का है |

महान अशोक सम्राट इन्होंने 84 हजार स्तूप , विहार और चैत्य को बनवाने का आदेश दिया था | जब यह बनकर तैयार हो गए तब उन्होंने इसके उपलक्ष्य मे एक पर्व मनाया | वही दिवाली का त्योहार है | ऐसे ही होली और गुढीपाड़वा के बारे मे प्रचलित कहानियों से हटकर आप कुछ नया पढ़ सकते है | किताब बहुत अच्छी है | भारत के इतिहास को और लोगों को समझना है तो प्रस्तुत किताबों जैसी किताबे पढ़ते रहना चाहिए | ताकि हम सही क्या है और गलत क्या है ? यह हमारे नई पीढ़ी को बता सके | ऐसी ही और इतिहास से जुडी किताबे पढ़ने के लिए सारांश बुक ब्लॉग को पढ़ते रहिए | प्रस्तुत किताब आप एक बार जरूर पढे | अगर ब्लॉग पर बने विडिओ देखना चाहते है तो “सारांश बुक ब्लॉग” यू – ट्यूब चैनल को भी अवश्य देखे |

धन्यवाद !

Wish you happy reading…….

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