रिव्यू –
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उपन्यास की कहानी शुरू तो साधारण किरदारों के साथ होती है जिन्हे कोई नहीं जानता लेकिन आगे चलकर यह इतिहास के कुछ महत्वपूर्ण चरित्रों को अपने आप मे समेट लेती है |
उन्ही से जुड़ी घटनाओ का जिक्र भी यहाँ मिलता है | उस जमाने के हर एक उपन्यास में जाति – पाति का वर्चस्व जरूर दिखाई देता है | बिना जाति जाने शायद ही किसी का कोई काम होता हो !
डाकुओं के द्वारा यात्री लोगों को लूटा जाना भी आम बात थी | लेखक कहानी के बीच-बीच में खुद को उजागर भी करते हैं | उपन्यास की कहानी बंगाल की पृष्ठभूमि पर आधारित है |
आपको तो पता है | बंगाल में मां काली की उपासना की जाती है | इसलिए कहानी के लोगों की भी वही आराध्य है | यह वह समय था जब भारत देश पर अकबर का साम्राज्य था |
अकबर से छुपकर उसके कुछ लोग जबरदस्ती हिंदुओं का धर्म परिवर्तन करा लेते थे | इससे फिर उनकी जिंदगिया तबाह हो जाती थी क्योंकि कट्टर धर्मपंथी लोग उन्हे अपनाते नहीं थे | इसका शिकार नायक की पहली पत्नी का परिवार भी था | उस जमाने में घने जंगल हुआ करते थे | दूर-दूर तक मनुष्य बस्ती दिखाई तक नहीं देती थी |
इन्ही जंगलों मे रहते थे कुछ तांत्रिक ! इन्हे अपनी तांत्रिक क्रियाओ के लिए लगती थी नरबलि ..
जब ऐसे ही किसी क्रिया मे एक तांत्रिक असफल हो जाता है तो वह उसे असफल करनेवाले लोगों से प्रतिशोध लेना चाहता है | उसी तांत्रिक कापालिक के प्रतिशोध की यह कथा है | प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – बंकिमचंद्र चटर्जी
प्रकाशक – फिंगरप्रिंट पब्लिशिंग
पृष्ठ संख्या है – 148
उपलब्ध है – अमेजॉन पर
आईए , अब देखते है इसका –
सारांश –
सप्तग्राम का रहनेवाला नवकुमार गंगा नदी के किनारे बसे बियाबान जंगलों मे खुद को अकेला पाता है | उसे याद आता है की वह एक यात्रा के दौरान एक नाव मे बैठा था जो गंगा नदी मे सफर कर रही थी |
यात्रा के दौरान जब नाव के लोग खाना बनाने के लिए रुके तो जलाने के लिए लकड़ियाँ लाने वह जंगल मे चला गया क्योंकि नाव पर सवार बाकी लोगों को जंगल के जंगली जानवरों से डर लगता था |
नवकुमार के जंगल से वापस आने तक वह लोग चले गए थे क्योंकि नदी में पानी बढ़ गया था | उसमे से एक भी उनकी मदद करने वाले नवयुवक के लिए वापस आने की भी जहेमत नहीं उठाता |
वह सोचते हैं कि , उसे किसी जंगली जानवर ने खा लिया होगा | अब जीने के लिए नवकुमार को कुछ तो उपक्रम करना ही होगा | इसलिए फिर वह किसी मनुष्य की तलाश में जंगल में भटकने लगता है | उसकी मुलाकात एक मनुष्य से होती है |
नवकुमार उसे अच्छा इंसान समझकर ,उसकी कुटिया में आश्रय लेता है लेकिन वह एक तांत्रिक है | उसे अपनी साधना के लिए एक नरबलि चाहिए | नवकुमार वही व्यक्ति है लेकिन नवकुमार की आयु शायद लंबी है | इसलिए इस तांत्रिक की पालिता बेटी उसकी जान बचा लेती है |
यही लड़की कपालकुंडला है | अब उसकी जान भी खतरे में है क्योंकि उसने तांत्रिक की मर्जी के खिलाफ काम किया | अब नवकुमार कपालकुंडला को पत्नी बनाकर अपने शहर सप्तग्राम लेकर आता है |
इस यात्रा के दौरान उसे एक अमीर यवनी मिलती है जिसका नाम लुत्फुन्नीसा है | वह आगरा की रहने वाली है और बहुत अमीर है | इसको और इसके नौकरों को डाकू लूट चुके हैं | अब कपालकुंडला और लुत्फुन्नीसा एक ही सराय में ठहरते हैं |
वह नवकुमार की पत्नी बनी कपालकुंडला से भी मिल लेती है | लुत्फुन्नीसा अपने महंगे जेवर एक-एक कर के कपालकुंडला को पहना देती है | आगे की यात्रा में यह सारे जेवर कपालकुंडला एक भिक्षुक को दान कर देती है क्योंकि जंगल में रहने वाली कपालकुंडला को व्यवहारिक ज्ञान नहीं है |
दरअसल लुत्फुन्नीसा नवकुमार की पहली पत्नी है जो सालों पहले उससे बिछुड़ चूंकि थी | हुआ यू की एक बार लुत्फुन्नीसा के परिवार को कुछ यवनों ने कैद कर लिया और तभी छोड़ा जब उन्होंने अपना धर्म परिवर्तन करा लिया |
अब उसका परिवार आग्रा पहुंचा और अपनी होशियारी से सम्राट अकबर के करीब आया | उसके परिवार के लोग बड़े-बड़े ओहदों पर विराजमान हो गए |
परिणामतः उनके पास ढेर सारी दौलत आ गई | लुत्फुन्नीसा ने सलीम के साथ प्रेम किया क्योंकि वह दिल्लीश्वर की पटरानी बनना चाहती थी | इसके लिए उसने क्या-क्या तिकडमे लड़ाई यह आप कीताब में ही पढ़ लीजिएगा |
पर उसने यह जल्द ही जान लिया कि वह सलीम की पत्नी तो बन सकती है लेकिन उसकी पटरानी नहीं क्योंकि उसके मन पर राज नूरजहां करती है | लुत्फुन्नीसा खूबसूरत है लेकिन नूरजहां उससे कहीं ज्यादा खूबसूरत है और बाकी कलाओं में भी उसे महारत हासिल है |
नूरजहाँ अभी फिलहाल शादीशुदा है लेकिन सलीम शहंशाह बनने के बाद उसे कौन रोक सकता है ? वैसे नूरजहां और लुत्फुन्नीसा बचपन की सहेलियां है | अब उसे सलीम को लेकर नूरजहां के मन की बात पता चलती है तो वह अपने सारे इरादे , राजनीति त्याग कर सप्तग्राम आ जाती है ताकि नवकुमार का भी धर्म परिवर्तन कर उसके साथ विवाह कर सके |
सप्तग्राम के जंगलों में उसकी मुलाकात कापालिक से होती है | कापालिक और लुत्फुन्नीसा मिलकर कपालकुंडला के खिलाफ षड्यंत्र रचते हैं लेकिन ऐन वक्त पर लुत्फुन्नीसा का दिल पसीज जाता है और वह सारी बातें कपालकुंडला को बता देती है |
फिर भी , वह चाहती है कि , कपालकुंडला नवकुमार को छोड़ दे | कपालकुंडला एक अच्छे मन की लड़की है | लुत्फुन्नीसा की खुशी के लिए उसे यह भी मंजूर है | वह इसके लिए मान जाती है | लेकिन क्या नवकुमार भी यही चाहता है ? क्या कापालिक ,कपालकुंडला की बलि देने मे कामयाब होता है ? क्या लुत्फुन्नीसा अपने मनसूबों मे कामयाब होती है ? पढ़कर जरूर जानिए | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ..
धन्यवाद !!