कांच की चूड़ियाँ
गुलशन नंदा द्वारा लिखित
रिव्यू –
प्रस्तुत पुस्तक ‘कांच की चूड़ियाँ’ एक प्रसिद्ध हिंदी उपन्यास है | इसके लेखक गुलशन नंदा है | गुलशन नंदा हिंदी के एक बहुत ही प्रसिद्ध लेखक थे और लोकप्रिय उपन्यासकार भी …. उन्होंने 1960 और 1970 के दशकों में हिंदी साहित्य और फिल्म जगत दोनों में बहुत प्रसिद्धि पायी | उन का जन्म 1929 में गुजरांवाला में हुआ था | यह जगह अब पाकिस्तान में है | विभाजन से पहले ही उनका परिवार दिल्ली आ गया था |
उनका शुरुआती जीवन काफी संघर्षपूर्ण रहा | उन्होंने दिल्ली के बल्लीमारान बाज़ार में एक चश्मे की दुकान पर मामूली वेतन पर काम किया | उनकी प्रतिभा को ध्यान मे रखते हुए , एक बुजुर्ग ने उन्हे लिखने की सलाह दी |
इस पर उन्होंने अमल किया | एक प्रकाशक ने उन्हे मौका दिया | उनकी अद्भुत कल्पनाशीलता और कहानियों ने उन्हें जल्द ही लोकप्रिय बना दिया | उनका निधन 16 नवंबर 1985 को मुंबई में हुआ |
उन्होंने कई उपन्यास लिखे | उनमे से एक “कांच की चूड़ियाँ’ भी है | उनके उपन्यास बहुत प्रसिद्ध हुए | जिनमे शामिल है ,’कटी पतंग’, ‘नीलकंठ’, ‘लरज़ते आंसू’, ‘जलती चट्टान’, ‘घाट का पत्थर’, ‘झील के उस पार’ और ‘खिलोना’ |
उनके लिखे कई उपन्यासों पर हिंदी फिल्में बनाई गईं जो बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट रहीं | उन्होंने कुछ फिल्मों के लिए पटकथा लेखन भी किया | उनके उपन्यासों पर कुछ प्रसिद्ध फिल्में भी बनी | जिनके नाम इस प्रकार है – काजल (1965) , नीलकमल (1968) , कटी पतंग (1970) , खिलौना (1970), शर्मीली (1971) , दाग (1973), महबूबा (1976)
गुलशन नंदा को उनके उपन्यासों के लिए कई बार फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था | वह हिंदी के उन कुछ गिने – चुने लेखकों में से एक थे जिनकी किताबें बहुत ज्यादा बिकती थीं और जिनकी कहानियों को फिल्म निर्माता अपनी फिल्मों के लिए खरीदना चाहते थे |
बात करे प्रस्तुत उपन्यास की तो यह एक प्रेम कहानी है, जिसमें प्यार और रिश्तों की जटिलता को दर्शाया गया है |
उपन्यास में एक प्रेम कहानी है, जिसमें प्रेम की नाजुकता को “कांच की चूड़ियों” के माध्यम से दर्शाया गया है | जैसे कांच की चूड़ियां एक ही ठेस से टूट जाती हैं, उसी तरह प्यार भी कमजोर हो सकता है |
कहानी में गंगा और मोहन मुख्य पात्र हैं | गंगा गाँव की भोली और सीधी-सादी लड़की है जबकि मोहन शहर मे रहनेवाला युवक है | जिसने अपने कॉलेज के दिनों में एक लड़की से प्यार किया था और जिसमे उसे धोखा मिला | इस धोके से उसे बहुत तकलीफ हुई |
इसलिए वह ऐसी लड़की की तलाश में है जो छल-कपट से दूर हो | ऐसे मे उसे गंगा मिलती है | वह उसके भोलेपन से प्रभावित होता है | जैसा की प्रायः पुरानी फिल्मों मे होता था | वैसे ही गंगा के जीवन मे मुश्किले आती है | जिसका इन डायरेक्टली मोहन के जिंदगी पर भी प्रभाव पड़ता है |
ऐसे ही मुश्किलों का वर्णन उपन्यास मे है | लेखक के शब्दों का ताना – बाना ही ऐसा है की आप को कोई फिल्म देखने की जरूरत महेसूस नहीं होगी | आप को ऐसा ही लगेगा की आप 60 के दशक की कोई फिल्म देख रहे हो |
गुलशन नंदा अपनी कहानियों में भावनाओं और मानवीय रिश्तों को गहराई से दिखाते हैं | ‘कांच की चूड़ियाँ’ में भी उन्होंने प्रेम, विश्वास और धोखे जैसे विषयों को बड़ी खूबसूरती से उभारा है |
‘कांच की चूड़ियाँ’ एक मार्मिक और भावनात्मक कहानी है जो प्यार के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती है | यह उन लोगों के लिए एक अच्छी किताब है जो भावनात्मक और प्रेम कहानियों को पसंद करते हैं |
प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – गुलशन नंदा
प्रकाशक है – भारतीय साहित्य संग्रह
पृष्ठ संख्या – 172
सारांश –
गंगा करीबन 15 साल की एक अल्हड़ भोली – भाली गांव की लड़की है | उसके पिता गांव के अमीर व्यापारी प्रतापसिंह के यहां मुंशी का काम करते हैं | दरअसल प्रताप सरकारी कॉन्टरॅक्ट लेता है | बड़े-बड़े पहाड़ और पत्थर तोड़कर वहाँ सरकारी कंस्ट्रक्शन करना उसका व्यापार है |
एक दिन गंगा अपने पिता के काम पर आती है तभी प्रताप की बुरी नजर गंगा पर पड़ती है | घर वापस जाते हुए गंगा चिड़िया को उड़ाने के चक्कर में एक युवक का सर फोड़ देती है |
वह घबराकर घर भाग जाती है | उसकी यह घबराहट उसके छोटे-छोटे भाई बहन शरत् और मधु भी भांप लेते हैं | वह यह बात अपनी पक्की सहेली “रूपा” को बताती है जो उसके घर के बगल में ही रहती है तभी वह युवक रूपा के घर के सामने खड़ा होकर आवाज देने लगता है |
बाद में पता चलता है कि वह रुपा का चचेरा भाई है जो शहर में रहता है | उसका नाम “मोहन” है | वक्त गुजरने के साथ मोहन और गंगा एक दूसरे को पसंद करने लगते हैं | उनका यह रिश्ता रूपा की माँ भी कबूल करती है |
इस बीच मोहन को शहर में शुगर मिल में नौकरी लगती है | गंगा के साथ शादी के पहले पैसे कमाने के लिए वह शहर चला जाता है | इधर गंगा के पिता बंसी को प्रताप के कुविचारों का कुछ-कुछ आभास तो होता है पर या यकीन तब होता है जब प्रताप का चमचा गंगा और प्रताप के शादी की बात बंसी के पास करता है |
अब बंसी , गंगा को प्रतापसिंह से बचाने की कोशिश करता है | वह गंगा की शादी को लेकर फिक्रमंद भी है क्योंकि दहेज के लिए उसके पास पैसे नहीं | उसकी यह समस्या मोहन छुड़ा देता है |
इस बीच बंसी को प्रताप के काले कारनामों के बारे में पता चलता है | प्रताप को डर है कि कहीं बंसी उसकी इस कारनामों को सरकार और मजदूरों के सामने न खोल दे | इसीलिए वह उसे जान से मारने की कोशिश करता है |
बंसी इसमें मरता तो नहीं | अलबत्ता , उसका एक पैर चला जाता है और साथ में नौकरी भी … अब घर की जिम्मेदारी गंगा जबरदस्ती अपने ऊपर लेती है | बाहरी दुनिया के षडयंत्रों से अनजान वह प्रतापसिंह के जाल में फंस जाती है |
उसके इस दुख के आघात से बंसी चल बसता है | बंसी की खबर सुनकर मोहन गाँव वापस आता है | रूपा के समझाने के बावजूद भी गंगा , मोहन के साथ शादी के पहले अपनी आपबीती उसे चिट्ठी में लिखकर बता देती है |
उसकी मोहन के साथ शादी हो जाती है | शादी के तुरंत बाद ही मोहन को उसकी चिट्ठी मिलती है | चिट्ठी पढ़कर मोहन उससे गुस्सा होकर , मुंह फेरकर शहर चला जाता है |
रूपा का भी विवाह हो जाता है | रूपा की माँ भी उससे गुस्सा है | रूपा का मन अब इस गांव में नहीं लगता | उसके कुछ दिनों में ही कर्ज के कारण उसका घर भी नीलाम हो जाता है और गंगा अपने दो छोटे-छोटे भाई – बहनों को लेकर वह गांव छोड़ देती है |
तो अब गंगा की जिंदगी में आगे क्या होगा ? कहां सहारा मिलेगा उसे या फिर उसके साथ कोई अनहोनी हो जाएगी ? क्या मोहन उसे फिर अपनाएगा ? दुष्ट प्रताप को उसके किए की सजा मिलेगी या नहीं ?
पढ़कर जरूर जानिएगा | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए …
धन्यवाद !!
Check out our other blog post EK NADI DO PAT
” FAQ सेक्शन में आपका स्वागत है | यहाँ आपको हमारे बुक ब्लॉग के बारे में आपके सभी आम सवालों के जवाब मिलेंगे, जैसे कि हमारा रिव्यू प्रोसेस, पोस्ट्स ढूँढने का तरीका, या हमारी रीडिंग लिस्ट के बारे में कुछ सवाल। यह सेक्शन आपकी मदद के लिए बनाया गया है!”
नीचे देखें और सबसे आम सवालों के जवाब पाएं।
सवाल है ? जवाब यहाँ है | (FAQs SECTION)
Q.1. ‘काँच की चूड़ियाँ’ पुस्तक का केंद्रीय विषय क्या है?
A. प्रस्तुत उपन्यास का केंद्रीय विषय प्रेम, धोखा और महिलाओ पर लगाए गए सामाजिक बंधन पर आधारित है जहाँ दूसरों के गुनाहों के लिए भी उसे ही दोषी करार दिया जाता है |
Q.2. उपन्यास के प्रमुख पात्र कौन हैं?
A.गंगा , उसकी पक्की सहेली रूपा , मोहन और रूपा का पति शामिल है | यह मुख्य पात्र न होते हुए भी कहानी के लिए बहुत जरूरी है |
Q.3. “काँच की चूड़ियाँ” वाक्यांश का क्या अर्थ है?
A. जैसे काँच की चूड़ियाँ कमजोर, क्षणभंगुर और आसानी से टूटनेवाली होती है वैसे ही मोहन का गंगा के प्रति प्रेम दिखाया है |
Q.4 . यह उपन्यास किस शैली (Genre) में लिखा गया है?
A. यह हिंदी साहित्य का एक रोमांटिक उपन्यास है | इसे सामाजिक उपन्यास भी कहे सकते है |