कल्पवृक्षाची कन्या
सुधा मूर्ति द्वारा लिखित
रिव्यू –
“कल्पवृक्षाची कन्या” सुधा मूर्ती द्वारा लिखित अंग्रेज़ी उपन्यास “The Daughter From A Wishing Tree” का मराठी अनुवाद है | यह पुराणों की कथाओ का संग्रह है जिसमें पुराणों की साहसी और रहस्यमयी महिलाओ कहानियाँ समाविष्ट की गई है |
पार्वती, अशोकसुंदरी, भामती, मंदोदरी जैसी स्त्रियाँ इन कहानियों की मुख्य नायिकाये है | ये स्त्रियाँ केवल देवी या पत्नियाँ ही नहीं थीं, बल्कि राक्षसों से युद्ध करनेवाली योद्धा, अपने भाग्य की निर्माता, और परिवार की आधारशिला भी थीं |
यह कहानियाँ नारी शक्ति, उनकी आत्मनिर्भरता और साहस को दर्शाती है | अगर आप पुराणों में छिपी स्त्री-शक्ति को जानना चाहते हैं, तो यह किताब आप ही के लिए है |
पुराणों मे वर्णित में नल-दमयंती की कथा को आजतक हम एक प्रणयकथा के रूप मे ही देखते आए है | परंतु इस किताब द्वारा लेखिका सुधा मूर्ती इन्होंने पाठकों का दमयन्ती की तरफ देखने का नजरिया बदल दिया है | उन्होंने इसे नारी शक्ति और आत्मनिर्भरता के दृष्टिकोण से पुनः परिभाषित किया है | वह नल से प्रेम तो करती है लेकिन अपने आत्मसम्मान और विवेक से समझौता नहीं करती |
इस कहानी मे प्रेम, परीक्षा, और स्त्री की आत्मशक्ति को केंद्र में रखा गया है | उन्होंने दमयंती को एक साहसी, बुद्धिमान और आत्मनिर्भर स्त्री के रूप में चित्रित किया गया है, जो केवल सौंदर्य की प्रतीक नहीं, बल्कि अपने निर्णयों और कर्मों से अपने भाग्य को आकार देती है |
जब नल को जुए में सब कुछ हारना पड़ता है, और वे वनवास में चले जाते हैं तो दमयंती अबला स्त्रियों के जैसे बैठकर चुपचाप रोते नहीं रहती बल्कि वेश बदलकर अपने पति की खोज में निकलती है |
वह भी अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए | जबकी उस जमाने मे तो एक स्त्री पर कितने ही बंधन लगे रहते थे | यह भाग दमयन्ती जैसे स्त्रीयो की साहसिकता और समर्पण को दर्शाता है |
सुधा मूर्ती इस कथा को केवल प्रेमकथा नहीं, बल्कि स्त्री की आंतरिक शक्ति और विवेक की कहानी के रूप में प्रस्तुत करती हैं | दमयंती , नल को पहचानती है जब वह रसोइया बनकर काम करता है |
वह अपनी बुद्धिमत्ता से उसे पुनः राजा बनाती है | इन सारे प्रसंगों के बाद आप दमयन्ती को किस रूप मे देखते है | हमारी नजर से तो दमयंती एक प्रेरणादायक स्त्री है जो विपरीत परिस्थितियों में भी हार नहीं मानती | दमयंती का चरित्र आधुनिक स्त्री के लिए प्रेरणादायक है |
स्त्री केवल एक प्रेमिका या पत्नी ही नहीं होती, वह संकट में मार्गदर्शक और उद्धारक भी हो सकती है और यही संदेश सुधा मूर्ती इस कथा के माध्यम से देना चाहती है | यदि आप स्त्री के साहस को समझना चाहते हैं, तो “कल्पवृक्षाची कन्या” में नल-दमयंती की कथा अवश्य पढ़ें।
त्रिदेवियाँ केवल सौंदर्य की प्रतीक नहीं थीं, बल्कि वह सृष्टि, पालन और संहार की शक्ति का मूर्त रूप थीं | त्रिदेवों ने स्वयं युद्ध नहीं किया बल्कि उन्होंने अपनी शक्तियों याने त्रिदेवियो को बुलाया |
यही इस कथा की विशेषता यह है जो यह दर्शाता है कि स्त्री शक्ति ही सृष्टि की मूल ऊर्जा है | देवियाँ स्वतंत्र रूप से युद्ध करती हैं | वह अपने निर्णय लेती हैं और अपने भक्तों की रक्षा भी करती हैं | वे न केवल पूजनीय है परंतु प्रभावशाली और निर्णायक भी हैं |
लेखिका इस कहानी को आधुनिक दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत करती हैं, जहाँ देवियाँ आत्मनिर्भरता और नेतृत्व की मिसाल हैं | आधुनिक युग की स्त्रिया भी ज्ञान, समृद्धि और साहस का संतुलन रखती है | यह कहानियाँ बच्चों और बड़ों दोनों को देवियों की शक्ति से जोड़ती है | यह कहानी हमे बताती है की सृजन , पालन और संहार तीनों स्त्री के भीतर समाहित हैं |
पार्वती माता कल्पवृक्ष से एक बेटी की मांग क्यों करती है ? क्यों एक माँ को बेटी की ज़रूरत होती है ? पार्वती माता की बेटी की कथा इसी भावनात्मक गहराई को छूती है | पार्वती माता ने कल्पवृक्ष से एक बेटी की कामना की, क्योंकि उन्हें लगा कि गणेश और कार्तिकेय के बाद उनके जीवन में एक बेटी की कोमलता और स्नेह की कमी है |
बेटी केवल संतान नहीं होती, वह माँ की आत्मा का विस्तार होती है | वह उसकी भावनाओं, इच्छाओं और कोमलता का प्रतिबिंब होती है | माँ-बेटी का संबंध केवल रक्त का नहीं, आत्मा का होता है | यह स्नेह और शक्ति से बंधी डोर होती है |
यह केवल एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि हर माँ की उस भावना का प्रतीक है , जहाँ वह चाहती है कि कोई उसकी भावनाओं को समझे और साझा करे | उन्होंने कल्पवृक्ष से प्रार्थना की और अशोकसुंदरी का जन्म हुआ | वह एक सुंदर, तेजस्वी और साहसी कन्या थी | अशोकसुंदरी का नाम ही दर्शाता है –
अशोक – दुःख का अंत
सुंदरी – सौंदर्य और कोमलता
एक बेटी , उसके माँ के भीतर की कोमलता, शक्ति और संवाद की निरंतरता होती है | पार्वती और अशोकसुंदरी की कथा इसी आत्मिक बंधन का प्रतीक है , जहाँ देवी भी माँ बनती है, और बेटी भी देवी बनकर संसार को दिशा देती है | “
पहले तो कल्पवृक्ष के बारे मे बता देते है | कहते है की यह वृक्ष समुद्रमंथन से निकला हुआ है और यह स्वर्ग के देवताओ के हिस्से मे आया है | यह वृक्ष सारी ईच्छाए पूरी करता है |प्रस्तुत किताब भारतीय पुरानो से जुड़ी हुई है | इस किताब के माध्यम से पुरानो मे वर्णित दमदार और कर्तव्यशील स्त्रिया एक – एक कर आप से मिलने आएगी | यह ऐसी स्त्रिया है जिन्होंने पुरुषप्रधान संस्कृति मे भी अपना अस्तित्व बनाए रखा | मूलतः यह किताब स्त्री – शक्ती के बारे मे बताती है | भारतीय साहित्यों के रचना काल मे कर्तव्यदक्ष और हुशार स्त्रियों को भी दुय्यम दर्जा मिला | प्रस्तुत किताब पढ़ने के बाद आप को पता चलेगा की –कहानी मे जीतने भी नायक है वह कहानी के नायक ही नहीं बनते अगर उनकी नायिकाये उनका साथ नहीं देती | प्रस्तुत किताब की लेखिका है –
लेखिका – सुद्धा मूर्ती
मराठी अनुवाद – लीना सोहोनी
प्रकाशक – मेहता पब्लिशिंग हाउस
पृष्ठ संख्या – 180
सारांश –
सबसे पहले किताब मे त्रिदेवियों की कहानी है जो त्रिदेवों के काम मे उनकी मदद करने के लिए आयी है जैसे की ब्रह्मांड की रचना करने के लिए ब्रह्मदेव का साथ दिया माँ सरस्वती ने , जगत के पालनहार की सहायता की माँ – लक्ष्मी ने और भोलेनाथ की संगिनी बनी माँ – पार्वती |
बाद मे है नल – दमयन्ती की कहानी…………
दमयन्ती – एक अद्वितीय सुंदरी .. जिसने देवताओ को मना कर के नल के साथ शादी की और रानी होते हुए भी असंख्य दुःख झेले | फिर है वासवदत्ता और उदयन की कहानी | वासवदत्ता के त्याग , प्रेम और कर्तव्य के लिए आप हमारी वेबसाईट “सारांश बुक ब्लॉग” पर उपलब्ध “स्वप्नवासवदत्ता” का रिव्यू पढे | सबके पापों को धोने वाली गंगा नदी की कहानी और इसी गंगा नदी को अपने तपोबल से धरती पर बुलाने वाले सगर के वंशज भागीरथ की कहानी है | स्वर्ग की सबसे सुंदर अप्सरा उर्वशी एक मानव कन्या होने के साथ – साथ हस्तिनापुर के महाराज पुरुरवा की पत्नी भी थी | उनकी कहानी |
विश्व का सबसे पहला क्लोन बनानेवाली सूर्यदेव की पत्नी संजना की कहानी और रावण की पत्नी मंदोदरी के पूर्व जन्म की कहानी है | ऐसे ही भगवान विष्णु के अवतारों से जुड़ी कहानिया है जिसमे जगन्नाथ पूरी की भी कहानी है | जहां आज भी वहाँ का राजा सोने के झाड़ू से भगवान जगन्नाथ का रथ साफ करता है | अब इसकी क्या रोचक कहानी है यह आप किताब मे पढिए |
सबसे अच्छी कहानी हमे वह लगी जिसका नाम है – “विस्मरणात गेलेली पत्नी” | यह कहानी है – अद्वैत वेदान्त विद्यालय के संस्थापक आदि शंकराचार्य इनकी और उनकी पत्नी भामती की | इस कहानी की सबसे अच्छी बात यह है की जो ग्रंथ लिखते – लिखते आदि शंकराचार्य युवा से बूढ़े हो जाते है | उस ग्रंथ को अपने पत्नी का नाम देते है जब उन्हे पता चलता है की उनके पत्नी ने सारी उम्र उनकी निस्वार्थ सेवा की है |
यह पुरुष प्रधान संस्कृति मे बहुत बड़ी बात है की एक पुरुष अपने पत्नी के त्याग को समझकर उसे स्वीकार कर रहा है | अमूमन ऐसे अच्छे विचार विद्वानो के ही हो सकते है जो स्त्रियों के अस्तित्व को उनके जीवन मे स्वीकार कर अपनी जीत मे उनका भी हिस्सा मानते है | इसमे च्यवन ऋषि की कहानी है जिससे आप को पता चलेगा की इम्यूनिटी बूस्टर का नाम च्यवनप्राश कैसे पड़ा ?
आखिर मे है हाथी पर बैठी माँ – पार्वती की पूजा करने की कथा | माँ – पार्वती जब अकेली रहती है | अकेली मतलब – आज के जैसे ही कोई होम मेकर दोपहर को अकेली रहती है जब उनके पति ऑफिस और बच्चे स्कूल जाते है वैसे ही भोलेनाथ तप करने चले जाते है | उनके बड़े बेटे कार्तिकेय जी देवताओ के सेनापति है तो अपना दायित्व निभाने और छोटे बेटे गणेश जी अपने भक्तों की समस्याए सुलझाने मे व्यस्त रहते है | ऐसे मे अपना अकेलापन बाटने के लिए उन्हे एक बेटी की जरूरत महसूस होती है |
इसीलिए वह अपनी यह इच्छा कल्पवृक्ष के पास कहती है | उनकी यह इच्छा पूरी हो जाती है | उन्हे एक सुंदर सी कन्या मिल जाती है | अब वह अपने बेटी के साथ सुख का समय बिताती है |इन कहानियों का मूल संदेश यह है की समय के साथ भूली जा चुकी कहानियों के माध्यम से पाठकों को एक सशक्त यात्रा पर ले जाए और हमारे जीवन में मौजूद मजबूत महिला प्रभावों की याद दिलाए |
सुधा मूर्ति अपनी सरल और प्रभावशाली लेखन शैली के लिए जानी जाती हैं | उनकी कहानियाँ अक्सर नैतिक मूल्यों और भारतीय संस्कृति की गहरी समझ पर आधारित होती हैं | पुरानो की कहानिया वैसे भी अच्छी ही होती है | बच्चों को सुनाने के लिए भी यह कहानिया अच्छी है | ताकि बचपन से ही वह हमारे पुराणो के पात्रो से अवगत हो जाए | किताब हमे अच्छी लगी | आशा करते है आप को भी अच्छी लगेगी | किताब को पढ़ियेगा जरूर | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते है | और एक नई किताब के साथ तब तक के लिए ….
धन्यवाद !
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