Jhombi Book Review: आनंद यादव का संघर्ष, सारांश हिंदी रिव्यू

Jhombi Book Cover: आनंद यादव का मराठी उपन्यास,

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📚 Jhombi Book Review: आनंद यादव का संघर्ष, सारांश हिंदी रिव्यू

पोस्ट परिचय  – शिक्षा संघर्ष

‘झोंबी’ मराठी की प्रसिद्ध किताब है, जिसे आनंद यादव द्वारा लिखा गया है। यह एक लड़के की पढ़ाई के लिए किए गए हृदयविदारक संघर्ष की गाथा है, जिसके रास्ते में खुद उसके पिता ने रोड़े अटकाए। यह पोस्ट Jhombi Book Review: आनंद यादव की शिक्षा संघर्ष गाथा पर आधारित है।

★ हमारी रेटिंग: 4.8 / 5.0 (अत्यधिक अनुशंसित!)


समीक्षा: पिता का अत्याचार और आनंदा का जीवन

झोंबी को मिले प्रमुख पुरस्कार –

 झोंम्बी मराठी की प्रसिद्ध किताब है। इसे बहुत सारे पुरस्कार मिल चुके हैं, जैसे कि साहित्य अकादमी पुरस्कार (1990), प्रियदर्शिनी अकादमी का सर्वोत्कृष्ठ साहित्य पुरस्कार (1988), महाराष्ट्र राज्य शासन का दे. भ. पद्मश्री डॉक्टर रत्नप्पा कुम्भार (1989), दी फेडरेशन ऑफ़ इंडियन पब्लिशर्स (1989), प्रवरानगर विखे पाटिल पुरस्कार (1991), और संजीवनी साहित्य पुरस्कार (1994)। महाराष्ट्र स्थित आकाशवाणी के सब केंद्रों पर इसके नाट्य रूपांतर प्रसारित हो चुके हैं।

पिता का व्यवहार और संघर्ष का कारण –

 “झोंम्बी” एक लड़के की पढ़ाई के लिए किए गए संघर्ष की गाथा है। उसे संघर्ष इसलिए करना पड़ा क्योंकि किसी और ने नहीं बल्कि उसके खुद के पिता ने उसके रास्तों में रोड़े अटकाये। पिता में अपने बच्चों और पत्नी के प्रति कोई भी जिम्मेदारी की भावना नहीं थी। वह पत्नी को चाबुक से और हाथ से मारकर यातना देता रहा, और बच्चों को फ्री के नौकर जैसा ट्रीट करता था। माता-पिता के होते हुए भी लेखक अनाथों का जीवन जीता रहा।

मूल विचार को संक्षेप: लेखक के पिता ने लेखक, उसकी माँ, भाई-बहनों को सुबह से रात तक सिर्फ काम में लगाकर रखा। घर का मुखिया होने के नाते न तो किसी को अच्छा खाना दिया, ना ही अच्छी शिक्षा। अगर वह अच्छी शिक्षा का अवसर दे देते, तो लेखक को फीस के लिए स्कूल-स्कूल जाकर कार्यक्रम नहीं करना पड़ता और लोगों का अपमान नहीं झेलना पड़ता।

ग्रामीण पृष्ठभूमि और रीति-रिवाज –

 किताब की कहानी “कागल” गांव (महाराष्ट्र-कर्नाटक बॉर्डर) में घटित होती है। लेखक का परिवार कर्नाटक से महाराष्ट्र में स्थानांतरित हुआ था, इसीलिए उनके परिवार में कर्नाटक के रीति-रिवाज दिखाई देते हैं। जैसे लेखक की बड़ी बहन की शादी, उसी के छोटे सगे मामा के साथ होती है, जिसे महाराष्ट्र में बुरा माना जाता है। 1935 में खेतों में होनेवाली बेहिसाब मेहनत का बयान किया गया है। कहानी में गांधीजी की हत्या की घटना का भी उल्लेख है, जिसके परिणामस्वरूप भट्ट और पंडितों के घर जलाए गए थे।

लेखक की ईमानदारी और लत –

 लेखक ने अपनी जिंदगी की हर एक घटना को उनके शैक्षणिक वर्षों के साथ जोड़ा। उन्होंने इस किताब में अपना दिल खोलकर रख दिया है।

  • उन्होंने कबूल किया है कि, उन्होंने चोरी की और जुआ भी खेला

  • ग्रामीण भाषा का भरपूर उपयोग हुआ है, जिसके कारण बड़े क्लास में उनका मजाक भी उड़ाया गया।

  • बचपन में बीड़ी पीने का चस्का लगा था, जो पिता के हाथ का मार खाने के बाद ही छूटा


पुस्तक विवरण और अगली कड़ी

प्रेरणादायक किताब के –
लेखक है – आनंद यादव
प्रकाशक है – मेहता पब्लिशिंग हाउस
पृष्ठ संख्या है – 4o8
उपलब्ध है – अमेजॉन और किंडल पर |
उपलब्ध: हिंदी, कन्नड़ और बंगाली में।

सारांश: पढ़ाई की ज़िद और परिणाम

पिता की संकीर्ण सोच और संघर्ष की शुरुआत

 लेखक के पिता पीढ़ी दर पीढ़ी परंपरा से चली आई खेती कराना चाहते थे (किसान का बेटा किसान बने)। उनकी सोच कुएं में पड़े मेंढक की तरह थी। वह व्यवहार में काम आने लायक एजुकेशन (चौथी तक) लेखक को देना चाहते थे। असल प्रॉब्लम तो पांचवी क्लास से शुरू हुई। वह सारे काम का भार लेखक पर डालकर बाहर घूमने लगे और आनंदा के स्कूल की छुट्टी होने लगी।

आनंदा के जीवन की छोटी-बड़ी घटनाएँ –

  • परिवारिक दुख: माँ (तारा) को पहले बेटी हुई तो बहुत गालियां पड़ी। आनसा (बड़ी बहन) की शादी छोटे मामा के साथ हुई, जो बाद में लेखक का बड़ा आधार बनी।

  • बचपन के डर: ब्रिटिश मिलिट्री और गहरे कुएं का डर। एक दिन गहरे कुएं में लेखक के बैल गिर गए।

  • स्कूल और शिक्षक: रणदिवे टीचर ने मार्गदर्शन दिया। गस्ते टीचर ने फीस न भरने के कारण मदद नहीं की और पाँचवी क्लास आधे में छूट गई।

  • विरोध और समर्थन: पिता ने किराये की खेती में काम करवाने के लिए “गणपा” नाम का नौकर रखा। दत्ताजीराव (इनामदार) के कहने पर पिता ने उसे स्कूल भेजना स्वीकार किया।

  • अतिरिक्त कौशल: सौंदलगेकर टीचर की वजह से कविता करना और अभिनय करना सीखा। सणगर टीचर ने चित्रकला में पारंगत बनाया और परीक्षा की फीस भरी।

अंतिम परीक्षा और पलायन

आनंदा सातवीं कक्षा में तालुका में प्रथम आया। वह नौकरी तलाश करने लगा, पर पता चला कि नौकरी 18 साल के होने पर मिलेगी। 3 साल मजदूरी से बचने के लिए, उसने गाँव के स्कूलों में नाट्य कला कर के, पोवाडे गाकर, नकल करके पढ़ाई के लिए पैसे मांगे। अंततः, पिता के अत्याचार के कारण वह घर और गाँव छोड़कर भाग गया।

     लेखक को लगा कि वह कमाई करके अपनी पढ़ाई जारी रख पाएंगे | अब आप पढ़कर यह जानिए कि क्या लेखक ने यह सही किया ? क्या उन्हें यही करना चाहिए था ? भाग कर वह कहां गए ? क्या कोल्हापुर में उन्हें शिक्षा में मदद करनेवाले लोग मिले ? उस कोल्हापुर में.. जो शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रसिद्ध है | आनंद के भाग जाने के बाद उसके पिता की क्या हालत हुई ? क्या आनंदा फिर कभी गांव वापस लौटा ? या नहीं पढ़कर जरूर जानिए .. झोंम्बी | आनंदा की कहानी जारी रहेगी इसके बाद के भाग “नांगरणी” में ..
तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ..
धन्यवाद !!

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निष्कर्ष: वर्तमान और प्रेरणा

वर्तमान स्थिति और सामाजिक टिप्पणी –

अब लेखक उच्च स्थान पर हैं और शहरी जीवन जीते हैं। उनका नाम अब साहित्य के क्षेत्र में  ऊंचाई पर है। जिनकी भी विषम परिस्थितियां है फिर भी वह पढ़ना चाहते हैं। उन्होंने यह किताब जरूर पढ़नी चाहिए। यह एक प्रेरणादायक किताब है। वैसे अभी भारत सरकार भी पढ़ाई के लिए बहुत मदद करती है जो लेखक के वक्त नहीं थी। बस अपने पढ़ने की आस को कभी मत छोड़िए। लेखक की तरह..

डॉ. आनंद यादव की प्रेरणादायक लेखन यात्रा पर विशेष वृत्त यहाँ देखें।

उन्हें कागल गाँव में मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया जाता है, जहाँ वह कभी रोटी के टुकड़े के लिए तरसते थे।

व्यक्तिगत राय –“हमारा मानना है कि अगर घर का मुखिया अपनी जिम्मेदारी अच्छे से निभाए, तो दुनिया में कोई दुःखी या अनाथ न हो।

झोंबी का साहित्यिक और सामाजिक महत्व –

झोंबी का केंद्रीय महत्व –

‘झोंबी’ केवल एक कहानी नहीं, बल्कि लेखक डॉ. आनंद यादव के अपने बचपन की आत्मकथात्मक  गाथा है। यह मराठी ग्रामीण साहित्य के क्षेत्र में एक मील का पत्थर मानी जाती है। यह कृति दुनिया भर में उन बच्चों के लिए एक प्रतीक है, जो विषम परिस्थितियों के बावजूद शिक्षा प्राप्त करने का जुनून रखते हैं।

सामाजिक और भावनात्मक प्रभाव –

पिता का चरित्र एक क्रूर, आलसी और संकीर्ण सोच वाले व्यक्ति के रूप में दिखाया गया है, जो शिक्षा विरोधी मानसिकता का प्रतिनिधित्व करता है। यह उस संघर्ष को दर्शाता है जो कई ग्रामीण परिवारों में पीढ़ियों के बीच होता है। हालांकि, अंत में आनंदा की सफलता निराशा के बीच आशा की किरण दिखाती है और यह संदेश देती है कि शिक्षा के प्रति समर्पण ही गरीबी और अत्याचार को हरा सकता है।


❓ झोंबी पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

  प्रश्न 1. झोंबी किताब के लेखक कौन हैं?

उत्तर – झोंबी किताब के लेखक आनंद यादव हैं।

प्रश्न 2. झोंबी किस भाषा में लिखी गई मूल कृति है?

उत्तर – झोंबी मूल रूप से मराठी भाषा में लिखी गई है, लेकिन यह हिंदी, कन्नड़ और बंगाली भाषाओं में भी उपलब्ध है।

प्रश्न 3 . झोंबी को कौन सा प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है?

उत्तर – झोंबी को 1990 में भारत सरकार का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है।

प्रश्न.4 . झोंबी किताब का मुख्य विषय  क्या है?

उत्तर – किताब का मुख्य विषय शिक्षा के लिए एक गरीब लड़के (आनंदा) का संघर्ष है, जिसके रास्ते में गरीबी और उसके खुद के पिता बाधा डालते हैं।

प्रश्न.5. आनंद यादव के पिता क्यों नहीं चाहते थे कि वह पढ़ाई करे?

उत्तर – लेखक के पिता चाहते थे कि वह पीढ़ी दर पीढ़ी परंपरा से चली आई खेती करे। उनकी सोच संकीर्ण थी कि किसान का बेटा किसान ही बनना चाहिए।

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