JANMEJAY KA NAG YAGYA BOOK REVIEW HINDI

जनमेजय का नागयज्ञ
जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित
रिव्यू –

     ‘जनमेजय का नाग यज्ञ’ हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि और नाटककार जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण पौराणिक नाटक है | इसका प्रकाशन 1926 मे हुआ था | यह तीन अंकों का नाटक है | नाटक महाभारत की एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा पर आधारित है परंतु लेखक ने इसे अपने युग के जातीय और सामाजिक संघर्षों के संदर्भ में प्रस्तुत किया है | नाटक मे प्रतिशोध की भावना दिखाई गई है |
प्रस्तुत नाटक मे आर्य जाति और नाग जाति के बीच के प्राचीन संघर्ष को दर्शाया गया है | नाग जाति को मूल भारतीय निवासियों का प्रतीक माना गया है| प्रसाद जी ने इस नाटक के माध्यम से केवल एक पौराणिक कथा का चित्रण नहीं किया है बल्कि कई समकालीन और सर्वत्र व्याप्त विषयों पर गहरा प्रहार किया है जैसे पुरोहितवाद पर ….
नाटक में पुरोहितों के लोभ और अंधविश्वास को जातीय संघर्ष और हिंसा का एक बड़ा कारण बताया गया है | लेखक ने कर्मकांड और दक्षिणा के लालची पुरोहितों पर व्यंग्य किया है |
नाटक का मुख्य संदेश प्रतिशोध और जातीय विद्वेष की भावना त्याग कर विश्व-मैत्री, समता और प्रेम की स्थापना करना है |
ऐसा माना जाता है कि लेखक ने उस समय के हिंदू-मुस्लिम जातीय वैमनस्य और अंग्रेजी शासन की ‘फूट डालो’ की नीति के विरुद्ध यह नाटक रचा था, जहाँ आर्य-नाग संघर्ष के बहाने भारतीय समाज की एकता पर बल दिया गया |
यह नाटक लेखक के उन महत्वपूर्ण नाटकों में से एक है जो पौराणिक और ऐतिहासिक कथानकों को आधुनिक संदर्भ और दार्शनिक गहराई प्रदान करते हैं | लेखक जयशंकर प्रसाद मुख्यतः ऐतिहासिक नाटकों के लिए प्रसिद्ध है |
वह हिंदी के पहले ऐसे नाटककार थे जिन्होंने इतिहास को मंच पर जीवंत कर दिया | उन्होंने गुप्त और मौर्य काल के गौरवशाली इतिहास को दर्शाया | आकाशदीप, आँधी, और इन्द्रजाल जैसी कहानियों में उन्होंने मानवीय भावनाओं, देशभक्ति और रहस्य को बड़ी खूबसूरती से पिरोया है |
उनका साहित्यिक योगदान अमूल्य है | उन्होंने साहित्य की कई विधाओ मे लेखन किया है जैसे कविता, नाटक, कहानी और उपन्यास ई. |
साहित्यकार जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1889 या 1890 मे से किसी एक साल मे हुआ है | उनका जन्मस्थान काशी है | उनके पिता का नाम श्री देवी प्रसाद था | उनका पुश्तैनी व्यापार तम्बाकू का था इसीलिए उनका परिवार ‘सुँघनी साहू’ के नाम से वाराणसी , उत्तर प्रदेश मे प्रसिद्ध था | उनकी मृत्यु लगभग 47 की उम्र मे हुई |
उनकी प्रमुख रचनाओ मे शामिल है –
महाकाव्य कामायनी – इसे हिंदी का एक महत्वपूर्ण महाकाव्य माना जाता है |
काव्य संग्रह आँसू यह एक विरह काव्य है , लहर, झरना, कानन-कुसुम, प्रेम-पथिक |
नाटक स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी अजातशत्रु, जनमेजय का नागयज्ञ |
कहानी संग्रह आकाशदीप, आँधी, इन्द्रजाल, प्रतिध्वनि, छाया |
उपन्यास कंकाल, तितली | (इरावती – यह उपन्यास अधूरा रहा ) उन्होंने अपने लेखन की शुरुवात ब्रजभाषा से की, लेकिन बाद में अपनी रचनाएँ शुद्ध, सरल और साहित्यिक खड़ी बोली जिसे संस्कृतनिष्ठ हिंदी भी कहे सकते है , में लिखीं | उनके काव्य में प्रेम और सौंदर्य, तो नाटकों में प्राचीन भारतीय संस्कृति, इतिहास और दर्शन का चित्रण प्रमुखता से मिलता है | वे ऐतिहासिक और पौराणिक पात्रों के माध्यम से समकालीन समस्याओं और मानवीय मूल्यों की स्थापना करते थे |
लेखक की छोटी उम्र में ही उनके माता-पिता और बड़े भाई का निधन हो गया | परिवार का सारा कारोबार और जिम्मेदारी उनके नाजुक कंधों पर आ गई | इस वजह से उनकी औपचारिक शिक्षा जल्दी छूट गई लेकिन उन्होंने घर पर ही हिंदी, संस्कृत, उर्दू, फारसी और अंग्रेजी का गहन अध्ययन किया | सच कहें तो, उन्होंने जीवन की पाठशाला में बहुत कुछ सीखा और यही सब ज्ञान उनकी रचनाओं में झलकता है |
जयशंकर प्रसाद जी का पूरा साहित्य उनके जीवन के अनुभव, भारतीय इतिहास की गहराई और मानवता के प्रति उनके गहरे प्रेम का आइना है | उन्होंने अपनी सरल, फिर भी गंभीर भाषा से हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी |
लेखक – जयशंकर प्रसाद
प्रकाशक – भारती भंडार
पृष्ठ संख्या – 128
उपलब्ध – अमेजॉन पर
प्रस्तुत कथा महाभारत के काव्य से ली गई है | भारतवर्ष में यह प्राचीन परंपरा थी कि जब किसी राजा के द्वारा ब्रह्म हत्या हो जाती तो उसे अश्वमेध यज्ञ करके पवित्र होना पड़ता था | अगर आप हमारे ” सारांश बुक ब्लॉग” को हमेशा फॉलो करते हैं तो आपको अश्वमेध यज्ञ की पृष्ठभूमि पता होगी |
अश्वमेध यज्ञ वही जिसमें एक घोड़ा छोड़ा जाता जो जिस किसी राज्य में जाता | वहां का राजा या तो घोड़े छोड़नेवाले राजा से युद्ध करेगा या उसकी अधीनता स्वीकार करेगा | इसका मतलब आप समझे एक ब्रह्महत्या का पाप मिटाने के लिए युद्ध में सैकड़ो लोगों को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ती थी |
ऐसा ही एक यज्ञ प्रभु राम ने किया था | रावण की हत्या का प्रायश्चित करने के लिए क्योंकि वह आधा ब्राह्मण भी तो था | ऐसा ही यज्ञ पांडवों के परपोते जनमेजय ने किया था | जरत्कारु नाम के ऋषि की हत्या का प्रायश्चित करने के लिए…
महाभारत के शांति पर्व के अध्याय 150 में यह लिखा हुआ मिलता है | पुरोहित शौनक इस यज्ञ के आचार्य थे | इस यज्ञ में विघ्न पड़ने के कारण उन्होंने यह यज्ञ करने पर बंदी लगा दी थी | इस यज्ञ में पड़नेवाले विघ्न के लिए पुरोहित कश्यप भी जिम्मेदार थे |
आस्तिक पर्व के 50 वें अध्याय में एक हिंट मिलता है | उसके अनुसार अगर कश्यप चाहते तो तक्षक , परीक्षित को नहीं मार सकता था | तक्षक और काश्यप की बातें एक लकड़हारे ने सुन ली थी और उसी के साक्षी से महाराज जनमेजय को उनके पिता के हत्या की बात पता चली |
प्रस्तुत कहानी में पात्रों का थोड़ा फेर – बदल किया गया है | अगर आपको इसकी असली कहानी जाननी है तो हमारे यूट्यूब चैनल “सारांश बुक ब्लॉग” पर उपलब्ध महाभारत से जुड़े पॉडकास्ट सुन सकते हैं |
महाराज जनमेजय अपने पिता परीक्षित की मृत्यु की सच्चाई जानकर संपूर्ण नाग जाति से बदला लेने की ठानते है | इसलिए उन्होंने “नागयज्ञ” किया जिसमें नाग उड़ – उड़ कर यज्ञ के होम कुंड में गिरकर जल रहे थे |
काश्यप की सच्चाई जानने के बाद जनमेजय ने अश्वमेध यज्ञ का पुरोहित सोमश्रवा को बनाया जिनकी माता एक नागकन्या थी और पिता एक तपस्वी ब्राह्मण | इस पर काश्यप ने बड़ा हो – हल्ला मचाया क्योंकि अब उनकी दक्षिण सोमश्रवा को चली जाती |
धन के लालची काश्यप ऐसा कभी न चाहते थे | इसीलिए उन्होंने जनमेजय का यज्ञ रोकने के लिए नागों को जनमेजय के खिलाफ विद्रोह करने पर उकसाया क्योंकि नागजाति पहले खांडववन में रहते थे | अर्जुन ने इंद्रप्रस्थ बनाने के लिए खांडदाह कर नागों को वहां से निर्वासित किया |
इसीलिए नाग , पांडवों को अपना दुश्मन मानते थे और जनमेजय पांडवों का ही वंशज था | इसलिए वह भी इनका शत्रु हुआ | इसी का फायदा काश्यप ने उठाया | कुल मिलाकर जन्मेजय के खिलाफ बहुत बड़ा षड्यंत्र रचा जा रहा था |
इस षड्यंत्र से बचने के लिए और अपनी विपत्ति के समय मदद के लिए जनमेजय ने सोमश्रवा को पुरोहित बनाया था क्योंकि वह दोनों जातियों के लोगों से जुड़े थे | उन्हे शांति स्थापित करने के लिए बहुत प्रयत्न करने पड़े | नागों ने ब्राह्मणों के साथ संबंध स्थापित कर लिए थे |
इस कारण वे बलवान हो गए थे | इसी ताकत के बलबूते वह अपने नष्ट हुए राज्य का पुनरुद्धार करना चाहते थे | नागजाति भारत देश की एक प्राचीन जाती थी जो सरस्वती नदी के तट पर रहती थी | ऐसा महाभारत के आदि पर्व के अध्याय 140 में गया है |
भारत जाति के क्षत्रियों ने उन्हें खांडववन की ओर धकेल दिया | खांडव वन में भी उन्हें अर्जुन ने रहने ना दिया | खांडवदाह के वक्त नागों के नेता तक्षक थे | तब वह वहां नहीं थे | इसीलिए बच गए थे | महाभारत के युद्ध के बाद परीक्षित ने श्रृंगी ऋषि के गले में मरा हुआ सांप डालकर उनका अपमान किया |
तक्षक और काश्यप ऋषि ने मिलकर परीक्षित की हत्या की | परीक्षित के ही पुत्र जनमेजय के राज्य काल में आए उत्तंग पुरोहित ने इन सब षड्यंत्र को रोकने के लिए , जनमेजय को नागयज्ञ करने के लिए उकसाया | इसी से नवीन आर्य राज्य की रक्षा की गई |
श्री कृष्ण द्वारा जिसकी आधारशिला रखी गई | ऐसे नवीन महाभारत साम्राज्य की पुनर्योजना जनमेजय के प्रचंड पराक्रम और दृढ़ शासन से हुई थी | सदैव एक दूसरे से लड़नेवाली आर्य और नागजाति का मेलमिलाप हुआ जिस कारण हजारों वर्षों तक आर्य साम्राज्य में भारतीय प्रजा फूलती और फलती रही | बस इन्हीं घटनाओं के आधार पर प्रस्तुत नाटक की पृष्ठभूमि रखी गई है |
प्रस्तुत नाटक में 4 से 5 काल्पनिक नाम है जैसे कि पुरुषों में माणवक ,त्रिविक्रम और स्त्रियों में दामिनी और शीला | बाकी सब असली ऐतिहासिक पात्र है | कुकुरी सरमा , जनमेजय की एक प्रमुख शत्रु थी क्योंकि उसके पुत्र को जनमेजय के भाइयों ने पीटा था क्योंकि उन्हें लगता था कि उसने यज्ञ के घी को चाटकर झूठा कर दिया है |
महाभारत और पुराणों का अध्ययन करनेवाले विद्वान बताते हैं कि यादवों की कुकुर नाम की एक शाखा थी | ऐसा माना जाता है कि सरमा उन्ही यादवीयों में से एक थी जिनका नागों द्वारा अर्जुन के सामने ही हरण किया गया था | कुल मिलाकर ऐसा कह सकते हैं की नाटक में ऐसी कोई घटना सम्मिलित नहीं जिसका मूल महाभारत या हरिवंश पुराण में नहीं | लेखक ने नाटक रचते समय अपनी कल्पनाशक्ति का थोड़ा बहुत फायदा जरूर उठाया है | पहले हम नाटक के पात्रों का परिचय जान लेते हैं |
जनमेजय – इंद्रप्रस्थ का सम्राट |
तक्षक – नागों का राजा |
वासुकी – नागों का सरदार |
काश्यप – पौरावों का पुरोहित |
वेद – कुलपति |
उत्तंग – वेद का शिष्य |
आस्तिक – मनसा और जरत्कारू ऋषि का पुत्र |
सोमश्रवा – उग्रश्रवा का पुत्र और जनमेजय का नया
पुरोहित |
च्यवन – महर्षि कुलपति |
वेदव्यास – महाभारत के रचयिता |
त्रिविक्रम- वेद का दूसरा विद्यार्थी |
माणवक – सरमा और वासुकी का पुत्र |
चंड़भार्गव – जनमेजय का सेनापति
तुर कावषेय – जनमेजय का ऐंद्राभिषेक करनेवाला |
अश्वसेन – तक्षक का पुत्र |
भद्रक – जनमेजय का शिकारी |
शौनक – एक मुख्य ऋषि और ब्राह्मणों के नेता | इसी के दौवारिक , सैनिक , नाग दास इत्यादि |
स्त्री – पात्र
वपुष्टमा – जनमेजय की रानी
मनसा – आस्तिक मुनि की माता , जरत्कारू की पत्नी और वासुकी , तक्षक की बहन |
सरमा – कुकुर वंश की यादवी |
मणिमाला – तक्षक की पुत्री |
दामिनी – वेद की पत्नी |
शीला – सोमश्रवा की पत्नी |
सारांश –
पहले दृश्य में मनसा और सरमा का वार्तालाप बताया गया है जिसमें मनसा अपनी नागजाति के गौरव के बारे में बात कर रही है | यह दोनों तब की बात कर रहे हैं जब श्री कृष्ण के महाप्रयाण के बाद नागों ने यादव स्त्रियों का अपहरण कर लिया था और योद्धा कहे जानेवाले आर्य उन्हें रोक नहीं पाए थे |
तब आर्य , नागों के पराक्रम से भयभीत हो गए थे | इस पर सरमा का कहना था कि वह नागों की वीरता पर मुग्ध होकर उनके साथ चली आई थी | तब अर्जुन क्या कर सकता था ? बाद में श्री कृष्ण की बात होती है और उस प्रसंग को भी दोहराया जाता है जिसमें अर्जुन ने श्री कृष्ण के आदेश पर खांडव वन जलाया था |
मनसा एक नागकन्या है | इसलिए वह आर्यों से नफरत करती है और सरमा आर्यों की तरफदारी करती है | सरमा जैसी यादवियों ने नागों को अपने पति के रूप में बड़े प्रेम से स्वीकार किया था | इस उम्मीद पर कि वह आर्यों से नफरत करना छोड़ देंगे पर उन्होंने अपना कुटिल स्वभाव नहीं छोड़ा |
सरमा ने इसे अपनी जाति का अपमान समझा और अपने पुत्र को साथ लेकर नागों का साथ छोड़ दिया | सरमा के जाने से वासुकी बड़ा दुखी हुआ क्योंकि सरमा उसी की पत्नी थी | मनसा ने अपने कटु वचनों से अपने पति को भी घर छोड़कर जाने पर मजबूर किया था | वासुकी ने उसे समझाया कि वह ऐसा ना करें |
ऐसा करने से आर्यों के साथ मैत्री के लिए किए गए उनके सारे प्रयत्नों पर पानी फिर जाएगा | इसी दृश्य में कुलगुरु वेद की पत्नी है “दामिनी” | उसकी बुरी नजर वेद के शिष्य उत्तंग पर है पर उत्तंग उसे गुरुमाता का सम्मान देता है | उत्तंग की शिक्षा पूर्ण हो गई है | गुरु दक्षिणा के रूप में दामिनी उससे कर्णकुंडल मांगती है जो जनमेजय की रानी वपुष्टमा के कान में है |
रानी उत्तंग को वह कुंडल दे देती है | इस पर काश्यप जल – भून जाता है क्योंकि यह बहुमूल्य कर्ण कुंडल रानी ने उसे न देकर उत्तंग को दे दिए | अब इन कुंडलों को रास्ते में हथियाने की कोशिश तक्षक करता है क्योंकि वह नागों की धरोहर थी |
इस पर उत्तंग गुस्सा होकर जनमेजय को नागयज्ञ करने के लिए उकसाता है | कलुषित चरित्रवाली दामिनी उत्तंग द्वारा ठुकराया जाने पर उससे बदला लेने के लिए नागों का सहारा लेती है | तो जनमेजय के ऐंद्राभिषेक के बाद पुरोहित तुर कावषेय से काश्यप दक्षिणा के लिए लड़ बैठते हैं |
तीसरे दृश्य में सरमा न्याय मांगने जनमेजय की राज्यसभा में आती है | यह कहकर की जनमेजय के भाइयों ने उसके पुत्र को मारा पर यह जानकर कि उसने यादवी होकर भी नागों से विवाह किया | जनमेजय और उसकी रानी वपुष्टमा उसे न्याय देना तो दूर उसका तिरस्कार करते हैं | वह दुखी होकर वहाँ से चली जाती है |
अपनी माँ के अपमान से आहत सरमा का पुत्र माणवक जनमेजय को धूर्तता से मारना चाहता है पर सरमा उसे रोक देती है | वह चाहती है कि वह एक योद्धा के जैसे जनमेजय से लड़े | वह आर्यों से बदला तो लेना चाहती है पर कायरो के जैसे नहीं और नाही तो नागों की मदद लेकर …
आर्यों से वीरों के जैसा बदला लेने के लिए माणवक सरमा को छोड़कर चला जाता है | इसके बाद के दृश्य में तक्षक , वासुकी को मणिकुंडलों की बात बता रहा है | वह बता रहा है कि वह मणिकुंडल हासिल नहीं कर सका जो नागों की अमूल्य संपत्ति थी |
वह उन्हें काश्यप को देकर अपनी ओर मिला लेता क्योंकि राजकुल का समाचार काश्यप से ही मिल सकता था | मणिकुंडल छीनने के लिए तक्षक जब उत्तंग को मारना चाहता है तब सरमा तक्षक का हाथ पकड़ लेती है | इस पर उत्तंग तो बच जाता है पर तक्षक जब सरमा को मारने के लिए दौड़ता है तो वासुकी अपनी पत्नी सरमा को बचा लेता है |
अगले दृश्य में जनमेजय शिकार करने जाता है पर हिरण के चक्कर में जरत्कारू ऋषि को मार देता है | उसी जंगल के एक आश्रम में जरत्कारू का पुत्र आस्तिक और उसकी बहन मणिमाला बात कर रहे है | यह च्यवन ऋषि का आश्रम है |
आस्तिक इसी आश्रम मे शिक्षा लेता है | आस्तिक के जाने के बाद जनमेजय का वहाँ प्रवेश होता है | जरत्कारू के बारे में सुनकर वह दुखी हो जाता है | अब वह शीघ्र ही एक पुरोहित ढूंढना चाहता है ताकि ब्रह्महत्या के पाप से शुद्ध होने के लिए अश्वमेध यज्ञ कर सके |
ब्रह्महत्या के कारण ब्राह्मण वर्ग और आरण्यक मंडल उन पर यह आरोप लगा रहे है कि उन्होंने अपनी शक्ति के मैड मे चूर होकर जानबूझकर यह हत्या की | तक्षक ने आर्यों के खिलाफ युद्ध की तैयारी कर ली है | वह यह युद्ध साम -दाम -दंड – भेद हर नीति से जीतना चाहता है | उसके षड्यंत्र में पुरोहित वेद और काश्यप और बाकी सामान्य ब्राह्मण भी शामिल है |
इस शर्त पर की तक्षक पौरवों का नाश कर के परिषद की सत्ता ब्राह्मणों के हाथ मे दे देगा और खुद क्षत्रिय बनकर शांति की स्थापना करेगा | ब्राह्मणों पर उसका कुछ भी नियंत्रण न होगा | इस षड्यंत्र के खिलाफ सरमा आवाज उठाती है तो कश्यप , तक्षक को सरमा की हत्या करने के लिए उकसाता है |
तक्षक जैसे ही सरमा पर वार करनेवाला होता है तभी मनसा वहां आती है और तक्षक को खुद की रक्षा करने के लिए कहती है क्योंकि आर्यों ने नागो पर हमला कर दिया है | आर्य इसमें जीत जाते हैं | वह कुछ नाग सैनिकों को बंदी बना लेते हैं | बंदी बनने के बाद भी नाग सैनिक क्षमा की भिक्षा नहीं मांगते | आर्य उनको आग लगाकर जला देते हैं |
महर्षि वेदव्यास जनमेजय से मिलने आते हैं | अब आपको तो पता ही है कि महर्षि वेदव्यास त्रिकालदर्शी है | इसीलिए जनमेजय के भविष्य को लेकर उनमें चर्चा होती है | आस्तिक और सोमश्रवा मित्र है | इन दोनों और मणिमाला की मुलाकात महर्षि वेदव्यास से होती है | वह आस्तिक को बताते हैं कि उसका जन्म किसी विशेष उद्देश्य के लिए हुआ है |
सरमा प्रायश्चित करने के लिए नकली नाम से जनमेजय की रानी वपुष्टमा की सेविका बन जाती है | तक्षक और उसकी बहन आर्यों के साथ युद्ध करना चाहते हैं जबकि आस्तिक और मणिमला शांति चाहते हैं | युद्ध होता है और नागों का भयंकर नरसंहार देख मनसा को अपने निर्णय पर पश्चाताप होता है |
तक्षक फिर से एक भयंकर षड्यंत्र रचता है | इसमें कश्यप भी शामिल है | वह रानी वपुष्टमा का हरण करना चाहता है | इसकी भनक सरमा को लग जाती है | वह अपनी जान पर खेल कर भी वपुष्टमा के मर्यादा की रक्षा करना चाहती है | तभी आस्तिक वहाँ आता है |
अब वह सरमा को ही अपनी माता मानता है | माँ के आदेश पर वपुष्टमा को बचाने जाता है | वहां उसे उसकी बहन पुरुष वेश में मणिमाला भी मिलती है क्योंकि उसे भी उसके पिता तक्षक के भयंकर षड्यंत्र का पता लग गया था | तो सरमा का असली पुत्र वपुष्टमा को बचा लेता है | तीनों भाई-बहन अब एक साथ है |
इसके बाद सरमा ,वपुष्टमा और महर्षि वेदव्यास भी आकर उनमे सम्मिलित हो जाते हैं | माणवक ने अब अपना प्रतिशोध लेने का विचार त्याग दिया है | तक्षक को बंदी बना लिया जाता है | मणिमाला राजमहल में ही छूट गई है | नाग अब इनकी जान बचाने के लिए अपने प्राणों पर भी खेलने को तैयार है |
महारानी का अपहरण करने के कारण जनमेजय बहुत गुस्से मे है | वह सारे नागों को अपनी क्रोध की अग्नि मे जला देना चाहता है | इसीलिए पहले वह नागयज्ञ ही करना चाहता है | इस नागयज्ञ में वह तक्षक को पूर्णाहुति के रूप में स्वाहा करना चाहता है |
वह सोमश्रवा को इस यज्ञ का पुरोहित बनने के लिए कहता है परंतु नरबलि लेनेवाले इस यज्ञ का पुरोहित बनना वह अस्वीकार करता है | जनमेजय क्रोध में सारे ब्राह्मणों को निष्कासित करता है | कश्यप के किए की सजा सारे ब्राह्मणों को भुगतनी पड़ती है |
नागकन्या होने के कारण मणिमला को भी जलाया जाएगा जिसमें सोमश्रवा की पत्नी शीला भी जलकर मरने को तैयार है क्योंकि वह मणिमला की प्रिय सखी है | आग लगाई जाती है | नागों को उसमें डाला जाता है | हर तरफ हाहाकार और क्रंदन सुनाई देता है | तभी कुलगुरु वेद और उनकी पत्नी दामिनी आती है | उनको देखकर उत्तंग का गुस्सा शांत हो जाता है | उसी वक्त महर्षि वेदव्यास आस्तिक और बाकी सब लोगों का प्रवेश होता है |
आस्तिक अपना परिचय देता है | वह उसके पिता जरत्कारू के हत्या की क्षतिपूर्ति चाहता है | अब जनमेजय के लिए आस्तिक की इच्छा पूर्ण करना अनिवार्य हो गया है | आस्तिक दो जातियों में यानी के आर्य और नाग जाति में शांति और नागराज तक्षक की रिहाई चाहता है |
जनमेजय इसे खुशी से पूर्ण करता है | अब सरमा भी अपना असली परिचय जनमेजय को देती है | वह भी अपना प्रतिशोध भूल चुकी है | वह मणिमाला का विवाह जनमेजय के साथ कराना चाहती है पर क्या एक क्षत्रिय होने के नाते जनमेजय एक नागकन्या के साथ विवाह करेगा और क्या हरण की गई अपनी रानी को वह फिर से स्वीकार करेगा ?
या उसको भी सीता – माता जैसे त्याग दिया जाएगा ? या अग्नि परीक्षा देनी होगी ? पुरुष प्रधान संस्कृती में स्त्रियों के भाग्य का यह पुरुष क्या निर्णय लेंगे ? पढ़कर जरूर जानिएगा | पुराणो की कहानीयां हमें बहुत कुछ सिखाती है | बस ! हमें सही नजरिये की जरूरत होती है | प्रस्तुत किताब को जरूर पढ़िएगा | तब तक पढ़ते रहिए खुशहाल रहीए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ….
धन्यवाद !!

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नीचे देखें और सबसे आम सवालों के जवाब पाएं।

सवाल है ? जवाब यहाँ है | (FAQs SECTION)

Q.1.जनमेजय का नाग यज्ञ किसकी कृति है?
A. यह जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित नाटक है जिसकी पृष्ठभूमि महाभारत की है |
Q.2.जनमेजय ने नाग यज्ञ क्यों किया था ?
A.क्योंकि उसके पिता परीक्षित को नागराज तक्षक ने अपने विषाक्त दांतों से काटकर मार दिया था | इसलिए उसने सारे नागों से बदला लेने के लिए नागयज्ञ किया था |

  Q.3.जनमेजय का नाग यज्ञ कहाँ हुआ था ?
A. वैसे तो इसका कुरुक्षेत्र मे होना बताया जाता है पर महाभारत ग्रंथ के अनुसार जनमेजय ने यह यज्ञ उसके राज्य हस्तिनापुर से थोड़ी ही दूरी पर पर एक मैदान मे किया बताया गया है | इस यज्ञ स्थल को उन्होंने यज्ञशाला या यज्ञमंडप कहा था | उसका राज्य इंद्रप्रस्थ ही अबकी प्राचीन दिल्ली है |
Q.4.जनमेजय को महाभारत की कथा किसने और कहाँ सुनायी थी ?
A. हस्तिनापुर के महाराज जनमेजय को महाभारत की कथा ऋषि वैशंपायन ने सुनाई थी | यह महर्षि वेद व्यास जो की महाभारत के रचयिता है , के मुख्य शिष्यों मे से एक थे | उन्होंने जनमेजय के सर्प यज्ञ के दौरान यह कथा सुनाई थी |
Q.5.किसका नाम लेने से सांप भाग जाते हैं ?
A.आस्तिक मुनि का नाम तीन बार लेने से सांप भाग जाते है | ऐसा कहते है | यह एक धार्मिक विश्वास है | इसकी पूरी कथा जानने के लिए आप “सर्पाचा सूड़” यह ब्लॉग पढे |

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