इंकलाब जिन्दाबाद
वेद प्रकाश शर्मा द्वारा लिखित
रिव्यू –
किताब ऐतिहासिक पृष्ठभूमि लिए हुए है | यह भारत देश के आझादी की कहानी बयान करती है | साथ मे इस आझादी के लिए मर – मिटनेवाले इन्कलाबियों की …. इन्कलाबियों की इसलिए क्योंकि यह मुख्यतः क्रांतिकारियों की कहानी है जो मरते वक्त भी इंकलाब जिन्दाबाद का नारा लगाते हैं |
इसी में उन्हें सारे जहां का सुकून मिलता है | यह कहानी है क्रांतिकारी दलों की जो देश की आजादी के लिए लड़ रहे हैं और इन दलों को नेस्तनाबूत करनेवाले दमनदल की …. जो सीधे लंदन की खुफिया एजेंसी से चालित है |
अपने चरित्र के बुरे चार क्रांतिकारी , उनकी ही मदद करनेवाली स्त्री का सब कुछ उजाड़ देते हैं | उसके बाद वह घायल शेरनी की भांति सभी क्रांतिदलों को नेस्तनाबूत कर देती है | तो दूसरी तरफ एक वीरांगना अपने प्राणों की बाजी लगाकर , देश की आझादी को बेककूफी समझनेवाले जाँबाजों को देशभक्त बनाने के लिए अपनी जान कुर्बान कर देती है | कहानी 1857 के स्वतंत्रता समर से लेकर तो 1900 के बीच का काल बयां करती है |
देश की आजादी में जहां पुरुषों का ही बोलबाला रहा | वहीं महिलाओं ने भी आजादी के लिए बढ़ – चढ़कर हिस्सा लिया | यह अलग बात है कि उनमें से बहुत से नाम गुमनामी के अंधेरे में ही भटक रहे हैं | कहानी शुरू तो होती है असली ऐतिहासिक घटनाओं के साथ |
बाद में इसे काल्पनिक रूप दिया जाता है जैसा कि लेखक ने बताया | इसलिए उन्होंने इतिहास की बहुत सी पुस्तकों का अध्ययन किया फिर भी किताब के मुख्य पात्र “दामोदर” के बारे में उन्हें कुछ जानकारी नहीं मिली | कहानी का मुख्य पात्र “झांसी की रानी ” लक्ष्मीबाई का दत्तक पुत्र दामोदर बताया है |
इसलिए लेखक ने अपनी कल्पनाशक्ति के आधार पर ही उसके चरित्र का निर्माण किया कि अगर इतिहास में उसका कुछ उल्लेख होता तो कुछ ऐसा होता जैसे लेखक ने किताब में किया है | इतिहास और ऐसे ही किताबों के माध्यम से हमें पता चलता है कि आज स्वतंत्रता का जो आनंद हम लोग ले रहे है |
उसे पाने के लिए उन आजादी के दीवानों ने अपना सब कुछ त्याग दिया | अपने सपने , अपनी उम्मीदें , अपनों को , यहां तक के अपने प्राणों को भी .. .. हम उनका कर्ज कभी नहीं उतार पाएंगे | हम उनके सामने सिर्फ नतमस्तक हो सकते हैं | इस अप्रतिम किताब के –
लेखक है – वेद प्रकाश शर्मा
प्रकाशक है – तुलसी पेपर बुक्स
पृष्ठ संख्या है – 447
उपलब्ध है – अमेजॉन
तीन भिन्न वर्ग के नवयुवकों को अपने प्राणों की बाजी लगाकर क्रांतिवीर बनानेवाली एक वीरांगना की यह हृदयस्पर्शी कहानी है | आईए , अब देखतेहै इसका सारांश –
सारांश –
कहानी महाराष्ट्र की शेरनी “झांसी की रानी लक्ष्मीबाई” की दहाड़ के साथ शुरू होती है की वह अपनी झांसी किसी कीमत पर अंग्रेजों को नहीं देगी | यह बात वह उनके दरबार में आए अंग्रेज अफसर को बता रही थी | इसका परिणाम यह हुआ कि अंग्रेजों ने उनके झांसी पर हमला बोल दिया | रानी ने भी कांटे की टक्कर दी | उनकी बहादुरी देखकर अंग्रेजों ने भी दांतों तले उंगली दबा ली |
अपनी पीठ पर नन्हे दामोदर को पीठ पर बांधकर वह लड़ाई के मैदान में कूद पड़ी | जब उनके अंतिम क्षण का वक्त आया तो उनका वफादार घोड़ा , उन्हें युद्ध – भूमि से दूर एक साधु की कुटिया में ले आया | वह उनका बचपन का मित्र “क्रांति” निकला | अपनी बचपन की सहेली और बहन “मनु” के कहने पर क्रांतिवीर ने वही किया जो उस रणचंडिका ने कहा और दामोदर को लेकर ब्रिटिश सैनिकों से दूर होता चला गया |
अब दामोदर नौजवान हो गया था | देश की आजादी के लिए अकेला ही लड़ रहा था | उसके साथी सिर्फ बूढ़ा “क्रांति” और “रुखसाना” नाम की युवती थी | दामोदर अंग्रेजों को मारता था और उन अमीरचंदो को जो भारतीय होते हुए भी ब्रिटिश हुकूमत का साथ देते थे |
दामोदर का सामना एस. पी. नागर के साथ हो चुका था | उनकी ही बंदूक से दामोदर घायल हुआ था | गोली लगने पर “रुखसाना” ही उसकी मरहमपट्टी करती थी | वह खुद को क्रांतिवीर की बहू मानती थी और दामोदर खुद को उसका बेटा |
“भीकम” नाम का क्रूर डाकू अपने हरिया नाम के साथी और “बिज्जू” नामक जानवर की मदद से जेल से फरार हो जाता है | उसके बाद वह इंस्पेक्टर शर्मा को मारने के बाद भागते रहता है कि एस. पी. नागर अपनी फौज के साथ उसके पीछे पड़ जाते हैं | तभी “रुखसाना” मोटरसाइकिल पर वहां आकर उसे बचा लेती है |
वह कहती है कि वह उससे प्यार करती है | इससे भिकम एकदम सकपका जाता है | बाद में वह “रुखसाना” के बारे में ही सोचता रहता है | दुसारी तरफ “जॉनसन” अपनी दुबली – पतली कद – काठी के बावजूद होटल के सारे गुंडों पर भारी पड़ता है |
वह रबर में बंधी लोहे की गेंद और चाकू चलाने में माहिर है | इसे भी रुखसाना उसी अंदाज में मिलती है | यह भी उससे प्यार करने लगता है | अब “अंबर” को रुखसाना उसके बचपन की साथी “सुमन” बनकर मिलती है | वह अंबर से भी वही कहती है जो उसने भिकम और जॉनसन से कहा था |
“अंबर” एस. पी. नागर का छोटा बेटा है | वह अपनी विधवा भाभी को माँ समान मानता है | उनका बहुत आदर करता है | उनसे वह कभी कुछ नहीं छुपाता | लिहाजा वह उसे बताता है कि वह “दमनदल” का सदस्य नंबर 10 है जबकि इन्हे अपनी पहचान गुप्त रखनी पड़ती है |
दमनदल का सदस्य रहते हुए ही उसने एक संपूर्ण क्रांतिदल और उसके मुखिया का खात्मा किया था | उस मुखिया के घायल होने के बाद अंबर के पैर के नीचे की जमीन ही खिसक गई क्योंकि वह उसका प्यारा और जिगरी दोस्त “राजेश” था |
राजेश ने अपने घर की भुखमरी को नजरअंदाज कर देश के लिए अपनी जान देना बेहतर समझा | इस बात के लिए राजेश की माँ और बहन को उस पर फख्र है | राजेश की मौत अंबर को तोड़कर रख देती है | उसकी भाभी “कौशल” भी उसे बागी बनते देखना चाहती है |
देश के लिए लड़ते देखना चाहती है | न कि देश की आजादी के लिए लड़नेवालों का खात्मा करते हुए | अम्बर , जॉनसन और भिकम इन तीनों को देशभक्त बनाने के लिए रुखसाना “किंग” का कत्ल कर के खुद को गिरफ्तार करवा लेती है | अब उसकी पूरी प्लानिंग क्या है ? यह तो आपको किताब में ही पढ़ना होगा |
तब तक दामोदर इन तीनों से मिलकर रुखसाना के मकसद के बारे में उनको बताता है | उन तीनों का हृदय परिवर्तन हो जाता है | अब यह चारों मिलकर रुखसाना को छुड़ाना चाहते हैं जो समंदर किनारेवाले किले में कैद है | निकलते वक्त इनका सामना फिर से एस. पी. नागर और कमिश्नर से होता है |
इस दौरान कौशल भी कमिश्नर की वैन के नीचे छिपकर इन लोगों की मदद करती है | रुखसाना को छुड़ाने में वह कामयाब तो होते हैं लेकिन उसे बचाने में नहीं .. आखिर , वह देश के लिए कुर्बान हो ही जाती है | कौशल को तो सब लोग पहचान लेते हैं लेकिन कौशल अंबर को नहीं पहचान पाती |
इसके बाद के अभियान में यह चारों पूरे दमनदल को नेस्तनाबूत कर देते हैं | उसी में अंबर जख्मी हो जाता है | तब तक सिर्फ दामोदर और जॉनसन दोनों मिलकर डकैतियों पर डकैतियां डालते हैं | उन धनी लोगों के यहां जो भारतीय होकर भी ब्रिटिशों के तलवे चाटते हैं |
डकैती इसलिए क्योंकि दामोदर और उसके साथियों को हथियार खरीदने के लिए दो करोड रुपए चाहिए ताकि पड़ोसवाले देश को उम्दा हथियार उपलब्ध करा सके ताकि जब पूरे देश में एक साथ बगावत हो तभी बाहर से भी ब्रिटिशों पर आक्रमण हो और वह यह देश छोड़कर चले जाए |
उनके इन सारे प्लान पर पानी फेर देती है “गोल्डन फिश” | वह आदमी है या औरत किसी को नहीं पता | वह दमनदल की मुखिया है | उसको यहां का हर एक अधिकारी डरता है | दमनदल जब नेस्तनाबूत हुआ था | तब वह जिंदा बच गई थी |
उसी ने इन चारों का जमा किया हुआ सारा खजाना लूटकर सरकार को सौंप दिया | “क्रांतिवीर” को मारकर “जॉनसन” को उसके आरोप में फसाया | दामोदर द्वारा उसे टॉर्चर करवाया | उसने जॉनसन को मारा | दामोदर को भी मारा |
भिकम तो पहले ही शहीद हो गया था | बचा अंबर .. अब अम्बर का क्या हुआ ? क्या गोल्डन फिश अम्बर को भी मारने में कामयाब हो पाई या अंबर ने ही उसे मार डाला क्योंकि उसके परिवार की पहुंच बहुत दूर तक है | वह दमनदल का सदस्य भी रह चुका है | गोल्डन फिश जब अंबर के सामने आती है या फिर आता है तो कई राज खुल जाते हैं |
अंबर उसे हैरत के साथ सुनता जाता है | क्या है वह सब राज ? क्या है अंबर की भाभी “कौशल” का उस भयानक रात का रहस्य जिस रात उसके पती की हत्या हुई ? क्या है कौशल के बेटे “चिंटू” से जुड़ा रहस्य ? क्या गोल्डन फिश कौशल को भी मारने में कामयाब होती है क्योंकि तब तक कौशल भी दामोदर के दल की सदस्य बन चुकी थी ?
क्या उसके ससुर एस. पी. नागर उसे अपना पाएंगे ? यह जानने के बाद कि वह एक “बागी” है जबकि वह अंग्रेजों के चाटुकार .. ऐसे ढेर सारे सवालों के जवाब पाने के लिए पढिए …. “इंकलाब जिंदाबाद” | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ..
धन्यवाद !!!!!