GOSHTICH GOSHTI BOOK REVIEW IN HINDI

गोष्टीच गोष्टी
द. मा. मिरासदार द्वारा लिखित

रिव्यू –
यह मराठी की प्रसिद्ध किताब है | गांव में जब लोग चौपाल पर मिलते हैं तो गांव के साथ-साथ पूरे देश – दुनिया की समस्याओं पर भी चर्चा करते हैं | ऐसे ही गाँवो मे से एक है भोकरवाडी |
सारी कहानीयां भोकरवाडी गाँव की है | यह काल्पनिक गांव है , और यहां के लोग भी काल्पनिक … पर वास्तविकता में ऐसे लोग और ऐसी परिस्थितियां होती है | वैसे तो गांव का हर एक व्यक्ति ही अपने आप में घटनेवाली घटनाओं का नायक है , पर बाबू म्हात्रे और उसका शिष्य नाना चेंगट ज्यादातर कहानियों में आपको दिखाई देंगे |
कहानी ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित है | इसलिए हर एक व्यक्ति ग्रामीण भाषा ही बोलते हुए दिखाई देता है | कहानीयां हालांकि , हास्य का पुट लिए हुए हैं फिर भी उसमें कहीं ना कहीं गंभीर विषय छुपा हुआ है , जैसे की गांव की स्कूलों में महिला शिक्षिकाओं की नियुक्ति और उनकी सुरक्षा को लेकर खड़े हुए प्रश्न..
पुलिस जो जनता की सेवा के लिए है | वही सामान्य जनता को इतना परेशान करती है की सामान्य लोग उनके पास अपनी परेशानियाँ लेकर आने के लिए बहुत सोच – विचार करते है | एक कहानी देश में फैले भ्रष्टाचार पर प्रकाश डालती हैं , तो दूसरी आतंकवादीयो द्वारा जगह-जगह पर रखें जानेवाले बम के बारे में बात करती है | किताब मे पूरे तेरह अध्याय है | प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – द. मा. मिरासदार
प्रकाशक है – मेहता पब्लिशिंग हाउस
पृष्ठ संख्या है – 152
उपलब्ध है – अमेजॉन और किंडल पर
प्रस्तुत किताब के लेखक द. मा. मिरासदार मराठी साहित्य के प्रमुख और लोकप्रिय लेखकों मे से एक रहे है | उनका पूरा नाम दत्ताराम मारुति मिरासदार था | वे अपने लेखन और कथाकथन के लिए जाने जाते हैं | विशेषतः विनोदी लेखन के लिए | उनका जन्म 14 अप्रैल, 1927 को सोलापुर मे हुआ | और निधन सन 2021मे 94 वर्ष की आयु में हुआ | उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पंढरपुर से की | उन्होंने अपनी एम.ए. की पढ़ाई पुणे से की |
1952 में उन्होंने अध्यापन के क्षेत्र में कदम रखा | वे पुणे के कैंप एजुकेशन स्कूल में शिक्षक रहे | 1961 मे मराठी के प्राध्यापक बने |
अपने करियर के शुरुवाती दिनों मे उन्होंने पत्रकारिता की | ‘दैनिक भारत’ समाचार पत्र में उप-संपादक पत्रकार के रूप में काम भी किया |
ना.सी. फडके द्वारा संपादित साप्ताहिक ‘झंकार’ में लेख लिखे | लेखक व्यंकटेश माडगूळकर और शंकर पाटील के साथ वे “कथाकथन त्रयी” के रूप में प्रसिद्ध हुए | उन्होंने महाराष्ट्र, देश और विदेश में हजारों कथाकथन कार्यक्रम किए, जिससे मराठी कथा को काफी लोकप्रियता मिली |
लेखक उन चुनिंदा लेखकों में से एक रहे है जिन्होंने ग्रामीण जीवन पर आधारित विनोदी कहानियों को एक नई दिशा दी | उनकी कहानियों में ग्रामीण जीवन की विसंगतियां, विचित्रताएं और स्थानीय चरित्रों का हास्यपूर्ण चित्रण मिलता है | उनके विनोद में तीखापन नहीं होता, बल्कि वह गुदगुदानेवाला और मुस्कुराहट लानेवाला होता है |
उन्होंने केवल विनोदी कहानियाँ ही नहीं लिखीं, बल्कि कुछ गंभीर कहानियों द्वारा जीवन के करुणापूर्ण पहलुओं को प्रभावी ढंग से दर्शाया है , जैसे ‘स्पर्श’, ‘विरंगुळा’, ‘कोणे एके काळी’ | यह कहानियाँ इसका उदाहरण हैं | वह 20 से अधिक कथा संग्रहो के , रूपांतरित उपन्यास, और ‘मी लाडाची मैना तुमची’ जैसे लोकनाट्य के लेखक भी रहे है | उन्होंने कई फिल्मों के लिए पटकथा और संवाद लिखे, जिनमें ‘एक डाव भुताचा’ और ‘ठगास महाठग ‘ मुख्य हैं | इन फिल्मों के संवाद लेखन के लिए उन्हें पुरस्कार मिल चुके है | उनके द्वारा लिखित जावईबाबूंच्या गोष्टी’ यह बच्चों के लिए है | उनकी प्रमुख रचनाओ मे शामिल है –
भोकरवाडीतील रसवंतीगृह सन 1957 मे | यह उनका पहला कथा संग्रह था | माझ्या बापाची पेंड, हुबेहुब (1960 ), विरंगुळा (1961),स्पर्श (1962), मिरासदारी (1966) ,गुदगुल्या , चकाट्या , चुटक्याच्या गोष्टी , ताजवा , फुकट , बेंडबाजा , भुताचा जन्म |
सरमिसळ (1981)
गप्पांगण (1985)
लाडाची मैना (1970)
साहित्य मे उनके योगदान के लिए , उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें शामिल है महाराष्ट्र राज्य साहित्यिक पुरस्कार, ग. दि. माड़गुलकर पुरस्कार, काकासाहेब गाडगिल पुरस्कार , अत्रे पुरस्कार, और दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार |
सन 2014 में उन्हें महाराष्ट्र शासन द्वारा विं.दा. करंदीकर जीवन गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया | इसके पहले वह सन 1998 में परली वैजनाथ में आयोजित 71वें अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन और महाराष्ट्र राज्य साहित्य व संस्कृति मंडल के अध्यक्ष भी रहे |
मराठी साहित्य के पाठक और विद्यार्थी उन्हे उनके इस अमूल्य योगदान के लिए , उनकी अनोखी विनोदी शैली के लिए और ग्रामीण कथाओं के लिए हमेशा याद रखेंगे | वह अपने किताबो के रूप मे हमेशा इनका मार्गदर्शन करते रहेंगे | मन कितना भी उद्विग्न क्यों न हो ! कॉमेडी उस पर थोड़ी राहत जरूर देती है | जब भी आप को लेखक की किताबे पढ़कर ऐसी खुशी मिले | उन्हे धन्यवाद जरूर दे | यही हमारी उनके लिए श्रद्धांजलि होगी |
सारांश –
एक बार भोकरवाडी गाँव में एक जादूगर आता है | वह अपने जादू से और बातों से लोगों का दिल जीत लेता है | वह लोगों को ताईत बेचता है | यह कहकर कि वह असली करामाती शक्ति रखते हैं | लोग भी उन्हें खरीद लेते हैं | इस तरह उस जादूगर की अच्छी खासी कमाई होती है |
इस जादू के खेल को देखकर बाबू को भी लगता है कि हम भी ऐसा खेल दिखाकर पैसे कमा सकते हैं | वह अपना यह विचार नाना चेंगट को बताता है | नाना तो पहले ना – नुकुर करता है , पर बाबू के दम देने के बाद मान जाता है | वैसे देखा जाए तो भोकरवाडी के हर एक व्यक्ति की आर्थिक स्थिति कुछ खास नहीं है | उसमें भी नाना की स्थिति और भी बेकार है |
दोनों जादू के खेल के लिए खूब प्रैक्टिस करते हैं | आखिर वह दिन आता है जब इनको खेल दिखाना होता है पर वक्त पर बाबू अपने प्रश्न आगे – पीछे पूछता है | इससे बाबू भी कंफ्यूज हो जाता है की , कौन से सवालों के जवाब दे ? कौन से नहीं |
दोनों के सवाल – जवाब आगे – पीछे हो जाते हैं | लोग आते तो है पर इन दोनों की ऐसी फजीहत देखकर बिना ताईत खरीदे ही वापस चले जाते हैं | आखिर बाबू उसी बात पर सहमत होता है जो नाना ने उसे शुरुआत में ही कही थी की जादू जैसी कोई चीज नहीं होती और ताईत भी नकली होते हैं |
“चोरी झालीच नाही” कहानी में भोकरवाडी के बजाबा की कहानी बताई है | गाँव के चौक मे बजाबा का बड़ा सा होटल है | इसे बजाबा ने अपनी मेहनत से छोटे से बड़ा किया है | उसका यह होटल अच्छा चल रहा है | होटल बढ़ा तो काम करनेवाले लोग भी बढ़े |
वैसे-वैसे होटल में सामानों की चोरी भी बढ़ी | बजाबा यह सब जानता था पर कमाई अच्छी होने के कारण उसने इन बातों पर ध्यान ही नहीं दिया | एक बार तो महंगी चीजों का पूरा बॉक्स ही चोरी हो गया | साथ मे होटल का एक लड़का भी गायब हो गया |
अब इन चोरियों को सहते -सहते बजाबा की सहेनशक्ति खत्म हो गई थी | आखिर उसने पुलिस थाने में इस बात की शिकायत लिख दी | अब कहानी का असली मजा तो यही से शुरू होता है | इंस्पेक्टर से लेकर तो हवालदार तक सब लोग बजाबा से मिलने के बहाने उसके होटल में आते हैं और पेट भरकर अच्छी-अच्छी चीजे खाते हैं |
बेचारा बजाबा बहुत परेशान होता है | जितने पैसों की उसकी चोरी नहीं हुई | उतने का तो पुलिसवाले फोकट खाकर जाने लगे | इस कारण बजाबा ने यह कहे कर अपनी केस वापस ली की खोया हुआ बक्सा मिल गया | उसके यहाँ चोरी हुई ही नहीं |
भोकरवाडी का स्कूल अब बड़ा हो गया था | इसीलिए अतिरिक्त शिक्षकों की नियुक्ति की जाने लगी थी | इसी के तहत अब पूरा गांव नए टीचर की प्रतीक्षा करने लगा परंतु उनके हाथ निराशा लगी क्योंकि पुरुष टीचर की जगह महिला टीचर भेजी गई |
अब गांव में महिला टीचर को किन-किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है ? इसका एकदम सही और सटीक चित्र “मदर इंडिया” इस किताब में किया गया है | इसका रिव्यु और सारांश भी हमारी वेबसाइट “सारांश बुक ब्लॉग” पर उपलब्ध है | उसे भी आप एक बार जरूर पढ़िएगा |
अब विषय पर वापस आते है | भोकरवाडी गाँव में अब की बार महिला टीचर आई | अब उसके सुरक्षा की जिम्मेदारी बाबू पहलवान और नाना चेंगट ने उठा ली ताकि गांव का कोई भी बदमाश व्यक्ति उसे नुकसान न पहुंचा सके | अब इस बात का पता उस महिला टीचर को बिल्कुल भी नहीं है और नाही तो गांववालों को …
महिला टीचर जहाँ जाती है | बाबू और नाना उसका पीछा करते हैं | बाबू के मुंह से महिला टीचर की बात बार-बार सुनकर गांववालों को लगता है की बाबू और महिला टीचर का प्रेम प्रकरण शुरू है | बस इसी अफरा – तफरी में ,और महिला टीचर की सुरक्षा करने के चक्कर में घटनाएं ऐसी घटती है की टीचर को लगता है की उसको परेशान करनेवाले लोग बाबू और नाना चेंगट ही है |
उनकी ही वजह से वह अपनी बदली करवा लेती है | तो दूसरी तरफ बाबू और नाना को लगता है कि इन दोनों ने उस टीचर की गांव के गुंडो से सुरक्षा कर ली | बस अब उस टीचर ने जिस नए गांव में नौकरी ली | यह दोनों अपने अच्छे नागरिक होने का कर्तव्य निभाने के लिए और टीचर को उस गांव के गुंडो से बचाने के लिए , वहां जाने का सोचते हैं |
बस ! अब आप ही सोचिए की आगे क्या होता होगा ? बिचारे यह दोनों हमेशा ही कुछ अच्छा करने जाते है पर होता उसका उल्टा है , सिर्फ एक घटना को छोड़कर जो “भोकरवाडीतील दत्तक” प्रकरण इस अध्याय में दिया है |
“गणिताचा तास” इस अध्याय में , मैथ्स के टीचर के हाथ की मार खाने से बचने के लिए ,स्कूल का एक बच्चा देश में होनेवाले बॉम्बस्फोट प्रकरण का सहारा लेता है | “भुताचा खून” इस अध्याय में एक प्रसिद्ध नोवलिस्ट एक पागल को उसी की भाषा में समझाता है पर पागलखाने के लोग उसे ही पागल समझ कर ले जाते हैं |
“भ्रष्टाचार बंद” इस अध्याय में तो भ्रष्टाचार बंद होने के बाद ऑफिस में पहले जैसा थ्रील लाने के लिए भोकरवाडी में रहनेवाले दो मित्र ,क्या अफलातून आइडिया निकालते हैं ? यह तो आपको जरूर पढ़ना चाहिए | ऐसे ही बाकी के अध्याय है | इसमें भी “रस्त्यावरील भूताटकी” , “भोकरवाडीतील वनवास प्रकरण”, “देव पावला” यह भी अध्याय बहुत ही अच्छे हैं | जरूर पढ़िएगा | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते है और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ….
धन्यवाद !!

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