गूंगा बुक रिव्यू: क्यों एक जज चुप रहा और खुद मर्डर किया?

वेद प्रकाश शर्मा के गूंगा उपन्यास का कवर: हरे शीर्षक, महिला, पुरुष और रिवॉल्वर के साथ।

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गूंगा | बुक रिव्यू | क्यों एक न्यायाधीश चुप रहा और खुद मर्डर किया?

  गूंगा वेद प्रकाश शर्मा का एक ऐसा मनोवैज्ञानिक थ्रिलर है, जो दिखाता है कि न्याय व्यवस्था के शीर्ष पर बैठा ज़िला न्यायाधीश भी कभी-कभी बड़े अपराधियों के सामने बेबस हो जाता है। अपनी जान और परिवार को बचाने के लिए जज चुप्पी साध लेता है, लेकिन जब वह कायरता बर्दाश्त नहीं कर पाता तब वह पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए खुद एक खतरनाक जाल बुनता है। 

गूंगा उपन्यास रिव्यू: एक ऐसी कहानी जिसने पाठक को झकझोर दिया!

यह सस्पेंस और मिस्ट्रीवाला उपन्यास है जिसकी कहानी “कविता” नाम की एक अधेड़ उम्र की महिला बता रही है | वह “जिला एवं सत्र न्यायाधीश” की पत्नी है | उसकी इस आपबीती कहानी का मुख्य किरदार भी उसका पति “संदीप सान्याल” ही है |
“संदीप सान्याल” वैसे तो एक खुशमिजाज और शरीफ इंसान है | वह अपने काम और परिवार में ही खुश रहना पसंद करता है | बात जब उसको अपने कर्तव्य पथ से भ्रष्ट करने की आती है जिसमे कि समाज और देश का भी नुकसान समाहित है | तब वह अपने परिवार की सुरक्षा को ताक पर रखकर बड़ी ताकतों के खिलाफ इस जंग में कुद पड़ता है जिससे कि सिर्फ तबाही ही हो सकती है |
हाँ , एक बार के लिए वह “गूंगा” जरूर बन जाता है लेकिन वह अपनी यह कायरता ज्यादा दिन तक झेल नहीं पाता | वह अपने मुंह पर लगे ताले निकाल फेंकता है और इन ताकतवर लोगों के खिलाफ जंग का ऐलान करता हैं |
इसके लिए वह अपनी तरफ से पूरी तैयारी करता है | अपने दुश्मनों की मुकम्मल जानकारी ईकठ्ठा करता है ताकि वक्त आने पर यह जानकारी उनके खिलाफ इस्तेमाल कर सके | इसलिए कहानी के हर एक मोड़ पर जज साहब की होशियारी से आपका सामना होगा | हर बार जिज्ञासा रहेगी कि आगे क्या होगा ? आगे क्या होगा ? किताब पढ़ने का मन करेगा | छोड़ने का नहीं ..
बात रही किताब की सूत्रधार कविता की …. तो यह पात्र हमें कुछ खास पसंद नहीं आया | कविता थोड़ी बोरियत भरी है | एक ही बात को बड़ा लंबा खींचती है | वह बार-बार अपने पति को उसकी पत्नी होने की धौंस देती रहती है |
वह खुद को बहुत चालाक दर्शाती है लेकिन पुरुष पात्रों के आगे कम आँकी गई है जैसे कि उसके पति संदीप सान्याल और कृषिमंत्री रोमेश शर्मा के आगे वह बेवकूफ साबित होती है फिर भी वह अपनी हरकतें जारी रखती है |
वैसे कविता के बतानेवाले सीन छोड़ दिए जाए तो किताब वाकई बहुत रोमांचक है | आपको संदीप सान्याल का पात्र जरूर पसंद आएगा जो 50 की उम्र का होते हुए भी 25 साल के नवयुवकों को मात दे रहा है | सिर्फ इस पात्र के कारण हम इस उपन्यास को 3.5  की रेटिंग दे रहे है | इस बेहतरीन किताब के –
लेखक है – वेद प्रकाश शर्मा
प्रकाशक है – तुलसी पेपर बुक्स
पृष्ठ संख्या है – 262
उपलब्ध है – अमेजॉन , किंडल पर

ज के गूँगेपन का राज –  

यह एक ऐसे पात्र की कहानी है जिसके गूंगेपन का राज जानने के लिए पाठक उतने ही बेचैन हो उठेंगे जितना की उसकी पत्नी .. | यही बेचैनी उपन्यास के पृष्ठ दर पृष्ठ बढ़ती चली जाएगी | मगर जल्दी ही आपको उसके गूंगेपन का राज पता चल जाएगा और फिर उसके बाद आप कहानी में ऐसे खो जाओगे कि उपन्यास छोड़ने का मन ही नहीं करेगा | ऐसी इस बेहतरीन किताब को आप जरूर पढ़ें |

लेखक की जानकारी – 

लेखक वेद प्रकाश शर्मा इनका जन्म 10 जून 1955 को मेरठ में हुआ था | यही से उन्होंने अपना ग्रेजुएशन पूर्ण किया | वह भारतीय उपन्यासकार थे | वह हिंदी फिल्मों के लिए पटकथा लेखन भी करते थे | उन्होंने अपने करियर में पूरे 176 उपन्यास लिखे |
इसमें से पहले 23 उपन्यास किसी और नाम से लिखे | 1973 में “दहकते शहर “ उनके द्वारा लिखित पहला उपन्यास था जिसे बहुत सराहा गया | वह ज्यादातर जासूसी उपन्यास लिखा करते | उनमें से “कलयुग की रामायण” और “वर्दीवाला गुंडा” उनके प्रसिद्ध उपन्यास रहे हैं | उनके उपन्यासों के पात्र जैसे “विजय – विकास , अल्फांसे , विभा जिंदल” आज भी लोगों को उतने ही प्रिय है जीतने की उनके उपन्यासों के दौर में थे | आईए , अब देखते है इस –

उपन्यास का सारांश: जज संदीप सान्याल का खतरनाक ‘न्याय’ चक्र

कविता और संदीप के अच्छे रिश्ते बिगड़ने का कारण – 

“कविता”, “संदीप सान्याल” की पत्नी है | संदीप सान्याल 50 की उम्र के करीब पहुंचे व्यक्ति है और जिला एवं सत्र न्यायाधीश है | कविता उनके जन्मदिन पर एक सरप्राईज पार्टी रखती है ताकि वह खुश हो सके क्योंकि उसके पहले हर तरह से खुश मिजाज और अपने परिवार को बेहद प्यार करनेवाला संदीप सान्याल अचानक से गूंगा हो जाता है |
गूंगा माने उसे बोलने में कोई परेशानी नहीं है बल्कि वह ऐसा राज जान जाता है जिसे अगर वह अपने मुंह से बाहर लाए तो उसकी बर्बादी हो जाए | उसका परिवार तबाह हो जाए | इसलिए वह सब लोगों से कटा -कटा रहता है | अपने ही विचारों में खोया रहता है |
गुस्से की ज्यादती के कारण उसका चेहरा हमेशा वीभत्स और क्रूर नजर आता है | उसकी इस मानसिकता को देखकर कविता की समझने में ही नहीं आता कि उसे क्या हो गया है ? उसको ठीक करने के लिए वह क्या करें ? इसलिए वह पार्टी देती है | इसी पार्टी में संदीप सब पर बिफर पड़ता है |
अपने लाडले पोते पर हाथ तक उठा देता है | उसका यह रूप देखकर सब उससे खौफ खाने लगते हैं | अब कविता भी क्वालिफाइड वकील है | ऐसे में इन सारी बातों को जानने की जिज्ञास उसमें जागना स्वाभाविक है |

क्या कविता संदीप की जासूसी कर के ढूंढ पाई उसके चुप्पी का कारण ?

इसीलिए वह अपने पति संदीप सान्याल की जासूसी करने की ठानती है | ऐसा एक मौका उसे मिलता है | तब जब संदीप अखबार में एक खबर पढ़कर बेहद गुस्सा हो जाता है | कविता भी उस पेपर को देखती हैं पर उसे उसमें कुछ खास नजर नहीं आता |
सिर्फ एक खबर के अलावा की , एक पागल औरत ने अपने ही बच्चे की जान ले ली | संदीप सान्याल पागलखाने जाकर उस पागल औरत से यानी के “नेहा कटारिया” से मिलता हैं | अगले दिन कविता भी उससे मिलती है क्योंकि उसने पहले दिन संदीप का पीछा किया था जो कि संदीप को पता चल जाता है |
उसके बाद संदीप , “साक्षी श्रीवास्तव” नाम की लड़की को फोन करके उसे उनके निर्माणाधीन फ्लैट में बुलाता है | वहां वह उसका कत्ल करता है | सारे सबूत भी मिटा देता है | कविता यहां भी कार की डिक्की में छुपकर संदीप का पीछा करती है | इसलिए मर्डर की चश्मदीद गवाह है | उसके सैंडल के निशान वहां मिलते हैं क्योंकि उसको यह सबूत मिटाने का होश नहीं रहता |

इंस्पेक्टर करेंटवाला का जाल: साक्षी श्रीवास्तव मर्डर केस का रहस्य – 

वह ब्रिलिएंट इंस्पेक्टर करंटवाला की जाल में फंस जाती है जो की साक्षी श्रीवास्तव के मर्डर केस की तहकीकात कर रहा है | वह अगली सुबह उनके बंगले पर पहुंचता है | वह संदीप सान्याल और कविता के खिलाफ सबूत का ऐसा जाल फैलाता है जिसमें कविता पूरी तरह फंसकर खून का इल्जाम खुद के सर ले लेती है ताकि जज साहब बच जाए | “करंटवाला”, “कविता” को जेल में बंद कर देता है | अब संदीप एस. पी. से दूर जाकर ऐसी बात करता है कि उसका चेहरा पीला पड़ जाता है | वह कविता को छोड़ देता है |

चुप्पी का रहस्य और अमरीश का कत्ल: जज ने क्यों किया पहला मर्डर? 

अब कविता को सब कुछ बताना “संदीप सान्याल” की मजबूरी हो जाती है | वह बताते हैं की “कविता” जब मायके गई हुई थी तब वह “राकेश कुलकर्णी” के मैरिज पार्टी में अकेले ही गए थे | वहां उन्होंने “नेहा कटारिया” को उसके भाई “अमरीश” के पीछे भागते देखा | अमरीश , नीलम कटारिया से नाराज था क्योंकि उसने अपने परिवार की मर्जी के खिलाफ गौतम कटारिया से दो साल पहले शादी कर ली थी |
इन दोनों की शादी “नितिन शर्मा” ने कराई थी | वह गौतम का मित्र था और कृषिमंत्री “रोमेश शर्मा “ का बेटा | अतः पावर उसके पीछे था | इसी पार्टी में “अमरीश” ने गुस्से में “गौतम कटारिया” का गिरेबान पकड़ लिया था | बाद में नितिन ने समझदारी की बातें करके अमरीश और गौतम में सुलह करवाई थी लेकिन यह नितिन की चाल थी क्योंकि वह अमरीश की हत्या करना चाहता था |
हत्या करने के लिए उन्हें कोई माकूल कारण नहीं चाहिए था क्योंकि दोनों ही क्रिमिनल माइंड सेट के व्यक्ति थे | यह तीनों ही “साक्षी श्रीवास्तव” के फार्म हाउस के लॉन में अमरीश का कत्ल करते हैं | उस वक्त “जज साहब” साक्षी के बेडरूम में मौजूद रहते हैं | क्योंकि उसने अपने प्लान के तहत उनको अपने जाल में फसाया था |
संदीप सान्याल , अमरीश को बचाना चाहते हैं लेकिन साक्षी ऐसा करने से उन्हें रोक देती है | अमरीश के केस का मुकदमा जज साहब के ही कोर्ट में आता है | सब मुकर जाते हैं लेकिन नेहा कटारिया अपने गवाही पर बनी रहती है | उसे पागल करार दिया जाता है | उसी के एक साल के बेटे को “गौतम” उसी के सामने छत से फेंक कर मार देता है |
उसे पागलखाने में भेज दिया जाता है | इस तरह “जज साहब” को उन्हें बाईज्जत बरी करना पड़ता है | उन्हें खुद की कायरता पर झुँझलाहट होती है |

मास्टरप्लान की शुरुआत: साक्षी श्रीवास्तव का मर्डर और पोते अंकुर का अपहरण – 

अब सबको सजा देने के लिए वह खुद , इस लड़ाई में उतरते हैं | उसी के तहत वह सबसे पहले “साक्षी श्रीवास्तव ” को मारते हैं | उसे मारने से पहले वह उसके घर से सारे आपत्तिजनक फोटोज् और सिडीज चुरा लेते हैं जिसमें देश के बड़े-बड़े लोग साक्षी के साथ नजर आते हैं |
जैसे ही “रोमेश शर्मा” को साक्षी के बारे में पता चलता है | वह सारे सबूत हासिल करने के लिए , जज साहब के पोते “अंकुर” को अगवा कर लेते हैं लेकिन होता वही है जो जज साहब चाहते हैं | वह अंकुर सहित सहीसलामत वापस घर आते हैं | इसके बाद बारी है गौतम की.. गौतम की एक गलती की वजह से संदीप उसे रोमेश शर्मा से दूर कर देता है ताकि वह उसके पावर का कोई इस्तेमाल न कर सके |

अंतिम चाल और कोर्टरूम ड्रामा: नितिन की पहचान और कविता की लड़ाई – 

संदीप , नीलम , एस. पी. और करंटवाला के साथ मिलकर गौतम को इस कदर जाल में फसाते हैं कि वह अपना जुर्म कबूल करने के साथ-साथ एस. पी. के गोली का शिकार भी हो जाता है | अब वह रोमेश शर्मा के घर जाकर उसे सच-सच बताते हैं कि उन्होंने गौतम कटारिया को क्यों मरवाया ?
साथ मे यह भी की वह नितिन , रोमेश शर्मा और उसके खास आदमी पहलवान नंबर दो को भी मार देंगे क्योंकि उन्होंने अमरीश को मारा है | इसके बाद वह घर आकर अपने ऐसे पत्र कविता को दिखाते हैं जिससे कि रोमेश शर्मा का बेटा नितिन शर्मा उनका अपना बेटा यानी कि “नितिन सान्याल” साबित हो जाए | यह पढ़कर और पुराने फोटोज् देखकर कविता को तो चक्कर आ जाते हैं |
वह अपनी ही गृहस्ती में आग लगा बैठती है | रोमेश शर्मा के पास जब यह फोटोज् और पत्र पहुंचते हैं तो वह इसे “संदीप सान्याल” की चाल बताता है | ऐसी चाल जिससे दोनों बाप – बेटे में फूट पड़ जाए | नितिन भी इस पर यकीन नहीं करता |
इसके बाद जज साहब की उनके ही स्टडी में हत्या करवा दी जाती है | पुलिस को नितिन का ब्रेसलेट मौकाए वारदात पर मिलता है | बौखलाई कविता अपने पति की मौत का बदला लेने के लिए वकील बनकर कोर्ट में उतरती है | वह बिना डरे उन सबूतो के आधार पर जो संदीप के पास थे | वह रोमेश शर्मा को अपना पावर इस्तेमाल करने से रोक देती है |
वह नितिन शर्मा को फांसी दिलाने में कामयाब हो जाती है लेकिन यह क्या ? रोमेश शर्मा , नितिन शर्मा को बचाने का सिर्फ नाटक कर रहा था ! वह उसके मरने पर तालियां पीट-पीट कर खुश हो रहा है | ऐसा क्यों ? क्योंकि वह नितिन को जज साहब का बेटा समझ रहा था |
तो क्या है असली सच्चाई ? क्या वाकई नितिन शर्मा , संदीप सान्याल का बेटा था ? या यह भी जज साहब की कोई चाल थी ?

कहानी का सबसे बड़ा ट्विस्ट: क्या वाकई जज संदीप सान्याल मर गए?

अगर यह चाल थी तो इसे कामयाब करने के लिए किसने उनकी मदद की जिससे कि वह रोमेश शर्मा को भी वही दुख दे सके जो उन्होंने एक बूढ़े पिता को दिया था | जो सुप्रीम कोर्ट के जज थे मगर इन शक्तियों के सामने कमजोर थे | सबसे बड़ी बात यह की क्या संदीप सान्याल की वाकई मौत हो गई ?
क्या आखिरी लड़ाई कविता ने अकेले ही लड़ी ? इन सारे सवालों के जवाब पाने के लिए जरूर पढ़िए “गूंगा” | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहीए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ..
धन्यवाद !!

वेद प्रकाश शर्मा की सबसे प्रसिद्ध थ्रिलर “इंकलाब जिंदाबाद” की समीक्षा यहाँ पढ़ें।

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हिंदी के लोकप्रिय उपन्यासकार वेद प्रकाश शर्मा के बारे में और जानें।

(FAQs SECTION )

Q1. ‘गूंगा’ उपन्यास का मुख्य पात्र कौन है और उसका असली नाम क्या है?
A. ‘गूंगा’ उपन्यास का मुख्य पात्र जिला न्यायाधीश संदीप सान्याल हैं |
Q2. जज संदीप सान्याल ने गूंगा होने का नाटक क्यों किया?
A. क्योंकि उन्होंने बड़े अपराधियों से अपने परिवार को बचाने के लिए चुप्पी साध ली थी।
Q3. ‘गूंगा’ थ्रिलर का मुख्य विषय क्या है?
A. यह एक ऐसे न्यायाधीश की कहानी है जो कानून की विफलता के बाद पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए खुद अपराध का रास्ता चुनता है।
Q4. इंस्पेक्टर करेंटवाला की भूमिका क्या थी?
A. इंस्पेक्टर करेंटवाला उस मर्डर केस की जांच कर रहा था जिसमें जज की पत्नी ने खुद पर इल्जाम ले लिया था।

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