FOREST OFFICER REVIEW SUMMARY HINDI

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फॉरेस्ट ऑफिसर
वेद प्रकाश काम्बोज द्वारा लिखित

रिव्यू –
प्रस्तुत किताब उन फॉरेस्ट ऑफिसर पर लिखी गई है जो अपनी जान जोखिम में डालकर जंगल की संपदा का रक्षण करते हैं जिसे बेचकर तस्कर लोग लाखों – करोड़ों रुपये कमाते हैं | हालांकि , यह कहानी काल्पनिक है लेकिन वास्तविकता की धरातल पर लिखी गई है |
किताब पढ़ते वक्त 80 के दौर के बॉलीवुड मूवीज की याद आने लगती है जिनमें केसरी जैसा ही ईमानदार फॉरेस्ट ऑफिसर आता है और तस्करों को ना करते ही उसके जीवन में परेशानियां बढ़ने लगती है |
इसमें विलन खुद बेईमानी के रास्ते पर चलते हुए चाहता है कि ईमानदार फॉरेस्ट ऑफिसर भी बेईमानी के रास्ते पर चले लेकिन वह खुद ईमानदारी के रास्ते पर चलना नहीं चाहता |
बेईमानी के रास्ते पर चलनेवाले यह लोग अपनी ही वन संपदा को नष्ट करना चाहते हैं जिसमें शामिल है बड़े-बड़े पेड़ों की लकड़ीयां , जंगली जड़ी – बूटियां , जंगली जानवरों की खाल , फल , फूल और भी अन्य कई चीजे |
हालांकि , किताब का नाम फॉरेस्ट ऑफिसर है फिर भी यह दुय्यम नायक सिद्ध होता है | कहानी का असली नायक कोई और ही है |
वैसे लेखक की किताबें हमें वेद प्रकाश शर्मा की किताबों से ज्यादा अच्छी नहीं लगी | उनके किताबों की बात ही कुछ और है | लेखक की यह किताब भी एक बार पढ़ने लायक जरूर है | प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – वेद प्रकाश काम्बोज
प्रकाशक है – डायमंड पॉकेट बुक्स
पृष्ठ संख्या – 313

सारांश –
साधना का छोटा भाई “केसरी” फारेस्ट ऑफिसर बनकर जंगल में पोस्टेड होता है | केसरी से छोटा एक भाई और एक बहन है | माता-पिता के गुजरने के बाद साधना ने अपना घर ना बसाते हुए अपने भाई – बहनों का पालन पोषण किया | उसी का नतीजा है कि केसरी आज फॉरेस्ट ऑफिसर बन गया |
अब वह चाहता है कि उसकी दीदी अपनी नौकरी छोड़कर खुद का घर बसा ले | साधना अपनी नौकरी छोड़कर अपने भाई बहनों के साथ केसरी के सरकारी बंगले पर आ जाती है | उनके आते ही “भैरों” रिश्वत लेकर केसरी के बंगले पर आ जाता है ताकि केसरी उनके आपराधिक मामलों में दखल अंदाजी ना करें |
भैरों , “कालिया” का आदमी है | कालिया जंगल की संपदा को बेचकर काला धन कमाता है | वह रिश्वत भेज कर चाहता है कि नया फॉरेस्ट ऑफिसर केसरी बेईमानी के रास्ते पर चले | केसरी भी इसकी कोशिश नहीं करता कि “कालिया” बेईमानी छोड़कर ईमानदारी का रास्ता चुने |
जैसे ही केसरी रिश्वत लौटाकर कालिया के मनसूबो पर पानी फेरता है | वैसे ही केसरी का परिवार कालिया के निशाने पर या जाता है | उसके आदमी केसरी की छोटी बहन को भालू बनकर डराते हैं | उसके छोटे भाई को नशा करवाकर जंगल में छोड़ देते हैं और साधना को भी बदनाम करने की कोशिश करते हैं |
इससे केसरी अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर डर जाता है | वह अपने छोटे भाई बहनों को शहर अपने रिश्तेदारों के पास भेज देता है लेकिन साधना जिद करके उसी के पास रहती है | केसरी कालिया के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने पुलिस थाने जाता है लेकिन वहाँ के इंस्पेक्टर के कहने पर वह रिपोर्ट नहीं लिखाता |
फिर केसरी अपनी शिकायत लेकर मेयर के पास जाता है | मेयर उसकी मदद करने का आश्वासन देता है | वह अखबार के जरिए जनता को जंगल में क्या चल रहा है ? इसकी जानकारी देकर कालिया और जगनसेठ के बारे में भड़काना चाहता है ताकि आनेवाले इलेक्शन में लोग उसे वोट दें !
हालांकि , मेयर भी पहले कालिया और जगनसेठ का ही साथी रहता है पर जगनसेठ उसे बराबरी का दर्जा नहीं देता | इसीलिए फिर वह उससे अलग हो जाता है | अब केसरी के अख्तियार वाले जंगल में काम करने के लिए आनेवाले मजदूरों में एक मजदूर “जगतार” भी है | उसका हुलिया अपराधियों जैसा ही है |
इसलिए केसरी उसे कालिया का गुंडा समझ कर काम से निकाल देता है | उसी रात कालिया अपने आदमियों के साथ केसरी के बंगले पर धावा बोलता है | वह केसरी को जान से मारना चाहता है क्योंकि केसरी ने कालिया को सबके सामने चांटा मारा था | वह उसका बदला लेना चाहता है | हमले के वक्त साधना भी बहादुरी से अपने भाई का साथ देती है | उसके बहादुरी को देखकर जगतार उसकी तारीफ करता है और उसकी मदद भी ..
जगतार बहुत बहादुर है पर जेल से भागा हुआ मुजरिम भी .. फिर भी साधना उससे प्यार करती है | वह अपराधी है इसलिए केसरी उसे बिल्कुल पसंद नहीं करता | जगतार के कारण केसरी और साधना के रिश्ते में खटास भी आ जाती है |
जगन सेठ के मना करने के बावजूद कालिया फिर एक बार केसरी पर जानलेवा हमला करता है | इसमें उसका भाई “हरिया” भी शामिल है | जगतार फिर केसरी और साधना की मदद को आ जाता है | वह हरिया का कत्ल कर देता है | कालिया और जगतार दोनों एक दूसरे के हाथों घायल होकर अस्पताल पहुंच जाते हैं |
वहां पुलिस का पहरा लग जाता है | जगन सेठ और पुलिस ऑफिसर जगतार को अस्पताल से फरार करा देते हैं | कालिया का खून “भैरों” करता है लेकिन उसका इल्जाम जगतार पर लगा दिया जाता है |
इस बीच केसरी के फॉरेस्टवाले बंगले के कमरे की दीवार पर “साँप की कोटर ” यह शब्द लिखे मिलते हैं | इन्हें पिछले फॉरेस्ट ऑफिसर “सरन महतो” ने लिखा था जो था तो जगनसेठ और कालिया का साथी | फिर भी उन्होंने उसको खत्म कर दिया था | वह भी इस तरह की लगे की उसे किसी जंगली जानवर ने मारा है |
यह “साँप की कोटर” उनके बंगले के सामनेवाले पेड़ में ही थी | अब सरन महतो का यह शब्द लिखने के पीछे क्या उद्देश्य हो सकता है ? इस पर माथापच्ची करने के बाद केसरी के दिमाग में कुछ आता है | वह जाकर उस कोटर में टॉर्च की रोशनी डालता है | उसे वहाँ एक थैली दिखती है | वह उसे निकाल लेता है |
उसमें कालिया , भैरों , जगनसेठ , पुलिस ऑफिसर के खिलाफ पुख्ता सबूत रहते हैं | वह सबूत केसरी मेयर के पास पहुंचा देता है | केसरी को बाद में पता चलता है की , मेयर भी उन चोरों में से एक है | यह जानकर वह मेयर को मारना चाहता है | जगतार फिर उसे नाकामयाब कर देता है |
जगतार वह सबूत मेयर के पास से चुरा लेता है | जगन सेठ और मेयर को मिलने के नाम पर , मेयर के खिलाफ उसी के हाथ से सबूत लिखवा कर लेता है लेकिन जगतार ऐसा क्यों करता है ? और आखिर में जगतार ऐसा क्या करता है ? की जेल से भागा हुआ मुजरिम होने के बाद भी , सजाएआफ़्ता होने के बाद भी केसरी साधना के साथ उसकी शादी कर देता है |
यह राज तो आपको किताब पढ़कर ही जानना होगा | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ..
धन्यवाद !!!!!

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