फादर टेरेसा
आणि इतर वल्ली
डॉ शांतनु अभ्यंकर द्वारा लिखित
रिव्यू –
एक डॉक्टर के रोजमर्रा के जीवन में उनको मिलनेवाले पेशेंट , उनके रिश्तेदार , साथ काम करनेवाले डॉक्टर , नर्स , वार्ड बॉयज होते है | उनका जीवन इन लोगों के आसपास ही घूमते रहता है | इनमें से बहुत से व्यक्ति , अपनी आदतों , स्वभाव , बातों की वजह से एक दूसरे से अलग होते हैं |
उनके व्यक्तित्व में कुछ अलग सा टच होता है जो उनको बाकी लोगों से अलग करता है | ऐसे ही कुछ विशेष व्यक्तियों की बातें लेखक ने अपने कॉमेडी जॉनर में लिखी है | किताब पढ़ते-पढ़ते आप हंस-हंसकर लोटपोट हो जाओगे |
अब एक डॉक्टर होते हुए उन्होंने किताब कैसे लिखी ?ऐसा अगर आप पूछोगे तो जवाब है उनको लिखने का “कीड़ा” है | अपने दैनंदिन जीवन में उन्हें जब भी वक्त मिलता है | वह अपना लिखना शुरू करते हैं | वह भी अपने चिरपरिचित हस्ताक्षरों में नहीं क्योंकि उनकी लिपि वह खुद ही नहीं पढ़ पाते क्योंकि वह भी एक डॉक्टर है जिसके लिए डॉक्टर लोगों की राइटिंग प्रसिद्ध है |
वह इसका अपवाद कैसे हो सकते हैं ? इसीलिए वह कंप्यूटर का इस्तेमाल करते हैं | किताब के मुखपृष्ठ पर जीतने भी पात्र दिखाए गए है | उसके अलावा और भी लोग किताब में शामिल है | इन सब में हमें उनके “नानाजी” का किरदार सबसे अच्छा लगा | आपको कौन अच्छा लगा ? जरूर बताइएगा | प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – डॉक्टर शांतनु अभ्यंकर
प्रकाशक है – समकालीन प्रकाशन
पृष्ठ संख्या है – 130
उपलब्ध है – अमेजॉन और किंडल पर
यह एक डॉक्टर द्वारा लिखा कथा संग्रह है | ऊपर से उनपर जो दवाखाने मे इलाज के लिए आए है | लोग दुख में ही यहाँ आते हैं | ऐसे इन परीस्थितियों और दुःखी लोगों पर कॉमेडी टच के साथ लेख लिखना बहुत ही मुश्किल काम था पर किसी को भी दुख या तकलीफ पहुंचाए बगैर लेखक जो पाठको को बताना चाहते थे | उसमें वह कामयाब हुए हैं |
अब यह किताब पढ़कर लोगों को प्रश्न पड़ता है कि क्या यह सारे किरदार असली है ? क्या यह असल जीवन में लेखक को मिल चुके हैं ? तो उत्तर है | इनमें से बहुत उनकी कल्पना की उड़ान है तो कुछ उनको और उनकी पत्नी डॉक्टर रूपाली को अस्पताल में मिले हैं |
किताब जिस किरदार से शुरू होती है | वह है “फादर टेरेसा” | यह एक कॉमन कैरेक्टर है जो बहुत से अस्पताल मे मौजूद होता है | ऐसे ही नर्स पात्रो को देखकर लेखक ने “फादर टेरेसा” का निर्माण किया |
एक बूढी औरत जिसकी सबसे शिकायत रहती थी कि उन्होंने उसे फँसाया है | वह डॉक्टर के पत्नी की पेशेंट थी | “इंका कुलीओ” उन्हें पेरू देश में मिला था | डॉ. च्यायला उन्हें लखनऊ में मिले | तो “मास्टर और सैयद गल्ला” कॉलेज में मिले |
“नाना और बागुलबुआ” उनके कल्पना की उपज थे | “चक्रधर , चाफ़ेकर बंधु , प्रसू , प्राणसखा , कुंती , ते मूल यह सारे पात्र उन्हें अस्पताल में ही मिले | डॉक्टर एक लेखक होने के नाते एक अलग ही रंगीन चश्मे से इन सब किरदारों को देखते हैं | फिर वैसे ही रंग – बिरंगे रंग उनमें भरते हैं |
आइए , अब देखते है – इसका
सारांश –
एक अस्पताल में दो प्रसिद्ध नर्स थी | एक थी मदर टेरेसा तो दूसरी थी फादर टेरेसा | मदर टेरेसा नाम के जैसे ही स्त्री – सुलभ स्वभाव और देहयष्टि लिए हुई थी तो फादर टेरेसा स्त्री के भेस में एक पहलवान ही थी |
उसका बोलना और व्यवहार भी वैसा ही कड़क था | इसीलिए सब उसे “फादर टेरेसा” कहते थे | यही ज्यादा प्रसिद्ध थी | वह पेशेंट को आंखों से ही चुप करा देती थी | इससे जूनियर डॉक्टर तो डरते ही थे पर सीनियर डॉक्टर भी उससे दूरी बनाए रखते थे और बाकी सारी नर्स लोगों की तो वह मुखिया ही थी |
इस तरह पूरे हॉस्पिटल में उसी की सत्ता थी | इतना सब होने के बाद भी सब डॉक्टर यही चाहते थे कि ऑपरेशन थिएटर में यही उनको असिस्ट करें क्योंकि उसकी मौजूदगी में सारे काम टाइम टू टाइम होते थे |
सारी चीजे जगह पर मिलती थी | एक ही नजर में उसे पता चल जाता था कि कहां कौन सी चीज नदारत है ? फिर सारी चीजे जगह पर आने तक उसकी चिल्लाहट जारी रहती थी | इसको हर सर्जरी याद थी | कौन सा डॉक्टर कौन सी सर्जरी कैसे करता है ? यह भी याद था | यह बिना मांगे ही सर्जरी मे लगनेवाला सही इंस्ट्रूमेंट दे देती थी तो डॉक्टर को कोई टेंशन नहीं होता था |
डॉक्टर को ऑपरेशन के अलावा ऑपरेशन थिएटर में और किसी चीज पर ध्यान देने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती थी | चाहे कितना भी काम हो ! वह बिना थके कर लेती थी | वह भी बिना ट्रेनी नर्सों की मदद के बगैर ….
यह अपने काम में बहुत ही पक्की थी | मराठी में वह कहते हैं ना .. “काम में वह वाघ थी वाघ” | वह ट्रेनी नर्स लड़कियों पर सख्त नजर रखती थी | ना तो वक्त से पहले आना और वक्त से पहले जाना | ऐसा इसका नियम था | ट्रेनी नर्स भी इससे डर कर ही रहती थी |
बिना विवाह के माँ बननेवाली कुंवारी लड़कियों को अस्पताल में “कुंती” कहा जाता था | ऐसी लड़कियों के लिए उसके मन में कुछ भी दया नहीं थी | ऐसी लड़कियां पहले ही दुखी रहती है | इसकी बातों से और परेशान हो जाती थी | ऐसी इस फादर टेरेसा को किसी ने कोमल स्वभाव की बोला तो उसे गुस्सा आ जाता था |
उसे अखबार में आनेवाले वर्ड प्रॉबलम सुलझाने का भी शौक था | कभी-कभी उसकी ज्यादा होशियारी उसी पर भारी पड़ जाती थी | उसका हमेशा रेसिडेंट डॉक्टरो के साथ 36 का आंकड़ा रहा | सबने उसके स्वभाव के कारण उसके साथ सिर्फ प्रोफेशनल रिश्ते रखें | इमोशनल नहीं | इसीलिए शायद जब वह रिटायर हुई | उस दिन कोई भी उसकी विदाई पार्टी में शामिल नहीं हुआ | खाने में समोसा और चाय होकर भी….
एनेस्थिटिस्ट डॉक्टर कितना महत्वपूर्ण होता है | यह “प्राणसखा” इस अध्याय में बताया गया है | इनको टाइम पर ही बुलाया जाता है | यह लोग बहुत बिजी होते हैं | एक जगह से दूसरी जगह जाने की इन्हें हरदम जल्दी होती है | और तो और यह हमेशा फोन पर ही लगे होते हैं | अगर कभी – कबार उनकी जगह किसी और को बुला लिया जाए तो इन्हें उस डॉक्टर से जलन भी होती है |
एक बार पेशेंट को बेहोश करने के बाद यह ऑपरेशन के दूसरे कामों में मदद भी करते हैं | यह सर्जरीवाले डॉक्टर के साथ मिलकर कभी-कभी पेशेंट को बचाने के लिए प्रयत्नों की पराकाष्ठा भी करते हैं फिर भी अपयश आने पर लोग इन्हीं को दोष देते हैं |
“प्रसूची प्रसूती” एक विदेशी महिला की कहानी है जो है तो भारतीय मूल की पर रहती है अमेरिका में | वह एक एन.जी.ओ. में काम करती है | काम के सिलसिले में वह भारत के एक गांव में आई है | यही लेखक एक अस्पताल में अपनी प्रैक्टिस करते हैं |
इसी अस्पताल में प्रसू डॉक्टर के पास अपनी डिलीवरी के लिए आती है | वह डॉक्टर से बात-बात पर अमेरिका में लगनेवाले नियमों के बारे में पूछती है | अब उसे क्या पता की भारत में ऐसे नियम नदारत होते हैं | यहां पेशेंट संपूर्ण रूप से डॉक्टर पर निर्भर होता है | बस इन्हीं नियमों के चक्कर में वह डॉक्टर और उनके कर्मचारियों को तार के ऊपर की कसरत करवाती है |
“चाफेकर बंधु” पहले कभी हिंदू थे | बाद में धर्म परिवर्तन कर मुसलमान बन गए | जब लेखक ने पहली बार चाफेकर बंधु के आगे रहीम , नाजिम ऐसे नाम सुने तो वह तो शॉक ही हो गए थे | “चाफेकर बंधु” का व्यवहार भी अलग , भाषा भी अलग |
वह जब डॉक्टर के हॉस्पिटल में आते तो डॉक्टर के साथ-साथ सबका कुशल – मंगल पूछते | उनका पूरा परिवार ही डॉक्टर साहब का पेशेंट है | पहले डॉक्टर के पिताजी उनका इलाज किया करते थे | वह जनरल प्रैक्टिशनर थे | इसलिए सारे छोटे-मोटे ऑपरेशन वही कर लिया करते थे |
अब उनके गुजर जाने के बाद वह लेखक डॉक्टर के पास आते हैं | जब आते हैं तो रहने के इंतजाम से ही आते हैं | आधा घर ही साथ में उठाकर लाते हैं | आने के बाद दवाखाने के कम्पाउन्ड में ही खाना बनाना शुरू होता है | खाने की सुगंध पूरे दवाखाने में बिखरने लगती है |
डॉक्टर के बगैर उनका कोई भी इलाज पूरा नहीं होता | उनका दूसरे डॉक्टर पर विश्वास नहीं | इसलिए तसल्ली करने लेखक के पास आते हैं | किसी दूसरे दवाखाने में ट्रीटमेंट करने के लिए भी उनको लेखक साथ चाहिए होते हैं | जो भी हो “चाफेकर बंधु” के परिवार और लेखक के परिवार में एक अलग ही रिश्ता है | लेखक को उनकी मदद करके अच्छा लगता है | उनके मन के एक कोने में “चाफेकर बंधु” की एक अलग ही जगह है |
ऐसे ही मेडिकल कॉलेज में लेखक के सहपाठी रहे सैयद गल्लाह , कॉलेज में ही , मराठी में विशेषता लिए “मास्तर” जो नाटक का मंचन करते थे | जिन्होंने आज भी अपने नाटकों के माध्यम से पुराने सब लोगों को जोड़कर रखा है वह , डॉक्टर च्यायला जो पंजाबी होते हुए भी मराठी परंपरा के अती प्रशंसक है क्योंकि उनकी प्रियसी एक मराठी मुलगी थी |
जिसके कारण वह अभी तक अविवाहित रहे , ऐसे डॉक्टर | एक दादी अम्मा जो उसको उसके पति द्वारा फँसाये जाने की शिकायत लेकर डॉक्टर के पास आती है क्योंकि उसका पति उसके पहले चल बसा | ऐसे में उसके पति ने उसको फसाया | ऐसी दादी अम्मा और ऐसे ही और अतरंगी पात्रो से मिलने के लिए जरूर पढ़िए … “फादर टेरेसा”|
तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहीए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ….
धन्यवाद !!