DUNIYA FILMO KI BOOK REVIEW IN HINDI

दुनिया फिल्मों की
अशोक कुमार द्वारा लिखित
रिव्यू –
प्रस्तुत किताब श्रीमान अशोक कुमार द्वारा लिखित है | यह अशोक कुमार वह नहीं जिन्हें भारतीय फिल्मी जगत में “दादा मुनि” के नाम से जाना जाता है बल्कि यह एक शॉर्ट फिल्म मेकर है | यह फिल्मी दुनिया से जुड़े हैं |
इसीलिए इन्होंने इसी दुनिया से जुड़ा उपन्यास लिखा है जिससे हमें ढेर सारी जानकारी मिलती है कि फिल्मी इंडस्ट्री किस तरह काम करती है ? यह सफर उन्होंने सलिल नामक नायक द्वारा बताया है | यहाँ कब कौन तीस मार खां बन जाए और कौन राजा से रंक बन जाए और किसकी किस्मत के सितारे बुलंद हो जाए | कोई नहीं बता सकता |
यह दुनिया ऊपर से जितनी शानदार और चकाचौंध भरी है | उसके पीछे उतना ही अंधकार है | यहां कोई किसी का नहीं | प्रायः सब एक दूसरे से जलते हैं | पीठ पीछे पलटते ही गालियां देते हैं | युवतीयों का तो शारीरिक और मानसिक शोषण किया जाता है | जो इससे उभरी यहां टिक जाती है | जो यह नहीं सह पाई | बर्बाद होकर इस दुनिया को ही अलविदा कह जाती है जैसे कि प्रस्तुत उपन्यास में वर्णित “सुनंदा” |
बहुत सी नायिकाये अपनी फिल्म चलाने के लिए या नई फिल्म पाने के लिए अपने चरित्र का हनन तक स्वीकार करती है | इसके अलावा इंडस्ट्री का पुरुष उसे नोचने और खसोटने के लिए तैयार रहता ही है | कुछ ही वक्त पहले फिल्म इंडस्ट्री से जुडे “मी टू” , कास्टिंग काउच , विषयों ने फिल्म इंडस्ट्री की सत्यता को बाहर ला दिया था |
इसके अलावा गैंगस्टर की भी नजर इस इंडस्ट्री पर रहती है फिर भी यह इंडस्ट्री तग धर कर खड़ी है | अभी भी कुछ फिल्मकार सामाजिक विषयों पर फिल्म बनाकर समाज को अच्छाई से प्रेरित करने का काम करते हैं जैसे की हाल ही की अवॉर्ड विनिंग फिल्म “लापता लेडिज” का उदाहरण देख सकते है | हालांकि , आजकल बहुत ही कम या कहे , न के बराबर ऐसी फिल्में बनती है जिसे हम अपने बड़े बुजुर्गों के साथ बैठकर देख सकते है |
इसीलिए हमें न चाहते हुए भी पुरानी पिक्चर देखनी पड़ती है या भारतीय फिल्में ही देखना बंद कर देना पड़ा है | खैर , प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – अशोक कुमार
प्रकाशक है – नमन प्रकाशन
पृष्ठ संख्या है – 111
उपलब्ध है – अमेजन पर 
लेखक का जन्म उत्तर प्रदेश की झांसी में हुआ | उन्होंने अपनी B.S.C. की शिक्षा कानपुर से की | M.A. और L.L.B. मुंबई से की और टीवी प्रोडक्शन लंदन से .. वह एक शॉर्ट फिल्म निर्माता और निर्देशक है | वह बहुत से टीवी चैनलों में प्रोग्रामिंग चीफ रह चुके हैं | साथ मे वह पुणे और अहमदाबाद के फिल्म संस्थान में प्रोफेसर भी रह चुके हैं | वह एक कॉलमनिस्ट थे और हिंदी उर्दू पत्रिकाओं में उनके लेख प्रकाशित हो चुके हैं |
प्रस्तुत उपन्यास की कहानी 70 के दशक की पृष्ठभूमि पर लिखी गई है | लेखक के जीवन में राजेंद्र यादव जी का एक विशेष स्थान है | प्रस्तुत उपन्यास के लिए प्रेरणा भी इन्होंने ही लेखक को दी थी | इसीलिए इन्होंने यह उपन्यास भी उन्हीं को समर्पित किया है | आईए अब जानते हैं इस किताब का सारांश –
सारांश –
कहानी एक बड़े फिल्म स्टार यूसुफ के मेकअप रूम के साथ शुरू होती है | वह अभी एक किताब पढ़ रहा है | वह उसे पढ़ेगा , फिर चाय पिएगा | उसके बाद उसका कॉसट्यूम आएगा | फिर वह तैयार होकर शॉट के लिए जाएगा |
यह सब बताने के पीछे लेखक का शायद यही मकसद है कि बड़े स्टार्स के बड़े नखरे होते हैं | यूसुफ जो फिल्म कर रहा था , उस फिल्म का जो प्रोड्यूसर था | प्रस्तुत किताब का नायक सलिल इसी प्रोड्यूसर के यहां दिन-रात का नौकर था | यह प्रोड्यूसर नारंग था |
इसी फिल्म के एक शॉट के दरम्यान एक छोटा सा रोल करनेवाला अपना डायलॉग भूल जा रहा था | आखिर यूसुफ ने तंग आकर यह रोल सलिल से करवा लिया | सलिल झांसी शहर के एक छोटे से स्थान ललितपुर से आया था | पढ़ाई -लिखाई में उसका मन नहीं लगता था |
वह दसवीं में तीन बार फेल हो चुका था | चौथी बार भी फेल हो चुका तो सीधा मुंबई भाग गया | कुछ दिनों के स्ट्रगल के बाद उसे नारंग के यहां नौकरी मिल गई | उसको नारंग के यहां काम दिलवाने से लेकर तो पहली पिक्चर मिलने तक रजाक नाम के एक लड़के ने उसकी बहुत मदद की पर स्टार बनने के बाद सलिल उसे भूल गया |
सलिल के घरवालों का नजरिया फिल्मों को लेकर कुछ खास नहीं था | यूसुफ ने नारंग से कहकर सलिल को खाना बनाने के लिए रख लिया लेकिन सलील , यूसुफ का बावर्ची नहीं बल्कि ड्राइवर बनना चाहता था ताकि उसे शूटिंग देखने का मौका मिले और वह सेट पर मौजूद रह सके पर यह हो न सका और उसने जानबूझकर यूसुफ के घर से अपनी छुट्टी करवा ली तब से शुरू हुआ उसका स्ट्रगल….
एक पानवाले ने उसकी कुछ दिनों के लिए मदद की | उसके बाद उसकी पहली स्क्रीनिंग रजाक की मदद से ही हुई | हीरानंदानी प्रोड्यूसर था | उसकी पिछली फिल्म फ्लॉप गई | इसीलिए उसे पैसे की तंगी से गुजरना पड रहा था | इसी से तारा मिलने के लिए आया | साथ में माधुरी नाम की खूबसूरत लड़की को भी लाया | तारा फाइनेंस ब्रोकर था , यानी वह फाइनेंसरों से प्रोड्यूसरों को पैसा उधार दिलवा देता था |
इसके बदले तारा को 2% कमीशन मिलता था | तारा इंडस्ट्री के छोटे-मोटे सारे काम करवा लेता था | इसलिए सारे लोग उसे और वह इंडस्ट्री को अच्छे से जानता था |
इसी तारा ने शिमला की रहनेवाली खूबसूरत और रईस लड़की सुनंदा को फिल्मों में काम करने का सपना दिखाकर उसे बर्बाद कर दिया | रईस सुनंदा गरीबी और बदकिस्मती की मौत कब मरी ? किसी को पता भी नहीं चला !!!
प्रोड्यूसर नारंग ने स्टार युसूफ खान को लेकर जो पिक्चर बनाई थी | वह फ्लॉप रही | युसूफ खान की अब उम्र ढलने लगी थी और इस फ्लॉप के बाद इंडस्ट्री उससे कतराने लगी थी | इस फ्लॉप पिक्चर के चलते नारंग भी बर्बाद हो गया था |
इधर सुपरस्टार यूसुफ का करियर खत्म हुआ तो उधर नया अभिनेता चंचल रातोरात स्टार बन गया | उसकी फिल्म के डायरेक्टर और लेखक के भी भाव बढ़ गए | फिल्म इंडस्ट्री में अब नया लड़का और नई लड़की को लेकर फिल्म बनाने का ट्रेंड चल पड़ा था | इसी के तहत अब जब चंचल की तारीख मिलना मुश्किल हो गई तो , फिर से नए लड़के सलिल को ढूंढा जाने लगा |
प्रोडक्शन में काम करनेवाला रजाक , सलिल को दीवान से मिलवाने लेकर आया | दीवान ने अपनी फिल्म में सलिल को पहला ब्रेक दिया | दीवान ने सलिल के साथ तीन साल का कॉन्ट्रैक्ट साइन करवा लिया | वह इसका उल्लंघन न करें इसके लिए दीवान ने , सलिल के सेक्रेटरी के रूप मे अपना ही आदमी रखा |
दीवान के इस फिल्म में आशादेवी नाम की उम्र दराज हीरोइन थी | यह फिल्म हिट हुई और सलिल स्टार बन गया | अब उसके पास पैसे लेकर फिल्म मेकर्स आने लगे | सलिल ने तो कोई कांट्रेक्ट नहीं तोड़ा | अलबत्ता , उसने सेक्रेटरी ने दीवान का विश्वास जरूर तोड़ा | सेक्रेटरी ने सलिल से दूसरे भी कॉन्ट्रैक्ट साइन करवाए क्योंकि हर कांट्रेक्ट में से 15% सेक्रेटरी को मिलता था |
अब सलिल कामयाबी की एक-एक सीढ़ियां चढ़ने लगा और सलील से सलिलजी हो गया | तो उधर एक गैंगस्टर के चक्कर में और म्यूजिक डायरेक्टर और म्यूजिक कंपनी के मालिक की दुश्मनी के चक्कर में , चंचल का करियर तबाह हो गया |
फिल्म इंडस्ट्री में फिल्म पत्रकारों का भी एक खास रोल होता है | संक्षेप में , यहां सब एक दूसरे से जुड़े हुए होते हैं | एक नई पत्रकार ने चंचल से ऐसा सवाल पूछा जिसका जवाब वह नहीं देना चाहता था फिर भी दोबारा पूछने पर उसने उस पत्रकार को एक थप्पड़ रसीद कर दिया | तो सारे पत्रकारों ने चंचल को बॉयकोट कर दिया |
अब एक-एक कर के पूरी फिल्म इंडस्ट्री ने पत्रकारों को भी बॉयकोट कर दिया | अब कोई किसी के यहां नहीं जा रहा था | ऐसे में दीवान एक नई पिक्चर बना रहा था | उसे इस फिल्म के लिए लाइमलाइट चाहिए था |
इसलिए उसने एक पत्रकार को बुलाकर अपनी फिल्म के लिए एक इंटरव्यू दिलवाया | इससे सारे असोसीएशन दीवान से चिढ़ गए | फिल्म इंडस्ट्री में सबकी अपनी असोसीएशन होती है जैसे कि अभिनेताओं की ,निर्देशकों की , प्रोड्यूसरों की म्यूजिकवालों की इत्यादि …
दीवान के आगे किसी की एक न चली और सलिल की दूसरी पिक्चर भी हिट हो गई | अब तो वह पूरा स्टार बन गया और इसी के साथ उसमें स्टार के नखरे भी आ गए | उसके गांव ललितपुर में सबको पता चल गया कि वह फिल्म – स्टार बन गया है | उसके पिता श्यामाप्रसाद उससे मिलने मुंबई आए | उसकी अजीब सी लाइफस्टाइल उन्हें कुछ अजीब लगी | अब तो बड़ी गाड़ी और ढेर सारे पैसे देखकर वह भी अपने बेटे को कामयाब समझने लगे फिर भी उन्हें अभी तक समझा ही नहीं की उनका बेटा आखिर करता क्या है ?
सलिल के पहले फिल्म की हीरोइन आशादेवी ने उभरते स्टार सलिल के साथ नजदीकियां बढ़ाई थी क्योंकि उसकी अब उम्र हो चुकी थी और वह खुद को सेटल करना चाहती थी | वह सलील के साथ शादी करना चाहती थी पर अब दोनों की दूसरी फिल्म भी सुपरहिट हो चुकी थी |
इसी के साथ उसने शादी का विचार भी त्याग दिया और करियर में फोकस करना शुरू कर दिया था क्योंकि वह अब भी स्टार थी और सलिल तो स्टार बन ही चुका था | आखिर में वह भी उन्हीं बातों को दोहराता है जो हमने सारांश के शुरुआत में बताई थी | बस अब सलिल की जगह बदल चुकी थी |
वह अब स्पॉट बॉय नहीं | स्टार था ..!!! इसके अलावा भी उपन्यास में फिल्म इंडस्ट्री की असलियत दिखाते हुए कई चेहरे हैं | अब आप पढ़ कर ही जानिए कि कौन यहां टिक पाया ? कौन नहीं ? कौन बर्बाद हो गया ? कौन आबाद ? जरूर पढ़िएगा | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहीए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए …
धन्यवाद !!

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