सुधा मूर्ति द्वारा लिखित दूसरी किताब है – डॉलर बहु
रिव्यु –
यह ऐसे भारतीयों की कहानी है जो डॉलर को ज्यादा महत्व देते है | उनके नजर में भारत में रूपया कमानेवाले इमानदार लोग किसी काम के नहीं होते | भारत के कुछ लोग सोचते है अमेरिका कुबेर का देश है | वहां नौकरिया है , सुख सुविधाये है | उतने ही काम में ज्यादा पैसे देनेवाला डॉलर है | जो भारतीय वहां जाते है , वहां की चमक -दमक देखकर वापस आना नहीं चाहते | हमारे देश के पास भी कुछ ख़ास नहीं है जो उन्हें वापस बुला सके | लेखिका की भाषा में कहे तो वहां जाने के लिए ढेरो रास्ते है लेकिन वापस बुलाने के लिए एक भी नहीं | इस कहानी में डॉलर का रेट चालीस रूपया बताया है तो कहानी के सन्दर्भ में हम एक डॉलर यानि चालीस रूपया ही पकड़ेंगे |
डॉलर के भारतीय जीवन में क्या महत्व है यह बतानेवाली इस किताब की लेखिका है –
मूल लेखिका – सुधा मूर्ति ( कन्नड़ में )
मराठी अनुवाद – उमा वि. कुलकर्णी
प्रकाशक – मेहता पब्लिशिंग हाउस
पृष्ठ संख्या – १६०
उपलब्ध – अमेज़न पर ( कन्नड़ , अंग्रेज़ी ,मराठी , गुजराती )
अमेरिका में रहनेवाले भारतीयों के मन में डॉलर को लेकर क्या भावनाए है | वह इस कहनी में बखूबी बताया गया है | इस कहानी की नायिका गौरम्मा का ही सारे पात्रो के साथ किसी न किसी रूप में सम्बन्ध आता है | वहां के भारतीयों के सुख – दुःख , उत्साह – निरुत्साह , वहां रहने के लिए अलग – अलग कारण , हमारे और उनके संस्कृति का फरक गौरम्मा की दृष्टी से लेखिका ने दिखाया है |
सारांश –
गौरम्मा साधी नौकरी करनेवाले व्यक्ति की पत्नी है जिसकी वजह से उसे हमेशा ही पैसो की कमी बनी रहती है | बच्चो के बड़ा होने के बाद बड़ा बेटा पढ़ लिखकर माँ की आशा के अनुरूप अमेरिका जाता है | वहां स्थायिक होने के लिए वह अपने ही देश की कंपनी के साथ धोका करने से भी पीछे नहीं हटता |
परिणामी, वह अनिवासी भारतीय बनकर डॉलर कमाता है | अपने माँ के सपने पुरे करने में मदद करता है | इसकी ही बीवी गौरम्मा को ज्यादा अच्छी लगती है क्योंकि वह वहां से डॉलर भेजती है |
इसके विपरीत गौरम्मा की दूसरी बहु और बेटा साधी नौकरी कर के रूपया कमाते है | वह दोनों कितना भी करे गौरम्मा की गिनती में कभी नहीं आते | रूपया कमानेवाली बहु उसकी कितनी भी मन से सेवा करे वह उसकी कभी दखल नहीं लेती | हर बार डॉलर और रुपयों की तुलना से विनीता ( गौरम्मा की दूसरी बहु ) मनोरोगी होने लगती है |
इसके ही कुछ दिन पहले गौरम्मा अपनी डॉलर भेजनेवाली बहु की डिलीवरी के लिए अमेरिका जाती है | वहां ऐसा क्या होता है की अब गौरम्मा को रुपये वाली बहु की , पोते , बेटे की याद आने लगती है ?
लेकिन गौरम्मा का यह डॉलर प्रेम उससे उसका बुढ़ापे का सहारा छिनकर दूर ले जाता है | आखिर गौरम्मा की नजर में रूपया ही जीतता है पर क्यों ?
इस क्यों का जवाब जानने के लिए इस किताब को जरूर पढ़िए |
पैसो के आगे अपने हितचिंतको को कभी कम ना आंके |
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