धर्मयुद्ध
वेद प्रकाश शर्मा द्वारा लिखित
रिव्यू –
धर्मयुद्ध यानी सच्चाई और अच्छाई के लिए किया गया युद्ध | ऐसा ही युद्ध इस बार विजय और विकास के बीच छिड़ा हुआ है | “विजय – विकास” भारतीय खुफियाँ विभाग के अव्वल नंबर के जासूस | मजलिस्तान की युवा पीढ़ी अपनी ही देश की आजादी के लिए लड़ रही है | अपने ही देश में बैठे तानाशाह के खिलाफ.. जिस तरह एक समय मे हमारे देश में भगतसिंह , राजगुरु आदि लड़ रहे थे ब्रिटिशों के खिलाफ ..
मजलिस्तान के युवाओं के साथ है “विकास” तो मजलिस्तान पर हुकूमत करनेवाले देश के साथ है “विजय” क्योंकि वह देश “भारत” का मित्र देश है |
अगर विकास मजलिस्तान का साथ देगा तो भारत की साख पर आंच या सकती है | विजय यह कैसे होने दे ? इसीलिए उसका मिशन है “विकास को रोकना”|
विजय जो दिमाग से काम लेता है | बहुत दूर की सोच कर जाल बिछाता हैं | तो दूसरी तरफ है “विकास” जो सिर्फ ताकत के बलबूते सारी लड़ाइयां जितना चाहता है | दिमाग बिल्कुल नहीं लगाता | देखना है कि इस लड़ाई मे कौन जीतता है ? विजय या फिर विकास ..
प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – वेद प्रकाश शर्मा
प्रकाशक है – रवि पॉकेट बुक्स
पृष्ठ संख्या है – 343
उपलब्ध है – अमेजॉन पर
सारांश –
मजलिस्तान के वर्तमान राष्ट्रपति “सादात” है | वह लोगों द्वारा चुने गए हैं | इन्होंने “इबलीस” को मजलिस्तान की सेना का जनरल बना दिया है | इसी इबलीस ने उनके साथ धोखा किया | वह विदेशी सेना के साथ मिल गया | इस लालच में कि अगला “राष्ट्रपति” वही होगा |
उसने और विदेशी सेना के मुख्य “तोंबो , गार्जियन”ने मिलकर “राष्ट्रपति सादात” का कत्ल कर दिया | इसके पहले राष्ट्रपति सादात ने अपनी बेटी मुमताज ,पत्नी और मेजर हाशमी को वहां से जाने के लिए मजबूर कर दिया था |
राष्ट्रपति सादात ने मजलिस्तान के विद्रोहियों को कुचलने के लिए विदेशी सेना बुलाई थी | उन्हें अपना मित्र मानकर .. लेकिन उन्हें क्या पता था ? कोई भी बड़ा देश किसी भी छोटे देश का मित्र नहीं बन सकता |
हां , अपना उल्लू सीधा करने के लिए ऐसा दिखावा जरूर कर सकता है | वह राष्ट्रपति सादात के कहने पर यह आ तो गए लेकिन वापस जाने के लिए शर्ते रखने लगे | इन शर्तों को जनरल इबलीस ने स्वीकार किया जबकि राष्ट्रपति सादात ने नहीं और इसी का परिणाम आज उनको भुगतना पड़ रहा था |
विदेशी सैनिक और इबलीस के सैनिकों ने न सिर्फ राष्ट्रपति भवन में तबाही मचाई बल्कि पूरे मजलिस्तान की आम जनता पर भी कहर ढाया |
इन्हीं में से सताये हुए कुछ लोग बाद में मुमताज के संगठन “रक्ततिलक” में जुड़ जाते हैं जो मजलिस्तान की आजादी की लड़ाई छेड़ देते हैं | सादात को कत्ल करने के बाद , दूसरे दिन सारे अखबारों में यह खबर छपाई जाती है की , मजालिस्तान में सैनिक विद्रोह हो गया |
दुनियाँ को यह बताया गया कि जनरल इबलीस के नेतृत्व में सेना और वहां के लोगों ने अत्याचारी “सादात” के विरुद्ध विद्रोह किया | “सादात” बागियों की गोलियों से मारे गए | दुनिया भर के अखबारों में वही छापा गया जो जनरल इबलीस और उसके बॉस चाहते थे |
मजलिस्तान से सच्ची खबर कभी बाहर ही नहीं निकल सकी | इसीलिए पूरी दुनिया उसी को सच मानने लगी जो इबलीस सरकार सब को बता रही थी | असल मे मजलिस्तान में जैसी परिस्थितियां थी | एकदम उसके उलट दुनिया को दिखाई गई |
इबलीस को राष्ट्रपति बनने में जिस देश ने मदद की | उसका नाम “सेमिनार” था | सेमिनार , भारत का मित्र राष्ट्र था | इसीलिए मजलिस्तान के “रक्ततिलक” के विद्रोहियों को शांत करने के लिए भारत से मदद मांगी गई |
मदद के लिए “विकास” को भेजा गया | “विकास” वहां जाते ही अपने काम में लग गया | उसने “रक्ततिलक” के “ईशाक” को अपने कब्जे में लेकर बहुत ही बुरी तरह टॉर्चर किया | इससे इशाक की मौत हो गई |
ईशाक को विकास द्वारा मारे जाने की खबर पाकर मुमताज गुस्से से पागल हो जाती है | वह विकास को जान से मारने का प्रस्ताव रखती है लेकिन उसका सरदार मेजर हाशमी और हाशमी से भी बड़ा सरदार कहता है कि अगर विकास को खत्म करने जाएंगे तो वही सबको खत्म कर देगा|
इससे अच्छा है कि उसे ही हमारी तरफ मोड़ दिया जाए | विकास भारतीय वैज्ञानिक “डॉक्टर भसीन” को भी रक्ततिलक के कैद से छुड़ाकर भारत रवाना करता है | रक्त तिलक के सबसे बड़े सरदार के साथ विकास का सामना होता है |
वह विकास पर भारी पड़ता है | विकास को रक्ततिलक के हेड क्वार्टर लाया जाता है | वहां उसका सामना मुमताज से होता है और मजलिस्तान की असली परिस्थितियों से भी ..
“डॉक्टर भसीन” ही विकास को बताते हैं कि रक्ततिलक के लोग कितने अच्छे हैं | साथ मे मजलिस्तान का आंखों देखा हाल भी.. | इधर इबलीस , कर्नल तोंबो और गार्जियन चाहते थे कि डॉक्टर भसीन को वापस लाने के चक्कर में विकास पूरे रक्त तिलक को खत्म कर दे |
यह सोचकर वह एक तीर से दो शिकार करना चाहते थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ | डॉक्टर भसीन को भारत भेज कर विकास का मिशन पूर्ण हो चुका था | अब वह खुलकर रक्त तिलक का साथ दे रहा था | इसी के तहत उसने राष्ट्रपति भवन में ऐसा कहर बरपाया कि राष्ट्रपति इबलीस , कर्नल तोंबो और गार्जियन के होश उड़ गए |
विकास अब खुलकर “जंग का ऐलान” करना चाहता था | वह सेमिनेरियन सेना को इतना विवश कर देना चाहता था कि उनका देश उन्हें वापस बुला ले | अब तक विकास को यह पता नहीं था की दुश्मन की ताकत बहुत ज्यादा है |
दुश्मन सेना के पास एक बख्तर बंद गाड़ी है जिसे कोई भी काबू नहीं कर सकता | उस गाड़ी को किसी भी तरह से ,कोई भी हथियार नेस्तनाबूत नहीं कर सकता |
इसी गाड़ी की वजह से पिछली बार इबलीस सरकार जीत गई थी और आम जनता हार गई थी | दुश्मन की इस ताकत को जानने के बाद विकास इसे अपने कब्जे में करना चाहता है लेकिन इस गाड़ी को कब्जे में करना इतना आसान भी नहीं | अब इस गाड़ी को विकास और उसके साथी कब्जे में कैसे करते हैं ? इस गाड़ी की क्या-क्या खूबियां है ? यह तो आपको किताब पढ़कर ही जानना होगा |
जब यह खबर “विजय” तक पहुंचती है तो वह चिंतित हो जाता है क्योंकि इबलीस सरकार का विरोध मतलब भारत सरकार का विरोध ! अब विजय यह कैसे होने दे ? विजय को आनन – फानन मे मजलिस्तान भेजा जाता है ताकि वह विजय को रोक सके |
विजय अपने बुद्धी से, उनकी ताकत बनी उस बख्तर बंद गाड़ी को ही उनकी कमजोरी बना देता है | विकास और उसके चार साथी विजय के आगे सरेंडर कर देते हैं | फिर भी विजय से बचते-बचाते कुछ लोग अपने हेड क्वार्टर पहुंच ही जाते हैं |
हेड क्वार्टर मे स्पर्श सुरंगो का महंगा सामान देखकर विकास को सरदार पर शक होता है | इस शक के तहत वह सरदार का पीछा करता है | तब उसे पता चलता है कि वह सरदार कर्नल गद्दाफ़ी के फेस मास्क में उसका गुरु “अलफांसे” है |
“अलफांसे” की यह खासियत है कि वह पैसों के लिए किसी का भी , कोई भी काम कर लेता है | इस बार वह पश्चिमी देशों के लिए काम कर रहा है | अब पश्चिमी देश मजलिस्तान से क्या चाहता है ? इसका जवाब “राष्ट्रपति सादात” के निर्णयों मे छुपा हुआ है |
जब सादात राष्ट्रपति बने | वह पश्चिमी देश को अपना दुश्मन मानते थे और सेमिनार राष्ट्र को अपना दोस्त | इन के शासनकाल में पश्चिमी देश के जासूस छापामार युद्ध लड़ने लगे थे | उनके विद्रोह को शांत करने के लिए , सादात ने “सेमिनार” की मदद ली |
सेमीनार की सेना चूंकि बड़ी संख्या में आई थी | उन्होंने पूरे विद्रोहियों को खत्म कर दिया | “रक्ततिलक” के पास देश पर मर मिटने वाले युवक थे पर उनके पास पैसा और हथियार नहीं थे |
अपनी सत्ता फिर से वापस पाने के लिए पश्चिमी देशों ने रक्त तिलक का उपयोग किया | अब अगर मजलिस्तान इबलीस सरकार से मुक्त हो भी गया तो पश्चिमी देशों का गुलाम बनेगा | यह सारी सच्चाई बताने के बाद “अलफांसे” अपने पैसे लेकर वहां से रफू चक्कर हो जाता है |
विकास को “कर्नल गद्दाफ़ी और मेजर हाशमी” की सच्चाई पता चलती है | विकास उन्हें मार देता है | एकदम आखिर की आर या पार वाली लड़ाई के पहले ही विजय , विकास को घायल कर अपने साथ वापस ले जाने में कामयाब होता है |
अब आप पढ़कर यह जाने की क्या विकास के बगैर लड़ाई कामयाब रही या नहीं ? क्या मजलिस्तान की जनता आझाद हुई या नहीं ? क्या विकास को वापस ले जाकर विजय ने अच्छा किया या नहीं ? वह अल्फानसे की कौन सी तरकीब है जिससे इबलीस , कर्नल तोंबो और गार्जियन एक दूसरे को खत्म कर देते हैं |
पढ़कर जरूर जानिएगा | जानिएगा की धर्मयुद्ध में किसकी जीत होती है ? तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ..
धन्यवाद !