धर्मपुत्र
आचार्य चतुरसेन “शास्त्री” द्वारा लिखित
रिव्यू –
आचार्य चतुरसेन शास्त्री इनका जन्म 26 अगस्त 1891 में हुआ | उनका जन्मस्थान उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर मे चंदोख नाम के गांव में है | उन्होंने स्कूली पढ़ाई सिकंदराबाद से की | बाद में उन्होंने जयपुर के संस्कृत कॉलेज में दाखिला लिया | उसी कॉलेज से उन्होंने सन् 1915 में आयुर्वेद विषय मे “आयुर्वेदाचार्य” और संस्कृत मे “शास्त्री” की उपाधि प्राप्त की | आयुर्वेद की और एक डिग्री उन्होंने दूसरे कॉलेज से भी प्राप्त की |
वह सन 1917 में , लाहौर के “डी. ए. वी.” कॉलेज में आयुर्वेद के सीनियर प्रोफेसर बने | उसके बाद दिल्ली को ही उन्होंने अपना स्थायी बसेरा बना लिया | यहीं उन्होंने अपना दवाखाना खोला | ” हृदय की परख ” यह उनके द्वारा लिखी गई पहली पुस्तक सन 1918 में प्रकाशित हुई | इसके बाद उन्होंने कई पुस्तके लिखी जिसमें शामिल है – “वयं रक्षामः ” , ” सोमनाथ “, इन किताबों का विडिओ हमारे यूट्यूब चैनल और रिव्यू वेबसाइट पर उपलब्ध है |
उसे भी आप जरूर देखे | उन्होंने अनेक ऐतिहासिक और सामाजिक उपन्यास लिखे | कहानियों की रचना की | आयुर्वेदाचार्य होने के नाते उन्होंने आयुर्वेद पर आधारित अनेक स्वास्थ्य संबंधी पुस्तकी लिखी | जब वे अड़सठ (68 ) वर्ष के थे तब उनका देहांत हुआ | वह तारीख थी 2 फरवरी 1960 | वह बहुविध प्रतिभा के धनी थे | उनकी यह प्रस्तुत पुस्तक स्वातंत्र्यपूर्व भारत में प्रचलित धर्म बंधनों और छुआछूत पर आधारित है | प्रस्तुत पुस्तक के –
लेखक है – आचार्य चतुरसेन “शास्त्री”
प्रकाशक है – राजपाल एण्ड संस
पृष्ठ संख्या है – 126
उपलब्ध है – अमेजन पर
चूंकि लेखक एक डॉक्टर है | इसीलिए शायद इसके दो मुख्य पुरुष पात्रों में से एक आयुर्वेदाचार्य ही है और वह भी दिल्ली में ही प्रैक्टिस करते हैं | कहानी की शुरुआत में “भूमिका” इस सेक्शन में उन्होंने बताया कि, दिल्ली की एक प्रतिष्ठित पार्टी में लेखक को भी बुलाया गया था | यह पार्टी एक युवक लेखक के लिए किसी प्रतिष्ठित प्रकाशक ने दी थी |
पार्टी की चमक दमक देखकर लेखक को लगा कि, ऐसी पार्टी उनके लिए होनी चाहिए न की उस युवक के लिए लेकिन जैसे ही लेखक ने उस युवक की किताबे पढ़ी | उनकी सोच ही बदल गई | भारत देश विविधताओ से भरा है | यहाँ अलग-अलग धर्म के लोग बसते हैं | वह एक – दूसरे से बहुत प्यार करते हैं | मिल जुल कर रहते हैं लेकिन धर्म के नाम पर कुछ लकीरे उन मे भी खींची होती है |
खैर , अब लोग ब्रॉड माइन्डिड हो गए हैं | आज से 80 -90 साल पहले लोग अपने धर्म का कड़ाई से पालन करते थे | कुछ गिने-चुने ,पढ़े – लिखे लोग जो विदेश जाकर आए हैं | उनमे ही प्रगत विचारशिलता देखी जाती थी | यह कहानी उसी जमाने की है जहां एक अलग धर्म का बच्चा दूसरे धर्म के पिता के यहां पलता है और अपने ही पिता के धर्म का कट्टरता से पालन करता है |
वह जन्म से जिस धर्म का है उसका गुस्सा करता है | क्या होता है ?जब उसे अपने असलियत के बारे में पता चलता है ? कहानी में सम्मिलित सारे पात्र इन परिस्थितियों को कैसे हैंडल करते हैं ? जानने के लिए किताब को जरूर पढ़िए |
आइए , इसी के साथ देखते हैं इसका सारांश ..
सारांश –
अमृतराय एक डॉक्टर है और दिल्ली शहर में प्रैक्टिस करते हैं | मई के गर्मी के दिनों में उनके क्लीनिक में एक बूढ़े नवाब और उनकी पोती आती है | पोती शादी से पहले मां बनने वाली है | वह लड़की जिस से शादी करना चाहती है | वह राजसी परिवार से नहीं है | लड़की भी अपने दादा को इस उम्र में परेशानी में नहीं डालना चाहती |
इस लड़की का नाम शहजादी हुस्नबानो है | डॉक्टर अमृतराय के पिता और नवाब मुश्ताक अहमद दोनों पक्के दोस्त थे | अमृतराय के विदेश में पढ़ाई का खर्चा भी नवाब साहब ने ही उठाया था | इसीसे नवाब साहब डॉ अमृतराय की तरफ मदद की आशा लेकर आते है |
मदद यह थी की जैसे ही हुस्नबानो को बच्चा होगा | राय दम्पत्ति उस बच्चे को अपने बेटे के तौर पर दुनिया के सामने लाएंगे | लोगों को लगेगा कि यह उनका ही बच्चा है | फिर उस बच्चे के नामकरण के दिन तोहफे में नवाब साहब अपनी सारी दौलत इस बच्चे के नाम कर देंगे | जैसा तय होता है वैसा ही हो जाता है |
डॉ.अमृत राय और उनकी पत्नी उस बच्चे को अपना लेते हैं | बच्चे के जन्म के दौरान अमृतराय ,उनकी पत्नी और हुस्नबानो सारे लोग एक ही जगह पर रहते हैं | इस दरम्यान डॉ. अमृतराय हुस्नबानो के सौन्दर्य पर मोहित हो जाते है | हुस्नबानो और अमृतराय की पत्नी , दोनों ही इस बात को भाप लेती है |
हुस्नबानो , अमृतराय को समझाती है की , यह बात गलत है | वह उनकी पत्नी को दुखाना नहीं चाहती | अमृतराय अभी उसे सिर्फ अपनी बहन के तौर पर देखे | अमृतराय कुछ दिन के लिए मोह के जाल में फंस जाते हैं लेकिन उन्हें जल्दी ही अपने गलती का एहसास हो जाता है | वह हुस्नबानो से अपने किए की माफी मांगते हैं | वही अमृतराय की पत्नी भी अपने पति से एक सवाल भी नहीं करती | इससे भी वह शर्म से पानी-पानी हो जाते हैं |
बेटे के जन्मउत्सव के बाद शहजादी हुस्नबानो की शादी , उसके दादाजी के मतानुसार किसी नवाब के साथ हो जाती है | वह दिल्ली शहर छोड़कर अपने पति के घर चली जाती है | शहजादी हुस्नबानो के ससुराल के किस्से आप को खूब हसाएंगे तो कभी कभी यह आप को बहुत गंभीर लगेंगे |
इधर राय दंपत्ति दिलीप के अलावा और दो बेटों और एक बेटी के माता – पिता बन जाते है | अब दिलीप बड़ा हो गया है | चूंकि वह हिंदू धर्म में पला – बड़ा है | इसकारण वह इसी धर्म का कड़ाई से पालन करता है | वह पत्नी भी पुराणों में वर्णित स्त्रियों के जैसी संस्कारी और घरेलू चाहता है | न कि पढ़ी – लिखी और मॉडर्न विचारों की |
उसके जन्म की असलियत अमृतलाल और उनकी पत्नी को पता है | जब उसके विवाह की बात आती है तो वह दोनों दोराहे पर खड़े होते हैं | उन्हें समझ में नहीं आता कि वह क्या करें ? वह उसकी शादी उसकी जन्म वाली जाति में करें या फिर अमृतलाल की जाती में करे ? अगर समाज को उनके बेटे का सच पता चल जाएगा तो इनको भी समाज से निष्कासित किया जाएगा |
इसलिए अमृतलाल और उनकी पत्नी निश्चय करते है की वह उनकी ही बिरादरी में किसी पढ़े – लिखे खानदान मे दिलीप की शादी करा देंगे | दिलीप की शादी के लिए जो लड़की पसंद कर जाती है वह दिलीप को पसंद नहीं क्योंकि वह उसके विचारों के अनुरूप नहीं |
वह माया देवी के सिर्फ बाहरी रूप को देखकर ही उसके बारे मे अपनी राय कायम करता है | वह उसके अंतर्मन को जानने की कोशिश ही नहीं करता | दिलीप अपनी जिद पर ही अड़ा रहता है | माया देवी से दिलीप के घर के सारे लोगों को लगाव हो जाता है |
इसीलिए फिर अमृतलाल की पत्नी अपने दूसरे बेटे सुशील के लिए माया देवी का हाथ मांगती है |
इस बीच स्वतंत्रता की लड़ाई छिड़ जाती है | दंगे भड़क उठते हैं | सुशील एक कम्युनिस्ट है | देश मे हुए कुछ गिरफ्तारियों के लिए उसे जिम्मेदार मान लिया जाता है | अमृतराय के दोनों बेटों को पुलिस पकड़ कर ले जाती है | अब हुस्नबानो भी उम्र दराज होकर वापस दिल्ली लौट आती है | दंगों के चलते उसके घर पर हमला होता है तो अमृतलाल और उनकी पत्नी अपनी जान की बाजी लगाकर उसको बचा लेते हैं |
इन सारी घटनाओं के बीच दिलीप को अपनी सच्चाई पता चल जाता है | उसको अपनी सोच पर बड़ा पछतावा होता है | उसे यह भी पता चलता है कि मायादेवी अभी भी सिर्फ उसी से प्यार करती है | पर क्या उसकी सच्चाई जानने के बाद मायादेवी और उसके पिता विवाह के लिए मान जाएंगे | क्या वह अभी उसकी असली माँ हुस्नबानो के साथ रहेगा ? ऐसे ही और सवालों के जवाब पाने के लिए यह किताब जरूर पढे | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ..
धन्यवाद !!
Wish you happy reading …….!!