देवी चौधरानी
बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा लिखित
रिव्यू –
देवी चौधरानी 19 वी सदी में लिखा उपन्यास है | तब भारत पर अंग्रेजों का शासन था | तब के भारत की सामान्य नारी असहाय होती थी | पति को परमेश्वर मान उसी के इशारों पर चलती थी | ऐसे ही एक असहाय और सामान्य नारी की यह गाथा है जो सामाजिक कुचक्र और प्रताड़ना का प्रतिकार करने के लिए एक निर्दोष – निरीह नारी से “देवी चौधरानी” बनी |
देवी चौधरानी ही प्रफुल्ल है | उसका पूरा जीवन एक ही रात में बदल जाता है जब वह डाकुओं के सरदार “भवानी ठाकुर” से मिलती है | भवानी ठाकुर का काम है | अमीरों का पैसा लूट कर गरीबों में बांटना | “रॉबिन हुड” के जैसे ….
जब प्रफुल्ल उनके साथ जुड़ती है तो वह लोगों की बातों से , कुछ-कुछ अफवाहो से देवी चौधरानी के नाम से मशहूर हो जाती है | भवानी ठाकुर प्रफुल्ल को 5 साल की दीक्षा इसलिए देते है क्योंकि उसके पास अमाप धन है |
कही प्रफुल्ल स्वार्थ बुद्धि के चलते यह धन खुद के लिए ही ना खर्च कर ले ! इसीलिए उसे दीक्षा देकर पढ़ा – लिखा कर सयाना करना जरूरी हो जाता है ताकि वह यह धन सोच समझकर , सही जगह खर्च करें |
वैसे भी अपने बाद वह अपने कार्य को आगे जारी रखना चाहते हैं | गरीब और असहाय प्रफुल्ल सामाजिक कुप्रथाओं के खिलाफ आवाज उठाती है जैसे ही वह एक ताकतवर , अमीर और शक्तिशाली महिला के रूप में सामने आती है | लेखक बंकिम चंद्र चटर्जी इन्होंने देवी चौधरानी के पात्र को बहुत ही खूबसूरती से गढ़ा है |
प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – बंकिमचंद्र चटर्जी
प्रकाशक है – लाइब्रेरी बुक सेंटर
पुस्तक संख्या है – 106
उपलब्ध है – अमेजन पर
सारांश –
प्रफुल्ल एक गरीब विधवा मां की बेटी है | फिर भी उसकी मां ने अपने हैसियत से बढ़कर , अपनी बेटी की शादी एक अमीर ब्राह्मण जमीदार के घर कर दी है | यहाँ कास्ट बताना हम जरूरी इसलिए समझते हैं क्योंकि कहानी में बात – बात पर इनका का कास्टीजम उबल आता है | कैसे ? सो आपको किताब पढ़ते समय पता ही चलेगा |
अब आप तो यह जानते ही होंगे कि उस जमाने में वरपक्ष को बहुत महत्व दिया जाता था | प्रफुल्ल की शादी में भी यही होता है | प्रफुल्ल की माँ वरपक्ष वालों को अच्छा खाना खिलाती है और वधू पक्ष वालों को अपना समझकर सिर्फ दही – चिवडा देती है |
इसे वह लोग अपना अपमान समझते हैं | इस अपमान का बदला लेने के लिए प्रफुल्ल के पड़ोसवाले उसे चरित्रहीन बताते हैं | और उसके यहां खाना भी नहीं खाते | प्रफुल्ल के ससुर जी पड़ोसियों की इस बात पर यकीन कर लेते हैं और प्रफुल्ल को चरित्रहीन जान अपने घर की बहू कभी नहीं बनाते | उसे कभी भी उसके ससुराल नहीं बुलाते |
प्रफुल्ल की माँ उसकी शादी में ही गरीब हो गई थी | वह दोनों पड़ोसियों से उधार लेकर खाना खाते हैं | इसी से प्रफुल्ल अपने ससुराल जाने की जिद करती है क्योंकि उसके भरण – पोषण की जिम्मेदारी उसके ससुर की है |
वह अपने ससुराल पहुंचती है | वह उसका कोई स्वागत नहीं करता | हाँ , उसकी छोटी सौतन “सागर” , उसकी सास उसके साथ अच्छा व्यवहार जरूर करते हैं | उसके सास तो उसे घर में भी रखना चाहती है क्योंकि प्रफुल्ल का रूप एकदम देवी जैसा है | वह बहुत ही सुंदर है | उसका पति ब्रजेश्वर भी उसे घर में जगह देना चाहता है लेकिन उसके पिता के आगे सभी बेबस है |
प्रफुल्ल अपनी मां के साथ वापस आती है | उसकी मां बेटी के गम में चल बसती है | अब प्रफुल्ल के मोहल्ले के कुछ बदमाश लोग उसे बेच देना चाहते हैं | वह उसे पालकी में डालकर किडनैप कर लेते हैं | जब पालकी जंगल में पहुंच जाती है तो डाकू के डर से वह लोग भाग जाते हैं |
प्रफुल्ल साहस कर के खुद को छुड़ा लेती है और घने जंगल में भाग जाती है | वहां उसे एक बीमार बूढ़ा दिखाई देता है | वह उस मरते हुए बीमार बूढ़े की खूब सेवा करती है | वह मरते वक्त उसे सोने की मोहरों से भरे घड़ों का खजाना दे जाता है |
अब वह जंगल में ही रहने का ठान लेती है | अपने खाने – पीने का सामान लाने वह बाजार जाते ही रहती है कि उसकी मुलाकात डाकुओं के सरदार “भवानी ठाकुर” से होती है |
वह उसे “निष्काम कर्म” के बारे में बताते हैं | वह उसे 5 साल की दीक्षा देते हैं | उसे पढ़ना -लिखना सिखाते हैं | अध्यात्म सीखाते हैं | मल्लविद्या सिखाते हैं ताकि वह देवी चौधरानी बनकर दीन – दुखियों की मदद कर सके |
अंग्रेजों को लगान देने के लिए जमीदारों और साहूकारों के हाथों गरीब जनता ज्यादा सताई जाती थी | इन्हीं की रक्षा देवी चौधरानी को करनी थी | अमीर लोग देवी के नाम से खौफ खाते थे | गरीब लोग उसे देवी का अवतार मानते थे |
हालांकि , उसने कभी कोई डाका नहीं डाला फिर भी वह डकैत समझी जाती थी | लोगों को दान देने के लिए वह खजाने की मोहरों का इस्तेमाल करती थी |
सब लोगों की जमीदारी बर्बाद हो गई फिर भी अंग्रेज सत्ता को अपना लगान तो चाहिए | इसी के चलते ब्रजेश्वर के पिता हरिबल्लभ राय का गिरफ्तारी पत्र निकलता है |
अपने पिता को बचाने के लिए ब्रजेश्वर , उसकी तीसरी पत्नी सागर के घर जाता है क्योंकि उसके पिता अमीर है | वह पैसे से उसकी मदद कर सकते हैं लेकिन वह पैसे नहीं देते | सागर और ब्रजेश्वर का झगड़ा भी हो जाता है |
ब्रजेश्वर गुस्से में वापस चला जाता है | अब ब्रजेश्वर जिस बजड़े से वापस जाते रहता है | उसको डाकू लूट लेते हैं | उसे देवी चौधरानी के पास पहुंचाया जाता है |
देवी चौधरानी बनी प्रफुल्ल उसे अपना परिचय देती है | ब्रजेश्वर यह देख हक्का-बक्का रह जाता है क्योंकि उसे किडनैप करने वाले लोगों ने उसे मरा हुआ घोषित किया था | प्रफुल्ल से देवी चौधरानी बनने के सफर को अभी 10 साल गुजर चुके हैं |
वह मोहरों से भरी हुई हांडी ऋण के तौर पर लेकर और जल्दी ही वापस करने के इरादे से वहां से चल देता है | अब वक्त बितते जाता है और जब पैसे वापस करने की बारी आती है तो ब्रजेश्वर का पिता हरिबल्लभ देवी चौधरानी के साथ धोखा करता है | वह उसे अंग्रेजों के हाथों गिरफ्तार करवाना चाहता है ताकि उसे पैसे भी न देने पड़े | ऊपर से इनाम भी मिले |
वह देवी चौधरानी की खबर अंग्रेज अफसर ब्रेनन को देता है | वह अपने साथ 500 सिपाहियों की फौज लेकर देवी चौधरी को घेर लेता है | देवी चौधरानी ने भी खुद को आत्मसमर्पित करने का निर्णय ले लिया है | अंग्रेजों को आत्मसमर्पण मतलब फांसी के रूप में जीवन का अंत ….
देवी चौधरानी ने पहले ही अपने सब साथियों को सुरक्षित जगह भेज दिया है क्योंकि उसके गुप्तचरों ने पहले ही यह खबर उस तक पहुंचा दी थी और यह भी कि , मुखबिर उसके ससुरजी हरिबल्लभ राय है |
अब अगर वह गिरफ्तार नहीं होगी तो अंग्रेज उसके ससुर की जान ले लेंगे | इधर ब्रजेश्वर को भी यह बात पता चल जाती है | वह भी अपना पति धर्म निभाने के लिए देवी चौधरानी को छोड़कर नहीं जाना चाहता क्योंकि प्रफुल्ल की रक्षा करना उसका धर्म है |
देवी चौधरानी के साथी रंगरेज , निशि और दीवा भी नहीं चाहते कि वह आत्मसमर्पण करें ! तो फिर क्या करेगी देवी चौधरानी ? खुद की जान बचाएगी या फिर अपने गद्दार ससुर की ? या फिर कहानी का अंत कुछ और ही है ! यह तो आपको पढ़कर ही जानना होगा |
तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं .. और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए.. ..
धन्यवाद !!