DELHI SULTANAT REVIEW SUMMARY IN HINDI

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दिल्ली सल्तनत

स्मिता दामले द्वारा लिखित

रिव्यू –

कहानी है हिंदू राजाओं की सत्ता दिल्ली पर से खत्म होने की और तुर्की , अफगानी लोगों के सल्तनत के शुरुआत की … | दूसरे शब्दों में कहे तो कहानी है सिंहासन पर्व खत्म होने की और सल्तनत पर्व शुरू होने की | पुरातन काल से ही दिल्ली देश के राजधानी का केंद्र रही है | आज की दिल्ली ही पुरातन काल की हस्तिनापुर इंद्रप्रस्थ नगरी है | भारत देश की संस्कृति बहुत पुरानी है जहां बाकी बहुत से देश अपने संस्कृति की धरोहरों को खो चुके हैं | वही हमारी संस्कृति अभी तक जिंदा है | इसलिए हमारा इतिहास भी वृहद है |

जैसे हमारे देश का इतिहास समृद्ध है | वैसे ही हमारी धरती भी समृद्ध थी | यहां पानी , फल , फूल ,सब्जियां , अनाज आदि की प्रचुरता थी | इसीलिए फिर काबुल , कंदहार , अफगान इन देशों से लोग अपनी रोजी-रोटी की तलाश में यहां आने लगे | उनकी बातें सुन , यहां की प्रचुरता और संपत्ति देखकर , वह यहां पर हमले करने लगे | पहले के हमलावर लूट – पाट करके वापस जाया करते लेकिन बाद में यहां के राजनीतिक अस्थिरता का फायदा उठाकर वे यहां शासन करने लगे | ऐसे ही सुल्तानों की यह कहानी है |

प्रस्तुत किताब की –

लेखिका है – डॉ. स्मिता दामले

प्रकाशक है – ई. साहित्य प्रतिष्ठान

पृष्ठ संख्या है – 142

उपलब्ध है – ई . साहित्य पर

डॉ. स्मिता दामले इनको राजकारण पसंद है | इसीलिए उन्होंने हिस्ट्री की पढ़ाई की और उसी में लेखन किया | इसी विषय मे उन्होंने पीएचडी की | इतिहास यानी पूर्व में हुए सत्ताधिशो के जय पराजय की कहानी | इतिहास पढ़ते वक्त उनको एक बात ध्यान में आई की 17वीं और 18वीं सदी के उत्तर भारत के राजकारण और शिंदे , होलकर , मुगल और सबसे पहले बाजीराव इनकी सत्ता पर बहुत लिखा गया है लेकिन 18वीं शतक के दक्षिण भारत में बड़ा राजकारण खेलने वाले छत्रपती संभाजी पुत्र शाहू महाराज , पेशवाई के संस्थापक बालाजी विश्वनाथ , हैदर अली , उनका बेटा टीपू सुल्तान और अंग्रेजों पर मराठी में कभी लिखा ही नहीं गया |

इसीलिए उन्होंने अपनी कल्पना शक्ति के भरोसे और उपन्यास के जैसा फ़ील देकर इतिहास को हमारे सामने रखा | उनकी लिखी ‘मातोश्री और मी टीपू सुल्तान यह बुक ऑनलाइन पर धड़ल्ले से बिक रही है फिर भी उन्होंने अपनी 6 किताबे ई. साहित्य को कोई भी मानधन लिए बगैर दी है | इनमें उनका बड़प्पन ही दिखाई देता है |

इसके लिए ई साहित्य के साथ – साथ हम जैसे पाठक भी उनके आभारी है | किताब के शुरुआत में ही उनका एड्रेस और फोन नंबर दिया है | किताब के बारे मे आप अपने विचार पत्रद्वारा उनको या ई. साहित्य को भेज सकते है | या फिर ईमेल कर सकते हैं | हमे तो उनकी लिखी सारी कितबे पसंद आई |

प्रस्तुत किताब भी बहुत अच्छी है | 7 क्लास की हिस्ट्री मे भी आप को यह विषय देखने को मिलेगा | अगर आप के बच्चे 7 थ क्लास मे पढ़ते है या फिर आप टीचर है तो यह किताब आप के लिए मददगार साबित हो सकती है |

महाभारत के युद्ध के बाद दूसरी ऐतिहासिक लड़ाई पोरस और सिकंदर के बीच लड़ी गई थी | पर सिकंदर ने यहां सत्ता स्थापन नहीं की | 11वीं सदी के शुरुआत से ही आक्रमणकारी सुलेमान पर्वतों की शृंखलाओ में स्थित खैबर दर्रे को पार कर भारत में प्रवेश करते थे |

जब वहां पर बसे लोगों ने उनका प्रतिकार किया तो फिर वह खबर दर्रे को छोड़कर गोमल दर्रे से आने लगे | उनका पहला पड़ाव मूलतान पर पड़ता था | उसके बाद लाहौर – पंजाब- कुरुक्षेत्र ऐसे होते हुए यमुना तीर के किनारे याने दिल्ली पहुंचते थे |

गांधारी जिस देश की थी वह कंदहार कभी भारत देश का ही एक भाग हुआ करता था | दसवीं शताब्दी में वह हिन्दुओ का राज्य था | काबुली स्थान और झाबुली स्थान इन दोनों भागों पर भी हिंदू राजाओं का राज्य था | काबुल में लालिया नाम के ब्राह्मण का राज्य था तो झाबुल में राजपूतों की सत्ता थी | 11वीं शताब्दी में याकूब इ -लाईस इसने दोनों राज्यों को जीत लिया | वहाँ अपनी सत्ता स्थापित की | उसने वहां गजनी नाम का किला बनाया | बाद में इसी नाम का शहर भी बसाया |

इस राज्य पर बाद में तुर्कों ने हमला किया | गजनी तुर्कों की हो गई | अब इस गजनी शहर पर अलप्तगिन का राज्य था | अलप्तगिन के बाद उसका गुलाम सुबुक्तगीन गद्दी पर आया | उसने भारत पर पहला हमला किया | इसने सिर्फ दौलत हासिल करने के लिए यहाँ हमला किया था |

इसके बाद इसके बेटे मोहम्मद गजनी ने गुजरात के सोमनाथ मंदिर पर 17 बार हमला किया | इस वाक्यया से संबंधित किताब सोमनाथ का रिव्यू वीडियो भी हमारे यूट्यूब चैनल सारांश बुक ब्लॉक पर उपलब्ध है | आप उसे भी एक बार जरूर देखें |

मोहम्मद गजनी भारत आने के लिए हिमालय पर्वतों की शृंखलाओं को , सिंध के रेगिस्तान को , पर्वतों को , जंगलों को , नदियों को पार कर यहां आता था | इस लंबी और खतरनाक यात्रा में उसके बहुत से सैनिक मारे जाते थे लेकिन उसे उसकी कोई फिक्र नहीं थी | गुजरात में बसा सोमनाथ पट्टन मंदिर ऐश्वर्य का धनी था | इस मंदिर के ऐश्वर्य का वर्णन हमने सोमनाथ किताब के रिव्यू में किया है | जिसे सुन आप दांतों तले उंगली दबा लोगे |

इसी ऐश्वर्य को लूटने गजनी ने 17 बार सोमनाथ मंदिर पर हमले किए | वह हर बात ढेर सारी धनसंपदा अपने साथ ले गया लेकिन उसने यह अपनी सत्ता स्थापित नहीं की |

कहते हैं कि हमारा भारत देश शनि की साडेसाती के जैसे 750 वर्षों तक गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था | यह गुलामी घोरी से शुरू होकर अंग्रेजों तक रही | उसके बाद यह ग्रहण देश की आजादी के दिन यानी के 15 अगस्त 1947 को ही खत्म हुआ |

विदेशी आक्रमणकारी तुलुगामा पद्धति का उपयोग करते थे जिसमें बाबर सिद्धहस्त था | उनके घोड़े बहुत कसे हुए और ताकतवर रहते थे | वह चपलता के साथ बहुत दूर तक भाग सकते थे | साथ में उनके पास अत्याधुनिक तोपे थी | इससे उनकी शक्ति और बढ़ जाती थी | इनका हर एक सिपाही योद्धा होता था और क्रूरता उनमें कूट-कूट कर भरी होती थी | मोहम्मद घोरी के विजय के बाद से लेकर तो बाबर के इब्राहिम लोदी को हराने तक का इतिहास प्रस्तुत किताब में दिया गया है | इस दौरान याने के सन 1192 से 1526 तक दिल्ली पर बहुत से घरानों ने राज किया | इसमें उन सारे सुल्तानों का परिचय दिया है |

सन 1526 में बाबर ने दिल्ली पर अपनी सत्ता कायम की | दिल्ली पर 1526 से लेकर तो सन 1857 तक सिर्फ बाबर का ही वंश राज करता रहा | बाबर के वंशजों ने 350 वर्षों तक दिल्ली पर राज किया | इसलिए लेखिका ने उनका समावेश प्रस्तुत किताब में नहीं किया है | आइये उन सुल्तानों की जानकारी देखते हैं – सारांश में..

सारांश-

मोहम्मद घोरी दिल्ली सल्तनत का संस्थापक है | मोहम्मद घोरी को उसका सरनेम घोरी यह उसके टोली के नाम से मिला | यह घूर प्रांत में रहते थे | अब मोहम्मद घोरी और उसके भाई गियासुद्दीन घोरी ने अपनी सत्ता कैसे बढ़ाई ? इसका वर्णन किताब मे है |

अपनी सत्ता बढ़ाने के बाद उन्होंने गजनी पर आक्रमण किया क्योंकि उन दिनों गजनी शक्तिशाली सत्ता का केंद्र था | गजनी को जितना मतलब राज्य जितना | उस जमाने में उसके मुख्य शत्रु थे सेलज़्युक राजवंश | उनको हराकर उसने अपने राज्य की सीमा बढ़ाई | उसके बाद वह भारत पर आने के लिए उत्सुक हुआ |

अब यह लोग भारत क्यों आना चाहते थे और यहां आने के लिए इनको कौन-कौन सी परेशानियों का सामना करना पड़ता था इसका वर्णन हम रिव्यू में कर ही चुके हैं | सन 1175 में मोहम्मद घोरी ने मुल्तान के राजा को हरा कर मुल्तान जीत लिया और साथ ही उच्छ राज्य की रानी को अपने साथ मिलकर वह राज्य भी जीत लिया |

उसके बाद उसने सोमनाथ पर दूसरा आक्रमण किया | इस वक्त गुजरात पर सोलंकी राजा भीमदेव द्वितीय राज्य कर रहा था | इन्होंने घोरी को हराने के लिए अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान की मदद मांगी लेकिन वह अपने प्रधान की बातों में आकर वहां नहीं गए | फिर भी राजा भीमदेव ने अकेले ही घोरी को पराजित कर दिया |

यह लड़ाई हुई 1178 में | अब तक घोरी ने भारत देश की संपन्नता देख ली थी भारत जैसे वैभव संपन्न देश पर अगर बार-बार आक्रमण करना है तो उसे पास में ही कोई मजबूत छावनी बनानी होगी | यह सोचकर उसने लाहौर को चुना | उसने लाहौर को भी जीत लिया |

लाहौर जीतने के बाद उसकी नजर वैभव संपन्न दिल्ली पर पड़ी | इस वक्त दिल्ली के सिंहासन पर पृथ्वीराज चौहान विराजमान थे | अब उसको दिल्ली सल्तनत का सिंहासन कैसे मिला ? उसकी कहानी आप प्रस्तुत किताब में पढ़ सकते हैं |

दिल्ली जीतने के लिए पहले उसने भटिंडा जीता | घोरी का सिपाही और भटिंडा का सरदार झियाउद्दीन ने वहां की जनता को त्रस्त कर दिया था | इसको हराने के लिए पृथ्वीराज चौहान अपनी सेना के साथ निकल पड़े | जब घोरी को यह पता चला तो वह भी भटिंडा बचाने के लिए वापस लौट पड़ा |

दोनों पक्षों का युद्ध तराइन में हुआ | इसमें पृथ्वीराज चौहान की जीत हुई | घोरी अपनी इस हार का बदला लेना चाहता था इसलिए फिर उसने नई सैनिक भर्ती के साथ और नई रणनीति के साथ फिर से दिल्ली पर आक्रमण किया | इस बार उसने दगाबाजी करके पृथ्वीराज चौहान को हराया | उनके पीछे क्या-क्या कारण है और कथाओं के द्वारा जो अटकले बताई जाती है | वह कितनी सच है , कितनी झूठ इसका भी सोच विचार आप कर सकेंगे |

घोरी ने एक के बाद एक बंगाल तक राज्य जीत लिए | सारे हिंदू राज्य सूखे पत्ते के जैसे धराशाई हो गए | उसने और उसके सरदारों ने भारत के लगभग सारे प्रदेशों पर अपना कब्जा कर लिया | इस दरम्यान घोरी के बड़े भाई गीयासुद्दीन की मृत्यु हो गई |

अब मोहम्मद घोरी , गजनी का सुल्तान बन गया | वह अपना राज्य संभालने के लिए वापस गजनी लौट गया | जाते-जाते वह उसका विश्वास पात्र गुलाम सेवक कुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली ,लाहौर और आसपास के बहुत से प्रदेशों का सूबेदार बनाकर गया | कुछ दिनों बाद मोहम्मद घोरी का खून हुआ |

घोरी की मृत्यु के बाद गजनी में गद्दी के लिए झगड़ा शुरू हुआ | घोरी को खुद का कोई बेटा नहीं था | घोरी का भतीजा गजनी का शासक बना लेकिन खुद को कमजोर मानकर फिर उसने कुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली का बादशाह घोषित कर दिया | अब ऐबक दिल्ली का सुल्तान बन गया और इसी के साथ सन 1191 में दिल्ली का सिंहासन पर्व खत्म होकर सल्तनत पर्व शुरू हो गया |

कुतुबुद्दीन ऐबक एक गुलाम था | भारत में भी ऐसे गुलाम थे लेकिन यहां की जाति व्यवस्था अत्यंत शोचनीय होने की वजह से कोई गुलाम शासक नहीं बन पाया पर तुर्किस्तान के इस गुलाम ने यह कमाल कर दिखाया | कुतुबुद्दीन ऐबक की एक गुलाम से शासक बनने की कहानी बहुत अद्भुत है | उसे आप इस किताब में जरूर पढ़िए |

कुतुबुद्दीन ऐबक के बाद उसका मुख्य सिपह सालार और दामाद अल्तमश दिल्ली का सुल्तान बना |

अल्तमश एक अच्छा सुल्तान साबित हुआ जिसके राज्य में न्याय मिलता था | जनता खुशहाल थी |

अल्तमश ने दिल्ली को साहित्य और संस्कृति का केंद्र बनाया | अल्तमश की इच्छा थी कि उसके बाद उसकी बेटी रजिया तख्त संभाले | रजिया का जन्म 1205 में उत्तर प्रदेश में हुआ | उसकी मृत्यु कथियाल के लड़ाई के मैदान में 1240 को हुई |

उसने सिर्फ चार साल दिल्ली पर राज किया | दरबारी लोगों को एक स्त्री के हाथों के नीचे काम करना गवारा न था इसलिए उन्होंने अल्तमश के बेटे रुकनुद्दीन को गद्दी पर बिठाया लेकिन वह सर्वथा अयोग्य निकला | अब दरबारी लोगों को समझ में आया कि अल्तमश रझिया को क्यों गद्दी पर असिन करना चाहते थे |

रजिया सुल्तान के बारे में जानने के लिए आप हेमा मालिनीजी अभिनीत रझिया सुल्तान फिल्म देख सकते हैं | या इस पर बनी सीरियल भी देख सकते हैं | वह पहली ऐसी स्त्री है जो खुद को सुल्ताना बुलाने के बजाय सुल्तान बुलवाती थी और मर्दानी पोशाक में गद्दी पर आसीन होती थी | नए हम उम्र लोगों में अल्तूनिया और याकूत उसके खास विश्वास पात्र थे |

रझिया के बाद उसका सौतेला भाई बहराम शाह सुल्तान बना | एतगिन नाम के नेता ने रझिया के विरुद्ध साजिश की थी | सत्ता अपने हाथ में रखने के लिए उसने बहराम शाह द्वारा नया पद तैयार करवाया | इससे एतगिन ताकतवर हो गया | | अब एतगिन का भी खून हो गया |

उसके बाद अल्तमश का पोता अलाउद्दीन मासूदशाह सुल्तान बना | उसने चार साल तक राज किया | उसके बाद महाज्जुबुद्दीन राज्य कारभार देखने लगा | उसने बलबन नाम के सरदार को राज्य कारभार करने के लिए कहा | महाज्जुबुद्दीन वजीर का खून हो गया | इसके बाद बलबन ने अल्तमश के दूसरे पोते नसरुद्दीन को गद्दी पर बिठाया और खुद राज करने लगा |

बलबन ने अपनी बेटी की शादी नसरुद्दीन के साथ कर दी | इससे वह और भी ताकतवर हो गया | अल्तमश के पूरे खानदान को खत्म करके बलबन नया सुल्तान बना | इस नए सुल्तान बलबन की एक कहानी किताब में दी है

जो इस प्रकार है कि – एक बार अल्तमश के दरबार में एक सौदागर गुलाम लेकर आया |

बादशाह अल्तमश ने उसमें 99 गुलाम को चुना और एक बदसूरत गुलाम को छोड़कर बाकी सब को खरीद लिया | दुखी हुए उस गुलाम ने बादशाह के सामने बहुत हाथ पैर जोडे | आखिर बादशाह ने उसे भी खरीद लिया | उसे पानी भरने का काम दिया गया | वह बदसूरत था लेकिन बुद्धि मान था |

एक बार अल्तमश के दरबार में एक ज्योतिषी आया | उसने अल्तमश को भविष्य बताया कि तुम्हारे घर का एक गुलाम तुम्हारे वंशजों का नामोनिशान मिटाकर तुमहारे तख्त को हथिया लेगा | इससे राजमहल में एक ही खलबली मच गई | अब बादशाह अल्तमश ने राजमहल के सैकड़ों गुलामो को ज्योतिष के आगे एक लाइन में खड़ा कर दिया ताकि वह उसे दगाबाज गुलाम को पहचान सके |

इस लाइन में बलबन भी था | बहुत देर खड़े रहने के बाद सबको बहुत भूख लग गई | इसलिए फिर कुछ लोगों ने बलबन को बाजार भेज कर कुछ खाने के लिए लाने को कहा | बलबन बाजार गया लेकिन जल्दी वापस ही नहीं आया | लाइन खत्म हो गई लेकिन ज्योतिषी को अब भी वह गुलाम नहीं मिला |

ज्योतिषी सोच में पड़ गया कि उसका वक्तव्य आखिर गलत कैसे हो गया ? इधर जब बलबन की बारी आई तो कुछ गुलामो ने अपनी आइडिया लगाकर वह टाइम निकाल लिया | बाकी सब गुलामो ने बलबन को यह सोचकर बाजार भेज दिया था कि यह एक निचले दर्जे का पानी भरने वाला गुलाम है | इसकी क्या औकात की यह सुल्तान बनने का सोचे ?

सब लोगों ने उसे अंडर एस्टीमेट किया | जिस दिन गयासुद्दीन बलबन सुल्तान बनाकर गद्दी पर बैठा उस दिन उसके जमाने के गुलामों को याद आया कि उस दिन बल्बन लाइन में खड़ा नहीं था | अब यह जो भी हुआ यह तो सिर्फ भगवान और इतिहास को ही पता |

बलबन 1246 में सुल्तान बना तब वह 60 साल का था | सबसे पहले उसने अपने सारे विरोधकों को मार डाला | इसमे मुख्य थे अल्तमश के रिश्तेदार और समर्थक | राज्य मे फैले अनाचार को कम करने के लिए उसने अनेक कठोर कायदे लगाए | कडक उपायों से राज्य मे शांति स्थापित की |

बलबन का सामना यहां बसे हिंदू राजाओं के साथ-साथ मंगोल के साथ भी हुआ | बलबन का राज्य कारभार कैसा रहा ? यह यहाँ बताया गया है | बलबन ने अपने पोते काएकाबाद को गद्दी पर बिठाया और साल 1287 में 87 साल की उम्र में गायसुद्दीन बलबन का अंत हो गया |

बलबन के पास जलालुद्दीन खिलजी सूबेदार के पद पर कार्यरत था | काएकाबाद दादाजी के जाने के बाद नाच गाने में डूब गया | वह अनेक रोगों से पीड़ित हो गया | इसलिए दरबार के अमीर उमराव लोगों ने उसको पदच्युत करके उसे छोटे से बेटे को गद्दी पर बिठाकर राज्य कारभार अपने हाथों में ले लिया |

इनमें मुख्य थे मलिक सुरखा और काछा | यह दोनों खिलजी को भी खत्म करना चाहते थे | पर खिलजी दिल्ली आने का नाम ही नहीं ले रहा था | तब मालिक काछा को धोखे से मारकर खिलजी दिल्ली का नया सुल्तान बना | अब दिल्ली पर खिलजी घराने का राज शुरू हुआ |

जलालुद्दीन खिलजी जब सुल्तान बना तब वह 70 साल का था | यह सुल्तान बहुत दयालु था | अपराधियों को सजा ही नहीं देता था | इस कारण बदमाश ही नहीं बल्कि सज्जन लोग भी गुनाह करने लगे थे | राज्य में अनाचार बढ़ गया था | दिल्ली के लोगों को अब यह सुल्तान नहीं चाहिए था | जलालुद्दीन खिलजी का भी मंगलो के साथ सामना हुआ |

मंगलो को सिंधु नदी के उस पार तक हकालने मे यह सुल्तान कामयाब रहा | इसी सुल्तान का भतीजा था अलाउद्दीन खिलजी | वह एक क्रूर और लोभी व्यक्ति था | सुल्तान ने अपने बेटी की शादी अलाउद्दीन के साथ की थी | अलाउद्दीन खिलजी बहुत दिनों से सुल्तान बनने के सपने देख रहा था |

सुल्तान बनने के लिए फौज चाहिए और फौज के लिए पैसा | इसीलिए फिर उसने अमीर सियासतों पर हमला कर उन्हें लूटना प्रारंभ किया | अपनी इस इच्छा को पूरी करने की चाहत में उसने दक्षिण के राज्यों पर भी हमला किया जिनसे आज तक उत्तर के शासको का पाला भी नहीं पड़ा था |

देवगिरी से लूटे हुए खजाने को दिखाने के लिए अलाउद्दीन खिलजी ने अपने ससुर यानी सुल्तान को बुलाया | सुल्तान को दरबार के बहुत से लोगों ने बताया कि अलाउद्दीन उसके साथ दगा करेगा फिर भी वह माना नहीं और अलाउद्दीन खिलजी के धोखे का शिकार हुआ | सुल्तान के मरने के बाद अलाउद्दीन खिलजी सुल्तान बन गया |

अलाउद्दीन खिलजी तो आपको याद ही होगा जिसका किरदार सुपरहिट फिल्म पद्मावत में अभिनेता रणवीर सिंह ने किया था |

अलाउद्दीन खिलजी जिसने राजा रतन सिंह को हराकर रानी पद्मावती को जोहर करने पर मजबूर किया | रानी पद्मावती ने जौहर किया या नहीं इस पर इतिहासकारों की पक्की जानकारी नहीं है लेकिन मेवाड़ के राजा रतन सिंह को अलाउद्दीन खिलजी ने हराया था इसकी जानकारी इतिहासकारों को जरूर है |

अलाउद्दीन खिलजी का जन्म अफगानिस्तान स्थित झाबुलीस्थान के कलत गांव में हुआ था | पिता के मरने के बाद उसके चाचा ने यानी के दिल्ली के सुल्तान ने उसका और उसके भाई का पालन पोषण किया | 1291 में वह कड़ा मानिकपुर का सूबेदार बन गया | इसके बाद उसने भेलसा जीता | सुल्तान ने उसे अवध का सूबेदार बनाया |

इसके बाद उसने देवगिरी पर हमला किया | देवगिरी की जीत के बाद उसने क्या किया ? यह हम आपको पहले ही बता चुके हैं | अलाउद्दीन खिलजी के खुद को सुल्तान घोषित करते ही सुल्तान की बेगम ने अपने बेटे रुकनुद्दीन को सुल्तान बनाया |

रुकनुद्दीन और खिलजी की लड़ाई में रुकनुद्दीन मारा गया | खिलजी ने सुल्तान की बेगम और सुल्तान के दोनों बेटों को मार डाला | सचमुच यह उसके क्रूरता की हद हो गई | जिन लोगों ने उसे पाला पोसा | माता-पिता का प्यार दिया | उनको ही खिलजी ने मार डाला | किसके लिए ? तो उस तख्त के लिए .. जिसे मरने के बाद वह अपने साथ नहीं ले जा सकता था |

जिनको उसने मारा | वह उसके अपने थे और उसके पत्नी के भी | अलाउद्दीन खिलजी को भी मंगलो का सामना करना पड़ा | खिलजी ने भी गुजरात के सोमनाथ मंदिर पर हमला किया | फिर और एक बार अमाप संपत्ति लूटी गई | इस लूट में उसे मालिक कफूर नाम का हीरा गुलाम के रूप में मिला | मालिक कफूर जल्दी अपनी होशियारी और कर्तबगारी से अलाउद्दीन खिलजी का विश्वास पात्र बन गया |

आखिरी दिनों में उसका सारा कार्यभार मलिक काफूर के ही हाथ में चला गया | यह उसका अति विश्वास पात्र व्यक्ति था | ऐसा कहते है की मलिक काफूर ने ही विश्वास घात कर के खिलजी को मार डाला |

अब तक सबसे ज्यादा राज्य विस्तार खिलजी डायनेस्टी का ही था | मलिक काफूर ने खिलजी के कान भर के उसके ही बेटों को जो गद्दी पर अपना दावा बता सकते थे | उनको कारावास में डलवा दिया | खिलजी के अंत के बाद मलिक काफूर ने उसके 6 वर्षीय बेटे को तख्त पर बिठाकर राज्य कारभार अपने हाथों में ले लिया |

मालिक काफ़ुर ने अलाउद्दीन के दो बड़े बेटों को अंधा करने के लिए अपने आदमियों को भेजा लेकिन बड़े बेटे मुबारक खान ने उसी सिपाही को अपना बहुमूल्य रत्नहार देकर खुद को छुड़ा लिया | मुबारक खान ने ही अपने अंगरक्षको को मलिक काफूर को मारने के लिए राजमहल में भेजा | मालिक का विश्वास पात्र मुबश्शीर इसी को उसके महल में शस्त्र ले जाने की परमिशन थी | इसी ने विश्वास घात करके मलिक काफ़ुर का अंत कर दिया |

अब मुबारक खान अपने छोटे भाई का रखवाला बन राज्य कारभार करने लगा लेकिन दरबारीयों के कहने पर बाद में खुद ही सुल्तान बन गया | 14 अप्रैल 1316 को 16 साल की उम्र मे मुबारक खान बादशाह बना | इसने कुतुबुद्दीन नाम धारण किया | इसमें अपने पिता के जैसे राज्य कारभार करने की लायकी नहीं थी |

इसके पास दो गुलाम थे जिनका नाम हसन उर्फ खुस्रोखान और हसमुद्दीन था | खुसरो खान सुल्तान का विश्वास पात्र था और उसका वजीर भी | खुसरो खान सुल्तान को मारना चाहता है | यह सुल्तान को बताया भी गया | फिर भी सुल्तान को विश्वास नहीं हुआ | आखिर 26 अप्रैल 1320 को खुसरो खान ने सुल्तान का अंत कर दिया और खुद सुल्तान बन गया |

खुसरो खान को तख्त संभाले अभी 4 महीने ही हुए थे कि मुल्तान के सूबेदार गाजी मलिक को दिल्ली मे फैले इस अंधाधूँधी का पता चल गया | उसने दिल्ली पर हमला किया | इसमें गाजी मलिक याने घियासुद्दीन तुगलक जीत गया |

खुसरो खान मारा गया |

दिल्ली में अभी तुगलक घराने की सत्ता शुरू हो गई | वह दिन था 8 सितंबर 1321 | यह अलाउद्दीन खिलजी के सैन्य दल में था | अमीर खुसरो के किताब “तुघलकनामा “में उसका जिक्र “आवारा मर्द” इस नाम से मिलता है |

रणथंबोर की लड़ाई में इसने अपना पराक्रम दिखाया और अलाउद्दीन खिलजी का विश्वास पात्र बन गया | इसके बाद वह एक के बाद एक तरक्की की सीढ़ियां चढ़ते गया | यह मुल्तान और दिपालपुर का सूबेदार बना | सारे बादशाहों के जैसे इसे भी मंगोलो का सामना करना पड़ा | लेकिन यह उनका आक्रमण रोकने में सफल हो सका | अलाउद्दीन खिलजी के बाद राज्य में पूरी तरह अराजकता और अशांति फैल चुकी थी | उसे इसने अपने बुद्धि के बल पर जल्दी ही काबू कर लिया लेकिन वह सिर्फ 5 साल ही राज्य कर सका |

लड़ाई से वापस आते समय वह शामियाने में ठहरा हुआ था | यह शामियाना बिजली गिरने से जलकर खाक हो गया | इसी के साथ सुल्तान भी | घीयासुद्दीन तुघलक के बाद उसका बेटा मोहम्मद तुघलक सुल्तान बना | यह मोहम्मद बिन तुगलक इस नाम से जाना गया | इसका राज्य कल बहुत प्रसिद्ध हुआ | इतिहास में इतिहासकारों ने इसे बुद्धिमान सुल्तान ऐसा जिक्र किया है |

इसने पूरे 26 साल राज किया | वह बुद्धिमान होने के साथ-साथ अत्यंत दानवीर था | अच्छी विद्या और होशियारी की परख करने वाला था | पहले ही उसकी राज्य की सीमाएं बहुत बड़ी हुई थी | इस पर उसे अखंड भारत की कल्पना सूची | उसने मंगोलो के देश पर हमला करना चाहा | उसने ईरान और इराक को भी जितना चाहा | उसको चीन पर भी आक्रमण करना था |

लेकिन उसके यह सारे सपने अधूरे रह गए | मोहम्मद तुघलक के ही राज में सन 1336 में हरिहर बुक इन्होंने विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की | इसी के साथ दक्षिण भाग तुगलक के साम्राज्य से स्वतंत्र हो गया |

ऐसे अनेक भाग स्वतंत्र होते रहे | लोग गद्दारी करते रहे | ऐसे ही एक गद्दार गुलाम का पीछा करते वक्त काठियावाड़ में आए बुखार ने उसे सन 1351 को मौत की आगोश में ले लिया | मोहम्मद तुगलक का कोई वारिस पुत्र नहीं था |

इसलिए फिर उसके चचेरे भाई को फिरोज शाह तुगलक को जबरदस्ती सुल्तान बनाया गया | इस सुल्तान ने अपने नाम से फिरोजाबाद यह नया शहर बसाया | इसका राज्यकाल 37 सालों का रहा | इसके राज में लोगों को शांत दयालु जीवन का अनुभव लिया क्योंकि पहले के सुल्तानों की क्रूरता से यह सुल्तान दूर रहा |

फिरोज शाह के बाद तुघलक घराने के पुत्र सुल्तान बनकर आते रहे और जाते रहे | इस वक्त तैमूरलंग नाम का बहुत बड़ा तूफान दिल्ली से टकराया जिसमें तुघलक घराना सूखे पत्ते के जैसा धराशाई हो गया | दिसंबर 1398 को तैमूर लंग ने दिल्ली पर आक्रमण किया | यह मंगोल था | इसके पहले की भी बादशाहों ने मंगोलो का सामना किया था |

यह बहुत ही क्रूर सुल्तान था | इसके आक्रमण से दिल्ली में हा हा कर मच गया | बादशाह अल्तमश के वक्त चंगेज खान ने आक्रमण किया था लेकिन उसके ही देश में गड़बड़ी के कारण वह वापस चला गया था | सुल्तान बलबन के वक्त बलबन के बेटे मोहम्मद को मंगोल आक्रमण में मृत्यु प्राप्त हुई थी | प्रसिद्ध शायर अमीर खुसरो भी शहेजादे के साथ पकड़ा गया था|

अमीर खुसरो ने मंगोल लोगों की जानकारी लिखकर रखी है | इसके बाद का सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी लेकिन उन पर बहुत भारी पड़ा | चंगेज खान और तैमूर लंग दोनों ही इतिहास में उनकी क्रूरता के लिए याद रखे गए हैं | तैमूर लंग भारी लूट के साथ अपने देश वापस लौट गया | उसके बाद उसने दिल्ली के लिए जो सूबेदार नियुक्त किया था | उसका नाम था खिज्रखान सैयद |

1421 में खिज्रखान मर गया | उसके बाद मुबारक शाह गद्दी पर बैठा | मुबारक शाह के खून के बाद , खिज्रखान का दूसरा बेटा मोहम्मद खान सुल्तान बना | यह सुल्तान अपने वजीर बहलोल खान लोधी पर आश्रित रहने लगा | कमकुवत सुल्तान के कारण उसके मन में सुल्तान बनने की इच्छा जगाने लगी |

उसने प्रयत्न भी किया लेकिन असफल रहा || इसके बाद मोहम्मद खान का बेटा अलाउद्दीन आलम शाह सुल्तान बना | यह भी कमजोर ही था | इसके हाथ से पूरा राज्य कारभार छीन लिया बहलोल खान लोधी ने सन 1451 में | |सैयद शाही खत्म हो गई और अब दिल्ली पर लोधी राज सत्ता कायम हो गई |

बहलोल खान लोधी के बाद उसका बेटा सिकंदर लोदी गद्दी पर बैठा | सिकंदर के बड़े बेटे इब्राहिम खान लोधी को बाबर ने हराया | इसके साथ ही दिल्ली पर मुगल सल्तनत का राज शुरू हो गया | बाबर मां की तरफ से चंगेजखान और पिता की तरफ से तैमूरलंग का वारिस था |

प्रस्तुत किताब मे हर एक सुल्तान का इतिहास है | उसके जन्म की तारीख से लेकर तो मृत्यु की तारीख दी है | सुल्तान बनने के बाद उनके पर्सनल और प्रोफेशनल दोनों लाइफ के बारे में जानकारियां दी है | लेखिका इसी विषय में सिद्धहस्त है |

उन्होंने किताब के माध्यम से बहुत ही मूल्यवान जानकारी हमें उपलब्ध कराई है | उसके लिए उनका बहुत-बहुत धन्यवाद | आशा है यह किताब इतिहास के विद्यार्थियों के लिए मददगार साबित होगी और यह बुक रिव्यू भी | किताब को जरूर पढ़िएगा | इतिहास हमे बहुत कुछ सिखाता है जैसे अगर प्रस्तुत किताब में आप ध्यान दोगे तो एक बात समझ में आएगी की बहुत सारे सुल्तानों का अंत उनके विश्वास पात्र लोगों ने ही किया |

कभी-कभी तो उनको इस बारे में पता भी था फिर भी वह इस पर विश्वास न कर सके | विश्वास करते तो इतिहास कुछ और ही होता या फिर इतिहास और वक्त की यही मर्जी थी | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए धन्यवाद !

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