Table of Contents
Toggleचंद्रकांता सन्तति भाग 2 का विस्तृत सारांश और रिव्यू: तिलिस्म और ऐयारी की कहानी
✍️ बाबू देवकीनंदन खत्री जी के प्रसिद्ध उपन्यास ‘चंद्रकांता सन्तति – पार्ट 2’ की तिलिस्मी दुनिया में आपका स्वागत है। इस ब्लॉग पोस्ट में हम न केवल भाग 2 का विस्तृत सारांश प्रस्तुत कर रहे हैं, बल्कि नए किरदारों—इंद्रजीतसिंह, आनंदसिंह और उनके अय्यारों—पर आधारित कहानी का गहन रिव्यू भी लेकर आए हैं। आइए, जानें कि इस भाग में तिलिस्म और ऐयारी का रोमांच कितना आगे बढ़ा!
रिव्यू –
“चंद्रकांता संतति”, “चंद्रकांता और वीरेंद्रसिंह” के बच्चों की कहानी है साथ मे चंद्रकांता और वीरेंद्रसिंह के अय्यार और अय्यारा के बच्चों की भी।
हर एक राजकुमार और राजकुमारी के पास एक न एक अय्यार जरूर होता था। वैसे ही चंद्रकांता के बेटे इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह के पास भी एक-एक अय्यार है।
इंद्रजीतसिंह के अय्यार का नाम भैरोंसिंह है जो तेजसिंह और चपला के बेटे है तो आनंदसिंह के अय्यार का नाम तारासिंह है जो देवीसिंह और चंपा के बेटे हैं।
चंपा और चपला चंद्रकांता की अय्यारा थी। वही तेजसिंह और देवीसिंह , वीरेंद्रसिंह के अय्यार है।
यह कहानी नई पीढ़ी की है। पहले की पीढ़ी के लोग भी इस भाग में शामिल है पर चंद्रकांता प्रायः नदारद ही है।
वीरेंद्रसिंह ने चुनारगढ़ जीत लिया है और अब सब लोग यही रहते हैं। इसीलिए घटनेवाली बहुत सी घटनाएं यहीं पर घटती है।
प्रेम और गरिमा का संतुलन –
प्रस्तुत उपन्यास मे राजकुमार और राजकुमारी है तो प्रेम कहानी भी होगी।
तो वह भी यहां है लेकिन इन प्रेम कहानियों में कहीं भी फूहड़पना नहीं है बल्कि गरिमा है।
अय्यारो की चपलता, फुर्ती और चालाकी के दर्शन होते हैं तो राजकुमारो की बहादुरी भी दिखाई देती है।
तिलिस्म तोड़ने की जद्दोजहद है तो रहस्य से भरी मुश्किलों को पार करना भी है।
नए किरदार जुडते जाते है तो साथ में उनकी कहानी भी पता चलते जाती है। इसीलिए किताब छोड़ने की इच्छा ही नहीं होती।
किताब पन्ना दर पन्ना नए रहस्य खोलते जाती है।
ऐसे रहस्य और रोमांच से भरी तिलिस्मी दुनिया में ले जानेवाली किताब को हम 4.5 स्टार की रेटिंग देते है।
लेखक – बाबू देवकीनंदन खत्री
प्रकाशक – फिंगरप्रिन्ट पब्लिकेशन
पृष्ठ संख्या – 288
उपलब्ध – अमेजन और किन्डल पर
सारांश –
धनपत की लगाई हुई चिता पर से किशोरी को “अग्निदत्त” बचा लेता है।
अग्निदत्त , वीरेंद्रसिंह के सिपाहियों के हाथों से छूट जाता है और रोहतासगढ़ के आसपास मंडराने लगता है।
वह किशोरी को एक गुफा मे ले जाकर रखता है।
कुमार इंद्रजीतसिंह और कमलिनी का रहस्य –
दूसरे बयान में यहां बताया गया है कि कुमार इंद्रजीतसिंह तालाबवाले तिलिस्मी मकान में है। इस मकान की मालकिन कमलिनी है।
पहले कुमार उसे अपना दुश्मन समझते थे लेकिन उसकी बातों और हरकतों से पता चलता है कि वह उनकी मददगार है।
उसने अपनी “तारा” नाम की अय्यारा को “किशोरी” का पता लगाने के लिए भेजा है।
कमलिनी को यह भी पता चलता है की ,रोहतासगढ़ का तहखाना तिलिस्मी है और अब उस पर वीरेंद्रसिंह के अय्यारो का राज है।
कमलिनी को उसके सिपाहियों से यह भी पता चलता है कि रोहतासगढ़ के तहखाने में जाने का एक रास्ता वहां के कब्रिस्तान से भी होकर जाता है।
उसी तहखाने में एक खून हुआ जिसे शायद चमेली ने किया और इल्जाम माधवी की अय्यारा तिलोत्तमा पर लगाया।
अब कमलिनी, तारा और कुंवर इंद्रजीतसिंह को लेकर किशोरी को बचाने के लिए वहां से चल पड़े।
रोहतासगढ़ में धोखा और भूतनाथ का प्रवेश –
तभी देवीसिंह, अय्यार शेरसिंह को रोहतासगढ़ से साथ में लेकर कुंवर इंद्रजीतसिंह को छुड़ाने के लिए तालाबवाले मकान पर पहुंचे।
वहां से वह “अग्निदत्त” के ठिकाने पर पहुंचे। जहां उन्होंने अग्निदत्त को मरा हुआ पाया।
इधर रोहतासगढ़ में महाराज दिग्विजयसिंह ने महाराज वीरेंद्रसिंह के साथ धोखा किया।
एक साधु बाबा के कहने पर वीरेंद्रसिंह और उनके साथियों को कैद कर लिया।
महाराज सुरेंद्रसिंह और जीतसिंह के इशारे पर वीरेंद्रसिंह और उनके अय्यारों को छुड़ाने की कोशिशे जारी होती है।
कमला, किशोरी की अय्यारा है। कमला ने रोहतासगढ़ में दो औरतों को देखा जिनका नाम “गौहर और गिल्लन” है।
इन्हे एक आदमी मिला जिसे देखकर यह दोनों बहुत डर गई। इसी आदमी को देखकर कमला भी डर गई थी। यही आदमी उसके चाचा “शेरसिंह” से मिलने भी आया था और यही आदमी “भूतनाथ” था।
गौहर , आनंदसिंह से बदला लेना चाहती है क्योंकि आनंदसिंह ने उसके प्यार को ठुकरा दिया।
वह राक्षसी जैसी औरत कमला, भैरोंसिंह, रामनारायण, चुन्नीलाल को बेहोश कर के राजमहल के पीछे रख देती है।
कामिनी जो की दीवान अग्निदत्त की बेटी थी। वह कुंवर आनंदसिंह से प्रेम करती थी।
दरअसल यह दोनों भैरोंसिंह और तारासिंह थे। इन दोनों ने उस संदूक में कुंवर इंद्रजीतसिंह की लाश देखी थी जबकि वह बेहोश थे न की मरे हुए…
मायारानी का जाल और महायुद्ध –
दरअसल , यह मकान तिलिस्मी था जिसकी मालकिन साधु बाबा की मालकिन , महारानी मायारानी थी।
यह वही साधु बाबा था जिसने रोहतासगढ़ के महाराज दिग्विजयसिंह को महाराज वीरेंद्रसिंह को गिरफ्तार करने के लिए कहाँ था।
यह साधुबाबा इस तिलिस्म को अच्छे से जानता था। इसलिए फिर उसने इस तिलिस्म का मुख्य दरवाजा ही बंद कर दिया ताकि अंदर फंसे लोग बाहर ना आ सके।
तब तक वीरेंद्रसिंह, कमला के मार्गदर्शन में अपनी सेना के साथ वहां पहुंच चुके थे।
इतनी में ही उन्हें शिवदत्त और उसके सैनिकों ने आकर घेर लिया लेकिन एक अय्यार ने जो खुद को “रूहा” बुलाता था। शिवदत्त को अपने कब्जे में कर लिया।
राक्षसी जैसी दिखनेवाली उस औरत ने तिलिस्म का दरवाजा सिर्फ एक घंटे के लिए खोल दिया।
वीरेंद्रसिंह रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए तो तेजसिंह अपनी तफतीश के लिए अलग चले गए।
“गौहर” के पीछे-पीछे भूतनाथ भी रोहतासगढ़ चला गया।
वीरेंद्रसिंह के अय्यारो ने रोहतासगढ़ में घुसकर इतना उधम मचाया की रोहतासगढ़ ही तबाह हो गया और रोहतासगढ़ के महाराज ने आत्महत्या कर ली।
कमलीनी ने भूतनाथ और नानक को शपथ खाकर अपना भाई मान लिया।
मनोरमा नाम की औरत “भूतनाथ” को कमलिनी की हत्या के लिए उकसाती है।
“मायारानी” जमानिया की महारानी है।
तेजसिंह अपनी अय्यारी से बिहारीसिंह की शक्ल बनाकर मायारानी के गुप्त सुरंग का हाल पता कर लेते हैं। वह इसी तहेखाने में तारासिंह को पाते हैं लेकिन अफसोस असली बिहारीसिंह के आ जाने से पकड़े जाते हैं और गिरफ्तार कर लिए जाते हैं।
“नागर” मायारानी के लिए काम करती है। नागर और भूतनाथ का पति – पत्नी जैसा संबंध है।
मायारानी के राज्य “जमानिया” में एक तिलिस्म है जो कुंवर इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह के नाम पर बंधा है।
अब इस तिलिस्म का टूटना तय है क्योंकि इन दोनों का जन्म हो चुका है लेकिन मायारानी यह नहीं चाहती की यह तिलिस्म टूटे क्योंकि तिलिस्म मे छुपी अनगिनत दौलत और नायाब चीजों के बदौलत वह एक ताकतवर रानी में गिनी जाती है।
देखना है की इस लड़ाई मे मायारानी जीतती है की कमलिनी?
निष्कर्ष: तिलिस्म टूटेगा या नहीं?
बाबू देवकीनंदन खत्री जी ने ‘चंद्रकांता सन्तति – पार्ट 2’ में नई पीढ़ी की कथा को जिस रहस्य और रोमांच के साथ बुना है, वह वाकई काबिले तारीफ है।
अय्यारों की चालाकी और तिलिस्म की जद्दोजहद हमें पन्ना दर पन्ना बाँधे रखती है।
हमारे अनुसार, यह भाग अपनी तेज़ रफ़्तार और नए पात्रों के प्रवेश के लिए **4.5 स्टार** ⭐⭐⭐⭐✨ रेटिंग का हकदार है।
पार्ट 2 का अंत एक बड़े सवाल पर होता है: क्या भूतनाथ अपने वचन का पालन करेगा?
और सबसे बड़ा प्रश्न: क्या इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह के नाम पर बंधा तिलिस्म टूट पाएगा? इस रोमांचक यात्रा को यहीं मत छोड़िए!
अगला भाग: पार्ट 2 के आगे क्या हुआ, यह जानने के लिए, हमारे आने वाले ब्लॉग ”चंद्रकांता सन्तति – पार्ट 3 का रिव्यू और सारांश”** ज़रूर पढ़ें। **
तब तक पढ़ते रहिए, खुशहाल रहिए, और रहस्य की दुनिया में खोए रहिए! मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ….
धन्यवाद !!
बाबू देवकीनंदन खत्री जी के बारे में अधिक जानने के लिए बाबू देवकीनंदन खत्री की जीवनी पढ़ सकते हैं।
“इस पोस्ट की तरह ही अपनी वेबसाइट के लिए SEO ऑप्टिमाइज़ेशन के लिए तुरंत पूछताछ फॉर्म भरें।”
✅ आपको यह ऑडियो समीक्षा कैसी लगी? ऐसे ही रोचक पॉडकास्ट सुनने और अपडेट रहने के लिए हमारे Saransh Book Blogs YouTube चैनल को सब्सक्राइब करें!
(FAQs SECTION) –
Q1: ‘चंद्रकांता संतति – पार्ट 2’ की कहानी किसके बारे में है?
A: यह कहानी मुख्य रूप से चंद्रकांता और वीरेंद्रसिंह के बेटों इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह की नई पीढ़ी पर केंद्रित है। यह उनकी अय्यारी और तिलिस्म तोड़ने की जद्दोजहद को दर्शाती है।
Q2: क्या राजकुमारी चंद्रकांता इस भाग में मौजूद हैं?
A: राजकुमारी चंद्रकांता और महाराज वीरेंद्रसिंह का उल्लेख है, लेकिन जैसा कि रिव्यू में बताया गया है, चंद्रकांता इस भाग में प्रायः नदारद ही हैं। कहानी नई पीढ़ी के इर्द-गिर्द घूमती है।
Q3: इस भाग के मुख्य नए पात्र कौन हैं?
A: इस भाग के मुख्य नए पात्रों में राजकुमारों के अय्यार भैरोंसिंह (तेजसिंह का बेटा) और तारासिंह (देवीसिंह का बेटा), और तिलिस्म की रहस्यमय किरदार कमलिनी शामिल हैं।
Q4: क्या ‘चंद्रकांता संतति’ भाग 2 में तिलिस्म टूट जाता है?
A: इस भाग में इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह के नाम पर बंधे मायारानी के तिलिस्म को तोड़ने की जद्दोजहद दिखाई गई है। हालांकि, उपन्यास का अंत एक ऐसे मोड़ पर होता है कि पाठकों को यह जानने के लिए अगला भाग पढ़ना पड़ता है कि तिलिस्म टूटा या नहीं।