CHANDRAKANTA SANTATI -1 REVIEW IN HINDI

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चंद्रकांता संतति – भाग 1

रिव्यू –
“चंद्रकांता संतति” छह भागों मे लिखा उपन्यास है | यह “चंद्रकांता” के आगे की कहानी बयान करता है | याने के यह उपन्यास चंद्रकांता , वीरेंद्रसिंह , तेजसिंह , देवीसिंह , चपला और चम्पा के संततियो की कहानी है | यह भी एक तिलिस्मी उपन्यास है | तिलिस्म वह जगह होती थी | जहां जानलेवा जाल बिछे होते थे | जिनको उनके बारे में पता नहीं | वह वहाँ अपनी जान गवा बैठते थे |
दूसरे हैं – अय्यार | हर एक राजकुमार और राजकुमारी के साथ एक न एक अय्यार जरूर हुआ करता था | यह भेस बदलने में माहिर होते थे | चालाक , चपल और फुर्तीले होते थे | उनके पास हमेशा एक अय्यारी का बटुआ रहता था जिसमें उनका अय्यारी का सामान होता था | अमूमन , यह सारी चीजे दुनिया में मौजूद चीजों से हटके होती थी जैसे कि जेम्स बॉन्ड के गैजेट्स….
तिलिस्म और अय्यार यह दोनों ही कॉन्सेप्ट पहली बार प्रसिद्ध उपन्यास “चंद्रकांता” से प्रसिद्ध हुए | इस प्रसिद्ध उपन्यास के लेखक बाबू देवकीनंदन खत्री है | उन्हें जंगलों , पहाड़ों में घूमने का बड़ा शौक था | अपनी इसी शौक का इस्तेमाल उन्होंने अपने उपन्यासों चंद्रकांता , चंद्रकांता संतति , भूतनाथ और बाकी उपन्यासों में किया | इन उपन्यासों की कहानी और पात्र तो काल्पनिक है लेकिन राज्यों के नाम व स्थान असली है |
यह सारे राज्य उत्तर प्रदेश में स्थित है | इन कहानियों का काल मुगलों के पहले का बताया जाता है जब दिल्ली पर “लोधी साम्राज्य” था | तब तक बंदूके आ चुकी थी | युद्ध के बाकी सामानों के साथ-साथ इनका भी इस्तेमाल किया जाता था | इसलिए शायद बंदूक का जिक्र उपन्यासों में बहुत बार हुआ है |
अपने बिजनेस के चलते लेखक का सामंतो , राजा – महाराजा और जमींदारों के साथ वास्ता पड़ता था | इसीलिए उनकी जिंदगी में घटनेवाली घटनाओं को उन्होंने पास से देखा | इसलिए शायद उनके उपन्यासो के किरदार प्रायः राजकुमार और राजकुमारी हुआ करते थे| इन लोगों के जीवन का मुख्य हिस्सा रहे दास और दासीयां कहानियों में विलुप्त ही रहे |
जैसे कि हमने बताया लेखक को जंगलों में घूमने का बड़ा शौक था | इसीलिए उनके उपन्यासों की कहानियों का बहुत सा हिस्सा जंगलों में घटित होता था | तिलिस्म क्या होते हैं ? यह तो बताया लेकिन इसका निर्माण कौन कराता था ? यह तो बताया ही नहीं | तिलिस्म वही व्यक्ति तैयार करवाता था जिसके पास ढेर सारा खजाना हो और कोई वारिस ना हो !
तब वह अच्छे-अच्छे ज्योतिषी , जानकार व्यक्तियों से जानने की कोशिश करता था कि उसके या फिर उसके भाइयों के खानदान में कभी कोई प्रतापी पुत्र होगा या नहीं | फिर यह लोग अपनी विद्या के बलबूते भविष्य में जन्म लेनेवाले बच्चों के बारे में बताते थे बल्कि उनकी जन्मपत्री भी लिखकर तैयार करते थे | फिर उसी के नाम से खजाना और अच्छी – अच्छी चीजे रखकर उसके नाम से तिलिस्म बनाते थे |
जमीन के अंदर खजाना रखकर उस पर तिलिस्मी इमारत बनाई जाती थी | ऐसा ही एक तिलिस्म चंद्रकांता के बच्चों के नाम पर भी बंधा था | उस तक पहुंचने के लिए किए गए प्रयत्नों की ही यह कहानी है | लेखक और उनके उपन्यासों के बारे में बहुत कुछ है लिखने के लिए लेकिन वह सब बाकी किताबों के लिए रखते हैं | इस बेहतरीन किताब के –
लेखक है – बाबू देवकीनंदन खत्री
प्रकाशक है – वर्ड वर्थ
पृष्ठ संख्या है – 282
उपलब्ध है – अमेजॉन और किन्डल पर

आईए , इसी के साथ जानते है इस किताब का सारांश –
सारांश –
“नौगढ़” के राजकुमार “विरेंद्रसिंह” की शादी “विजयगढ़” की राजकुमारी “चंद्रकांता” के साथ हो गई है | इस तरह “विरेंद्रसिंह” के अय्यार और मित्र रहे “तेजसिंह” का विवाह चंद्रकांता की मित्र और अय्यारा “चपला” के साथ हो गया है | इसीतरह “देवीसिंह” और “चंपा” की शादी भी हो गई है | यह दोनों भी अय्यार है |
“चंद्रकांता” के बड़े बेटे का नाम “इंद्रजीतसिंह” है | चपला के बेटे का नाम “भैरोंसिंह” है | “चंपा” के पुत्र का नाम “तारासिंह” है | यह तीनों एक ही उम्र के यानी के लगभग 18 से 19 साल के हैं | “चंद्रकांता” के दूसरे पुत्र का नाम “आनंदसिंह” है | “विरेंद्रसिंह” ने “महाराज शिवदत्त” को हराकर “चुनारगढ़” जीत लिया है |
वह अब यहां के महाराज है | उनके साथ बाकी सब लोग यहीं रहते हैं | “शिवदत्त” हारने के बाद “चुनारगढ़” के दक्षिण दिशा में स्थित जंगल में भाग गया है | वही उसने अपने कुछ गिने-चुने अय्यार और साथियों के साथ डेरा बसाया है | उसे उसने “शिवदत्तगढ़” नाम दिया है | “चंद्रकांता” के बड़े बेटे “इंद्रजीतसिंह” के पास एक सौदागर एक अंगूठी लेकर आता है जिस पर एक खूबसूरत लड़की की तस्वीर है | उसे देखकर वह उसके प्रेमपाश में बंध जाते हैं |
एक दिन चंद्रकांता के दोनों पुत्र कश्ती में बैठकर “गंगा नदी” की सैर करने जाते हैं तो वहां किनारे बसे जंगल में गाने – बजाने की आवाज आती है | यह लोग वहां देखने जाते हैं कि कौन है लेकिन वहां परिस्थितियां ऐसे बनती है कि “इंद्रजीतसिंह” लापता हो जाते हैं और कुछ देर बाद “आनंदसिंह” भी ….
अब यह दोनों भाई जिस जगह कैद है | वह जगह बड़ी सुंदर है | वहां किसी भी चीज की कोई कमी नहीं है लेकिन वह एक प्रकार की गुप्त जगह है | वहां कोई भी अपने मर्जी से आ- जा नहीं सकता और ऐसी ही बहुत सारी जगहो का वर्णन प्रस्तुत किताब में है | जहां बहुत सारी खूबसूरत लड़कियां , दासीयां है |
ऐसी जगह की मालकिन प्रायः कोई खूबसूरत युवती ही होती है | और हां , एक बात और .. .. लेखक की कहानियों में बूढ़े पुरुषों को तो स्थान है लेकिन अधेड़ उम्र की औरतें प्रायः नदारत ही होती है और हर तरफ सिर्फ खूबसूरती ही दिखाई देती है |
इन दोनों राजकुमारों के गायब होने के पहले “तेजसिंह” का बेटा “भैरोंसिंह” शिवदत्त के आदमियों द्वारा कैद कर लिया जाता है क्योंकि उसने “इंद्रजीतसिंह” की शक्ल बनाई हुई थी | इसीलिए शिवदत्त ने उसे , अपने दुश्मन का बेटा समझकर अगवा किया | शिवदत्त के कब्जे से उसे छुड़ाने के लिए “चुनारगढ़” के पाँच अय्यार “शिवदत्तगढ़” पहुंच जाते हैं |
इसमें से दो को “बाकरअली अय्यार” गिरफ्तार करता है | “बाकरअली”, “क्रूरसिंह” के अय्यार “नाजिम और अहमद” का रिश्तेदार है और अब “शिवदत्त” का साथ दे रहा है | “नाजिम और अहमद” का जिक्र “चंद्रकांता” उपन्यास मे आ चुका है | बाकी तीनों को “अजायबसिंह अय्यार” गिरफ्तार करता है | इन पांचों को गिरफ्तार करने के लिए यह लोग कौन – कौन सी चाले चलते हैं ? यह तो किताब में ही पढ़ना मजेदार होगा |
“शिवदत्त” को भी एक बेटा है जिसका नाम “भीमसिंह” है | वह भी “इंद्रजीतसिंह” के उम्र का ही है | अब “भीमसिंह” का उपयोग इन पांचों को छुड़ाने के लिए कैसा होता है ? यह भी आप किताब में ही पढ़ लीजिएगा | राजकुमार “आनंदसिंह” को छुड़वाकर सहीसलामत “चुनारगढ़” पहुंचा दिया जाता हैं | अब “इंद्रजीतसिंह” को “माधवी” नाम की लड़की एक गुप्त स्थान पर कैद रखती है | “माधवी”, “गया” देश की रानी है लेकिन इसके राज्य का कारोबार इसका दीवान , सेनापति और कोतवाल चलाते हैं |
“माधवी” के पास दो अय्यार लड़कियां हैं जिनके नाम “ललिता” और “तिलोत्तमा” है | प्रायः हर राजकुमार और राजकुमारी के पास एक या दो अय्यार जरूर होते हैं | अय्यारो की क्या खूबियां होती है ? यह हम रिव्यू में शेयर कर ही चुके है | अतः आगे बढ़ते है | “माधवी” खुद को वह लड़की बताती है जिसकी तस्वीर “इंद्रजीतसिंह” के अंगूठी पर है लेकिन वह झूठी है |
असल में वह तस्वीर “किशोरी” नाम के लड़की की है | यही “किशोरी”, “महाराज शिवदत्त” की बेटी है | “शिवदत्त” ने इस लड़की का त्याग किया है | अब इसका पालन – पोषण इसके नानाजी “रणजीतसिंह” करते हैं | “माधवी’ और “किशोरी” दोनों मौसेरी बहने है | “माधवी”, “किशोरी” को अपनी दुश्मन मानती है | किशोरी की अय्यारा का नाम “कमला” है |
” ललिता” इसी “कमला” का भेस बनाकर “किशोरी” को कैद करती है | अब “विरेंद्रसिंह” के सारे अय्यारो को इंद्रजीतसिंह के बारे में पता चल चुका है | इन अय्यारो में शामिल है “चुन्नीलाल ,पन्नालाल , बद्रीनाथ , चपला” इत्यादि | अब यह लोग पूरे के पूरे “गया राज्य” को गारद करने के लिए कैसा उधम मचाते हैं यह भी आप को किताब पढ़कर पता चलेगा | इन अय्यारो की उपस्थिति से माधवी और तिलोत्तमा के पैरों के नीचे की जमीन ही खिसक जाती है | वह दोनों टेंशन में आ जाती है क्योंकि इन अय्यारो के सामने कोई भी टिक नहीं सकता |
एक – एक अय्यारो के दिलचस्प करनामें पढ़ने के लिए आपको यह किताब पढ़नी होगी तभी आपको पता चलेगा कि उनके सामने कोई दुश्मन क्यों नहीं टिक पाता ? ललिता , किशोरी को अगवा कर माधवी के ही गुप्त स्थान के तहखाने मे रखती है | यहीं पर इंद्रजीतसिंह भी है | एक बार माधवी से गुप्त रास्ते की चाबी छीन कर खुद को स्वतंत्र करने की इरादे से , वह उसी सुरंग में पहुंचते हैं जहां किशोरी कैद है |
यहाँ दोनों की मुलाकात होती है | इस गुप्त स्थान से बाहर निकलने पर “इंद्रजीतसिंह” की लड़ाई “माधवी” के सिपाहियों से होती है | “किशोरी” को “माधवी” का “दीवान अग्निदत्त” उठाकर ले जाता है ताकि माधवी को मार कर वह “गया” का राजा बन सके और साथ मे किशोरी को अपनी रानी ….
जबकि किशोरी के उम्र की उसकी बेटी है जिसका नाम “कामिनी” है जो बाद में किशोरी की सखी बन उसकी बहुत मदद करती है | इधर विरेंद्रसिंह , उनकी फौज और उनके अय्यार “गया” राज्य पर अपना अधिकार कर लेते हैं | वहां का राजा चंद्रकांता की दूसरी संतति “आनंदसिंह” को बनाया जाता है | अब इस गया के राजमहल में इन दोनों राजकुमार और उनके अय्यारो के साथ कौन – कौन सी अजीब घटनाएं घटती है ? यह भी आपको किताब में ही पढ़ना होगा |
बेचारी किशोरी का दुर्दैव उसका साथ छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहा है | इसीलिए तो कुंवर इंद्रजीतसिंह के पास पहुंचने के बजाय वह “रोहतासगढ़” के सैनिकों द्वारा अगवा कर ली जाती है | रोहतासगढ़ के महाराज “दिग्विजयसिंह” अपने बेटे “कल्याणसिंह” का विवाह किशोरी के साथ करना चाहते हैं | किशोरी के लिए रोहतासगढ़ के किले में दो सखियाँ कम दासियाँ नियुक्त की गई है जिनका नाम “लाली” और “कुंदन” है |
यह भी इन दोनों के असली नाम नहीं है | इनके असली नाम कुछ और ही है | लेखक हमेशा ही ऐसा करते हैं | हर पात्र को पहले उपनाम देते हैं | बाद में उनका असल नाम बताते हैं | इसीलिए फिर पाठकों को थोड़ा कंफ्यूजन होता है या फिर पीछे का पढ़ा हुआ याद करना पड़ता है | वैसे “लाली और कुंदन” कौन है ? इसका खुलासा “चंद्रकांता संतति के भाग 4” में दिया है |
वैसे भी लेखक “अध्याय” नहीं “बयान” लिखते हैं | बयान में तो इंसान वही बातें बताता है जो उसे मालूम हो ! न कि उसकी मर्जी से घटी हुई घटनाएं हो ! लेखक भी ऐसा जताते हैं की कहानी के पात्रो और घटनाओं पर उनका कोई बस नहीं | वह उनकी मर्जी से नहीं चलते लेकिन सच तो यह है कि वे पात्रों के स्वभाव , कर्म और कहानी की घटनाओं को अपनी मर्जी से जैसे चाहे वैसे मोड़ सकते हैं | खैर , अभी कहानी पर वापस आते हैं | लाली और कुंदन ऐसे जताती है जैसे कि वह किशोरी का अच्छा चाहती हो | साथ ही उनकी हरकतो से उसे यह भी लगता है कि वह उसका बुरा भी चाहती है | किशोरी को समझ में नहीं आता कि वह किसे अपना माने और किसे नहीं ?
वह ईश्वर को साक्षी रखकर “लाली” के साथ महल से भाग जाने में कामयाब हो जाती है परंतु वह दोनों “रोहतासगढ़” के तिलिस्मी तहखाने में पहुंचकर गिरफ्तार हो जाती है | अब तक रोहतासगढ़ पर महाराज वीरेंद्रसिंह के अय्यारो और फौज ने चढ़ाई कर दी है | इसी के चलते , उनके अय्यार “भैरोंसिंह और तारासिंह” रोहतासगढ़ के राजकुमार “कल्याणसिंह” को अगवा कर “चुनारगढ़” भेज देते हैं |
तेजसिंह अपनी चालाकी और दिलेरी से रोहतासगढ़ के तिलिस्मी तहखाने पर कब्जा जमा लेते हैं | इसी तहखाने मे कुंवर आनंदसिंह , भैरोंसिंह और तारासिंह भी आ पहुंचते है | किशोरी को खतरे में जानकर यह सारे दिग्विजयसिंह के सैनिकों पर टूट पड़ते हैं और गिरफ्तार कर लिए जाते हैं | तब तक महाराज विरेंद्रसिंह बाकी मंझे हुए अय्यारो की मदद से रोहतासगढ़ को बिना युद्ध किए ही जीत लेते है |
जब वीरेंद्रसिंह की फौज ने रोहतासगढ़ को घेरा डाला हुआ था तभी एक रात इंद्रजीतसिंह को उनके खेमे से अगवा कर लिया जाता है | उन्हे कमलिनी नाम की एक बहादुर महिला बचा लेती है | यह तालाब से घिरे तिलिस्मी मकान में रहती है जिसके आजू-बाजू सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम किया गया है |
अब कहानी से हटकर लेखक ने “रामभोली , नानक और धनपती” के पात्रों का परिचय करवाया है | इनका भी संबंध किशोरी और महाराज वीरेंद्रसिंह से जुड़े हर व्यक्ति के साथ है | उनके परिचय के लिए आपको किताब ही पढ़नी होगी | इसके साथ ही और भी पात्र आपसे मिलने आएंगे जिनको उस – उस किस्से के अनुसार कहानी में उतारा गया है |
किशोरी को रोहतासगढ़ के किले के तहखाना के कोठरी में रखा जाता है | महाराज दिग्विजयसिंह के आत्मसमर्पण के पश्चात वह कोठरी खोल दी जाती है लेकिन चार दीवारोंवाली उस कोठरी से किशोरी गायब है | बाद मे पता चलता है की कुंदन बनी धनपती ने उसे गायब किया है लेकिन कैसे ?
बाहर जाकर उसने किशोरी को एक चिता सजाकर उस पर बांधकर रख दिया है और आग लगा दी है | अब आपको पढ़कर यह जानना होगा कि क्या किशोरी चिता में चलकर भस्म हो जाती है ? क्या होता होगा जब कुंवर इंद्रजीतसिंह को इसका पता लगता होगा ? क्या धनपति अपने इरादों में कामयाब हो जाती है ? कैसे बच पाएगी धनपती , वीरेंद्रसिंह के अय्यारो से….पढ़िएगा जरूर ….
तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहीए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए….
धन्यवाद !!

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