CHANDRAKANTA SANTATI-6 BOOK REVIEW

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चंद्रकांता संतति – भाग 6
देवकीनंदन खत्री द्वारा लिखित
रिव्यू –
देवकीनंदन खत्री द्वारा लिखित उपन्यास “चंद्रकांता संतति” उनके ही द्वारा लिखित अन्य उपन्यास “चंद्रकांता” की अगली कड़ी है | यह अत्यधिक लोकप्रिय हुआ था |”चंद्रकांता संतति” मुख्यतः 24 भागों में लिखा गया था | बाद मे इसे 6 खंडों में प्रकाशित किया गया | इसलिए, जब हम “चंद्रकांता संतति 6 ” की बात करते हैं, तो यह इस विशाल श्रृंखला का छठा और आखरी भाग होता है |
यह चंद्रकांता के उत्तराधिकारियों की कहानी है | जहाँ “चंद्रकांता” , राजकुमारी चंद्रकांता और नौगढ़ के राजकुमार वीरेंद्रसिंह के प्रेम और संघर्ष पर आधारित थी | वहीं “चंद्रकांता संतति” उनके बच्चों, विशेषकर इंद्रजीत सिंह और आनंद सिंह के कारनामों का वर्णन करती है | खंड 6 इन राजकुमारों की प्रेम कहानियों, उनकी चुनौतियों और उनके प्रयासों का समापन है |
इस श्रृंखला का केंद्रीय विषय “जमानिया का तिलिस्म” है | यह एक जटिल और रहस्यमय भूलभुलैया है जिसमें अनेक गुप्त मार्ग, जाल और रहस्य छिपे हुए हैं |
“चंद्रकांता संतति” मुख्य रूप से इस तिलिस्म को तोड़ने के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसके बारे में भविष्यवाणी की गई थी कि इसे चंद्रकांता के पुत्र इंद्रजीत सिंह और आनंद सिंह ही तोड़ सकते हैं | वह भी एक किताब की मदद से जिसका नाम “रक्त-ग्रंथ” है | खंड 6 में इस तिलिस्म को तोड़ने के अंतिम चरण और उसके रहस्यों का खुलासा होता है |
देवकीनंदन खत्री के उपन्यासों की एक प्रमुख विशेषता “ऐयार” और “ऐयारी” की कल्पना है | ऐयार कुशल जासूस, भेष बदलने मे माहिर होते हैं जो अपने राजाओं की मदद करते हैं |
प्रस्तुत भाग मे तेजसिंह , देवीसिंह ,पंडित जगन्नाथ जैसे पुराने ऐयार और भैरोंसिंह , तारासिंह , गिरिजाकुमार जैसे नए ऐयार महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं तो साथ मे उनके – उनके राजकुमार और राजकुमारियों को हर पग पर मदद भी करते जाते है फिर वह उनके खिलाफ रची गई राजनीतिक साजिशे ही क्यों न हो ! खंड 6 में इन ऐयारों की भूमिका अपने चरम पर पहुँचती है |
“चंद्रकांता संतति” रहस्य, रोमांच, और कल्पना से परिपूर्ण है | इसमें अलग ही तरह के हथियार और अप्रत्याशित घटनाएँ शामिल हैं | खंड 6 में इन सभी बातों का अंतिम खुलासा और समाधान होता है | “चंद्रकांता संतति” भी अपनी मूल कहानी की तरह ही हिंदी साहित्य में एक मील का पत्थर साबित हुई है |
लेखक का ठेकेदारी का काम जब बंद हुआ तो उन्होंने उपन्यास लिखना शुरू किया | उन्होंने यह उपन्यास सामान्य लोगों की बोलचाल की भाषा में लिखा | इसलिए लोग उसे चाव से पढ़ने लगे और उन्होंने लेखक के उपन्यास को हाथों हाथ लिया |
यह लेखक का चंद्रकांता उपन्यास था जो उन्होंने लोगों के मनोरंजन के लिए लिखा था | कहते हैं कि यह उपन्यास पढ़ने के लिए लोगों ने देवनागरी यानी हिंदी भाषा सीखी | अब हिंदुस्तान में रहकर लोग हिंदी नहीं जानते थे | यह कैसा चमत्कार है ?
तो इसके लिए हमें उस वक्त के बारे में जानना होगा | पहले तो सामान्य जनता पढ़ना लिखना जानती ही नहीं थी | थी भी तो न के बराबर … पुरोहित संस्कृत भाषा पढ़ते थे | दरबार में नौकरी करनेवाले लोग फारसी या उर्दू भाषा सीखते थे और उच्चवर्गीय लोग विलायती स्कूलों में अंग्रेजी भाषा सीखते थे |
लेखक कहते हैं की तब भी उनसे ज्यादा अच्छा लिखनेवाले विद्वान लेखक मौजूद थे | वह अपनी उसी कठिन भाषा शैली या संस्कृत में लेखन करते थे | उन्होंने सामान्य लोगों के लिए कुछ नहीं लिखा उल्टा वह लेखक के लेखन पर टिप्पणी करते थे और उन्हें सलाह देते थे की वह कोई धर्मपरायण किताब लिखे |
उनकी किताब चंद्रकांता प्रसिद्ध होने के बाद उन्होंने चंद्रकांता संतति लिखी | इसमें तिलिस्म और अय्यारी का वर्णन जब बयानों के रूप में प्रसिद्ध होता था तो लोग अपनी भूख प्यास भूल जाते थे |
लेखक के किताब में वर्णित तिलिस्म की नकल दूसरे लेखक भी अपनी किताबों में किया करते जिसमें उन्होंने तिलिस्म को जादू के रूप में दिखाया पर लेखक का कहना है की उनकी किताबों में वर्णित तिलिस्म जादू नहीं बल्कि साइंस के आधार पर संभव बाते है |
इसी तिलिस्म का वर्णन पढ़ना लोगों को अच्छा लगता था | इसी के तहत उन्होंने “दीवार कहेकहा” का उदाहरण दिया और अन्य उदाहरण भी… जो की उस वक्त के न्यूज़पेपर में भी छप कर आए थे | दीवार कहेकहा के जैसी तिलिस्मी दीवार का वर्णन उन्होंने अपने किताब में किया है |
उन्होंने इस दीवार के लिए इस तरह का विश्लेषण दिया कि यह दीवार जिस ऊंचाई तक बनी है | वहाँ लाफिंग गैस का घनत्व ज्यादा है | इसीलिए वहाँ व्यक्ति हंसते ही रहता है | इस दीवार में शायद बिजली का करंट भी आता है जिससे पैरों की ताकत जाती रहती है और इंसान दीवार के उस पार गिर जाता है और लोग यह समझते हैं की दीवार के उस पार जिन्न और परियां रहती हैं जो लोगों को अपनी ओर खींच लेते हैं |
अब लेखक यह भी बताते हैं कि अगर दीवार पर चढ़े लोग हंसते ही रहते हैं तो दीवार बनानेवालों ने इसे कैसे बनाई होगी ? तो ऐसा माना जाता है की दीवार को किसी दूसरी जगह बनाकर यहां रखा गया | देखा जाए तो “दीवार कहेकहां” का शाब्दिक रूप से उपयोग कविता या उर्दू शायरी में किया जाता है |
दीवार कहेकहा के उदाहरण के रूप में चीन की दीवार को देखा जाता है | इस दीवार से जुड़ी एक मान्यता के अनुसार जब कोई इससे नीचे देखता है तो उसे अनियंत्रित हंसी आने लगती है | इस तिलिस्मी और हैरतअंगेज किताब के –
लेखक है – बाबू देवकीनंदन खत्री
प्रकाशक है – फिंगरप्रिन्ट पब्लिकेशन
पृष्ठ संख्या – 296
उपलब्ध – अमेजन और किन्डल पर
और फ्री पीडीएफ़ के रूप मे भी
सारांश –
इस भाग मे गोपालसिंह और उनसे जुड़े लोगों के सारे दुश्मन अपने अंत तक पहुंच चुके हैं | सिर्फ उनका फैसला होना बाकी है | चंद्रकांता संतति में शामिल सभी खलनायक जमानिया के राजा गोपाल सिंह और उनसे जुड़े लोगों के दुश्मन है |
उनका डायरेक्टली वीरेंद्रसिंह और चंद्रकांता से कोई वास्ता नहीं पर जब यह पता चलता है कि गोपालसिंह , चंद्रकांता संतति के यानी के इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह के रिश्ते में भाई लगते हैं | तब यह सब लोग अपने आप ही आपस में जुड़ जाते हैं | इनके अपराधियों की सुनवाई फिर चंद्रकांता के ससुर महाराज सुरेंद्र सिंह के दरबार में ही होती है |
इन सारी कहानीयो में भूतनाथ का नाम उभर कर आता है जिसने इन सब की कहीं ना कहीं , कभी ना कभी मदद की है | अब वह भी अपने अच्छे कामों से महाराज सुरेंद्र सिंह का अय्यार बन गया है | यह उसके लिए बड़े सम्मान की बात है |
महाराज ने उसे अपनी जीवनी लिखने के लिए भी कहा है जिसके लिए उसने हामी भर दी है | अब जानते हैं की भूतनाथ इन सब से कैसे जुड़ा है और वह इतना अहम किरदार क्यों है ? भूतनाथ अय्यारो के अय्यार तेजसिंह के गुरु का शागिर्द है |
वह रिश्ते में अय्यार देवी सिंह का भाई भी लगता है | अपनी ट्रेनिंग पूरी होने के बाद वह अय्यारी के काम के लिए शिवदत्त के ससुर महाराजा रणजीत सिंह के यहां नियुक्त हुआ | वह राजकुमार गोपाल सिंह की शादी के अवसर पर जमानिया आया क्योंकि गोपालसिंह के पिता और महाराज रणजीतसिंह मित्र थे |
महाराज ने अपने बदले भूतनाथ को भेजा | गोपालसिंह की शादी के अवसर पर जमानिया में इतनी उथल-पुथल मची की भूतनाथ वही टिक गया | जमानिया के तिलिस्म के दरोगा के मित्रो मे शामिल है ऐयार इंद्रदेव सिंह , जैपाल यानी रघुवीरसिंह , हेलासिंह (नकली लक्ष्मीदेवी यानी के मूंदर का पिता ) |
इसमें से इंद्रदेवसिंह अच्छाई के रास्ते पर चलनेवाले व्यक्ती है | इंद्रदेवसिंह के मित्रों मे शामिल है – भूतनाथ और बलभद्रसिंह | यह लक्ष्मीदेवी, कमलिनी और लाडिली के पिता है |
जब लक्ष्मीदेवी की शादी राजा गोपालसिंह से होनेवाली थी तब इंद्रदेवसिंह की बेटी इंदिरा लक्ष्मीदेवी के साथ जमानिया आई थी | उसे जब नकली लक्ष्मीदेवी यानी के मूंदर के बारे में पता चला तो वह दारोगा को इसकी खबर करने चली गई पर दरोगा ने इंदिरा को ही अगवा कर लिया और साथ मे उसकी माँ सरयू को भी …
इन सब षडयंत्रों का पता भूतनाथ को तो लगा पर वह लालच में आकर चुप बैठा रहा | उसने बहुत सारी सोने की मोहरे दरोगा से ली | उसने दारोगा और जैपालसिंह को ताकिद दी कि वह किसी को भी नुकसान नहीं पहुंचाएंगे , लेकिन वह दोनों हाँ कर के अपनी बात से मुकर गए |
भूतनाथ ने वह कलमदान भी इंद्रदेवसिंह के घर से चुरा लिया था जिसमें दारोगा और उसके गिरोह का कच्चा – चिट्ठा था | भूतनाथ को इन सारी बातों का पता उन चिट्ठियों से लगा जो हेलासिंह , रघुवीरसिंह और दारोगा ने एक दूसरे को भेजी थी |
इस दौरान भूतनाथ रघुवीरसिंह के घर ऐयारी के काम पर था , पर उसने इतना सब जानने के बाद भी दारोगा के खिलाफ कोई कारवाई नहीं की | उल्टा उसकी मदद की | इस कारण बहुत से लोगों पर आफत आई |
अब भूतनाथ खुद को ही इन सब बातों के लिए जिम्मेदार मानता था और प्रायश्चित करना चाहता था | इसलिए वह कमलिनी से जाकर मिला | इसके बाद उसके किए एक-एक करनामें पढ़ने के लिए आप इस सीरीज को जरुर पढ़े ताकि कुछ अच्छा आपके पढ़ने से छूट न जाए |
इस भाग के पिछले भाग में उन नकाबपोशों का जिक्र है जिन्होंने अपनी मौजूदगी और कारनामों से सबको हैरान कर दिया था और जिनका परिचय पाने के लिए सब बेकरार थे | इन नकाबपोशों में वह लोग शामिल थे जो दोनों राजकुमारों को जमानिया का तिलिस्म तोड़ते वक्त मिले थे क्योंकि यह लोग वहा कैद थे |
इन्हें जमानिया के तिलिस्मी दारोगा ने वहां कैद किया था | दरअसल , यह सब लोग राजा गोपालसिंह के हितैषी थे और इन सबको किसी न किसी तरह दारोगा की असलियत पता चल गई थी | इन लोगों ने गोपालसिंह को असलियत बताई भी पर उन्होंने इन लोगों पर कोई ध्यान ही नहीं दिया |
इसका परिणाम , यह हुआ कि , इन सब लोगों पर मुसीबते आई और साथ में राजा गोपालसिंह पर भी… राजा गोपालसिंह पर तो मुसीबत आनी ही थी क्योंकि एक राजा होने के नाते उन्हें उनकी रियासत में क्या चल रहा है ? इसकी कोई खबर ही नहीं थी |
यह बस अपने कर्मचारियों के भरोसे शासन करना चाहते थे फिर ऐसे राजा पर तो मुसीबत आनी ही थी | जो राजा खुद को नहीं बचा सकता | वह अपनी रियासत को क्या बचाएगा ? अच्छा हुआ भाग्य ने उन्हें दूसरा मौका दिया और उन्होंने इसका सही फायदा उठाया |
जैसे दरोगा के बुरे कामों में साथ देनेवाले बुरे लोग थे | वैसे ही राजा गोपालसिंह का भला चाहनेवाले भी लोग थे | इन्हीं लोगों पर दारोगा ने अनगिनत जुल्म किए | इन लोगों में शामिल है ,दलीपसिंह , भरथसिंह ,अर्जुनसिंह , गिरिजा कुमार और अन्य एक व्यक्ति |
इन लोगों से भी भूतनाथ किसी न किसी तरह से जुड़ा हुआ है | वह कैसे ? और इन लोगों की विस्तृत जानकारी ,भूतनाथ अपनी जीवनी में बतानेवाला ही है | तब आपके साथ हम भी जान लेंगे |
बहरहाल , अच्छे लोगोंवाली टीम का कहना है की चंद्रकांता , चपला और चंपा के बेटों की शादी जल्द से जल्द कराई जाए | अब दोनों राजकुमार दो -दो लड़कियों को पसंद करते हैं | तो क्या दोनों के साथ उनका विवाह होगा ?
वैसे भी कुमार इंद्रजीत सिंह की शादी कमलिनी और किशोरी दोनों के साथ होनेवाली है | इंद्रजीत सिंह के दादाजी चाहते हैं कि इंद्रजीत सिंह की पहली पत्नी किशोरी हो ,ताकि वह पटरानी बने और उसका पुत्र गद्दी का वारिस क्योंकि वह एक राजा की बेटी है पर किशोरी यह सब कमलिनी के लिए चाहती है क्योंकि वह एक पवित्र मन की लड़की है | दूसरे वह कमलिनी के अपने ऊपर उपकार मानती है |
अभी शादी में क्या होता है ? किसके मन की होती है ? और इनकी शादी मे एक ट्वीस्ट भी है | वह आप किताब में ही पढ़ लीजिएगा | राजकुमारों और अय्यारो की शादी के पहले और बाद मे सब लोगों ने तिलिस्म की सैर की | इस तिलिस्म में उन्हें अलग-अलग तरह के खेल देखने को मिले साथ में कई तरह की नायाब चीजे और कभी ना खत्म होनेवाली दौलत मिली |
आखिर में नानक को भी कैद कर लिया जाता है क्योंकि उसे भूतनाथ का बेटा होने के नाते माफ कर दिया गया था ,पर वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आया |
आखिर मे सब कैदियों को राजा गोपालसिंह के हवाले किया गया जिससे गोपालसिंह के खौफ के कारण उनके रहे सहे होश भी जाते रहे क्योंकि वह इनसे गिन – गिन कर बदला लेंगे |
अब आगे क्या होता है ? यह तो आपको किताब पढ़ कर ही जानना होगा | तो इसी के साथ चंद्रकांता संतति के सारे भागों का रिव्यू और सारांश हम आप को बता चुके है | अब आप इन किताबो को पढ़ने का आनंद लीजिए | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहीए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए …
धन्यवाद !!

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