चंद्रकांता संतति – खंड 4
देवकीनंदन खत्री द्वारा लिखित
रिव्यू –
लेखक देवकीनंदन खत्री अपनी खूबसूरत कल्पनाओं में विविध रंग भरकर चरित्र और घटनाओं का वर्णन करते हैं | उनके इसी खूबी के कारण वह पाठकों के मन में अपनी खास जगह बना पाए | लेखक की कहानी रहस्य और रोमांच से भरी होती है | पाठक जब इस कल्पनाओं के जगत की सैर करते है तो उन्हे ऐसे लगता है जैसे वह किसी जेट व्हील पर सवार हो !
चंद्रकांता संतति के सारे भागों को पढ़कर आपको ऐसा ही लगेगा | लेखक के उपन्यास भारत के “हैरी पॉटर” है | इसीलिए तो इतने वर्ष बीतने के बाद भी उनके उपन्यास इतने प्रसिद्ध है | बाबू देवकीनंदन खत्री द्वारा लिखित चंद्रकांता यह उपन्यास 1988 में प्रकाशित हुआ जिसने लोकप्रियता की नई ऊंचाईयों को छुआ |
चंद्रकांता उपन्यास ने पाठकों के बीच क्या-क्या बदलाव किए ? इसके बारे में हम चंद्रकांता इस उपन्यास के रिव्यू और सारांश में बता चुके हैं | लेखक का जन्म 29 जून 1861 को मुजफ्फरपुर , बिहार में हुआ | इनके पिता ईश्वरदास महाराजा रणजीत सिंह के पुत्र शेरसिंह के शासनकाल में काशी जाकर बस गए |
अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद लेखक ने यहां एक प्रिंटिंग प्रेस खोली | इसी प्रेस से उन्होंने हिंदी मासिक “सुदर्शन” की शुरुआत की | लेखक का काशी नरेश ईश्वरी प्रसाद नारायण सिंह से बहुत ही अच्छा संबंध था | इसी अच्छे संबंध के कारण उन्हे चकिया और नौगढ़ के जंगलों में ठेके मिल गए | इससे उनकी अच्छी – खासी कमाई हुई | इसी समय उन्होंने ऐतिहासिक खंडहरों का अच्छा निरीक्षण किया | इससे उनका सैर – सपाटे का शौक भी पूरा हुआ |
जब उनकी ठेकेदारी खत्म हुई तो उन्होंने उपन्यास लिखना शुरू किया | इन उपन्यासों की कहानियों का फाउंडेशन यही जंगल पहाड़िया और ऐतिहासिक इमारतें बनी | प्रकाशको ने भी इन उपन्यासों को बार-बार प्रकाशित किया | ताकि नई पीढ़ी इन किताबों को पढ़ सके | जब की वह विदेशी किताबों के दीवाने हुए फिरते हैं | अपने देश की यह किताबें पढ़कर वह यह जान सके कि हम किसी से कम नहीं | और हम भी “सारांश बुक ब्लॉग्स” के माध्यम से नई पीढ़ी में हिंदी किताबें पढ़ने की रोचकता जगाना चाहते हैं |
बाबू देवकीनंदन खत्री द्वारा लिखित चंद्रकांता और चंद्रकांता संतति वैसे तो इतिहास रचनेवाली किताबें है | इसके अलावा उनके द्वारा लिखित भूतनाथ , नरेंद्र मोहिनी , कुसुम कुमारी , वीरेंद्रवीर , काजर की कोठरी , लैला मजनू , नौलखा हार यह उपन्यास भी काफी प्रसिद्ध है | इस चौथे खंड में चंद्रकांता संतति के चार भाग सम्मिलित है और एक भाग में 13 से 14 बयान लिखे है | इस तिलिस्मी और हैरतअंगेज करनेवाली किताब के –
लेखक है – बाबू देवकीनंदन खत्री
प्रकाशक है – मनोज पब्लिकेशन
पृष्ठ संख्या है – 272
उपलब्ध है – अमेजॉन और किंडल पर
आईए , अब देखते हैं इसका =
सारांश –
चंद्रकांता संतति – खंड 3 में कुंवर इंद्रजीतसिंह और उनके छोटे भाई आनंदसिंह जमानिया के तिलिस्म में फंसे हुए थे | उसके बाद उनकी कोई खैर – खबर ही लेखक ने नहीं ली | अब इस भाग की शुरुआत ही लेखक उस तिलिस्म से की है |
रोहतासगढ़ में चिट्ठियों के कारण भूतनाथ मुजरिम साबित होते जाता है लेकिन उसका कहना है कि वह मुजरिम नहीं है बल्कि अपने आप को बलभद्रसिंह बतानेवाला ही असली मुजरिम है | वह बलभद्रसिंह नहीं बल्कि बालासिंह है | अब अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए भूतनाथ को असली बलभद्रसिंह को ढूंढ कर लाना होगा | इसी वादे पर उसे रिहा किया जाता है |
वह गोपालसिंह से मदद मांगने जाता है | पर न जाने क्यों ? वह मदद करने से इनकार करते हैं | जबकि बलभद्रसिंह तो उनके ससुर ही है | वहां से निराश होकर भूतनाथ इंद्रदेवसिंह से मिलने जाते हैं | इससे पहले भूतनाथ लामा घाटी में अपने ठिकाने पर जाता है | जहां वह उसकी पत्नी और अपने सहयोगियों से मिलता है | इंद्रदेवसिंह से मिलकर भूतनाथ रोहतासगढ़ में घटित सारी बातें बताता है |
वह उसे कलमदान के बारे में भी बताता है जिसे देखकर लक्ष्मीदेवी बेहोश हो गई थी | जिस पर बीच की एक पत्ती पर इंदिरा लिखा था | यह सुनकर इंद्रदेवसिंह आपेसे बाहर हो जाता है | वह भूतनाथ को अपने महल में ही रखकर अपने अय्यारी के सामानों के साथ रोहतासगढ़ रवाना होता है |
इंद्रदेवसिंह लक्ष्मीदेवी के पिता का मित्र था | उसी ने लक्ष्मीदेवी को तिलिस्मी दारोगा की कैद से छुड़ाया था और अपनी बेटी बना कर छिपाकर रखा था | बाद में उसे अय्यारी का प्रशिक्षण देकर अय्यार बनाया ताकि वह अपने ऊपर हुए जुल्मों का बदला ले सके |
इंद्रदेवसिंह रोहतासगढ़ आ जाते हैं | उसके कुछ देर पहले ही रोहतासगढ़ के भूतपूर्व राजकुमार कल्याणसिंह गुप्त रास्ते से सैनिकों को लाकर रोहतासगढ़ पर हमला कर देता हैं | अब सब लोग इस लड़ाई में कुद पड़ते हैं | इस सब हंगामे के बीच आपको नानक के बारे में भी पढ़ने को मिलेगा | नानक भूतनाथ का बेटा है और कमला भूतनाथ की बेटी |
मायारानी जिसका असली नाम “मुन्दर” है | उसे लक्ष्मीदेवी की जगह प्लांट करने के लिए तिलिस्मी दारोगा ने अतीत में क्या-क्या षड्यंत्र किए ? इसका भी खुलासा इसी भाग में होगा |
भूतनाथ के पहरेदार और इंद्रदेवसिंह के अव्वल नंबर के अय्यार सरयूसिंह को अपने शागिर्दों से पता चलता है कि शिवदत्त और मनोरमा की मदद से कल्याणसिंह छूट चुका है | अब यह तीनों मिलकर कुछ सैनिकों के साथ रोहतासगढ़ में मौजूद वीरेंद्रसिंह और बाकी सब लोगों को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं |
यह बातें सरयूसिंह ने भूतनाथ को बताई | दोनों ने निश्चय किया कि उन्हे उनके काम में सफल नहीं होने देंगे क्योंकि इंद्रदेवसिंह अच्छाई का साथ देनेवाला है | तब यह दोनों शिवदत्त , मनोरमा , कल्याणसिंह को रास्ते में ही पकड़ना चाहते हैं | सरयूसिंह को यह भी पता है की यह लोग किस रास्ते से रोहतासगढ़ जानेवाले है |
भूतनाथ , सरयूसिंह और उसका शागिर्द उसी जगह पहुंच जाते हैं | सरयूसिंह , धन्नुसिंह बनकर जो की शिवदत्त का खास आदमी है | मनोरमा को शिवदत्त और कल्याणसिंह से अलग कर देता है और खुद धन्नुसिंह और अपने चेले को मनोरमा बनाकर कल्याणसिंह के साथ रोहतासगढ़ के गुप्त सुरंग में पहुंच जाता है |
कल्याणसिंह गुप्त रास्ते से जाकर शेरअली से मिलता है | अपने पिता के मित्रता का वास्ता देकर उससे मदद मांगता है पर शेरदिल मना कर देता है | अब कल्याणसिंह शेरदिल पर ही झपट पड़ता है तो उसकी मदद के लिए भूतनाथ पहुंच जाता है |
उधर जमानिया के तिलिस्म में इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह को पता चलता है कि राजा गोपालसिंह रिश्ते में उनके बड़े भाई है | नानक को भी उसके पिता भूतनाथ पर आए मुसीबत का पता लगता है तो वह उसकी मदद करने जाता है | तब भूतनाथ मनोरमा को नानक के हवाले कर देता है | मनोरमा नानक को अपनी बातों में फंसा कर अपने आप को छुड़ा लेती है | इंद्रजीतसिंह , आनंदसिंह और गोपालसिंह को तिलिस्म में इंदिरा मिलती है जो इंद्रदेव की बेटी है |
जिस कलमदान को देखकर लक्ष्मीदेवी बेहोश हो गई थी | वह कलमदान इंदिरा के नानाजी दामोदरसिंह ने उसके बचपन में उसकी माँ सरयू के हवाले किया था | तब वह बहुत ज्यादा घबराए हुए थे | उन्होंने अपना हाल किसी से नहीं कहा और अपनी बेटी सरयू और नातिन इंदिरा को अपने दामाद इंद्रदेव के साथ रवाना कर दिया |
इंद्रदेव इन दोनों को छोड़कर वापस जमानिया गए | अपने ससुर का हाल पता करने | तब तक उनके ससुर की हत्या हो चुकी थी | उनकी हत्या का पता लगाने के लिए उन्होंने जमानिया के राजकुमार गोपालसिंह की मदद लेनी चाही क्योंकि गोपालसिंह के पिता की भी हत्या उसी कमेटी ने की थी जिसने इंद्रदेव के ससुर की की थी |
इंद्रदेव और गोपालसिंह भी मित्र थे | गोपालसिंह के पिता की मृत्यु पर दुख व्यक्त करने के लिए राजा रणवीरसिंह जो कि किशोरी के नानाजी थे और शिवदत्त के ससुर ..की तरफ से उनका अय्यार गदाधरसिंह याने के आज का प्रख्यात भूतनाथ आया था | इन दोनों ने उसकी भी मदद ली |
दरअसल इस कमेटी के मेंबर इंदिरा के नाना भी थे | पहले यह कमेटी अच्छे कामों के लिए स्थापित हुई थी | अब इसमें बेईमान लोग बसते जा रहे थे जो राज्य के खिलाफ षड्यंत्र रच रहे थे लेकिन दामोदरसिंह चाहकर भी यह कमेटी छोड़ नहीं सकते थे | नहीं तो वह जान से मारे जाते | इसलिए उसने इस कमेटी और इसके हर एक मेंबर के खिलाफ सबूत इकट्ठा करके उस कलमदान में रख दिए |
यही कमेटी इंदिरा और उसकी माँ सरयू का भी अपहरण करती है | इसका मुखिया दारोगा है | भूतनाथ ने इंदिरा को छुड़ाकर बलभद्रसिंह के घर छोड़ था क्योंकि बलभद्रसिंह और इंद्रदेव मित्र थे | बलभद्रसिंह के यहां रहते हुए इंदिरा और लक्ष्मीदेवी की अच्छी बनने लगी थी |
लक्ष्मीदेवी की शादी के बाद उनकी जगह मूंदर को देखकर वह इसकी इत्तला करने गोपालसिंह के कमरे में जाती है | वहाँ वह दारोगा को पाकर , उसी को सारी बातें बता देती है | अब दरोगा ही इन सब षड्यंत्रो के पीछे था तो वह इंदिरा को फिर से कैद कर लेता है |
इंदिरा की कहानी बहुत लंबी है | वह तारासिंह की माँ चंपा के हाथ भी लगती है | अब वह चंपा के साथ है तो सुरक्षित है फिर वह तिलिस्म में कैसे कैद है ? और तारासिंह ने नानक के घर पहुंचकर वहां क्या देखा ? इन सवालों के जवाब के लिए आपको यह किताब पढ़नी होगी |
रोहतासगढ़ की लड़ाई में शिवदत्त मारा जाता है | कल्याणसिंह भी आत्महत्या कर लेता है | अब रोहतासगढ़ में इन लोगों का कोई दुश्मन बाकी नहीं | ऐसा इनको लगता है पर अभी मनोरमा , मायारानी , नागर और तिलिस्मी दारोगा बाकी है |
यह लोग अपनी दुश्मनी निभाने के लिए क्या-क्या करते है ? यह जानने के लिए और ..
रोहतासगढ़ से निकलकर वीरेंद्रसिंह , तेजसिंह , किशोरी , कामिनी , कमला चुनारगढ़ के लिए जाते हैं | इस बीच मनोरमा , किशोरी , कामिनी और कमला तीनों का कत्ल कर देती है | जिस तिलिस्म में इंद्रजीतसिंह , आनंदसिंह है | उसी तिलिस्म में इंदिरा की माँ सरयू भी फ़सी है ?
तो क्या दोनों कुमार उसे छुड़ा पाते हैं ? क्या किशोरी , कमला , कामिनी सचमुच मारी जाती है ? आखिर में कृष्ण जिन्न भी अपनी असलियत सब पर जाहिर करते हैं ? उपयुक्त सारे सवालों के जवाबों के साथ-साथ कृष्ण जिन्न की असलियत जानने के लिए जरूर पढ़िए | भारत की “हैरी पॉटर” चंद्रकांता संतति – भाग 4 तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ….
धन्यवाद !!