CHANDRAKANTA SANTATI – 3 REVIEW HINDI

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चंद्रकांता संतति – भाग 3
देवकीनंदन खत्री द्वारा लिखित

रिव्यू –
जैसा महाराज वीरेंद्रसिंह और चंद्रकांता के नाम पर तिलिस्म बँधा था वैसा ही तिलिस्म इनके दोनों बेटे के नाम पर भी बंधा हुआ है जो जमानिया में स्थित है जिसके महाराज राजा गोपालसिंह थे और अब उसकी महारानी मायारानी है | तिलिस्म का नियम है कि जिसके नाम पर वह बंधा है | वही उसे तोड़ेगा और उसकी सारी संपत्ति ले लेगा |
इसी संपत्ति को मायारानी बचाना चाहती है | वह यह संपत्ति उनके हकदारों को देना नहीं चाहती | वह नहीं चाहती कि यह तिलिस्म टूटे और वह कंगाल हो जाए | इसीलिए वह इन दो राजकुमारों को इस तिलिस्म से दूर रखना चाहती है | इसलिए वह क्या-क्या उपदव्याप करती है ? कौन-कौन उसका साथ देता है ? कौन-कौन नहीं ? यही सब उठापठक आप इस भाग में पढ़ पाओगे |
उसने इस खजाने के लिए वीरेंद्रसिंह से भी दुश्मनी मोल ली है | इसी कारण वीरेंद्रसिंह की बीस हजार की फौज उसके जमानियाँ पर चलकर आई है | साथ में वीरेंद्रसिंह के अय्यारों से भी उसे सामना करना है | यह भाग पढ़कर आप जान पाएंगे की किसकी हार होती है और किसकी जीत ?
प्रस्तुत भाग के –
लेखक है – देवकीनंदन खत्री
प्रकाशक है – मनोज पब्लिकेशन
पृष्ठ संख्या है – 264
उपलब्ध है – अमेजॉन और किंडल पर

चंद्रकांता संतति 24 भागों में लिखा गया था | बाद में इसे 6 खंडों में प्रकाशित किया गया | इसमें मुख्यतः चंद्रकांता और वीरेंद्रसिंह के दो पुत्रों की कहानी बताई गई है | इसके अलावा भी और पिता , पुत्र , पुत्री की कहानीयां इसमें शामिल है | इसमें दो से तीन पीढ़ियां शामिल है और सबसे छोटी पीढ़ी बड़ों का मान और सम्मान करना अच्छे से जानती है जो प्रायः आज के जमाने मे नदारद ही है |
प्रस्तुत उपन्यास की कथा बनारस से बिहार के क्षेत्र में घटित होती है | बहुत सारे महाराज और उनके राज्य हैं और बहुत सारे पात्र है | सबके साथ कुछ ना कुछ घटित होता ही रहता है | इसलिए घटनाओं और पात्रों का जैसे अंबार लगा है |
इसलिए हर एक घटना अपने आप मे अलग है | बहुत सारी जगह अलग -अलग घटनाए घटती रहती है | इसीलिए पाठक कभी-कभी भटक सकते हैं पर लेखक की कहानी पर पकड़ अच्छी है | वह हर एक पात्र का परिचय , उससे जुडी घटना की जानकारी अचूक देते हैं | वह अवास्तविक वर्णन करने से बचते हैं | जितने पुरुष पात्र है | लगभग उतने ही स्त्री पात्र भी है जिनमें रानी से लेकर तो सामान्य दासी तक शामिल है |
इनमे कुछ किरदार आदर्शवादी है तो कुछ आदर्शहीन हैं | प्रायः अच्छे चरित्र का बोलबाला है | राजाओं को उनके धन और राज्य के कारण बहुत सारे कष्ट भुगतने पड़ते हैं | उनका जीवन कितने खतरे में रहता है | इसकी प्रचिती आपको प्रस्तुत किताब में वर्णित राजा गोपालसिंह के जीवन से आएगी जिनके साथ उनके विश्वसनीय कर्मचारी ही धोखा करते हैं |
कुछ कर्मचारी निष्ठावान है तो कुछ कर्मचारी धोखेबाज भी .. ऐसे ही बहुत सारे किरदार है जो षड्यंत्र के शिकार होते हैं | चंद्रकांता संतति के इन्हीं 24 भागों में भूतनाथ का नाम उभरकर आता है | उसकी भूमिका इन कहानियों में महत्वपूर्ण है तो विवादास्पद भी..
आगे चलकर यही भूतनाथ उपन्यास का नायक बन जाता है | भूतनाथ का बेटा , बेटी और पत्नी भी किरदार के रूप मे मौजूद है | उपन्यास में कौतूहल है | उत्सुकता है तो रोमांस भी है | कामालिप्त और धन के लोभी स्त्रियों के षडयंत्रों को लेखक ने बखूबी वर्णित किया है | हम ऐसे किरदारों को झूठला नहीं सकते क्योंकि यही समाज का वास्तविक दर्शन है |
लेखक हमेशा ही अच्छाई का समर्थन करते नजर आते हैं | इसे सिर्फ एक तिलिस्मी उपन्यास ना माने बल्कि यह एक सामाजिक उपन्यास है जिसमें लेखक नैतिकता का संघर्ष दिखाते हैं | एक तरफ माधवी , मायारानी , नागर जैसी कुलक्षणी स्त्रियां है तो दूसरी तरफ लक्ष्मीदेवी , कमलिनी , किशोरी जैसी सुसंस्कारी और अच्छे चाल – चलन की भी लड़कियां है |
लेखक अपने उपन्यासों के माध्यम से जीवन में नैतिक मूल्यों की स्थापना करना चाहते हैं | वह एक आदर्श समाज चाहते हैं जिनमें अच्छे व्यक्तियों का ही बोलबाला हो ! कुल मिलाकर वह धर्म की स्थापना और अधर्म का विरोध करना चाहते हैं | दुर्भाग्य से लोगों ने इसके सामाजिक और नैतिक पक्ष पर उतना ध्यान ही नहीं दिया | देखा जाए तो यह अच्छे चरित्र और नैतिकता के लिए संघर्ष करनेवाला एक उत्कृष्ट और महत्वपूर्ण उपन्यास है |
लेखक देवकीनंदन खत्री इन्होंने हिंदी के साहित्यिक क्षेत्र में क्रांति लाई थी | लेखक के उपन्यासों में क्रूरता को कोई स्थान नहीं है | इसका कारण यह हो सकता है कि वह नैतिकता और अच्छाई को प्रमोट करना चाहते हो !

सारांश –
आनंदसिंह , इंद्रजीतसिंह , कमलिनी और लाडली जमानिया राज्य में स्थित तिलिस्म के चौथे दर्जे के बाग में पहुंच गए थे | इस बाग के बारे में सीमित लोग ही जानते थे | दोनों राजकुमारों को वहां छोड़ कमलिनी और लाडली अपने-अपने काम करने चली गई | तिलिस्म के चौथे दर्जे के देव मंदिर के मकान से कुंवर आनंदसिंह को एक औरत के रोने की आवाज आई | साथ भी उस मकान में एक नकाबपोश आदमी भी दिखा |
अपने बड़े भाई की आज्ञा लेकर कुंवर उस मकान में घुसे पर वह आदमी उन्हें कहीं नहीं मिला | उल्टा वह संकट मे फंस गए | वह दूसरे दिन तक वापस नहीं आए तो कुंवर इंद्रजीतसिंह को बड़ी चिंता सताने लगी | उनकी यह चिंता बांटने के लिए वहां कोई नहीं था | वह कुछ कर भी नहीं सकते थे क्योंकि सभी मकानों के दरवाजे बंद थे | तब तक कमलिनी और लाडली वहां पहुंच चुकी थी |
उन्होंने कुंवर की परेशानी जानी और देव मंदिर के मकान की जांच करने लगी | तभी एक मकान की छत से एक नकाबपोशने एक चिट्ठी डाली | उस चिट्ठी में अय्यारी भाषा में एक संदेश लिखा हुआ था जो कुंवर को समझ गया |
दूसरे दृश्य मे जमानिया की महारानी और राजा गोपालसिंह की पत्नी मायारानी तिलिस्मी बाग मे कमलिनी की राह देख रही थी ताकि वह उसे गिरफ्तार कर सके | यद्यपि , कमलिनी और लाडिली , मायारानी की छोटी बहनें थी | कमलिनी की गिरफ्तारी के लिए उसने ढेर सारे सैनिक भेजे थे जिनमें महिला और पुरुष दोनों थे | उनकी अगुवाई धनपत कर रही थी लेकिन कमलिनी की जगह वहां दोनों नकाबपोश आए |
उन्होंने धनपत की असली सच्चाई सैनिकों को बताई कि वह औरत नहीं पुरुष है | उसी के कारण उनके प्यारे राजा गोपाल सिंह अभी-अभी मारे गए | यह सुनकर सारे सैनिक धनपत और मायारानी के खिलाफ हो गए | इन सब सैनिकों को सबक सिखाने के लिए मायारानी ने तिलिस्म का जाल बिछाया पर वह कुछ ना कर सकी |
इसके पहले ही उन दोनों नकाबपोशों ने सारे सैनिकों को तिलिस्म से बाहर निकाल दिया | उन दोनों नकाबपोशों में से एक खुद “राजा गोपालसिंह” थे और दूसरा “भूतनाथ” था | इस पात्र पर लेखक ने उपन्यासों की अलग श्रृंखला ही लिखी है | उस वक्त इसका भी परिचय पा लेंगे |
भूतनाथ , आपको तो याद ही होगा | इसका परिचय पिछले किताब में मिलता है | इसने मायारानी के साथ ऐसा बर्ताव किया जैसे यह उसका बहुत बड़ा हितैषी हो ! पर असल में वह राजा गोपालसिंह का काम कर रहा था |
धनपत और सारे सैनिकों की कारवाई मायारानी की दासी “लीला” देख रही थी | उसी ने सारी खबर मायारानी तक पहुंचाई | मायारानी सिर्फ पांच दासियों और कुछ तिलिस्मी सामान के साथ जंगल में भटक रही थी |
इधर राजा गोपालसिंह देव मंदिरवाले हिस्से में आकर कुंवर इंद्रजीतसिंह , कमलिनी और लाड़िली से आकर मिलते हैं | वह चारों मिलकर कुंवर आनंदसिंह को छुड़ाने के लिए देव मंदिर के एक मकान में जाते हैं लेकिन कुंवर वहाँ नहीं है | वह तिलिस्म के अंदर चले गए हैं |
वहां पहुंचकर कुंवर इंद्रजीतसिंह खंजर से कुएं के अंदर उजाला कर के देखते हैं | वहां उन्हें कुछ दिखता है | उसे देखकर वह भी कुएं में छलांग लगा देते हैं | अब बाकी तीनों अफसोस करते हुए वापस लौट आते हैं |
उनके साथ अब तक धनपत भी था | धनपत को राजा गोपालसिंह एक कुएं में धकेल देते हैं | कुंवर इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह ने “रक्तग्रंथ” भी पढा है पर उन्हें कुछ-कुछ शब्द समझ नहीं आ रहे थे | इसलिए राजा गोपालसिंह ने उन्हें एक ट्रिक बताई जिससे अब वह कोई भी तिलिस्मी किताब पढ़ सकते है |
“मनोरमा और नागर ” , मायारानी की वफादार थी | इनका जिक्र भूतनाथ की किताब में आया है | वहां उनके बारे में हम आपको डिटेल में बताएंगे | इसी के घर मायारानी ने किशोरी और कामिनी को कैद करके रखा था | सो , वीरेंद्रसिंह के अय्यारों की पहुंच वहां भी हो जाती है | अतः उन्होंने दोनों को वहां से छुड़ा लिया | अब मनोरमा का भी ठिकाना अय्यारो को पता चल गया था | इसलिए मायारानी अब वहां भी शरण नहीं ले सकती थी |
इसी का विचार करते हुए वह अपने दासियो के साथ जंगल में बैठी थी | तभी कुछ चोरों ने अपना सामान उनके पास फेंका और वहां से भाग गए | उन चोरों का पीछा कुछ सैनिक कर रहे थे | अब उन्होंने मायारानी को ही चोर समझकर घेर लिया |
तिलिस्मी बंदूक से मायारानी ने खुद को , लीला को , अपनी दासियों को बचाया | जिन चोरों ने मायारानी के पास चोरी का सामान फेंका था | वह भूतनाथ और देवीसिंह के आदमी थे | अब यह दोनों दरोगावाले बंगले के पीछेवाले टीले के गुप्त सुरंग से देवमंदिर के चौथे दर्जे में पहुंचना चाहते थे |
उनके पीछे-पीछे मायारानी और नागर भी पहुंची जो मायारानी को रास्ते में ही मिली थी | मायारानी ने अपनी तिलिस्मी बंदूक से देवीसिंह और भूतनाथ दोनों को बेहोश किया |
इसी वक्त सुरंग की दूसरी ओर से गोपालसिंह , लाडिली और कमलिनी भी आ रहे थे | अतः यह तीनों भी बेहोश हो गए | अब मायारानी इन पांचो को मारना चाहती थी पर उसने इन्हें क्यों नहीं मारा ? और नागर ने ऐसा क्या कहा जिसकी वजह से यह पांचों जिंदा रहे | यह तो आपको किताब पढ़कर ही जानना होगा |
तब तक उसी सुरंग में मायारानी का तिलिस्मी दरोगा भी आ जाता है | उसकी मदद से वह इन पांचो को उसके बंगले में लेकर जाती है | वह बहाने से दरोगा को उसके राज्य के दीवान से निबटने के लिए भेजती है और इधर बंगले को आग लगाकर पांचो को मार देती है |
वहां से वह मनोरमा के घर काशी चली जाती है | इधर बाबा लौटकर आते हैं | बंगले को जला हुआ पाते हैं | वह एक चिट्ठी मायारानी को भेजते हैं जिसमें वह बताते हैं कि असल में वह तिलिस्मी दारोगा नहीं बल्कि उसके भेस में अय्यारो का अय्यार “तेजसिंह” है | वह पांच लोग मरे नहीं बल्कि जिंदा है |
यह पढ़कर तो मायारानी के पैरों के नीचे की जमीन ही खिसक जाती है | इधर इंद्रजीतसिंह कुएं में छलांग लगाने के बाद एक बगीचे में पहुंचते हैं | वहां वह रक्तग्रंथ आराम से पढ़ते हैं फिर उस किताब में लिखे अनुसार करते जाते हैं तो उन्हें उनके भाई आनंद सिंह मिल जाते हैं |
मायारानी ने काशी में मनोरमा के घर पनाह ली थी | वहां उसका और नागर का जमकर झगड़ा होता है | मायारानी के वहां से जाने के बाद नागर से “श्यामसुंदर” नाम का आदमी मिलता है | वह अपने साथियों के साथ नागर का अपहरण कर लेता है पर वह किसी और का प्यादा है ? कौन है उसका स्वामी ? इसका जवाब भी आप को किताब मे ही मिलेगा |
मायारानी और तिलिस्मी दारोगा मिलकर कमलिनी , लाडिली , राजा गोपालसिंह , महाराज वीरेंद्रसिंह और उनके अय्यारों से बदला लेना चाहते हैं | इसलिए वह दारोगा के गुरु भाई इंद्रदेवसिंह के पास मदद के लिए जाते हैं | जैसे ही इंद्रदेव को इन दोनों के कुकर्मों का पता चलता है | वह इन दोनों की मदद करने से मना कर देते हैं | इस इंद्रदेव की शानो – शौकत का बयान , उसके गुप्त घर में जानेवाले रास्ते का वर्णन लेखक ने तसल्ली से किया है | जरूर पढ़िएगा | वैसे भी उनके जमाने के लोगों का कहना था कि जब भी उनके नए बयान आते थे | वह लोग अपनी भूख – प्यास यहां तक की अपनी नींद भी भूल जाते थे | खैर , कहानी को आगे बढाते हैं |
अब मायारानी और तिलिस्मि दारोगा , इंद्रदेव के घर से चुपके से भाग जाते हैं | अब वह इंद्रदेव से भी बदला लेना चाहते हैं | इसलिए वह अपने जैसे बुरे लोगों को ढूंढ रहे हैं | जैसे कि शिवदत्त , माधवी , शेरसिंह इत्यादि |
मायारानी वास्तव में कमलिनी की बहन नहीं थी और ना ही तो राजा गोपालसिंह की पत्नी …. कमलिनी की असल बहन “लक्ष्मीदेवी” थी जिसकी जगह मायारानी ने ली थी | इसमें उसकी मदद तिलिस्मी दरोगा ने की थी |
कमलिनी के तालाबवाले मकान में किशोरी , कामिनी को तारा के पास पहुंचा दिया जाता है | उसके कुछ दिन बाद उस मकान पर कई सैनिकों द्वारा हमला किया जाता है | यह सैनिक मायारानी , शिवदत्त और माधवी के है क्योंकि यही तीनों इसी मकान के तहखाने में कैद है |
अब इस तालाबवाले मकान में सुरक्षा के क्या – क्या इंतजाम है जिनका इस्तेमाल करके तारा अपनी और बाकी लोगों की सुरक्षा करती है | घटनाएं एक के पीछे एक कैसे घटती है ? किताब पढ़कर जानना ही उचित रहेगा | तारा को पता चलता है की है कैदी लोग फरार है | इस पर उसे “भगवानी” नाम की नौकरानी पर शक होता है क्यों ? क्योंकि यह जमानिया से कमलिनी के साथ आई थी | कमलिनी , मायारानी की बहन है और मनोरमा , मायारानी की सहेली |
इसी से मनोरमा , भगवानी को जानती थी | मनोरमा ने भगवानी को पैसे का लालच देकर अपना काम निकलवाया | भगवानी , तारा , किशोरी और कामिनी को सुरंग में बंद करके भाग जाती है | कमलिनी ने उसके पीछे पहले से ही श्यामसिंह नाम के अय्यार को लगाया होता है | वह उसे पकड़ लेता है | तभी तेजसिंह , देवीसिंह , भैरोंसिंह , कमला , कमलिनी , लाडिली , भूतनाथ वहां पहुंच जाते हैं |
उससे जानकारी हासिल कर के यह लोग उन तीनों को बचाने के लिए तालाबवाले मकान की तरफ जाते हैं | भूतनाथ को वह भगवानी के पास छोड़ जाते हैं | तभी वहाँ एक अनजान आदमी आता है | वह अपनी बातों से भूतनाथ को डरा देता है | वह लड़ाई में भी भूतनाथ से कई बढ़कर है | उसके पास एक पोटली है | उस पोटली में जो समान है | भूतनाथ उसी से डरता है |
तभी और एक नकाबपोश आकर उनसे वह गठरी छीन ले जाता है | भूतनाथ बेबस होकर उस विचित्र आदमी के साथ जाने लगता है की देवीसिंह से उसकी मुलाकात होती है | देवीसिंह पत्थरों से उस आदमी को घायल कर देते हैं | तब तक तेजसिंह भी उस गुप्त जगह पर पहुंच जाते हैं | जहां कमलिनी , लाडिली , भैरोंसिंह इन्होंने तारा , किशोरी , कामिनी को छुड़ाकर लाया है |
देवीसिंह उस घायल आदमी को भी वही लेकर आते हैं | उसका मुंह धोने के बाद तारा उसे पहचान जाती है | वह उसकी शिनाख्त अपने पिता “बलभद्रसिंह” के रूप में करती है क्योंकि वास्तव में “तारा” ही “लक्ष्मीदेवी” है | वह कमलिनी और लाडिली की बड़ी बहन है और राजा गोपाल सिंह की ब्याहता पत्नी भी ….
तेजसिंह वह गठरी खोलते हैं जो उन्होंने नकाबपोश बनकर बलभद्रसिंह से चुराई थी | उस गठरी मे एक संदूक है और चिट्ठीयों का एक पुलिंदा | उनको पढ़कर एक के बाद एक भयानक राज खुलते जाते हैं जिसमें भूतनाथ का भी अतीत शामिल है | वह आप किताब में ही पढ़ लीजिएगा | यह बात बताकर हम आपका किताब पढ़ने का मजा खराब नहीं करना चाहते |
उन चिट्ठियों को पढ़कर भूतनाथ सब की नजरों में गुनहगार साबित होते जाता है पर उसका कहना है कि वह गुनहगार नहीं और बलभद्रसिंह भी असली बलभद्रसिंह नहीं | उसी ने उसको फसाया है | इस बीच कहानी में एक अनजान व्यक्ति भी शामिल होता है जो अपने आप को “कृष्ण जिन्न” कहता है | उस गठरी मे मौजूद कमलदान को देखकर लक्ष्मीदेवी बेहोश हो जाती है | क्या है इन सब घटनाओं के पीछे का राज ? पढ़ कर जरूर जानिए चंद्रकांता संतति – भाग 3 |
तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ….
धन्यवाद !

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