चक्रव्यूह
वेद प्रकाश शर्मा द्वारा लिखित
रिव्यू –
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चक्रव्यूह एक ऐसे यंग वकील लड़की की कहानी है जो एक बेगुनाह के आसपास बुने हुए जाल को सुलझाते – सुलझाते खुद ही अपराधियों के जाल में फंस जाती है | पढ़कर जरूर जानिएगा कि वह हर एक मोड़ पर जिन गुत्थियों को सुलझाती है |
वह वाकेही ही अपनी होशियारी से सुलझाती है या अपराधी द्वारा फैलाया हुआ जाल है | आखिर में वह एक तेजतर्रार वकील के रूप में सामने आती है या निरी बेवकूफ के रूप में ..
प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – वेद प्रकाश शर्मा
प्रकाशक है – तुलसी पेपर बुक्स
पृष्ठ संख्या है – 168
उपलब्ध है – अमेजॉन
उपन्यास सचमुच पाठकों के लिए चक्रव्यूह साबित होता है | आप इस चक्रव्यूह को तोड़ नहीं पाएंगे ! इसका मतलब कि , आप कहानी खत्म होने के पहले असली मुजरिम नाम नहीं जान पाएंगे | इंसान का दिमाग एक अलग ही अजूबा है | इसी के बलबूते उसने नए-नए आविष्कार कर अपने से भी ताकतवर चीजों पर काबू पाया | इसी के बलबूते पर अपराधी अपराध कर कानून से बचना चाहते हैं लेकिन वह कहते हैं ना कि भगवान हर जगह मौजूद है | उसके आगे किसी का बस नहीं |
इसी के चलते यह लोग एक न एक गलती कर बैठते हैं और सजा पाते हैं | प्रस्तुत कहानी में भी ऐसा ही होता है | खुद को शातिर समझने वाला कातिल सिर्फ और सिर्फ एक गलती करता है और उसके सारे किए कराए पर पानी फिर जाता है |
लेखक किसी न किसी पात्र के द्वारा अपना और अपनी किताबों का प्रमोशन करते दिखेंगे | कहानी अगर आप गौर से पढ़ोगे तो आप के ध्यान में आएगा कि वह कातिल के बारे में एक-एक क्लू छोड़ते भी जाते हैं |
मुश्किल से यह तीन या चार दिन की कहानी है | जब किरण इन्वेस्टिगेशन शुरू करती है तो शुरू होता है हत्याओं का नया सिलसिला .. अब इन हत्याओं के पीछे एक ही व्यक्ति है या अलग-अलग ? क्या मकसद है इनके पीछे ? क्या किरण इन सब तक पहुंच पाती है ?
अब थोड़ा लेखक के बारे मे भी जान लेते है | जैसा की आप जानते है | इनकी बहुत सी किताबों पर नब्बे के दशक मे फिल्म्स और सीरियल भी बन चुकी है | लेखक अपने जमाने के बहुत ही प्रसिद्ध लेखक रहे है | उन्हे लोगों का ढेर सारा प्यार मिला | क्यों ? उस का भी एक कारण है | वह यह की –
लेखक के पल्प साहित्य के क्षेत्र मे उतरने के पहले पल्प साहित्य बदनाम था क्योंकि इसे लिखने वाले लोगों ने कहानी से ज्यादा अश्लीलता परोसी | इसलिए फिर ऐसा साहित्य पढ़ने वालों की संख्या कम थी | इन्हें पढने वालों को यह किताबें छुपाकर पढ़नी पड़ती थी | अतः यह किताबें बिकती भी कम थी |
लेखक ने अपनी किताबों के माध्यम से इन सब बातों को बिल्कुल प्रमोट नहीं किया बल्कि उन्होंने साफ सुथरी और अच्छी कहानियां लिखी जिसे पूरा परिवार पढ़ सके | पल्प साहित्य में साफ सुधरी और अच्छी कहानीयां लिखने की प्रथा लेखक ने ही प्रचलन में लाई |
उनका कहना था कि अच्छी कहानियों के लिए इन सब बकवास बातों की कोई आवश्यकता नहीं | उन्होंने पल्प साहित्य को बदनाम करने वाली चीजों को कभी भी अपने उपन्यास में प्रधानता नहीं दी | इसलिए लोगों ने उनके उपन्यासों को हाथों-हाथ ले लिया | अपनी सर – माथे लगाया और उन लोगों को अच्छा सबक सिखाया जिन्होंने कहा कि अश्लीलता के बगैर उपन्यास चल ही नहीं सकते |
लेखक जब केवल एक पाठक थे तब वह मर्डर मिस्ट्री वाले उपन्यास बहुत पढ़ते थे लेकिन उन उपन्यासों के अंत को पढ़कर अक्सर वह झुंजला जाते क्योंकि कहानी के अंत में ऐसे किसी किरदार को अपराधी बताया जाता जिसका कहानी से दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं |
उस वक्त लेखक सोचते कि , यह तो लेखक ने पाठकों को बेवकूफ बना दिया | उसने कहानी में कोई भी क्लू नहीं छोड़ा और अंत में पाठक को कोई और ही कहानी पढा दी | इससे लेखक में खींज पैदा होती थी |
लेखक नहीं चाहते थे कि वही खीज उनके पाठकों मे भी पैदा हो ! इन सब कमियों को पूरा करती हुई उनकी किताबें है | लेखक की किताबों में अपराधी को पहचाना जा सकता है | वह जगह-जगह क्लू छोड़ते जाते हैं | अगर पाठक अपराधी को पहचान गए तो उन्हें सुकून मिलता कि उन्होंने कहानी को ध्यान से पढ़ा |
सारांश –
शेखर मल्होत्रा नामक युवक को उसकी पत्नी की हत्या के जुर्म में सजा होने वाली है | हो सकता है कि उसे फांसी हो जाए ! वह अपनी सजा के कुछ दिन पहले बैरिस्टर विश्वनाथ के ऑफिस में आता है | यह बताने के लिए कि वह बेगुनाह है |
चूंकि बैरिस्टर विश्वनाथ सरकारी वकील है और शेखर मल्होत्रा के खिलाफ केस लड़ रहे हैं | इसलिए वह चाहता है कि अपने बेगुनाह होने की बात वह सरकारी वकील , उसके खुद के वकील और जज साहब को बता दे ताकि वह सुकून के साथ मर सके |
उसकी यह बेगुनाह होने वाली गिड़गिड़ाहट को सुनकर बैरिस्टर वकील की बेटी किरण को उस पर तरस आता है | किरण दिमाग से बहुत ही शार्प लड़की है | उसे शेखर मल्होत्रा की बातों पर यकीन हो जाता है कि वह बेगुनाह है |
तभी वह उसकी केस को रिइन्वेस्टिगेट करने का फैसला करती है | शेखर मल्होत्रा की पत्नी संगीता , बैरिस्टर विश्वनाथ के मित्र की ही बेटी थी | इसीलिए भी शायद बैरिस्टर विश्वनाथ उसे बेकसूर मानने के लिए तैयार नहीं है |
किरण केस के सिलसिले में शेखर मल्होत्रा की कोठी की तरफ जाते रहती है तभी उसकी गाड़ी पर गोलियां बरसाई जाती है | वह बाल – बाल बचती है | तभी उसकी मुलाकात पास से गुजर रहे एक गाड़ी वाले युवक से होती है | वह इस बात की जानकारी इंस्पेक्टर अक्षय को देती है |
किरण , शेखर मल्होत्रा का केस लड़ने वाले वकील से भी मिलती है | किरण को यह जानकर आश्चर्य होता है कि जिस वकील ने शेखर को बेगुनाह समझना चाहिए | वही उसे गुनहगार समझ रहा है | किरण उसके बाद शेखर की कोठी पर पहुंचती है | सारी जायदाद संभालने के लिए संगीता के चाचा को दी गई है क्योंकि यह सारी जायदाद उसके पिता की थी |
उसके पिता की भी कुछ महीने पहले एक्सीडेंट में मौत हो चुकी है | शेखर उनका घर जमाई था | अब आप सोचेंगे की शेखर ने ही पैसों के लिए अपनी पत्नी का खून किया होगा और साथ में अपने ससुर का भी ..
लेकिन नहीं ! पैसों का पूरा व्यवहार शेखर के ही हाथों में रहता है | पूछताछ में किरण को पता चलता है कि संगीता के पिता गुलाबचंद जैन से उसके बड़े भाई और उसका परिवार चिढा करते थे | उन्होंने तो उनके परिवार को खत्म करने की कसम तक खाई थी क्योंकि संगीता के बड़े चाचा सुब्रत जैन को लगता था कि गुलाबचंद ने अपने पिता की चापलूसी कर के सारी जायदाद अपने नाम लिखवा ली और उन्हें दर – दर की ठोकरे खाने के लिए रास्ते पर छोड़ दिया |
ऐसे ही संगीता के छोटे चाचा अतर जैन , उनके दो बेटे , बेटी और बीवी भी शेखर का बहुत गुस्सा करते हैं | शेखर को अगर सजा हो जाती है तो सारी जायदाद उनकी हो जाएगी | उसी दिन किरण और बाकी सब को घर की नौकरानी रधिया की लाश घर के तहखाने में मिलती है |
लाश का मुआयना करने के बाद किरण को पता चलता है कि रधिया कातिल के साथ मिली हुई थी | शेखर के घर का और एक नौकर बुंदु , किरण को बताता है कि अतर जैन का बड़ा बेटा कमल ,शेखर को मारना चाहता है | इस सब के दौरान बुंदु को गुलाबचंद की चलती फिरती लाश भी दिखती है |
जिससे बुंदु डर कर बेहोश हो जाता है | इसके बाद किरण इंस्पेक्टर अक्षय को बुला लेती है | अब इंस्पेक्टर अक्षय भी इस केस से जुड़ जाता है | शेखर से और शेखर के वकील से पूछताछ करने के बाद किरण को कई कहानियां सुनने को मिलती है |
किरण केस से जुड़े हर एक व्यक्ति की फोटो और फिंगरप्रिंट लेते है | संगीता की फोटो देखकर उसे बहुत आश्चर्य होता है क्योंकि वह संगीता को तब से जानती है ,जब वह लंदन में पढ़ा करती थी |
अब लंदन से वह आगरा क्यों पढ़ने आई ? जहां उसकी मुलाकात शेखर मल्होत्रा से होती है | उसके अतीत की क्या कहानी है ? यह तो आपको किताब पढ़कर ही जानना होगा | संगीता के पिता के अतीत की छानबीन करते-करते किरण को यह भी पता चलता है कि अभी फिलहाल शेखर मल्होत्रा का केस लड़ने वाले वकील शहजाद राय के संगीता की मां के साथ अवैध संबंध थे |
संगीता उन्हीं की बेटी थी | इसीलिए वह भी चाहते थे कि शेखर मल्होत्रा को सजा हो जाए | शेखर की कहानी के मुताबिक चाकू बेचनेवाले का और टेलर का भी खून हो जाता है | अब किरण का भी अपहरण हो जाता है | वहां उसे बहुत सारे गुंडे लोग मिलते हैं जो यह चाहते हैं कि वह इस केस की छानबीन रोक दे | नहीं तो ! उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा |
गुंडों और पुलिस की लड़ाई मे शेखर , किरण की जान बचाते -बचाते घायल हो जाता है | इससे किरण के मन में शेखर के लिए सॉफ्ट कॉर्नर पैदा हो जाता है | अब तो वह शेखर को जी – जान से बेकसूर साबित करने के लिए जुट जाती है जबकि किरण के पिता बार-बार किरण को यही बताते हैं कि शेखर ही असली कातिल है लेकिन किरण को अपनी काबिलियत पर पूरा यकीन है |
वह जानती है कि उसकी इन्वेस्टिगेशन सही दिशा में जा रही है | होता भी यही है | उसे असली कातिल के बारे में पता चलता है | इंस्पेक्टर अक्षय ही असली कातिल है | वह अक्षय श्रीवास्तव नहीं बल्कि असलियत में अक्षय जैन है |
उसके अक्षय जैन होने और उसके कातिल होने के ढेर सारे सबूत उसके घर से मिलते हैं | उसे फांसी की सजा हो जाती है | अब किरण शेखर के घर खुशखबरी लेकर जाती है तब उसे मिट्टी में सनी हुई एक कैसेट मिलती है जो बुंदु बगीचे के गमले से लाया था |
वह वहां दबी पड़ी थी | वह जिज्ञासा वश वह कैसेट सुनती है | सुनने के बाद उसके पैरों तले जमीन खिसक जाती है | उसे पता चलता है कि ,अक्षय असली कातिल नहीं ! उसने एक बेगुनाह को सजा दिलवा दी | तो अब क्या करेगी किरण ? कौन है असली कातिल ?
शेखर ? जैसा कि बैरिस्टर विश्वनाथ कहते थे या कमल ? या अतर जैन ? क्या इन्होंने वह कैसेट वहाँ छुपाई थी ? अगर हां ! तो इनका इसमें क्या फायदा ? पढ़कर जरूर जानिए की क्या आप कहानी खत्म होने के पहले इस चक्रव्यूह को तोड़ पाए या नहीं !
तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते है और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए –
धन्यवाद !!