BRITISH..KRUSHI KA VANIJYIKARAN REVIEW

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ब्रिटिश शासन में कृषि का वाणिज़्यिकरण और उसका प्रभाव

 किसानों की दशा पर गहरा विश्लेषण।

आधुनिक भारत का इतिहास – अध्याय 8
रिव्यू –
“आधुनिक भारत का इतिहास” डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित 760 पन्नों की किताब है | उसकी कीमत लगभग ₹900 है | बहुत से लोग इतनी महंगी किताब खरीद नहीं पाते | इसलिए लेखक और शुभदा प्रकाशन ने इस किताब के एक-एक अध्याय को स्वतंत्र रूप से छापा ताकि इसकी कीमत सबके पहुंच में हो ! विद्यार्थी , अध्यापक और इतिहास प्रेमी पाठकों के लिए यह किताब आसान तरह उपलब्ध कराने के लिए उन्होंने यह किया |
उनके इस प्रयास की हम सराहना करते हैं | उम्मीद करते हैं कि यह किताब ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे | अगर फिर भी परीक्षा की तैयारी करनेवाला कोई विद्यार्थी इसे पढ़ ना सका या खरीद नहीं सका तो हमने अध्याय के सारे पॉइंट को कवर कर लिया है जो आपको परीक्षा में मदद कर सके | इसका मतलब यह नहीं कि आप यह पूरा अध्याय ना पढे | अगली परीक्षा तक जरूर पढ़ लीजिएगा |
आधुनिक भारत का इतिहास एक रोचक और प्रेरणादायक किताब है | इसे पाठको ने जरूर पढ़ना चाहिए | प्रस्तुत किताब में बताया गया इतिहास तब से शुरू होता है जब मुग़ल कमजोर होकर मराठों के हाथ की कठपुतली बन गए थे |
उनका वैभव नष्ट हो गया था और उनका शासन लाल किले तक सीमित होकर रह गया था | हालांकि , इस वक्त मराठे शौर्य और पराक्रम की बुलंदी पर थे पर अफ़गानों के आक्रमणों ने उनको तोड़ दिया था और वह बिखरने लगे थे | इस काल में हिंदू , मराठा और मुसलमानो के अनेक राज्य उदयमान हुए | अब इनमें ही परस्पर लड़ाईयां होकर यह एक दूसरे का रक्तपात करने लगे |
ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसी स्थिति का फायदा उठाया | वह तेजी से फैलती हुई मद्रास , बंगाल , इलाहाबाद होते हुए आखिर दिल्ली तक पहुंच गई | यह यहां आकर सारा राज्य कारोबार अपने हाथ में लेने के बाद उसने क्या-क्या किया और उसका क्या-क्या दुष्परिणाम भारत देश और उसकी जनता को भुगतना पड़ा ? इन्हीं सारे विषयों पर प्रस्तुत किताब में चर्चा की गई है |
प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – मोहनलाल गुप्ता
प्रकाशक है – शुभदा प्रकाशन
पृष्ठ संख्या – 15
उपलब्ध – अमेजन
सारांश –
भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहां का किसान “बार्टर सिस्टम” उपयोग में लाता था | यानी किसी की किसी सेवाओं के बदले उसकी उपज देता था या फिर किसी वस्तु के बदले कोई अनाज | इससे उसे मुद्रा या पैसे की जरूरत ना के बराबर पड़ती थी | यहां तक के वह राजा या सरकार को लगान भी अनाज के रूप में ही देता था | ब्रिटिशो ने इस सारी व्यवस्था को बदल दिया | उन्होंने जमीन पर लगाए जानेवाले “कर नीति” में बदलाव किया | इसका बहुत बुरा प्रभाव कृषि उत्पादन पर पड़ा | प्रस्तुत अध्याय में ब्रिटिश शासन में होनेवाले कृषि के वाणिज़्यिकरण और उसके होनेवाले परिणामों को बताया गया है |
सन 1813 तक व्यापार में ब्रिटिशों की मोनोपोली थी | उनकी वजह से बहुत सारे कारीगर बेरोजगार हो गए | अब वह मजबूरी मे आकर खेती करने के लिए अपने गांव वापस जाने लगे | इससे उपलब्ध जमीन ज्यादा लोगों में बटकर रह गई | जिससे असंतुलन निर्माण हुआ | इससे उत्पादन में भारी गिरावट आई पर इसका कारण किसानों की अकुशलता न होकर उनके पास संसाधनों की कमी थी |
ऊपर से ब्रिटिश उन पर वक्त के साथ लगान की राशि भी बढाते रहे | बढ़ते लगान के कारण उत्पादन की कीमत भी बढ़ गई | इससे देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई | भारी लगान के कारण किसान को अपने खर्चे पूरे करने के लिए साहूकारों से कर्ज लेना पड़ता था | ब्रिटिश सरकार और साहूकार के कारण गरीब किसान पर ऋण का बोझ बढ़ता ही गया पर ब्रिटिश सरकार ने इस स्थिति के लिए खुद को जिम्मेदार ना मानते हुए गरीब किसानों को ही जिम्मेदार माना |
इसके लिए उन्होंने क्या-क्या कारण बताएं | किताब में जरूर पढ़िएगा | इसका एकदम जीवंत चित्रण प्रेमचंद द्वारा लिखित “गोदान” इस किताब में किया गया है | उसे भी आप जरूर पढ़िए | गोदान का रिव्यू और सारांश हमारी वेबसाइट “सारांश बुक ब्लॉग” पर उपलब्ध है | बढ़ते कर्ज के कारण साहूकार किसानों की जमीन हड़पने लगे | इसके लिए सरकार ने कुछ कानून बनाए जो नाकामयाब रहे |
1813 में इंग्लैंड में “औद्योगिक क्रांति” की लहर चल पड़ी थी | अब अंग्रेजों को वहां के मिलों के लिए कच्चे माल की आवश्यकता थी और बने हुए पक्के माल के लिए मार्केट की भी | इन दोनों के लिए उन्हें भारत उपयुक्त जगह लगी | ब्रिटिशों की लगान नीति के कारण किसानों को अब नगद पैसों की जरूरत पड़ने लगी थी | इसलिए वह वही चीजे अपने खेत में उगाने लगे जो मार्केट में बिकती थी | इस प्रकार भारतीय कृषि में मूलभूत परिवर्तन होकर उसका स्वरूप और प्रकृति ही बदल गई |
ब्रिटिश सरकार के पसंद की फसल लगाने से किसानों को कुछ पैसे अड़वाँस मिल जाते थे क्योंकि इन सब उत्पादों को यूरोपीय बाजार में बेचकर ब्रिटिशों को अच्छा खासा मुनाफा होता था | इनमें मुख्य थी – चाय , कॉफी रबर और नील | नील की खेती निर्धन श्रमिकों से करवाई जाती थी | उन्हें पैसे देकर “बंधुआ श्रमिक” बनाया जाता था | वह भी जबरदस्ती….
नील के समझौते पर हस्ताक्षर करनेवाला कोई भी श्रमिक सात पीढ़ियो तक स्वतंत्र नहीं हो सकता था | देखा जाए तो उनकी स्थिति गुलामों जैसी ही थी | चाय बागानों मे काम करनेवाले लोगों को बहला – फुसलाकर लाया जाता था | एक बार वह चाय बागान में पहुंच गए तो उनका जी भरकर शोषण किया जाता था | यहां कोई श्रमिक कानून लागू नहीं था |
ऐसे ही “जुट” की खेती से हुए फायदे – नुकसान भी पढ़ लीजिएगा | कृषि वाणिज़्यिकरण का सबसे पहला प्रभाव तो यह कि भारत का पैसा ब्रिटेन की ओर जाने लगा | लगान के कारण दिन – रात काम करनेवाला किसान भूखा रहने लगा | साहूकारों के कारण वह दरिद्रता की कगार तक पहुंच गया | परिणाम , चारों ओर भुखमरी दिखाई देने लगी | गांव में अब रोज की आवश्यकताओं के लिए भी पैसों की जरूरत पड़ने लगी |
किसानों की निर्धनता बढ़ती गई | अकाल के समय अनाज इतना महंगा हो जाता की हजारों लोग भूख से मर जाते | विलियम डिगबी के अनुसार 1854 से 1901 तक के अकालो में देश के करीब 2 करोड़ 88 लाख 25000 हजार लोग मर गए | 1943 में बंगाल में पड़े अकाल में 30 लाख लोग मारे गए | अब नगदी फसलों के कारण किसानों का शहरों में आना – जाना होने लगा | अब शहरों के लोगों के राजनीतिक विचार सुनने के कारण उनमे राजनीतिक चेतना जागने लगी | अब इस जागृति ने उन्हें शोषणकर्ताओ के खिलाफ विद्रोह करने के लिए उकसाया | वक्त के साथ यह विद्रोह और तीव्र होने लगे | इन विद्रोहो को शांत करने के लिए सन 1879 में दक्कन काश्तकारी सहायता अधिनियम और 1885 में बंगाल काश्तकारी अधिनियम पारित किया गया |
भारत के किसान के कृषि का वाणिज्यिकरण होने से अब उनकी कंपटीशन दुनिया भर के किसानों के साथ होने लगी | अब दुनिया में छानेवाली मंदी का असर उन पर भी पड़नेवाला था | अब भारत की जनता ने खुद को इस जंजाल से कैसे निकाला ? इसके लिए आप को प्रस्तुत अध्याय पूरा पढ़ना होगा | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते है और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ….
धन्यवाद !!

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