BRAMHAKALASH REVIEW SUMMARY IN HINDI

ब्रह्मकलश – दिव्य अमृत पात्र
शिवेंद्र सूर्यवंशी द्वारा लिखित

रिव्यू –
ब्रह्मकथा यह लेखक शिवेंद्र सूर्यवंशी द्वारा लिखित नई सीरीज है जिसका नाम ब्रह्मकलश – दिव्य अमृत पात्र है | वैसे तो उन्होंने कहा है कि यह आर्यन की अमृत प्राप्त करने की कहानी है लेकिन यह कहानी किताब के अंत में कुछ ही भागों तक सिमट जाती है |
पूरी यात्रा शायद उनकी अगली किताब में होगी | वैसे इस किताब के बहुत सारे अध्याय ब्रह्मदेव को समर्पित है जो उन्होंने पुराणो में वर्णित कथाओं और अपनी कल्पना शक्ति का उपयोग कर गढ़े है | इस वजह से आप ब्रह्मदेव के बारे में बहुत कुछ जान पाओगे |
इस किताब के पात्रों को जानने के लिए आपको उनके “रिंग ऑफ अटलांटिस” इस सीरीज को पढ़ना होगा | इस सीरीज की किताबें भी बहुत ही अच्छी है | यह किताबें आपको एक अद्भुत रहस्यमयी और रोमांचकारी यात्रा पर लेकर जाती है | उन्होंने अपनी कहानियों में ब्रह्मांड में उपस्थित हर एक वस्तु का उपयोग किया है |
उनकी कहानियों में पृथ्वी पर उपस्थित असली स्थान और वस्तुओं का उपयोग हुआ है | उन्हे किताबों के लिए बहुत सारा शोध कार्य करना पड़ा जिसके लिए उन्हें पूरे 25 साल लगे |
इसका जिक्र उन्होंने अपने हर एक किताब के प्राक्कथन में किया है | किताबें पढ़ने के बाद आपको पता ही चल जाएगा कि उन्होंने इस पर काफी मेहनत की है | किताबे पढ़ने के बाद अपने विचार उनके फेसबुक अकाउंट पर जरूर बताएं |
हमें उनकी किताबें बहुत पसंद आई जहां मनुष्य में विराजमान हर एक भावना को चित्रित किया गया है | यहाँ प्रेम है , ईर्ष्या है , दिव्य शक्तियां है , तो त्रिदेवों की कहानियों का उल्लेख भी है | जहां हर शब्द में एक नया जादू घटित होता है | यह कहानी कम और जादुई संसार ज्यादा है | खूब सारे रहस्य है | इतनी सारी कहानीयां एक साथ चलती है कि आपको याद रखना मुश्किल हो जाता है |
इसीलिए शायद लेखक खुद ही किताब के अंत में सारे रहस्यों और घटनाओं को शॉर्ट में एकत्रित करते हैं | इस रहस्यमय और रोमांचकारी किताब के –
लेखक है – शिवेंद्र सूर्यवंशी
पृष्ठ संख्या है – 490
उपलब्ध है – अमेजन के किंडल पर

किताब पढ़ने के पहले शुरू में दिया गया लेखक का वक्तव्य जरूर पढ़ें जिससे कि आप लेखक और उनकी किताबों के बारे में ज्यादा जान पाए | आईए , अब जानते हैं इस किताब का सारांश –
सारांश –
वैसे तो किताब में सारी कहानियां बिखरी – बिखरी है | पर हम एक-एक करके सबको जोड़कर इसका सारांश आपको बताए देते हैं | सबसे पहले तो क्षीरसागर में भगवान विष्णु के अवतरण की कहानी है | उनके नाभि से जन्मा ब्रह्मकमल और ब्रह्मकमल में जन्मे ब्रह्मदेव के जन्म की कहानी है |
माँ आदिशक्ति ने ब्रह्मदेव को सृष्टि निर्माण का कार्य दिया | ब्रह्मदेव ने उसे अच्छी तरह निभाया | जब वह अपने ही बनाए संसार का अवलोकन करने लगे तो उन्हें वह थोड़ा निरस प्रतीत हुआ जैसे बिना वॉइस के यूट्यूब वीडियो |
इसका कारण उन्होंने माँ आदिशक्ति से पूछा | इस कारण के निवारण के लिए माँ आदिशक्ति ने उन्हें वाग्देवी के रूप में माँ सरस्वती जीवन संगिनी के रूप में दी | माँ सरस्वती ने ब्रह्मदेव की बनाई सृष्टि में ध्वनियां मिला दी जैसे पानी की आवाज , चिड़ियों की चहेचहाहट , पत्तों की सरसर इत्यादि |
अब जब माँ सरस्वती ध्यान – साधना के लिए ब्रह्मदेव से दूर चली गई तो ब्रह्मदेव को अकेलापन महसूस होने लगा | उन्होंने माँ सरस्वती के प्रतिरूप माँ सावित्री से विवाह कर लिया | “पुष्कर” जहां ब्रह्माजी का मंदिर है | सदियों साल पहले वहीं पर यज्ञ में माँ सावित्री के वक्त पर न पहुंचने से ब्रह्मदेव ने माँ गायत्री से विवाह किया |
इस कारण क्रोध में आकर ब्रह्माजी की दूसरी पत्नी सावित्री ने यज्ञ की जगह उपस्थित सारे व्यक्तियों और जानवरों को अलग-अलग शाप दे दिया | इस यज्ञ में माँ सावित्री ने किस-किस को कौन – कौन से शाप दिए ? वहाँ कौन-कौन उपस्थित था और ब्रह्मदेव को तीन-तीन विवाह क्यों करने पड़े ? इसकी विस्तृत जानकारी आप यहाँ जान पाओगे |
प्रस्तुत किताब में ब्रह्मदेव के योद्धा रूप का भी वर्णन है | इस रूप में इनका वाहन “गरूणाश्व” है | उसके पंख और चोंच स्वर्ण की है | वह अभी “राक्षसताल” की मालकिन “विद्युम्ना” और उसका पती “बाणकेतु” के कब्जे में है | विद्युम्ना के ही पास “सहस्त्रदल कमल” है | वह कमल उसने अपने बेटे के प्राण बचाने के लिए “ज्ञानगंज” से लाया है |
इसी “सहस्त्रदल कमल” की जरूरत “नागरानी निलांगी” को है क्योंकि उसके राज्य की प्रजा के बच्चों में एक विचित्र बीमारी फैली है जो सहस्त्रदल कमल के अर्क से ठीक हो सकती है | नागरानी निलांगी विद्युम्ना की मदद करके “गरुणाश्व” की मदद से दोबारा “ज्ञानगंज” जा रही है क्योंकि विद्युम्ना के पास जो सहस्त्रदल कमल है | वह नकली है |
ज्ञानगंज की रक्षा करनेवाली “हरिणी” ने विद्युम्ना और नागरानी के साथ धोखा किया था | नागरानी फिर से एक बार “ज्ञानगंज ” जाकर सहस्त्रदल कमल हासिल करना चाहती है और हरिणी से बदला भी लेना चाहती है |
ज्ञानगंज में एक बार प्रवेश किया व्यक्ति दोबारा नहीं जा सकता | इसलिए “गरूणाश्व” इसमे उसकी मदद करेगा क्योंकि “गरूणाश्व” ब्रह्मदेव का वाहन रह चुका है और ज्ञानगंज का निर्माण ब्रह्मदेव ने किया है | “ज्ञानगंज” में समुद्र से निकला हुआ “अमृत” सुरक्षित है | इसकी निगरानी “हरिणी” करती है जो नारायण भगवान के मोहिनी रूप का ही प्रतिरूप है |
“ज्ञानगंज” में प्रकृति के कोई भी नियम काम नहीं करते | वहां मछलियां उड़ती है | चिड़िया तैरती है | वृक्ष हवा में तैरते हैं | कहते हैं यहाँ सिद्ध और ज्ञानी पुरुष रहते हैं जो अमर है | मान्यता हैं कि ज्ञानगंज अदृश्य है और हिमालय में कहीं स्थित है | अभी भी बहुत सारे लोग इसको ढूंढने की कोशिश करते हैं |
ऐसी किवदंतियाँ हैं कि , पहले की युगों में मानव , देवताओं , गंधर्व , परियों के बीच सामंजस्य था | मानवों के पास अनेक देव – शक्तियां भी थी | इनके परस्पर विवाह भी होते थे | इसकी जानकारी और अलग-अलग युगों की जानकारी भी लेखक ने अपने प्राक्कथन में जोड़ी है |
अब नागरानी और हरिणी के युद्ध का क्या परिणाम निकलता है ? यह तो आपको किताब पढ़कर ही पता चलेगा | ब्रह्मदेव का पौत्र है -“वजरांग” | ब्रह्मदेव उसे “शिशभ्रंश” का वरदान देते हैं | वह यह वरदान ब्रह्माजी पर ही ट्राई करता है जिससे उनकी मति भ्रष्ट हो जाती है |
वह वजरांग पर “ब्रह्मास्त्र” का उपयोग करते हैं | वजरांग तो मर जाता है साथ में सृष्टि का विनाश भी प्रारंभ हो जाता है | इससे महादेव क्रोध में आ जाते हैं | उनका महाकाल रूपी अवतार ब्रह्माजी का एक सिर काट देता है जो अलकनंदा नदी में जाकर गिरता है |
इस घटना से ब्रह्माजी की बुद्धि ठिकाने पर आ जाती है | अब ब्रह्माजी के कहने पर वजरांग को जीवित करने के लिए महादेव अपनी रुद्राक्ष की “अक्षयमाला” का उपयोग करते हैं | वह जैसे-जैसे माला के मणको को सरकाते जाते हैं | टाइम रिवाइंड होते जाता है | ब्रह्माजी यह अक्षयमाला महादेव से मांग लेते हैं और फिर इसे खो भी देते हैं |
इस तरह उनका योद्धा रूप खत्म हो जाता है | माता सरस्वती के कहने पर वह अपने लिए वाहन के रूप में एक हंस को ढूंढते है | उन्हें “हंसकुमार” नामक हंस मिलता है जो अपनी पत्नी के मरने के बाद अपनी जान देनेवाला ही रहता है कि ब्रह्मदेव उसकी एक इच्छा पूरी करके उसे अपना वाहन बनाने का वचन ले लेते हैं |
इसी “हंसकुमार” के बच्चे “शंख” और “पंख” है जो “सिंहलोक” की राजकुमारीयों के साथ रहते हैं | इस मे राजकुमार “आर्यन” के दोनों पुत्रों का जिक्र है जिसमें से एक “व्योम” है | वह सीआईए एजेंट है और साथ में अद्भुत शक्तियों का मालिक भी..
वह अपनी अद्भुत शक्तियों से “क्राउनमैन” बनकर लोगों को मुसीबत से बचाता है | ऐसे ही वह माँ गंगा और ब्रह्मपात्र नामक दिव्य शक्तियों से एक प्लेन को बचा लेता है | इस चक्कर में उसे समुद्र में लुप्त एक प्राचीन सभ्यता “भाग्यनगर” के बारे में पता चलता है लेकिन उसकी ब्रह्मपात्र शक्ति उसे “मृत्युनगर” बुलाती है और साथ में यह भी बताती है कि इसकी रक्षा “निर्झरा” करती है |
अब यह “निर्झरा” कौन है ? इसके बारे में तो आप उनकी किताबों में ही पढ़ पाओगे | इसी भाग्यनगर के बारे में बाकी कुछ लोग भी जानते हैं | जानते ही वह मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं | इसी भाग्यनगर के बारे में बताते हुए एक प्रसिद्ध लेखक अर्धविक्षिप्त अवस्था में दिल्ली के “इंडिया गेट” के पास मिलता है | वह खुद को “मयासुर” बताता है |
“मयासुर” एक पौराणिक पात्र है जो जादू और मायावी नगरिया बनाने के लिए प्रसिद्ध था | यह रावण का ससुर था | पांडवों का “मायामहल” भी इसी ने बनवाया था | उस प्रसिद्ध लेखक को इंस्पेक्टर हर्ष हॉस्पिटल में भर्ती करता है | इस लेखक के द्वारा ड्रॉ की हुई चित्रकारी को देखकर वर्तिका और अनय पुलिस स्टेशन आते हैं | वर्तिका और अनय आर्कियोलॉजी के स्टूडेंट है |
यह दोनों “सूर्यांश” के मित्र है | सूर्यांश आर्यन का दूसरा पुत्र है | इसके पास भी देव – शक्तियां है | अब आते हैं इस किताब के मुख्य पात्र “आर्यन” पर.. कॅप्टन सुयश , आर्यन का पुनर्जन्म है | इस पात्र के बारे में आप “रिंग आफ अटलांटिस” में जान पाओगे |
राजा चित्ररथ भद्रपुर राज्य के राजा है | वह पुत्र प्राप्ति के लिए महाकाल पर्वत पर सदियों बाद जा रहे हैं | वहां के वृक्ष का स्वर्णफल खाने के बाद रानी रत्नावती को आर्यन पुत्ररूप में प्राप्त होता है | आर्यन विद्यालय जाता है | वहां से आने के बाद उसे “शलाका” से शादी करने के लिए ,अपनी मां को किस तरह मनाना पड़ता है ? यह आप जरूर पढे |
साथ में यह भी की क्या वह इसमें कामयाब हो पाता है ? वैसे तो महाकाल पर्वत उसके राज्य से कोसों दूर है लेकिन उसके राजमहल में स्थित महादेव के मंदिर में एक सीक्रेट टाइम ट्रेवल का दरवाजा है जो डायरेक्ट महाकाल पर्वत पर खुलता है जहां से “भद्रक” अदृश्य रूप में उनके महल में आता जाता है |
यह भद्रक महाकाल पर्वत का रक्षक है | आर्यन को इस दरवाजे के माध्यम से देवी भद्रवाहिनी की दिव्य शक्तियां मिलती है | साथ में वह अल्पायु है इसकी जानकारी भी .. अब उसे शलाका के साथ जीवन जीने के लिए लंबी आयु चाहिए | लंबी आयु उसे “अमृत”से ही मिल सकती है | इसीलिए अब वह अमृत पाने की यात्रा पर निकल पड़ता है |
अमृत तो आर्यन में विद्यालय के समय में ही मिलने वाला था लेकिन तब वह सिर्फ ब्रह्मांड रक्षक होता | ब्रम्हांड रक्षक होने पर वह शलाका से शादी नहीं कर सकता था | इसीलिए उसने और शलाका ने अमृत को नहीं ,प्यार को चुना |
अमृत लेने के लिए जैसे ही आर्यन अपने राज्य की सीमा पार करता है | वेदालय के महागुरु “नीलाभ” उसे दर्शन देते हैं | वह बताते हैं कि अमृत पाना इतना आसान भी नहीं | इसीलिए ब्रह्मदेव के पांचो मुखो को प्रसन्न करने के उपाय भी बताते हैं |
“सूर्यलेखा” सूर्यदेव की पुत्री है और आर्यन की मुंहबोली बहन.. | सूर्यलेखा को न जाने क्यों सूर्य देव छुपा कर रखते हैं | सूर्यलेखा के राज्य में आर्यन से जुड़े ऐसे बहुत सारे राज है जो आर्यन को भी नहीं पता | बहेरहाल , आर्यन की अमृत पाने के इस यात्रा को आप जरूर पढ़ें | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहीए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ..
धन्यवाद !

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