भूतनाथ – खंड 1,2,3
बाबू देवकीनंदन खत्री द्वारा लिखित
रिव्यू –
यह कहानी तब की है जब वीरेंद्रसिंह और चंद्रकांता का विवाह नहीं हुआ था | शिवदत्त को चुनारगढ़ की गद्दी पर बैठे अभी दो ही साल हुए थे | अपने स्त्री – लोलुप स्वभाव के कारण उसकी बुरी नजर चंद्रकांता पर पड़ चुकी थी और इसी के चलते नौगढ़ और विजयगढ़ ने मिलकर उसपर हमला बोल दिया था |
उन्होंने शिवदत्त को हरा दिया | चुनारगढ़ पर अब वीरेंद्र सिंह का कब्जा हो गया था | उनकी शादी चंद्रकांता के संग हो चुकी थी | भूतनाथ की कहानी जो इंदुमती और प्रभाकर सिंह के साथ शुरू हुई थी | हालांकि , उनका जिक्र चंद्रकांता संतति में नहीं आया है लेकिन इंदुमती की बहने जमुना और सरस्वती के पति दयाराम का जरूर आ चुका है |
दयाराम महाराज रणजीतसिंह के इकलौते वारिस थे | यह महाराज के रिश्ते में थे | यह रणजीतसिंह , शिवदत्त के ससुर थे | इन्हीं के यहां भूतनाथ पहली बार अय्यारी के काम पर नियुक्त किया गया था |
यहाँ भूतनाथ को एक आलीशान घर रहने के लिए मिला था | यहीं पर उसकी पहली शादी हुई थी | उनकी शांता नाम की पत्नी थी | इसी के कमला और हरनामसिंह नाम के बच्चे थे | आपको कमला तो याद है ना ! यह किशोरी की अय्यारा थी |
किशोरी शिवदत्त की बेटी और रंजीतसिंह की पोती थी | वह अपने नाना के पास ही रहा करती और भूतनाथ की पहली पत्नी शांता भी अपने बच्चों को लेकर यही रहती थी | दयाराम भूतनाथ को अपने भाई से भी बढ़कर मानता था | इसी कारण वह ज्यादातर वक्त उसके घर मे बीताता था |
एक रात कुछ लोग उसको अगवा करते हैं | उसी को ढूंढने के चक्कर में भूतनाथ अपना परिवार और महाराज रणजीत सिंह की नौकरी छोड़ देता है | वह रामदेई नाम की दूसरी महिला से शादी भी करता है |
दयाराम को ढूंढने के चक्कर में वह काशी पहुंचता है | काशी में उसकी मुलाकात नागर से होती है | नागर के बहकावे में आकर वह दलीप शाह और शंभू का दुश्मन बन जाता है क्योंकि इन दोनों ने दयाराम की हत्या करते हुए भूतनाथ को देखा था |
दलीपशाह , इंद्रदेव के मित्र है और शंभू उनका शागिर्द | इंद्रदेव , भूतनाथ के भी मित्र है | इसीलिए दयाराम का पता लगाने के लिए इंद्रदेव ने इन दोनों को भी काम लगा दिया था | जब दयाराम बहुत ही बीमार अवस्था में इन दोनों को मिलता है तो भूतनाथ भी वहां पहुंचता है और गलती से दयाराम को मार देता है |
यद्यपि दलीप शाह की पत्नी और भूतनाथ की पत्नी आपस में मौसेरी बहनें हैं | फिर भी भूतनाथ , दलीप शाह को मारना चाहता है क्योंकि वह नागर के प्रेमजाल में फंसा हुआ है | मनोरमा के तिलिस्मी दारोगा संग संबंध है | यह दोनों चरित्रहीन स्त्रियां है | इसलिए उनके काम भी बुराइयों भरे हैं |
नागर और मनोरमा की भी स्थिति और पहुंच वहां तक नहीं हुई है जितनी की चंद्रकांता संतति में बताई है | जमानिया का भी उतना बुरा हाल अब तक नहीं हुआ है | जितना राजा गोपाल सिंह के कैद होने के बाद होता है क्योंकि वह अभी राजकुमार ही है |
उनके पिता राजा के पद पर आसीन है और उनके चाचा को तिलिस्मी दारोगा की कमेटी के बारे मे खबर लग चुकी है | इनसे दारोगा भी डरता है | साथ में उनको खत्म करने की कोशिश भी जारी रखे हुए हैं |
इस काम के लिए वह चालाक , चपल और धूर्त अय्यार भूतनाथ की मदद चाहता है | इसीलिए अब वह पहले कला , बिमला और इंदुमती को खत्म कर के भूतनाथ की मदद करना चाहता है |
प्रस्तुत किताब सात खंडों मे लिखी गई है | उसमें से तीन खंडों का रिव्यू हमने इस किताब में बताया है | बाकी के चार खंडों का दो-दो भागों मे बताएंगे | प्रस्तुत किताब के दूसरे भाग में पूरे 16 बयान है और तीसरे भाग में 12 |
प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – बाबू देवकीनंदन खत्री
प्रकाशक है – भारत पुस्तक भंडार
पृष्ठ संख्या है – 1891 (तीन खंडों के लिए 342 पेज )
उपलब्ध है – अमेजन पर
सारांश –
प्रस्तुत किताब की घटना मिर्जापुर से 20 किलोमीटर दूर एक जगह पर घटती है | यहाँ दोनों नौजवान तीर कमान और हथियारों से लैस होकर चल रहे हैं | इसमें से एक इंदुमती है | दूसरा उसका पति प्रभाकरसिंह है | दोनों नौगढ़ की सरहद के पास ही है | यह वही जाना चाहते हैं क्योंकि नौगढ़ के राजा सुरेंद्रसिंह एक धर्मात्मा राजा है |
प्रभाकर सिंह और उनकी पत्नी इंदुमती चुनारगढ़ से भाग कर आए हैं क्योंकि चुनारगढ़ का राजा शिवदत्त एक स्त्री- लोलुप व्यक्ति है और उसकी बुरी नजर इंदुमती पर पड़ चुकी है | प्रभाकर सिंह चुनारगढ़ में सेना के बड़े पद पर विराजमान थे | इन दोनों को ढूंढने के लिए शिवदत्त ने गुलाबसिंह और उसके शागिर्दों को भेजा है | जब यह लोग इनको पकड़ने के लिए आए तो गुलाबसिंह और उसके साथियों ने शिवदत्त का साथ छोड़कर प्रभाकर सिंह का साथ चुना |
इतने में ही वहां अलग प्रकार की सिटी सुनाई दी | इसके साथ ही वहां भूतनाथ प्रकट हो गया | गुलाबसिंह ,भूतनाथ का मित्र था | भूतनाथ ने ही बताया कि गुलाब सिंह के अलावा शिवदत्त ने और भी लोग भेजे हैं | तब गुलाबसिंह ने भूतनाथ को प्रभाकर और इंदुमती की कहानी सुनाई और भूतनाथ को उनकी मदद करने के लिए मना लिया |
भूतनाथ अब इन सबको अपनी गुप्त जगह पर ले जा रहा था | भूतनाथ का ठिकाना वही मिर्जापुर के आस -पास ही था | आधे रास्ते में ही प्रभाकरसिंह लापता हो गए | इंदुमती के साथ सब लोग परेशान हो गए | भूतनाथ ने अपने एक शागिर्द भोला सिंह को उनकी खोज मे भेजा और खुद भी उन्हें ढूंढने निकल गया |
कुछ समय के बाद भोलासिंह को प्रभाकर सिंह उनके गुप्त जगह से थोड़ी ही दूरी पर बेहोश मिले | वह उन्हें लेकर अपनी जगह गया | उन्हें इंदुमती के पास पहुंचाकर गुलाबसिंह को बुलाने चला गया | इधर प्रभाकरसिंह आनन – फानन में इंदुमती को लेकर उस जगह से बाहर निकले |
पीछे-पीछे चल रही इंदुमती को अपने पति की अजीब हरकतों पर संदेह हुआ और वह चुपचाप पेड़ पर चढ़ बैठी | उसका पति नकली प्रभाकरसिंह निकला | इंदु को गायब पाकर उसने अपने साथियों को बुलाया | इंदुमती ने बड़े बहादुरी से उनके साथ तीर – कमान से युद्ध किया | आखिर वह पेड़ से गिर गई और बेहोश हो गई |
उसने खुद को एक अच्छी जगह पाया | उसकी सेवा के लिए बहुत सी लड़कियां थी | उन लड़कियों में जो मुख्य थी | वह उसकी सगी मौसेरी बहने जमुना और सरस्वती निकली , जो आजकल कला और बीमला के नकली नाम और नकली चेहरे के साथ रह रही थी |
इंदुमती को उनके बारे में कुछ भी पता न था क्योंकि तब लड़कीयां अपने मायके वर्षों के अंतराल में जाती थी और मैसेजेस , व्हाट्सएप , वीडियो कॉलिंग तो बिल्कुल ही नहीं थे | दरअसल उन दोनों के पति दयाराम को भूतनाथ ने मारा था | दयाराम तो याद है ना ! इसका जिक्र चंद्रकांता संतति 6 में आ चुका है |
अब यह दोनों बहने भूतनाथ से बदला लेना चाहती है | इसीलिए चुनारगढ़ के तिलिस्म के दरोगा इंद्रदेवसिंह ने इन दोनों की मदद करने की ठानी क्योंकि भूतनाथ से बदला लेना कोई मामूली बात ना थी | उसके लिए उसी के टक्कर का कोई चाहिए था |
इसलिए इंद्रदेव ने उनकी मदद की | उन्होंने सबसे पहले इन दोनों बहनों को मरा हुआ घोषित किया | फिर दुनिया से बचा कर , नकली नाम व चेहरे के साथ इन्हें तिलिस्म में रखा | तिलिस्म तो जानते हैं ना आप !
इसमे ढेर सारी दौलत भी होती है | इसीलिए यह दोनों शानो – शौकत के साथ यहां रहती थी | यह दोनों प्रभाकर सिंह को भी इसी जगह लेकर आती है | यहाँ इंदुमती और प्रभाकर सिंह की मुलाकात होती है | अब भूतनाथ जहां रहता है और कला , बिमला जहां रहती है | वह चुनारगढ़ के तिलिस्म का ही एक भाग है |
यह दोनों भाग एक दूसरे के आमने-सामने ही है | भूतनाथ को इसके बारे में कुछ नहीं पता पर इंद्रदेव को इस पूरी जगह के बारे में पूरा पता है | इन जगहों का खूबसूरत वर्णन लेखक ने अपनी किताब में किया है | जरूर पढिए | इस तिलिस्म के लिए ही तो लोग ईनकी किताबें पढ़ते थे |
खैर , कला और बिमला अपनी कहानी प्रभाकर सिंह को बताती है | वह उनको मदद करने का वचन देते हैं | अब वह भूतनाथ की असलियत को टटोलना चाहते हैं | इसीलिए वह उसे एक झूठ बताते हैं कि पास की ही एक जगह पर ऋषि की मूर्ति है | वह तय समय पर बोलती है |
इस जगह को अगस्त ऋषि के आश्रम के नाम से जाना जाता है | भूतनाथ प्रभाकर सिंह की बात पर विश्वास नहीं करता | उनकी बात को परखने के लिए वह और गुलाबसिंह , प्रभाकरसिंह के साथ उस मूर्ति के पास जाते हैं | वह सच में बोलती है | यह बात दिन में घटित होती है | भूतनाथ इसकी असलियत पता करने रात को वहां जाता है | वहां पुरुष बनी दो स्त्रियां उसका अपहरण करती है | यह कला और बिमला है |
भूतनाथ के शागिर्द भोलासिंह को तिलिस्मी घाटी के दो दरवाजो के बीच में बंद कर के वह अपनी घाटी में वापस आ जाती है | भूतनाथ के पहले खंड की कहानी यहाँ तक है |
भूतनाथ उनकी कैद में रहते हुए एक दासी को पैसों का लालच देकर छूट जाता है | साथ मे कला और बिमला की असलियत भी पता करता है | वह दासी अपनी नमकहरामि का प्रायश्चित करने के लिए जहर खा लेती है | छूटने के बाद भूतनाथ वहां आग लगा देता है | इसी अफरा – तफरी में वह इंदुमती , कला और बिमला के पास पहुंच जाता है |
उससे बचने के चक्कर में तीनों भागती है पर कला उसके हाथ लग जाती है | कला , भूतनाथ को चकमा देकर खुद को छुड़ा लेती है | वह तिलिस्म की घाटी की दूसरी और पहुंच कर तीर – कमान से सज्ज हो , भूतनाथ पर हमला करने के लिए तैयार रहती है |
भूतनाथ उसे एक तरफ से देख तो सकता है पर उसके पास पहुंच नहीं सकता | कला के साथ इस वक्त गुलाबसिंह और प्रभाकरसिंह भी भेस बदलकर लड़ने के लिए तैयार है | जब यह दोनों चुनारगढ़ जाने के लिए निकलते हैं तो भूतनाथ इनका पीछा कर धोखे से प्रभाकरसिंह को गिरफ्तार कर लेता है |
अब वह प्रभाकर सिंह को लेकर अपनी पुरानी जगह पर ही आए | इसीलिए इंद्रदेव सिंह एक बूढ़े बाबा बनकर भूतनाथ को तिलिस्मी दौलत का लालच देते हैं ताकि वह अपनी पुरानी तिलिस्मी घाटी छोड़कर ना जाए जो कला और बिमला की तिलिस्मी घाटी से ही जुड़कर थी |
यह सब उन्हें इसलिए करना पड़ा क्योंकि कला और बिमला अपनी नादानी से भूतनाथ की घाटी का दरवाजा बंद कर आई थी | यह सब तरकीब लगाने से इन लोगों को यह फायदा हुआ कि इन लोगों ने प्रभाकरसिंह के साथ-साथ , उस घाटी की दौलत और भूतनाथ के शागिर्दों को भी अपने कब्जे में कर लिया |
इसके बाद प्रभाकरसिंह और गुलाबसिंह , शिवदत्त से बदला लेने के लिए चुनारगढ़ न जाते हुए , नौगढ़ गए क्योंकि उन्हें पता चल गया था कि चंद्रकांता की वजह से नौगढ़ के वीरेंद्रसिंह और चुनारगढ़ में लड़ाई होनेवाली है | प्रभाकरसिंह ने नौगढ़ की सेना में उच्च पद हासिल कर इस लड़ाई में भाग लिया |
उन्होंने बहुत वीरता दिखाई | जब वह लड़ाई से वापस आए और इंदुमती से मिलने उसी तिलिस्मी घाटी में गए | जहां वह इंदुमती को कला और बिमला के साथ छोड़ गए थे तो उसको पूरा वीरान पाया | तब तक गुलाबसिंह , दलीपशाह के पास और प्रभाकरसिंह इंद्रदेव के पास गए | प्रभाकर सिंह को इंद्रदेव ने एक तिलिस्मी किताब देकर चुनारगढ़ के तिलिस्म में भेजा क्योंकि उनको लगता था कि वह लोग जरूर तिलिस्म मे फँस गए होंगे |
इस तिलिस्म में प्रभाकर सिंह को सबसे पहले हरदेई नाम की दासी मिली | जो कला और बिमला की सेविका थी | असल में उसके भेष में भूतनाथ का शागिर्द रामदास था | इसी ने असली हरदेई को अगवा कर लिया था | लेकिन यह तिलिस्म में फंसा कैसे ?
हुआ यूं की , जब प्रभाकरसिंह युद्ध लड़ने के लिए चुनारगढ़ चले गए | तो इधर भूतनाथ ने प्रभाकर सिंह का भेष बनाकर कला और बिमला की घाटी में प्रवेश किया | तब हरदेई बना रामदास भी उसके साथ था | यहाँ आने के बाद इन दोनों ने कला , बिमला , इंदुमती और उनकी सारी दासीयों को जान से मार डाला | उन्होंने इन सब को तिलिस्मी कुएं में फेंक दिया क्योंकि भूतनाथ इन सबकी जान का दुश्मन बना हुआ था |
उसे लगता था कि इन दोनों के कारण उसकी समाज मे बहुत बदनामी होगी | वह अपना चरित्र लोगों को अच्छा दिखाना चाहता था जबकि वह बुराई के रास्ते पर चल रहा था और बुरे लोगों की संगत कर रहा था | इसी के चलते उसने इतनी सारी हत्याएं की | कला , बिमला और इंदुमती के मर जाने की पुष्टि करने जब रामदास तिलिस्मी कुएं में उतरा तो वह भी वही फँस गया | इस तरह वह प्रभाकर सिंह को तिलिस्म में मिला |
उसने प्रभाकरसिंह के कला , बिमला और इंदुमती के खिलाफ कान भर दिए | उसने इन तीनों को चरित्रहीन स्त्रियां बताया | प्रभाकरसिंह ने उस पर विश्वास कर लिया क्योंकि वह हरदेई के भेष में था | उस पर विश्वास कर के प्रभाकरसिंह गहरी नींद सो गए | तभी उसने , उनको धोखा देकर तिलिस्मी किताब हासिल कर ली | वह किताब लेकर तिलिस्म के बाहर भाग गया |
वह सीधे भूतनाथ के पास पहुंच गया | अब तिलिस्मी किताब पाकर भूतनाथ अपने साथियों को लेकर प्रभाकरसिंह और उन तीन स्त्रियों को मारने के लिए तिलिस्म में पहुंच गया | जब भूतनाथ उन तीनों की हत्या करने के लिए तलवार लेकर दौड़ा तो बीच में एक साधु योद्धा से उसका मुकाबला हुआ जो भूतनाथ से हर चीज में बढ़कर था |
भूतनाथ अपनी जान बचाकर भागा | यही योद्धा बाबा प्रभाकरसिंह से भी मिले | इन्होंने ही इंदुमती से मिलने की बात कही परंतु प्रभाकर सिंह को यकीन नहीं हुआ क्योंकि उसके पहले उन्होंने इंदुमती पर चरित्रहीनता का आरोप लगाकर उसका त्याग कर दिया था | पति के द्वारा त्यागने के बाद इंदुमती ने आत्महत्या कर ली और अपनी निर्दोष होने की चिट्ठी प्रभाकर के नाम छोड़ दी |
चिट्ठी मिलने के पहले उन्हें हरदेई बने रामदास अय्यार की असलियत पता चल गई थी | उन्होंने उसे खत्म कर दिया था | अब इस तिलिस्म मे भूतनाथ के साथ उसके अय्यार शागिर्द भी है जो प्रभाकरसिंह के भी जान के पीछे पड़े हुए हैं |
अब साधु बने योद्धा को उनकी जान भी बचानी है और कला , बिमला और इंदुमती की भी | इसलिए वह इन तीनों को तिलिस्म की एक सुरक्षित जगह रखकर प्रभाकरसिंह को बचाने के लिए जाते हैं | फिर भी इस अति सुरक्षित जगह पर भूतनाथ और तिलिस्मी दारोगा पहुंच ही जाते हैं |
भूतनाथ को तो वह साधु योद्धा इन तीनों से दूर ले जाता हैं पर दारोगा उन्हीं के पास रुकता है | वह उन्हें अपनी बातों के जाल में फंसा लेता है और अपने ठिकाने पर लेकर जाता है | जहां वह इन तीनों से अपनी बात मनवाने की कोशिश करता है | जब यह तीनों नहीं मानती तो उन्हें कैद में पड़े हुए प्रभाकरसिंह दिखाएं जाते हैं ताकि वह अपना निर्णय बदल सके | इसी के साथ यहाँ तीसरा अध्याय भी खत्म होता है |
चंद्रकांता संतति के आखिर में भूतनाथ अपनी सारी कहानी पूरे राज दरबार में महाराज सुरेंद्रसिंह के सामने बताता है | महाराज उसे उसकी जीवनी लिखने के लिए कहते है | ताकि लोग उसके जीवन से सबक ले सके | साथ मे उनको यह भी पता चल सके की बुराई करनेवालों के साथ बुरा ही होता है |
समाज मे उसे कोई मान – सम्मान नहीं मिलता | असली खुशी तो अपने परिवार , रिश्तेदार और मित्रों के साथ ही है | इसीलिए भूतनाथ को अपनी जीवनी लिखनी चाहिए | ताकि लोग इसे पढे और इससे सबक लेकर धर्म के मार्ग पर चले | अच्छाई के सबक को जीवन मे उतारती इस किताब को जरूर पढ़िएगा | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते है और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ….
धन्यवाद !!
BHOOTNATH KHAND-1,2,3 BOOK REVIEW HINDI