भानुमती – एक यल्गार
अंकुश शिंगाड़े द्वारा लिखित
रिव्यू –
भानुमती महाभारत की एक और किरदार…. | भानुमति को लोग उसके नाम से बहुत कम जानते होंगे लेकिन उसके पति को सभी लोग जानते हैं उसके पति का नाम है – “दुर्योधन” | लेखक अंकुश शिंगाड़े द्वारा मराठी में लिखित यह किताब भानुमति के ,जीवन के ,पास से दर्शन कराती है | लेखक का प्रयास बहुत अच्छा रहा | उनके प्रयास के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद जिसके वजह से ऐसे भूले बिसरे ऐतिहासिक किरदार हमें मिलने आते रहते हैं और अपनी कहानी बता कर फिर से अपने इतिहास के पन्नों में वापस लौट जाया करते हैं |
किताब अगर आपको अच्छी लगे तो लेखक को जरूर बताए | उनका व्हाट्सएप नंबर आपको किताब के “मनोगत” इस सेक्शन में मिल जाएगा | उनकी यह किताब ई. साहित्य की वेबसाईट पर उपलब्ध है जो नए मराठी लेखको को एक प्लेटफार्म उपलब्ध करता है जहां वह अपनी प्रतिभा दिखा सके | यहां पाठकों के लिए किताबें फ्री में उपलब्ध है बस शर्त इतनी है कि किताब पढ़कर आप अपने विचार लेखक और ई. साहित्य को जरूर बताएं |
प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – अंकुश शिंगाड़े
प्रकाशक है – ई. साहित्य पब्लिकेशन
पृष्ठ संख्या – 118
उपलब्ध – ई. साहित्य की वेबसाइट पर
सारांश –
भानुमति एक अति सुंदर युवती थी | इसलिए वह खुद के लिए एक पराक्रमी और खूबसूरत पति की कामना किया करती | हो भी क्यों न …. | उस वक्त सुंदरता की उपासना सब किया करते | उसने उसके राजमहल मे गाने वाले कवियों के मुख से अर्जुन के पराक्रम ,शौर्य और सुंदरता की बातें सुन रखी थी | इसलिए वह अर्जुन को ही अपने पति के रूप में चाहती थी | जब उसके स्वयंवर का आयोजन हुआ तब कर्ण भी दुर्योधन के साथ वहां उपस्थित था | कर्ण को देख कर उसे लगा कि वही अर्जुन है | अर्जुन समझ कर वह उसी पर मोहित हो गई | लेकिन जब सब का परिचय किया जाने लगा तब उसे कर्ण की असली पहचान का पता चल पाया | उसे थोड़ी निराशा हुई |
बाद में उसने मन बना लिया कि वह कर्ण के गले में ही वरमाला डालेगी | अब उसके स्वयंवर की बारी थी | स्वयंवर में पहले दुर्योधन , बाद में कर्ण खड़ा था | वह एक-एक करके आगे सरकने लगी | जैसे ही वह दुर्योधन को छोड़कर आगे जाने लगी वैसे ही दुर्योधन ने उसे अपने कंधे पर उठा लिया और उसे जबर्दस्ती अपने रथ पर बिठा कर भागने लगा | तब तक कर्ण सबके साथ युद्ध करता रहा | भानुमति इन सब बातों से बहुत परेशान हो गई | दुर्योधन के ऐसा करने के कारण अब उसे दुर्योधन से ही शादी करनी पड़ेगी क्योंकि उसने उसको स्पर्श कर लिया था | यह उस जमाने की प्रथा थी कि जो पुरुष किस किसी स्त्री को पहली बार स्पर्श करेगा वही उसका पती होगा |
दुर्योधन के इस कृत्य के कारण भानुमती का मनचाहा पति पाने का चांस तो चला गया था | दुर्योधन के कारण ही उसके पिता का भी अपमान हुआ था | ना चाहते हुए भी उसे दुर्योधन के साथ शादी करके उसके साथ पूरा जीवन बिताना पड़ा | इससे भी वह दुखी थी | वैसे दुर्योधन एक पत्नी व्रत का पालन किया करता था | वह भानुमति से बहुत प्यार भी करता था लेकिन जहां बात हस्तिनापुर के सिंहासन की आती थी | वह वहाँ किसी की नहीं सुनता था | जब भानुमति ने उसे पांडवों को पांच गाँव देने को कहा तब भी उसने ,उसकी बात नहीं मानी | यह बात ना मानने के कारण कुरुक्षेत्र का भयानक युद्ध हुआ | उस युद्ध में भानुमति की सारी संताने मारी गई और दुर्योधन की भी अकाल मृत्यु हो गई | इससे तो उस पर दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा इसकी वजह दुर्योधन ही रहा |
जैसे रावण को मरते वक्त अपनी गलतियों का एहसास होकर उसने मंदोदरी को विभीषण के साथ शादी करने के लिए कहा वैसे ही दुर्योधन ने भानुमति को अर्जुन के साथ विवाह करने के लिए कहा क्योंकि वह नहीं चाहता था कि पांडवों और कौरवों की दुश्मनी ऐसे ही चलती रहे | इसलिए भानुमति को लेकर एक कहावत मशहूर है कि , “कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा , भानुमति ने कुनबा जोड़ा “| कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद भानुमति ने अर्जुन के पास शादी का प्रस्ताव भेजा और दुर्योधन की आखिरी इच्छा बताई | अर्जुन , युधिष्ठिर से पूछ कर और उसकी परमिशन लेकर भानुमति से शादी करता है और इस तरह पांडव और कौरव एक हो जाते हैं | भानुमति बुढ़ापे में अर्जुन के बच्चे को जन्म देते वक्त गुजर जाती है | जीवन भर दुर्योधन के साथ दुख उठाने के बाद आखिर भानुमति को अपना मनचाहा पति मिला और थोड़े वक्त के लिए ही सही सारी खुशियां मिली | हमें किताब बहुत अच्छी लगी आप भी जरूर पढिए |
धन्यवाद !!!
Wish you happy reading ………!!!