बेताल पच्चीसी
सोमदेव भट्ट द्वारा लिखित
रिव्यू –
बेताल पच्चीसी’ जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, इस संग्रह में 25 कहानियाँ हैं |यह भारतीय साहित्य का एक अनमोल हिस्सा है |यह सदियों से लोगों को मनोरंजन के साथ-साथ सही राह भी दिखाता आया है | यह भारतीय लोक कथाओं का एक प्रसिद्ध संग्रह है | हम इसे पूरे 5 स्टार की रेटिंग देते है | यह कहानियाँ राजा विक्रमादित्य और बेताल से जुड़ी हैं | वह इन कहानियों द्वारा राजा विक्रमादित्य के न्याय-बुद्धि की परीक्षा लेता है |
“बेताल पच्चीसी” का मूल संस्कृत संस्करण ‘बेतालपञ्चविंशतिका’ है जिसका शाब्दिक अर्थ है “पच्चीस बेताल की कहानियाँ” | इसका श्रेय कश्मीर के कवि सोमदेव भट्ट को दिया जाता है | जिन्होंने इसे ‘कथासरित्सागर’ नामक अपने ग्रंथ के एक भाग के रूप में संकलित किया | ऐसा भी माना जाता है कि इसकी मूल रचना गुणाढ्य की विलुप्त ‘बृहत्कथा’ पर आधारित है |
लेखक का यह कहानियाँ लिखने का क्या उद्देश्य हो सकता है ?
और हम इनसे क्या शिक्षा ले सकते है ? तो हम ऐसा कह सकते है की यह कहानियाँ पाठकों को न्यायप्रिय और विवेकशील बनने की प्रेरणा देती हैं | यह केवल मनोरंजन के लिए नहीं बल्कि इनमें नैतिकता, न्याय, सही-गलत का बोध और मुश्किल परिस्थितियों में सही निर्णय लेने जैसे गूढ़ अर्थ छिपे हुए हैं |
“बेताल पच्चीसी” भारतीय साहित्य में बहुत लोकप्रिय है और इसका अनुवाद कई भारतीय भाषाओं के साथ-साथ विदेशी भाषाओं में भी हो चुका है | यह बच्चों और वयस्कों, दोनों के बीच बहुत पसंद की जाती है |
हर कहानी के बाद बेताल राजा को सवाल पूछता है | राजा विक्रम अपनी न्यायप्रियता, बुद्धिमत्ता और विवेक से जवाब देते हैं तो बेताल अपनी शर्त के अनुसार उड़कर वापस उसी पेड़ पर चला जाता है | अगर राजा जानबूझकर चुप रहते हैं, तो शर्त के अनुसार उनका सिर फट जाएगा |
राजा विक्रम हर बार सही जवाब देते हैं, जिसके कारण बेताल उड़कर वापस चला जाता है और राजा को उसे दोबारा पकड़ने के लिए बार-बार जाना पड़ता है | यह सिलसिला पच्चीस कहानियों तक चलता रहता है | बेताल पच्चीसी में कुल 25 कहानियाँ हैं, जिनमें से कुछ बहुत प्रसिद्ध हैं जैसे की चार मूर्ख पंडित
योगी का स्वार्थ
सबसे बड़ा दानी कौन ?
कौन किसका पिता ?
तीन तपस्वी
राजकुमारी की परीक्षा
असली पति कौन ?
इन कहानियों से हमें जीवन के कई महत्वपूर्ण पहलुओं की सीख मिलती है जैसे –
1. सही और गलत का निर्णय कैसे करना चाहिए ?
2. विषम परिस्थितियों में अपने कर्तव्य का पालन कैसे करें ?
3. हार न मानने का जज़्बा और लगन |
4. छल-कपट और स्वार्थ से दूर रहने की सीख |
कपटी तांत्रिक और बेताल –
सारी कहानीयां एक रात में ही सुनाई गई है | जिस रात महाराज बेताल को लेकर आनेवाले थे | उस रात भिक्षु राजा की ही राह देख रहा था | उसने पूजा की सारी तैयारीयां कर रखी थी |
उसने मंत्र बल से उस शव में , बेताल का आवाहन किया | अपनी पूजा पूर्ण होने के बाद , उसने राजा को साष्टांग दंडवत करने के लिए कहा ताकि वह उनका सिर धड़ से अलग कर , उनकी बलि दे सके , पर राजा के परिश्रम के कारण बेताल उन पर प्रसन्न हो गया था | इसीलिए उसने पहले ही यह बात राजा को बता दी थी |
अतः राजा ने ही भिक्षु को पहले दंडवत कर के दिखाने के लिए कहा | जैसे ही उसने ऐसा किया | राजा ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया | अब बेताल के आशीर्वाद से जो सिद्धियां भिक्षु को मिलनेवाली थी | वह राजा को मिली | बेताल ने उनसे वर मांगने के लिए कहा |
इस वर में राजा ने मांगा की , अनेक कथाओं के मनोरम आरंभ से 24 वी और अंतिम 25 वीं कथा सारे विश्व में प्रसिद्ध हो ! यह सदा ही आदरणीय रहे | बेताल के कहने पर यह सारी कथाएं बेताल पच्चीसी के नाम से विख्यात हुई | बेताल ने वर देते समय कहा की ,
लोग इन कथाओं का आदर करेंगे और जो इन्हें पढ़ेगा – सुनेगा , उनका कल्याण होगा | वह पाप – मुक्त हो जाएंगे | जहां-जहां यह कथाएं पढ़ी – सुनी जाएगी | वहां-वहां यक्ष , बेताल , डाकिनी , राक्षस आदि का प्रभाव नहीं पड़ेगा | इतना कहकर वह बेताल योग माया के द्वारा निकलकर अपने स्थान को चला गया |
इसके बाद राजा से प्रसन्न हुए भगवान शिव और अन्य देवता वहां उपस्थित हुए | उन्होंने उस भिक्षु रूपी राक्षस को मारने के लिए राजा की प्रशंसा की | भगवान शिव ने राजा को असुरों का संहार करने के लिए ही चुना था | भगवान शिव ने राजा को “अपराजिता” नाम का खड़क दिया और भी बाकी के बहुत सारे आशीर्वाद दिए | इसी के साथ वह अंतर्ध्यान हो गए | अब तक सवेरा होने लगा था | सब कार्य समाप्त होने की पुष्टि होने के बाद राजा अपने नगर को वापस लौट चलें |
अब तक यह सारी बातें प्रजाजनों को पता चल चुकी थी | उन्होंने राजा का सम्मान किया | राज्य में उत्सव मनाया | राजा विक्रमादित्य ने भगवान शिव के द्वारा दिए खड़क से द्वीप , पाताल सहित संपूर्ण धरती पर निष्कंटक राज्य किया | सारे सुख-दुख भोगकर मोक्ष को प्राप्त हुए जैसा कि उनसे भगवान शिव ने कहा था |
यह सारी कहानीयां तब की है जब उज्जैन में महाराज विक्रमादित्य राज किया करते थे | महाराज हर प्रकार से एक उत्तम और आदर्श राजा थे | एक दिन राजा के दरबार में एक भिक्षु आया | उसने राजा को एक फल दिया | राजा ने उस फल को अपने खजांजी को दिया |
कोषाध्यक्ष ने उसे खजाने में जमा कर दिया | अब वह भिक्षु हर रोज आता , एक फल देता | इस तरह वह लगातार 10 वर्ष तक आया | एक दिन राजा ने उस फल को खजाने में जमा ना करते हुए एक बंदर को दे दिया | बंदर ने जब उस फल को तोड़ा , तो उसमें से एक बहुमूल्य रत्न निकला जो उच्च कोटि का था |
इसके बाद राजा ने अपने खजाने की जांच की तो उन्हें वहाँ रत्नों का एक ढेर मिला | यह देखकर राजा अपने खजांजी पर प्रसन्न हुए और सारे रत्न उन्हींको दे दिए | दूसरे दिन वह भिक्षु फिर आया | राजा ने उसे फल देने का कारण पूछा तो ,
भिक्षु ने बताया कि उसे एक मंत्र की साधना करनी है जिसमें किसी वीर पुरुष की सहायता उसे चाहिए | इस पर राजा ने उसे मदद करने की हामी भरी | तब उसने कहा कि वह आनेवाले अमावस्या को , राज्य के महाश्मशान में बरगद के पेड़ के नीचे उनकी प्रतिक्षा करेगा | राजा ने वहां आने का आश्वासन दे दिया |
राजा जब नियत समय पर वहां पहुंचे तो वहां बहुत भयानक वातावरण था फिर भी राजा ने ना डरते हुए , भिक्षु को ढूंढा | भिक्षु ने राजा को दक्षिण दिशा की ओर भेजा | उस दिशा में एक विशाल शीशम का वृक्ष था | उस पर एक मरे हुए मनुष्य का शरीर लटक रहा था |
भिक्षु ने उस शव को लाने के लिए कहा | राजा वहां पहुंचे | उन्होंने रस्सी काटकर उस शव को नीचे उतारा | तब वह शरीर जोर से चीखा जैसे कि उसे बेहद दर्द हुआ हो ! राजा को एक बार की लगा कि यह मनुष्य जीवित है | उनको उस पर दया आई |
बाद में वह जोर से अट्टाहास कर उठा | तब राजा को पता चला कि उसमें बेताल विराजमान है | वह शव उड़ा और पेड़ पर चढ़ गया | राजा फिर गए और उसे उतार ले आए | ऐसा दो-तीन बार हुआ | राजा फिर गए और उसे उतारकर कंधों पर डालकर चल निकले |
बेताल ने राजा का परिश्रम देख कर रास्ता काटने के लिए कथा सुननी प्रारंभ कर दी | बस शर्त यह थी कि राजा को मौन रहना होगा | जैसे ही वह अपना मोहन तोड़ेंगे | बेताल उनको छोड़कर चला जाएगा | राजा ने सहमति दी और इसी के साथ सिलसिला शुरू हुआ बेताल पच्चीसी के कहानियों का …. इसमें से कुछ कहानियां आपको बता देते हैं | बाकी आप पढ़ लीजिएगा | इस किताब के –
लेखक है – सोमदेव भट्ट
रूपांतरकार – वेद प्रकाश सोनी
प्रकाशक है – जैन साहित्य परिषद
पृष्ठ संख्या है – 151
उपलब्ध है – अमेजॉन पर
सारांश –
इन पच्चीस कहानियों मे से
पहली कहानी मे –
प्राचीनकाल की वाराणसी में प्रताप मुकुट नाम का राजा राज्य करता था | इसी राजा का पुत्र था ,“वज्रमुकुट”| यह पिता की तरह ही एक आदर्श व्यक्ति था | इस राजकुमार का एक मित्र था ,”बुद्धि शरीर “|
एक बार यह दोनों शिकार खेलने जंगल में गए | वहां उन्हें एक कन्या अपनी सखियों के साथ दिखाई दी | राजकुमार और उस कन्या ने एक दूसरे को मन ही मन पसंद कर लिया | उस कन्या ने कुछ संकेत द्वारा अपनी जानकारी बताई जिसे “बुद्धिशरीर” तो समझ गया पर राजकुमार नहीं |
राजकुमार की हालत उस लड़की की याद में दिनों दिन खराब हो रही थी | तब मंत्री के पुत्र बुद्धिशरीर ने उस कन्या के संकेतों के बारे में बताया | अब सिर्फ दोनों ही कलिंग देश की ओर निकल गए क्योंकि वह कन्या वही रहती थी |
अब वहां पर भी संकेतो द्वारा ही उस लड़की ने अपने मैसेज पहुंचाए | यहां भी यह सारे संकेत बुद्धिशरीर ने ही समझे | बुद्धिशरीर ने उन दोनों का मेल करवा दिया | उन्होंने विवाह कर लिया | विवाह के बाद राजकुमार , कन्या के घर में ही छिपकर रहने लगा |
अब उस कन्या को पता चला कि वह सारे संकेत समझनेवाला उसके पति का मित्र है तो उसने उसे जहर देकर मारना चाहा क्योंकि ऐसे होशियार मित्र के होते हुए राजकुमार सिर्फ अपने पत्नी के ही बारे में नहीं सोच सकता था |
बुद्धिशरीर के अहित की बात देखकर , राजकुमार को उसकी पत्नी पद्मावती पर बड़ा गुस्सा आया पर बुद्धिशरीर के समझाने पर उसने गुस्सा थूक दिया | अब बुद्धिशरीर ने एक युक्ति राजकुमार को बताई जिससे वह लोग पद्मावती को अपने राज्य ले जा सके क्योंकि वह अपने पिता का घर छोड़कर नहीं जाना चाहती थी |
इसके थोड़ी देर पहले ही राजा के पुत्र की मृत्यु के कारण शोरगुल सुनाई दिया तब बुद्धिशरीर ने इसी बात को ध्यान में रखकर अपनी योजना बनाई | राजकुमार ने पद्मावती को खूब मदिरा पिलाकर बेहोश किया | उसके पश्चात उसके पैर पर त्रिशूल से दाग दिया |
उसके गहनों की गठरी बनाकर , बुद्धिशरीर को दे दी | बुद्धिशरीर ने शमशान में जाकर तपस्वी का रूप धारण कर लिया | उसने राजकुमार को अपना शिष्य बनाकर , उन गहनों में से मोतियों का हार देकर बाजार में बेचने के लिए भेजा |
राजकुमार ने उस हार का दाम इतना अधिक बताया कि कोई उसे खरीद नहीं पाया | वह हार ज्यादा से ज्यादा लोगों ने देखा और इस तरह शिष्य बने राजकुमार को नगररक्षक ने पकड़ लिया | राजा द्वारा पूछे जाने पर शिष्य ने अपने गुरु के बारे में बताया क्योंकि पद्मावती के गहनों की चोरी की खबर नगर रक्षक को मिल गई थी |
यह मोतियों का हार पद्मावती के गहनों में से ही एक था | तब तपस्वी बने बुद्धिशरीर ने कहा कि वह घूमते-घूमते इस शमशान में आ गया था | रात को बहुत सारी योगिनीया यहाँ आई | उनमे से एक छोटे बच्चे को लेकर आई | उसने उसका हृदय बेताल को अर्पित किया |
जब वह योगिनी उसके रुद्राक्ष की माला छीनने के लिए झपटी , तो उसने उस योगीनी के गले की मोतियों की माला छीन ली और अपना त्रिशूल योग बल से गर्म करके उसके पैरों पर दाग दिया |
यही बात नगररक्षक ने राजा को बताई | राजा वह हार पहचान गया क्योंकि उसने ही वह हार दंतवैद्य की बेटी पद्मावती को दिया था | तहकीकात करने के बाद राजा इस नतीजे पर पहुंचा कि पद्मावती ही वह यक्षिणी है | वह उसके बेटे को मारकर खा गई तब राजा ने तपस्वी बने बुद्धिशरीर के कहने पर पद्मावती को राजधानी से निष्कासित कर दिया |
तब राजकुमार और उसका मित्र जंगल में शोकमग्न बैठी हुई पद्मावती के पास आए और उसे लेकर अपने राज्य में चले गए | पद्मावती को तब तक पता चल गया था कि यह सब किया धरा बुद्धिशरीर का है | यह कहानी सुनाकर बेताल ने राजा को पूछा कि , अगर राजा ने गुस्से में आकर पद्मावती को निष्कासन के बजाय मृत्युदंड दिया होता तो क्या होता ?
अगर राजा राजकुमार को पहचान जाता और उसकी हत्या करवा देता तो इस पति-पत्नी के वध का पाप किसे लगता ? मंत्रीपुत्र को , राजा को , राजकुमार को या पद्मावती को ? इस पर राजा ने जवाब दिया कि , सारा दोष कर्णोत्पल राजा का होता क्योंकि राजा होकर भी वह नीतिशास्त्र नहीं जानता था |
उसने सच या झूठ का पता अपने गुप्तचरों से नहीं लगवाया | दुष्टों के चरित्रों को बिना जाने ही उसने जो कुछ किया | उसका सारा पाप उसे ही लगता | यह जवाब पाकर , बेताल उड़कर अपनी जगह पर चला गया | राजा भी उसके पीछे-पीछे चले |
दूसरी कहानी है –
तीन युवक ब्राह्मणों की कथा | मंदरावती नाम की एक अत्यंत रूपवती कन्या थी जो वेदों के ज्ञाता अग्निस्वामी की बेटी थी | वह ब्रह्मस्थल नामक प्रांत में रहती थी | उसके साथ विवाह करने की इच्छा लिए तीन ब्राह्मण युवक उसके घर आए | उसके पिता की हाँ के इंतजार में वह तीनों वहीं रहने लगे | एक दिन मंदरावती को बहुत तेज बुखार आया | उसी में वह चल बसी |
उसके अंतीम संस्कार के पश्चात पहला युवक उसके चीता की भस्म अपने सिरहाने रखकर वही अपनी झोपड़ी बनाकर , भिक्षा प्राप्त कर के रहने लगा | दूसरा उसकी अस्थियों को लेकर गंगा तट पर चला गया | तीसरा युवक योगी बन , देशांतरों के भ्रमण पर निकला | योगी बना ब्राह्मण युवक , वज्रलोक नाम के गांव में जा पहुंचा |
इस गांव के एक व्यक्ति के पास उसे एक मंत्र मिला जिससे मरा हुआ व्यक्ति जिंदा हो सकता था | वह इस मंत्र के साथ वहां पहुंचा , जहां मंदरावती की चिताभस्म पर पहला ब्राह्मण युवक रह रहा था | वहीं पर दूसरा ब्राह्मण भी मिला जो अस्थियां लेकर गंगा तट पर गया था |
तीसरे युवक ने अभिमंत्रित धूल से मंदरावती को जिंदा किया | अब वह पहले से भी ज्यादा सुंदर दिख रही थी | उसकी सुंदरता देखकर , तीनों उससे विवाह करने के लिए झगड़ पड़े | अब प्रश्न यह पड़ता है कि वह किसके साथ विवाह करें ?
यही प्रश्न बेताल ने भी राजा से किया | राजा ने उत्तर दिया कि जिस युवक ने मंत्र – तंत्र से उसको जीवनदान दिया | उसने उसके पिता का कर्तव्य निभाया | पिता , पुत्री को जीवन देता है | जिस युवक ने उसकी अस्थिया गंगा में बहा दी थी | उसने पुत्र का कर्तव्य निभाया | जो उसकी भस्म की चीता पर आलिंगन करते हुए तपस्या करता रहा | उसे ही उसका पति कहना चाहिए |
तीसरी है –
रजक कन्या की कथा |
शोभावती नाम की नगरी का राजा यशकेतु था | उसके नगरी में माँ गौरी का एक उत्तम मंदिर था | हर वर्ष आषाढ़ महीने में शुक्ल चतुर्दशी के दिन वहां मेला लगता था | हर दिशा से लोग वहां दर्शन करने आते | एक बार ब्रह्मस्थल नाम की जगह का युवक वहां दर्शन करने आया | उसने वहां अति सुंदर मदनसुंदरी नाम की युवती को देखा |
उसे पाने की चाहत में वह विव्हल रहने लगा | उसके पिता को जब यह बात पता चली तो उन्होंने बताया कि वह युवती उनके ही मित्र की बेटी है | वह आज ही उससे विवाह की बात करेंगे | उसके बाद दोनों का विवाह हो गया | इस युवक का नाम धवल था | विवाह के कुछ समय पश्चात मदनसुंदरी का भाई उन दोनों को लेने के लिए वहां आया |
मदनसुंदरी के भाई का बड़ा ही स्वागत सत्कार हुआ | दूसरे दिन धवल , उसकी पत्नी मदनसुंदरी और उसका भाई तीनों धवल के ससुराल जाने के लिए निकले | शोभावती नाम की नगरी में उन्होंने माता गौरी का विशाल मंदिर देखा | तब धवल ने माता का दर्शन करने की इच्छा जताई पर उसके साले ने कहा कि अभी हम खाली हाथ है | बाद में चढ़ावा लाकर माँ का दर्शन करेंगे |
इस पर धवल ने कहा कि माता को भेंट की नहीं श्रद्धा की आवश्यकता होती है | ऐसा कहकर वह अकेला ही दर्शन करने चला गया | मंदिर में जाकर उसने सोचा , लोग विभिन्न प्राणियों की बलि देकर देवी को प्रसन्न करते हैं | मैं भी सिद्धि पाने के लिए क्यों ना अपनी ही बलि दे दूं ? ऐसा सोचकर उसने सचमुच अपनी बलि दे दी | बहुत देर होने पर भी वह नहीं आया तो मदनसुंदरी का भाई उसको देखने के लिए आया |
वहां की स्थिति देखकर उसने भी अपना शीश काटकर बलि दे दी | अब मदनसुंदरी की बारी थी मंदिर में जाकर देखने की | उसने वहां जाकर देखा तो वह स्तब्ध रह गई | उसने भी सोचा कि वह जीवित रहकर क्या करें ? ऐसे में उसने भी मन से प्रार्थना कर अपने प्राण देने ही चाहे थे की माता ने प्रकट होकर उसके प्राण बचा लिए | साथ में उसके भाई और पति का शीश उनके शरीरों पर जोड़ने के लिए कहा | ताकि माता उनको जिंदा कर सके |
मदनसुंदरी ने ऐसा ही किया | अब वह दोनों जीवित हो गए | तीनों खुशी-खुशी वापस जाने लगे तभी मदनसुंदरी को आभास हुआ कि उसने शीश जोड़ते समय शरीरों की अदला – बदली कर ली थी | अब वह घबरा गई | उसे समझ में ही नहीं आया कि उसे क्या करना चाहिए ? यही प्रश्न बेताल ने महाराज विक्रमादित्य से पूछा |
आपको क्या लगता है ? क्या उत्तर दिया होगा महाराज विक्रमादित्य ने ? हमें कमेंट में जरूर बताईएगा | हमे इसका जवाब पता है और उनको भी जिन्होंने यह कहानीयां पढ़ी है | अब आपकी बारी है |
24 वी कहानी है – एक अद्भुत कहानी |
दक्षिणपथ में “मांडलिक” नाम का राजा था | उसकी पत्नी का नाम “चंद्रावती” था | उन दोनों की पुत्री का नाम “लावण्यवती” था | वह नाम के अनुरूप ही लावण्य की खान थी | जब वह कन्या विवाह योग्य हुई तब राजा के ही रिश्तेदारों ने उसके खिलाफ षडयंत्र कर उसे सिंहासन से उतार दिया | अब वह सब लोग राजा के खून के प्यासे हो गए | राजा किसी तरह अपनी पुत्री और पत्नी की जान बचाकर भाग जाने में कामयाब हुआ |
राज्य से निकलकर वह अपने ससुराल मालवा जाने के लिए निकला | चलते-चलते वह लोग जंगल में पहुंचे | वहां से एक गांव में… जो लुटेरे भीलों का गांव था | उन्होंने राजा को देखा तो उसे लूटने के लिए उस पर टूट पड़े | उसके पहले राजा ने अपनी पत्नी और पुत्री को दूर जंगल में भेज दिया था |
भीलों का मुकाबला करते हुए राजा के प्राण चले गए | इस डर से वह दोनों स्त्रियां जंगल से और घने जंगल मे चली गई | वह वहीं बैठकर रोने लगी | इस जंगल मे एक राजा अपने पुत्र के साथ आखेट करने के लिए आया हुआ था | राजा का नाम चंद्रसिंह था और उसके पुत्र का नाम सिंहपराक्रम था |
धूल में उभरे हुए उन शुभ रेखाओवाले पद चिन्हों को देखकर , राजा चंद्रसिंह ने कहा कि अवश्य ही यह पद चिन्ह किसी दो महिलाओं के हैं | यदि वह हमें मिल जाए तो उनमें से एक को तुम ब्याह लेना | इस पर राजकुमार सिंहपराक्रम ने कहा कि, इनमें से जिसके छोटे-छोटे पैर है | वह अवश्य ही कम उम्र की है और मेरे योग्य है | मैं उसी से विवाह करूंगा |
दूसरी से आप कर लीजिएगा | इस पर राजा ने आपत्ति जताई पर राजकुमार के मनाने पर वह विवाह के लिए मान गए | जब यह दोनों उन माँ – बेटी के निकट पहुंचे तो वह बेचारी सहम कर चुप हो गई | पहले उन दोनों पुरुषों को उन्होंने कोई लुटेरा ही समझा था पर राजा के परिचय देने के बाद दोनों उनके साथ महल चली गई |
दोनों पिता पुत्र ने , अपने वचनानुसार दोनों स्त्रियों से विवाह किया | राजकुमार सिंहपराक्रम ने रानी चंद्रावती को अपनी पत्नी बनाया क्योंकि उसी के पैर छोटे थे जबकि राजा चंद्रसिंह ने लावण्यवती से विवाह किया क्योंकि उसके पैर बड़े थे |
इस तरह चंद्रावती अपनी ही बेटी की बहू बन गई | समय गुजरने के साथ उनको पुत्ररत्न और कन्या रत्नों की प्राप्ति हुई फिर उनके भी बेटा – बेटी हुए | इतना कहकर बेताल ने राजा विक्रमादित्य से पूछा की माँ – बेटी को जो संताने प्राप्त हुई |
उनका आपस में क्या संबंध हुआ ? यही तो आपको भी पढ़ कर पता करना है | अगर आपको जवाब चाहिए तो …. पढ़िएगा जरूर | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ….
धन्यवाद !!
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” FAQ सेक्शन में आपका स्वागत है |
सवाल है ? जवाब यहाँ है | (FAQs SECTION)
Q.1. बेताल पच्चीसी किसने लिखी है ?
A. कश्मीर के कवि सोमदेव भट्ट द्वारा लिखित है |
Q.2.बेताल पच्चीसी सच्ची है ?
नहीं !
Q.3.बेताल पच्चीसी का मतलब क्या है ?
A.बेताल पच्चीसी का मतलब “पच्चीस बेताल की कहानियाँ” है |
Q.4.बेताल पच्चीसी की पच्चीस कहानिया कौन सी है ?
A.ऐसे बताना मुश्किल है | कुछ कहानियों के लिए इस किताब का रिव्यू पढे और पूरी कहानियों के लिए किताब ……