ASAHI EK RUKMINIHARAN BOOK REVIEW HINDI

असंही एक रुख्मिणीहरण

डॉ. बं. न. जाजू द्वारा लिखित

रिव्यू –

     लेखक की यह चौथी किताब है | लेखक इंजीनियरिंग के प्रोफेसर है | 1966 से उन्होंने अलग – अलग कॉलेज मे पढ़ाया | उस दौर के वह आय.आय.टी. डॉक्टरेट है | अलग – अलग कॉलेजेस मे पढ़ने के दौरान उनको अलग – अलग व्यक्ति मिले और इनसे जुड़ी परिस्थितियाँ भी और इसी व्यवहार ज्ञान के चलते उन्होंने किताबे लिखी | अपनी यह किताब वह ई. साहित्य के माध्यम से पाठकों के लिए लेकर आए है | जैसा की इसके पहले के ब्लॉग मे हमने बताया की ई. साहित्य फ्री मे किताब उपलब्ध करवाता है | आइए अब ई – प्रतिष्ठान के बारे मे आप को बताते है | यह एक ऐसा पब्लिकेशन है जो ऑनलाइन किताबे प्रकाशित करता है जहां नए लेखकों को अवसर भी दिए जाते है | यहाँ किताबे मुख्यतः मराठी भाषा मे उपलब्ध है जिन्हे आप फ्री मे पढ़ सकते है वह भी एक से बढ़कर एक .. | शर्त बस इतनी है की , किताबे पढ़ने के बाद आप को अपने विचार ई. साहित्य प्रतिष्ठान के ई. मेल पर भेजने होंगे | यहाँ आप अपना पता बताकर फ्री मे किताबे मँगवा सकतें है | जब कोई किताब हमे फ्री मे पढ़ने को मिल रही है तो वह हमे कैसी लगी यह तो हम बता ही सकते है | तो देर किस बात की , अगर आप को मराठी भाषा की किताबे पढ़ना अच्छा लगता है तो आज ही गूगल क्रोम से इस वेबसाईट पर जाकर फ्री मे किताबे डाउनलोड करे | इस किताब के –

लेखक है – डॉ. बं. न. जाजु

प्रकाशक – ई. साहित्य प्रतिष्ठान

पृष्ठ संख्या – 74

उपलब्ध – ई. साहित्य प्रतिष्ठान की वेबसाईट पर

सारांश –

     प्रस्तुत किताब लेखक के परिवार मे घटित कहानी है | यह लगभग रुक्मिणी हरण के जैसी ही है | यह कहानी लेखक को तब पता चली जब वह पढ़ाई करने के लिए अपने मामा के घर रहने लगे | लेखक के घर की परिस्थिति उतनी अच्छी नहीं थी | उनके माता – पिता बड़ी कठिनाई से लेखक और उनके भाई – बहनों का पालन पोषण , पढ़ाई करवाते थे जब की उनके मामा अपने घर के बड़े रईस आदमी थे | उनका उनके गाँव मे बडा मान – सन्मान था |

         घर मे ढेर सारे नौकर – चाकर थे | बहुत से रिश्तेदार उनके मामा के घर मे रहते थे | अपनी परिस्थिति के चलते लेखक भी उनके मामा के घर रहकर पढ़ाई करने लगे | तब उन्होंने अनुभव किया की उनके पिता और मामा के संबंध उतने अच्छे नहीं है | इसके पीछे की कहानी जानने के लिए उन्होंने मामा के ही घर मे रहने वाले उनके नानाजी को पकडा जो कभी रईस हुआ करते थे | उन्होंने उनकी जुआ खेलने की लत के कारण अपना सबकुछ गवां दिया और अभी गरीब होकर लेखक के मामा के घर आश्रित बनकर रह रहे है | लेखक ने उनसे ही सारी कहानी पता करने की ठानी |

         इसलिए एक दिन वह उन्हे खेत पर ले गए | वहाँ उन्होंने बातों – बातों मे बताया की लेखक की माँ , के चाचा की बेटी के लिए जब रिश्ते ढूँढे जाने लगे तब एक रिश्ता लेखक के चाचा का भी था और दूसरा लेखक के मौसी के देवर का .. |

लेखक के मौसी के घर की परिस्थिति ज्यादा अच्छी थी पर वह लड़का दिखने मे 19- 20 था | लेखक के घर के परिस्थिति उनके मुकाबले थोड़ी कमजोर थी लेकिन लेखक के चाचा दिखने मे बड़े अच्छे थे | इसलिए सब को ऐसा लग रहा था की रिश्ता इनके घर ही होगा लेकिन हुआ एकदम उल्टा .. |

लेखक के पिता और चाचा एकदम सरल स्वभाव के थे | खास कर के लेखक के चाचा | वह अपने बड़े भाई और भाभी का बहुत सन्मान किया करते | उनकी हर एक बात मानते और अपने बड़े भाई के बच्चों को बेहद प्यार करते | उन्होंने लेखक का हमेशा साथ दिया | उनके इसी अच्छे स्वभाव के कारण शायद लेखक ने यह किताब उनके माता – पिता के साथ साथ उनके चाचा को भी समर्पित की है |

खैर जब लेखक के चाचा का रिश्ता ठुकरा दिया गया तब लेखक के बुआ के पती जो एक खुराफाती दिमाग थे | उन्होंने एक योजना बनाई |

          यह कहकर की , उन्होंने लेखक के चाचा का रिश्ता ठुकराकर उनका बहुत बडा अपमान किया है | उन्होंने सब को अपनी बातों के फेर मे ले लिया | उन्होंने दुल्हन का अपहरण कर , लेखक के चाचा के साथ जबरदस्ती शादी करवाने का प्लान बनाया | इस प्लान मे उन्होंने लेखक की माँ को भी शामिल किया | बेचारी , लेखक की माँ | उनको उनके पती की बात माननी ही थी |

खैर .. दुल्हन की हल्दी वाले दिन दुल्हन का अपहरण कर लिया गया | सारे प्लान को जैसा सोचा था वैसा ही अंजाम दिया गया | शादी होने के बाद जब यह सब लोग बस स्टैन्ड पर खड़े थे तब इनको पुलिस ने पकड लिया और सब लोगों का भेद खुल गया |

           इससे दोनों घरो के रिश्तों मे कड़वाहट आ गई | कोर्ट – कचहरी का चक्कर करते – करते लेखक के घर की परिस्थिति बेहद खराब हो गई | सब से मुख्य बात है दूल्हा – दुल्हन की | अब किताब पढ़कर आप को जानना है की ,क्या सारे घरवालों ने इनकी शादी को स्वीकार किया ? क्या दूल्हा या फिर दुल्हन को इससे आपत्ति थी ? क्या हुआ इन दोनों का इसके बाद ? कहानी की एन्डिंग आप की जनरल सोच को नकार देती है | अमूमन ऐसी परिस्थिति मे लोग सोच लेते है की आगे क्या हुआ होगा ? कभी – कभी फिल्म भी हमारी सोच के हिसाब से एन्डिंग दिखा देती है लेकिन रियल लाइफ के पात्र ऐसी परिस्थिति मे बहुत क्रूर हो जाते है |

इस कहानी की एन्डिंग बड़ी दिलचस्प है | रियल लाइफ मे ऐसा भी कभी होता है | यह सब सोचने पर आप मजबूर हो जाओगे | एक बार आप यह किताब जरूर – जरूर पढे | रिश्तों का एक अलग ही ताना – बाना आप को यहाँ देखने को मिलेगा | आप को यह किताब जरूर पसंद आएगी | किताब पढ़ने के बाद इसके बारे मे अपनी राय लेखक या ई. प्रतिष्ठान तक जरूर पहुंचाए | एक – दो दिन मे हम आप के लिए रुक्मिणी और रुक्मिणीहरण की जानकारी प्रस्तुत ब्लॉग मे देकर इसे अपडेट करवाएंगे | तब तक आप ब्लॉग मे लिखी किताब का आनंद लीजिए और फिर से ब्लॉग को भेट देने का न भूले | तब तक के लिए ..

धन्यवाद !

Wish you happy reading …….

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