AJEYA- PANSO KA KHEL BOOK REVIEW

अजेय – पाँसों का खेल
आनंद नीलकंठन द्वारा लिखित
रिव्यू –

     आनंद नीलकंठन की “अजेय – दुर्योधन की महाभारत” एक पौराणिक कथा है जो महाभारत के महाकाव्य को कौरवों के दृष्टिकोण से, मुख्य रूप से दुर्योधन (जिसे सुयोधन भी कहा जाता है) पर केंद्रित करते हुए, साहसपूर्वक फिर से प्रस्तुत करती है। यह उसे खलनायक के रूप में नहीं, बल्कि अपने जन्मसिद्ध अधिकार के लिए प्रयासरत एक जटिल और दृढ़ निश्चयी चरित्र के रूप में प्रस्तुत करके पारंपरिक कथा को चुनौती देती है और स्थापित सामाजिक मानदंडों पर सवाल उठाती है। यह पुस्तक “पराजित” पक्ष की प्रेरणाओं और संघर्षों पर प्रकाश डालती है, जिसका उद्देश्य कुरुक्षेत्र युद्ध के लिए जिम्मेदार पात्रों और घटनाओं की अधिक सूक्ष्म समझ प्रदान करना है।

    द्यूत मे उपयुक्त पाँसों का जब भी नाम लिया जाता है | “शकुनी” को इससे जोड़कर देखा जाता है क्योंकि उसके पाँसों का महाभारत की घटनाओं में एक अलग ही योगदान है | कहते हैं की , उसके पाँसे उसके मतानुसार चलते थे | वह उसके पिता की जंघा की हड्डियों से बने थे और उसके पिता की आत्मा उनमें बसती थी |
उसने अपने इन पाँसों का उपयोग पांडवों को बर्बाद करने के लिए किया | ऐसा कर के वह कौरवों और पांडवों में युद्ध कराना चाहता था ताकि हस्तिनापुर बर्बाद हो सके | हस्तिनापुर तब भारत देश का सबसे बड़ा राज्य था | इसका बर्बाद होना मतलब भारत भूमि का बर्बाद होना ,पर शकुनी क्यों ऐसा चाहता था जबकि उसकी सगी बहन यहां की रानी थी , क्योंकि वक्त के साथ गांधारी ने अपना प्रतिशोध भुलाकर इस मातृभूमि को अपना मान लिया था | पर शकुनी ऐसा कर न सका |
प्रतिशोध की ज्वाला उसके मन में धधकती रही | वह हस्तिनापुर के साथ-साथ भीष्म से भी अपना प्रतिशोध लेना चाहता था क्योंकि एक अंधे राजकुमार के लिए उसकी अति खूबसूरत बहन गांधारी का अपहरण करने के लिए भीष्म ने उसके गंधार को बर्बाद कर दिया था | उसके माता-पिता को मार दिया था | उसके लोग , उसके देश को नष्ट कर दिया था | वह देश जो सुदूर पश्चिम में ठंडी पहाड़ियों के बीच स्थित था |
प्रत्यक्ष पाँसे फेंककर उसने अपनी चाल तो द्यूत के वक्त ही चली पर इसके पहले वह षड्यंत्र के रूप में अपने पाँसे फेकता रहा और इसका इल्जाम दुर्योधन पर आता रहा | प्रस्तुत किताब दुर्योधन के दृष्टिकोण से लिखी गई है जिसमें उसने खुद को इनोसेंट बताया है | उसने खुद को समाज में व्याप्त अति शोचनीय जाती – व्यवस्था को न माननेवाला बताया है | उसने जाति के आधार पर नहीं , बल्कि गुण और योग्यता के आधार पर अपने मित्र बनाएं |
गरीब , शोषित , पिछड़े वर्गों के साथ सहानुभूति रखी | इससे रूढ़िवादी , परंपरावादी , पंडित , पुरोहित , ब्राह्मण सब चिढ़ गए | इनके जैसे विचारवाले लोगों ने षड्यंत्र कर के , एकमत कर के दुर्योधन जैसे विचारवाले लोगों का नामोनिशान इस धरती से मिटा डाला और उनके बारे में बुरी बातें फैलाई ताकि आनेवाली पीढ़ियां उन्हें बुरे लोगों के रूप में जाने |
वैसे भी जब युद्ध होता है तो हारनेवाले पक्ष के साथ जितनेवाला पक्ष मनमाफिक व्यवहार करता है | जीतनेवाला पक्ष , हारनेवाले पक्ष के बारे में जो बातें फैलाता है | वक्त के साथ लोग उसे ही सही मानने लगते हैं | शायद इसीलिए ब्रिटिशो के राज मे ब्रिटिश हम भारतीयों को अपने बराबर भी नहीं समझते थे | इसीलिए तो एक ब्रिटिश ऑफिसर के सामने ब्रिटिश नौकरी करनेवाला , एक उच्चवर्गीय भारतीय भी बैठ नहीं सकता था |
दुर्योधन कहता है की ,उसका नाम सूयोधन था ना कि दुर्योधन … इन रूढ़िवादी लोगों ने उसका दुर्योधन नाम प्रचलित कर दिया | वैसे भी देखा जाए तो कोई भी माता-पिता अपने बच्चों का बुरा – सा नाम नहीं रखते | इसीलिए यह लगता है की गांधारी ने अपने बच्चों का अच्छा ही नाम रखा होगा |
महाभारत में प्रचलित “नियोग पद्धति” तब उपयोग में लाई जाती थी | जब वंश चलानेवाला कोई ना बचा हो ! जैसा की भीष्म की माता सत्यवती के केस में हुआ था पर कुंती को इसकी कोई जरूरत नहीं थी क्योंकि गांधारी ऑलरेडी माँ बननेवाली थी | गांधारी के बच्चे भी हस्तिनापुर के वारिस ही थे |
दुर्योधन , गांधारी और धृतराष्ट्र का जैविक पुत्र था | न की कुंती के पुत्रों जैसा नियोग पद्धति से मिला हुआ | इसीलिए वह खुद को कौरव मानता था और सिंहासन का योग्य अधिकारी भी | जबकि कुंती के पुत्रों को वह अवैध पुत्र मानता था | बस इसी बात से महाभारत के युद्ध का बीच बोया गया |
दुर्योधन के अनुसार उसका पिता अंधा होने के कारण राज्य संभाल नहीं सका लेकिन वह पूरी तरह योग्य है | वह बड़े बेटे का बड़ा बेटा होने के कारण सिंहासन का योग्य अधिकारी भी | वैसे भी वह क्षत्रिय है | अपने अधिकारों के लिए लड़ना उसका हक है | वह ऐसे ही हार नहीं मान सकता |
लेखक ने प्रस्तुत किताब को अलग दृष्टिकोण के साथ लिखा है | यहाँ कोई दैवीय घटनाएं नहीं है | इस महाभारत में शोचनीय जाति व्यवस्था कड़ाई से लागू की गई है | जहां नीन्म जाति के लोगों को योग्यता होने के बावजूद अपना मनपसंद कौशल सीखने की आजादी नहीं | जैसा की कर्ण और एकलव्य के साथ होता है |
राजमहलों के बाहर एक अलग ही संसार बसा हुआ है | जहां के लोग अती दिन , हीन – गरीब और गंदे है | राज्यकर्ताओं का तो उनकी तरफ कोई ध्यान ही नहीं | उन्हे तो शायद इनके बारे में पता तक नहीं | तो फिर ईनके उत्थान के लिए प्रयास ही कैसे हो ?
उन्हें राजमार्गों पर खुलेआम चलने की मनाही है | कोई उच्च जाति का व्यक्ति अगर उनसे टकरा गया तो वह तुरंत स्नान करने चले जाता हैं सिर्फ दुर्योधन और उसके भाई बहन का एकलव्य और जरा के साथ सामना हो चुका है | इन लोगों ने उनके साथ अच्छा व्यवहार किया |
उन्हें खाने के लिए दिया | एकलव्य से भी दिन दशा में रहनेवाले “जरा” को लोगों को अच्छा रवैया ही याद रहता है क्योंकि जीवन में लोग उसे प्रायः नफरत ही देते है |
नागराज तक्षक भी अछूत की श्रेणी में आता है | इसलिए उसने भी रूढ़िवादी लोगों द्वारा सताए हुए लोगों को लेकर एक संगठन तैयार किया है ताकि एक दिन वह अच्छे समाज की स्थापना कर सके | यह वह सिर्फ लोगों के दिखावे के लिए कहता है | आखिर में तानाशाह बनना ही उसके मन में है |
यहाँ सब अपना – अपना युद्ध लड़ रहे हैं | लेखक ने इस किताब के माध्यम से दुर्योधन का भी पक्ष दिखाया है | एक विपरीत महाभारत को दिखानेवाली इस किताब के –
लेखक है – आनंद नीलकंठन
प्रकाशक है – मंजुल पब्लिशिंग हाउस
पृष्ठ संख्या – 418
उपलब्ध है – अमेजन और किन्डल पर
सारांश –
भीष्म ने गंधार को तबाह कर दिया है | वह वहां से गांधारी और 5 साल के शकुनि को लेकर हस्तिनापुर आ गए हैं | गांधारी और धृतराष्ट्र का विवाह हो चुका है | इनके सूयोधन , सुशासन और सुशला नाम के बच्चे हैं | कुंती भी तब तक अपने पांचो बच्चों को लेकर हस्तिनापुर आ चुकी है | सिंहासन को लेकर गांधारी और कुंती में शीत युद्ध चलता रहता है |
भीष्म ने खुद तो विवाह नहीं किया पर हस्तिनापुर के भावी राजाओं के लिए कन्याओं का अपहरण उन्हें ही करना पड़ा | इस चक्कर में उनके बहुत से शत्रु बन गए | इसी में से एक थी काशी की राजकुमारी अंबा | उसने भीष्म से बदला लेने के लिए परशुराम से गुहार लगाई |
परशुराम एक अजय योद्धा थे | उन्हें और उनके दक्षिणी मंडल को हराना एक मुश्किल काम था | इसके बावजूद भीष्म यह युद्ध लड़ भी सकते थे और जीत भी सकते थे पर मनुष्यहानी बचाने के लिए उन्हें परशुराम के साथ संधि करनी पड़ी और उनकी जाति व्यवस्था का नियम उन्हें उत्तर दिशा में स्थित हस्तिनापुर में लगाना पड़ा फिर भी भीष्म इस नियम को इतनी तवज्जो नहीं देते थे और जाति व्यवस्था पर लगे नियम थोड़े ढीले थे |
यह नियम तब और कठिन हो जाते हैं , जब परशुराम के शिष्य आचार्य द्रोण हस्तिनापुर में आचार्य कृपा की जगह ले लेते हैं | आचार्य कृपा और उनके मित्र चार्वाक जाति व्यवस्था के किसी नियम को नहीं मानते | इसीलिए वह हमेशा पंडे , पुरोहितों के निशाने पर रहते हैं |
इसीलिए उन्हें हटाकर आचार्य द्रोण को राजकुमारों का शिक्षक नियुक्त किया जाता है | कुंती को हस्तिनापुर का सिंहासन पाना है | इस के लिए उसे समर्थन चाहिए | इसलिए वह और उसके पांचो बेटे जाति व्यवस्था का कड़ाई से पालन करते हैं | ताकि पुरोहित धौम्य , उसके समर्थक और परशुराम का दक्षिणी मंडल उनका साथ दे |
वही दुर्योधन हर वक्त उनके खिलाफ रहता है | इसीलिए वह भी कृपा जैसे रूढ़िवादियों के निशाने पर है | इसीलिए गांधारी को दुर्योधन की चिंता है | द्रोण हमेशा सुयोधन को अंधे का पुत्र कहकर ताना मारते रहते हैं | उसे बात-बात पर अपमानित करते हैं |
हस्तिनापुर से लगे जंगल में नाग जाती के लोग भी रहते हैं | वह एक दिन हस्तिनापुर में घुसकर दहशत फैलाते है | उन्हें इस काम में हस्तिनापुर का ही एक अज्ञात व्यक्ति मदद करता है | बाद में विदुर को पता चलता है कि वह व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि शकुनी है |
शकुनि ने पुरोचन को अपना साथी बना लिया है | यह हस्तिनापुर का स्वच्छता प्रबंधन अधिकारी है | साथ में दुष्ट , कपटी और लालची भी | यह हस्तिनापुर में पनप रहे आपराधिक जगत के मुखिया दुर्जेय का भी साथीदार है | शकुनी इसका उपयोग हस्तिनापुर में अशांति फैलाने के लिए करता है |
शकुनि ने ही दुर्योधन का उत्तरिय पहनकर , भीम को नशा करवाकर नदी में धकेल दिया | जिससे दुर्योधन पर भीम की हत्या का आरोप लगा | शकुनी यही तो चाहता था | वह भीम और दुर्योधन की आपसी रंजिश को जानता था | भीम अपनी ताकत के बल पर हमेशा ही दुर्योधन को डराता था और परास्त कर देता था |
उसके इस डर को बलराम ने भांप लिया था | उन्होंने उसे अपना शिष्य बनाकर गदायुद्ध सिखाया | उस दरम्यान सुयोधन को सुभद्रा से प्रेम हुआ | सुभद्रा और दुर्योधन एक दूसरे से बेहद प्रेम करते थे | बलराम , दुर्योधन के विचारों के समर्थक है |
हस्तिनापुर पर जब तक्षक हमला करता है तो एकलव्य , जरा और कर्ण इस हमले को वापस कर देते हैं | कर्ण की धनुर्विद्या को देखकर विदुर उसे भीष्म की आज्ञा से द्रोण के पास लेकर जाते हैं | द्रोण ,कर्ण को सीखाने से मना कर देते हैं क्योंकि वह एक सूत है |
उसकी जाति को शस्त्र विद्या सीखना निषेध है | द्रोण यही तक नहीं रुकते बल्कि वह हस्तिनापुर के प्रधानमंत्री के पद पर आसीन विदुर का भी खूब अपमान करते हैं क्योंकि वह एक अछूत है | क्यों ? क्योंकि वह एक दासी के पुत्र है |
यही बात शकुनी , धौम्य को तब पूछता हैं , जब पांडव द्यूत में हारकर दास बन जाते हैं | शकुनि पूछता है की ,क्या यह लोग यानी पांडव अब अछूत हो गए हैं ? क्या इनको स्पर्श करने पर अंगराज कर्ण को भी स्नान करना होगा क्योंकि वह उनके जाति से उच्च है | यहाँ जाति धन से आकी गई है |
कर्ण बाद में कृपा के पास जाता है | कृपा उसे द्रोण इतना नहीं पढ़ा सकते | इसलिए वह उसे ब्राह्मणों के रीति – रिवाज बताकर , एक फेक ब्राह्मण बनाकर दक्षिण में परशुराम के पास भेजते हैं | कर्ण वहां 8 साल रहकर प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं |
वह वहा धर्मराज की पदवी प्राप्त करते हैं | दक्षिण मंडल के सारे राजा उन्हें एक श्रेष्ठ योद्धा के रूप में स्वीकार करते हैं | उन्हें वहां सूर्यकुल के राजा की ओर से एक अभेद्य कवच भी मिलता है | पहले ही क्षण उनकी जय जयकार करनेवाले राजा , दूसरे ही क्षण उसके खून के प्यासे हो जाते हैं क्योंकि तब तक उन्हें पता चल जाता है की धर्मराज की पदवी जितनेवाला यह योद्धा कोई ब्राह्मण नहीं बल्कि एक सूत है |
जब तक उनको यह पता चले तब तक कर्ण विदेशी जहाज पर सवार हो जाते हैं | उस जहाज का मालिक पीले बालोंवाला एक युवक है | कर्ण की कहानी सुनकर वह उसे अपने देश आने के लिए कहता है | जहाँ योग्यता की कदर होती है | वहाँ लोग उसे अपनी आंखों की पलकों पर बिठाकर रखेंगे | यह जानने के बावजूद कर्ण अपने देश को चुनता है | यहाँ के संघर्षों को चुनता है |
वह आते समय द्वारका आता है | यहां बलराम उसका हौसला बढ़ाते हैं तो श्री कृष्ण से उसे खतरा महसूस होता है | उसके हस्तिनापुर पहुंचने के पहले ही भीष्म के पास दक्षिण मंडल से एक खबरी पहुंचता है की कर्ण को उनके हवाले किया जाए नहीं तो युद्ध के लिए तैयार रहा जाए | इस दरम्यान “जरा”, कर्ण को तब तक छुपाए रखता है जब तक की हस्तिनापुर में राजकुमारों का पदवी समारोह संपन्न नहीं हो जाता |
जरा यह मदद उसे उस एक दिन के खाने के बदले करता है जो कर्ण की माँ ने उसे खिलाया था | इस समारोह में क्या होता है ? यह तो आपको पता ही है | कर्ण को दुर्योधन अंगदेश का राजा बना देता है | अब तक सुयोधन , सुशासन , कर्ण , अश्वत्थामा और जयद्रथ यह पांचो मित्र बन गए हैं | समारोह मे दुर्योधन के व्यवहार के कारण सुभद्रा , अर्जुन को पसंद करने लगती है | बाद में वह उसीसे विवाह करती है |
द्रोण , गुरुदक्षिणा में एकलव्य का अंगूठा मांगते हैं | कर्ण की तरक्की देखकर एकलव्य एक बार फिर से धनुर्विद्या की प्रैक्टिस में जुट जाता है | बाद में वह तक्षक के दल में शामिल होकर , द्वारका पर आक्रमण भी करता है | तब अहिंसावादी बलराम उनका सामना करते हैं |
द्रोण के ही गुरुदक्षिणा के प्रपंच के कारण शिखंडी और दृष्टद्युम्न , दुर्योधन के ग्रुप के दुश्मन बन जाते हैं | एक वक्त पर कर्ण को प्रेम करनेवाली द्रौपदी उसे जाति के नाम पर नीचा दिखाती है | वारणावत का षड्यंत्र भी शकुनी ही रचता है | इसका इल्जाम वह जानबूझकर दुर्योधन पर डालता है |
एक तरफ श्री कृष्ण , भीम के हाथों एकलव्य के पिता और जरासंध की हत्या करवा देते हैं | तो दूसरी तरफ इंद्रप्रस्थ का निर्माण करने के लिए खांडववन को जलाकर भस्म करते हैं | इसके साथ ही उसमें बसे कई नाग स्त्री , बच्चों , वृद्धो और जानवरों को भी ….
इससे एकलव्य और तक्षक के समर्थक श्री कृष्ण के शत्रु बन जाते हैं और द्वारका पर आक्रमण कर देते हैं | राजसूय यज्ञ में जाने के बाद दुर्योधन और कर्ण का द्रौपदी फिर से एक बार और अपमान करती है | इसकी परिणति द्यूत क्रीडा में उन्हें बुलाकर अपमान करने से होती है | जिसमें शकुनी अपने पाँसों का कमाल दिखाता है |
दुर्योधन की दृष्टि से लिखी हुई इस महाभारत को जरुर पढिए | ताकि आपको उसका पक्ष भी पता चले | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ….
धन्यवाद !!

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