आजादी आधी रात को
लैरी कॉलिंन्स और डोमिनिक लैपिएर द्वारा लिखित
रिव्यू –
साल 2025 में आनेवाले 15 अगस्त को हम भारतवासी अपना 79वां स्वातंत्र्यदिन मनानेवाले हैं | वैसे भारत को 15 अगस्त 2025 तक आज़ाद हुए 78 साल पूरे हो जाएंगे लेकिन 1947 में मिली आज़ादी के बाद से यह 79वां स्वतंत्रता दिवस होगा, क्योंकि पहला स्वतंत्रता दिवस 1947 में ही मनाया गया था | तो इस उपलक्ष्य मे सोचा कि आपको अपने पहले स्वातंत्र्यदिन की कहानी बताई जाए , कि इस दिन लोगों ने कैसे खुशीयां मनाई थी ?
क्या-क्या किया था , उन्होंने उस दिन ? देश में क्या घटित हुआ था ? किन के प्रयत्नों से हमें यह आजादी मिली ? आजादी मिलने की प्रक्रिया क्या थी ? और हमने आजादी आधी रात को क्यों मनाई ? 15 अगस्त की सुबह क्यों नहीं ?
यह किताब 1947 में ब्रिटिश भारत के विभाजन से पहले और ठीक बाद की घटनाओं का सजीव वर्णन करती है | इसके लेखक लैरी कॉलिन्स और डोमिनिक लैपियर ने इतिहास के इस महत्वपूर्ण क्षण का एक सम्मोहक और विस्तृत विवरण तैयार करने के लिए प्रमुख हस्तियों और प्रत्यक्षदर्शियों के साथ लंबे समय तक साक्षात्कार किए थे | इसमे ब्रिटिश राज के अंतिम कुछ महीने को चित्रित किया गया है जिसमे शामिल है राजनीतिक वार्ताए और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के बीच का बढ़ता तनाव |
किताब में विभाजन के अराजक और दुखद परिणामों का वर्णन है | जिसमें बड़े पैमाने पर हुए पलायन और सांप्रदायिक हिंसा शामिल है | इस किताब ने अपनी पत्रकारिता शैली और एक जटिल ऐतिहासिक घटना को आम दर्शकों के लिए सुलभ और आकर्षक बनाने की क्षमता के लिए दुनियाभर मे प्रशंसा पाई है | भारत की आजादी के 15 साल बाद प्रस्तुत किताब की लेखक जोड़ी ने लॉर्ड माउंटबेटन के साक्षात्कार लिए थे | उन सारी घटनाओ का समापन इसमे है | वह भी आखरी वायसराय माउंटबेटन के नजरिए से …..
प्रस्तुत किताब ‘आजादी आधी रात को’ यह विश्वप्रसिद्ध पुस्तक ’फ्रीडम एट मिडनाइट’ का हिंदी अनुवाद है |
किताब के अनुसार भारत के आखरी वायसराय भारत विभाजन के खिलाफ थे अगर उन्हे जिन्ना की लाईलाज बीमारी के बारे मे पता चल जाता तो वह बंटवारे की बात कुछ वर्षों के लिए टाल देते |
यह बात सिर्फ जिन्ना के डॉक्टर को पता थी | उसने अपने मरीज के साथ विश्वासघात नहीं किया | पुस्तक की लेखन-शैली आकर्षक है और पाठक को बांधे रखती है |
लंदन में नए साल के पहले दिन लॉर्ड माउंटबेटन को लंदन के प्रधानमंत्री के निवास स्थान मे बुलाया गया क्योंकि उन्हें भारत का आखिरी वायसराय बनाकर भेजना तय हुआ था | आखिरी इसलिए क्योंकि एटली सरकार , ब्रिटिश सत्ता को भारत के ऊपर से समेटनेवाली थी |
भारत देश अब स्वतंत्र होनेवाला था | तो दूसरी तारीख है 13 फरवरी 1948 .. इस दिन गांधीजी की अस्थियां गंगा – जमुना के संगम में बहाई जा रही थी | मानवता के वह पुजारी अनंत में विलीन होने जा रहे थे | अब उनके मिट्टी से बने शरीर का कुछ भी शेष नहीं रहनेवाला था | मिट्टी का शरीर , जैसा कि गांधीजी मानते थे | इसीलिए शायद वह अपने शरीर पर मिट्टी का ही नैसर्गिक उपचार करते थे |
इन दो तारीखों के बीच दुनिया में बहुत कुछ बदल चुका था और इन्ही घटनाओं का लेखा – जोखा प्रसिद्ध लेखक जोड़ी लैरी कॉलिंन्स और दोमिनिक लैपियर इन दोनों ने प्रस्तुत किताब में किया है | उनके शोधप्रियता और क्षमता के कारण उनके द्वारा लिखित उनकी पहले की किताबें ,”ओ ,जेरूसलेम और इज पेरिस बर्निंग” बेहद सफल और लोकप्रिय रही | प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – लैरी कॉलिंन्स और डोमिनिक लैपिएर
अनुवादक है – मनहर चौहान
प्रकाशक है – अनू प्रकाशन
पृष्ठ संख्या है – 344
उपलब्ध है – अमेजन पर
सारांश –
आधी से ज्यादा दुनिया पर राज करनेवाली ब्रिटिश जाति को लग रहा था कि वह सिर्फ जितने और शासन करने के लिए पैदा होते हैं | ऐसे इस जाति की राजधानी कहे जानेवाली लंदन में गरीबी ने दस्तक दी थी | नए साल मे , लंदन के लोगों के घर में इतनी भी सुविधा नहीं थी कि कोई पुरुष अपनी दाढ़ी बनाने के लिए गर्म पानी कर सके या महिलाएं वॉश बेसिन धो सके |
आधी दुनिया से ज्यादा पर राज करनेवाले इस संपन्न राज्य की यह दुर्दशा क्यों ? तो इसका कारण है युद्ध | इस युद्ध में इंग्लैंड की विजय तो हुई पर इसके कारण यहां के उद्योग धंधे चौपट हो गए और सरकारी खजाना खाली हो गया | आखिर उन्होंने दबंग हिटलर को हराया था |
प्रधानमंत्री एटली लेबर पार्टी के नेता थे | इसके पहले इसी घर में प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ विंस्टन चर्चिल रहा करते थे | चर्चिल , क्लेमेंट एटली को बिल्कुल पसंद नहीं करते थे | एटली सरकार ने ही डिसाइड किया कि भारत पर से ब्रिटिश सत्ता हटाई जाएगी |
भारत पर राज ब्रिटिशों का एक शानदार सपना था | अब वही शानदार सपना खत्म करने का वक्त आ गया था | यह काम करने के लिए “लुई फ्रांसिस एल्बर्ट विक्टर निकोलस माउंटबेटन” को बुलाया गया था जो ब्रिटिश राज परिवार से ताल्लुक रखते थे | वह महारानी विक्टोरिया के प्रपौत्र थे |
इन्हें भारत देश में वह काम करने जाना था जो कोई भी राज परिवार का व्यक्ति न करना चाहेगा | इन्हें अपने साम्राज्य क्या विस्तार करने नहीं बल्कि उसे खत्म करने जाना था | यह तकलीफ देनेवाला कार्य करने वह नहीं जाना चाहते थे |
इस कार्य से बचने के लिए उन्होंने बहुत सी बचकानी और गंभीर शर्तें एटली सरकार के सामने रखी ताकि वह इन शर्तों को ना मंजूर कर के उनका भारत जाना रोक दे परंतु शायद भारत देश को आजादी उनके ही जरिए मिलनेवाली थी | एटली सरकार ने उनकी सारी शर्तें मान ली थी |
वह अपने प्रिय हवाईजहाज “यार्क एम. डब्ल्यू 108 ” में बैठकर भारत आए | वह नौसेना के सैनिक थे | सैन्य का अनुशासन उनके पास था | बहुत से अजेय युद्धों मे उन्होंने अपनी टुकडी को विजय दिलाई थी | उनका अनेक राष्ट्रीय आंदोलनो के साथ आमना – सामना हो चुका था | चाहे वह इंडो – चीन के हो ची मिन्ह , इंडोनेशिया के सुकार्नो , बर्मा के आंग सैन , मलाया के कम्युनिस्टो या फिर सिंगापुर के धाकड़ ट्रेड संगठन बाज ही क्यों ना हो ! उनको लगा कि जब वह भारत जाएंगे तो उनका सामना ऐसे ही किसी राष्ट्रीय आंदोलन से होगा |
एक-एक दिन बीतने के साथ भारत की स्थिति और ज्यादा विस्फोटक होती जा रही थी | इसी कारण एटली सरकार को वह रास्ता नहीं सूझ रहा था जो भारत को आजाद करते समय अपनाया जाए | अगर भारतवर्ष को अचानक आजाद कर दिया जाता तो यहाँ भयानक गृह – युद्ध होता जिसके लपटों में देश जलकर खाक हो जाता |
इसके लिए पूरी दुनिया इंग्लैंड को जिम्मेदार मानती | भारत देश में धार्मिक नफरत चरण सीमा पार कर गई थी | माउंटबेटन के पहले के वायसराय फील्ड मार्शल सर आर्कीबाल्ड वैवेल यहाँ के नेताओं के साथ संवाद साधने में नाकामयाब रहे थे |
इन्हीं के साथ माउंटबेटन ने भारत की स्थिति को लेकर लंबी चर्चा की थी | रानी विक्टोरिया को भारत की साम्राज्ञी घोषित किए जाने पर उनके प्रतिनिधि के रूप में वायसराय भारत पर शासन करता था | यह एक प्रकार से यहाँ राजा ही था |
गांधीजी की अहिंसा सिखाती थीं कि हथियार से नहीं मनोबल से लड़ो | मशीनगन की गोलियों से नहीं प्रार्थनाओ से लड़ो | बमबारी और चीख पुकार से नहीं खामोशी और धैर्य से लड़ो | उनके इस संदेश ने भारत के एक-एक व्यक्ति को अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार किया था |
इसके उलट यूरोप में तानाशाह चिल्ला – चिल्ला कर लोगों को अपनी बात बताते थे फिर भी उनकी आवाज लोगों तक नहीं पहुंचती थी और गांधीजी को अपनी आवाज तक ऊंची करने की जरूरत नहीं पड़ती थी | बहुत सारे नेता उनके अनुयायियों को सब्ज – बाग दिखाते थे लेकिन गांधीजी उनसे जुड़े लोगों को बत्तर परिस्थितियों के बारे मे पहले ही बता देते थे | खादी पहननेवाला भाई-भाई हो जाता था | गांधीजी ने उपवास को अंग्रेजों के खिलाफ एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जिससे ब्रिटिश साम्राज्य का सिंहासन हिल गया |
वायसराय वैवेल , गांधीजी को एक घाघ राजनीतिज्ञ कहते थे | इसके विपरीत भारत की जनता यह मानती थी कि गांधीजी जहां जाते हैं | भारत की राजधानी वही चली जाती है | अबकी बार यह नोआखाली में थी | नोआखाली बंगाल में स्थित है | यहाँ धार्मिक हिंसा ने बहुत नरसंहार किया था | स्त्रियों पर , बच्चों पर अगणित अत्याचार हुए थे | धार्मिक नफरत ने वहां हिंसा की आग भड़काई थी |
अगर यही आग पूरे देश में फैल जाएगी तो इस देश का क्या होगा ? बस इस स्थिति को टालने के लिए वह शांति और मानवता का पुजारी वहां मौजूद था | धार्मिक हिंसा ने गांधीजी का दिल तोड़ दिया था | देश के विभाजन की मांग से तो उनके शरीर का एक-एक अनु चीत्कार कर उठा था |
उन्होंने नोआखाली में शांति स्थापित करने के लिए वहां के गांवो में पैदल यात्रा की | यह उनकी प्रायश्चित यात्रा थी | इस यात्रा के दौरान लोगों ने उनके मार्गो में कई रोडे अटकाये | कदम कदम पर उन्हे जान से मारने की धमकी दी पर गांधीजी टस से मस नहीं हुए |
इसके अलावा भारत में व्याप्त जाति व्यवस्था ने भी अपना कटु रोल निभाया | 1857 की क्रांति में मुसलमानो ने कई महत्व के रोल निभाए थे | इसीलिए अंग्रेजों ने उन्हें आर्थिक संपन्न बनने के अवसर कम दिए और हिंदुओं को ज्यादा | इस आर्थिक अंतर ने भी सामाजिक और धार्मिक मतभेदों को और उग्र बना दिया |
हिंदू और मुसलमान नेताओं ने आपसी मतभेद भुलाकर भारतीय आजादी के संघर्ष में भाग लेकर , कंधे से कंधा मिलाकर आजादी पानी चाहि थी लेकिन यह असंभव था कि आजादी की लड़ाई को धार्मिकता का रंग चढ़ाने से बचाया जा सके |
हर व्यक्ति धार्मिक पूर्वाग्रह से मुक्त नहीं था जितना की महात्मा गांधी | उन्होंने भारत की आजादी में मुसलमानो का स्नेह और सहयोग पाने का हर संभव प्रयत्न किया | भगवान मे उनकी गहरी आस्था थी | इस कारण कांग्रेस पार्टी के आंदोलन को हिंदुओं का आंदोलन बनने से बचाना असंभव हो गया | ईससे मुसलमानो के मन में संदेह घर कर गया | कांग्रेस के सारे नेता गांधीजी जितने उदार नहीं हो सके | इस कारण उनकी संकीर्ण मानसिकता उजागर होती रही |
अलग देश का निर्माण यह परिकल्पना सबसे पहली बार रहमत अली नाम के व्यक्ति के दिमाग से निकली | यह 40 वर्षीय स्नातक विद्यार्थी थे | इस कल्पना को सबसे पहली बार साढे चार पृष्ठों पर लिखकर तैयार किया गया था | इसका टंकण कार्य कैंब्रिज की हंबरस्टोन रोड के कॉटेज नंबर 3 में संपन्न हुआ था |
इन कागजों पर तारीख लिखी थी 28 जनवरी 1933 | इस नए प्रदेश का नाम भी रहमत अली ने ही सुझाया था – पाकिस्तान … यानी पवित्र भूमि |
“मुस्लिम लीग” ने 16 अगस्त का दिन “डायरेक्ट एक्शन” के लिए चुना ताकि कांग्रेस पार्टी और अंग्रेजों के सामने यह साबित किया जा सके कि वह पाकिस्तान लेकर ही रहेंगे | मुस्लिम लीग” के “डायरेक्ट एक्शन” के कारण और इसके प्रतिउत्तर के रूप मे कोलकाता ने भयंकर नरसंहार देखा | भारत देश गृह – युद्ध की चपेट में आ गया था और इन्हीं दिनों गांधीजी , नोआखाली में अपनी प्रायश्चित यात्रा पर निकल पड़े थे | वहाँ जहां अब सिर्फ जंगल का कानून चल रहा था |
उन दिनों भारत के इतिहास की चाबी न तो गांधीजी के हाथों में थी और ना ही तो किसी और के | वह थी तो सिर्फ जिन्ना के हाथों में | भारत के विभाजन के नाम से ही गांधीजी सिहर उठते थे | वह जानते थे कि अगर भारत का बंटवारा हुआ तो भयंकर नरसंहार होगा | इसके परिणाम बहुत ही बुरे होंगे | इसलिए वह अंग्रेजो से कहते थे कि भारत को भगवान भरोसे छोड़कर चले जाओ लेकिन उनकी बात किसी ने नहीं सुनी |
अपने प्रयासों से गांधीजी ने नोआखली में भाईचारे और स्वच्छता का माहौल तैयार किया क्योंकि नोआखाली एक झोपड़पट्टी थी | वहाँ कम जगह में बहुत सारे लोग बसे थे जिन्हें सफ़ाई के सामान्य नियम भी नहीं पता थे |
वायसराय माउंटबेटन ने भारत में आते ही “वशीकरण अभियान” चलाया | मतलब के ज्यादा से ज्यादा लोगों का प्रिय बनकर उनसे अपनी बात मनवाना | भारत में फैले इस धार्मिक हिंसा का और एक कारण था | वह था “इंडियन सिविल सर्विस” जैसे शासकीय तंत्र का बैठ जाना |
इसका कारण अंग्रेज अधिकारियों का भारी अभाव था क्योंकि विश्व युद्ध मे छह लाख अस्सी हजार अंग्रेज मारे गए थे | यदि ऐसा ना होता तो भारतीय सीमाओ पर गस्त लगाने के लिए अंग्रेज नौजवानों की एक पूरी नई पीढ़ी तैयार थी |
जिलों और तहसीलों के हर छोटे बड़े पदों पर अंग्रेज आ जाते तो उनका सबसे प्रिय , सबसे लाड़ला , सपना नहीं टूटता | जिसका नाम था – “भारत , सोने की चिड़िया “| इस कारण अनेक अयोग्य कर्मचारी ऊंचे पदों पर जाकर बैठे थे जिन्हें शासन चलाना बिल्कुल नहीं आता था |
भारत देश का भविष्य तय करने वायसराय से मिलने भारत के चार प्रमुख नेता आए हुए थे | देश की अखंडता तब ही बचाई जा सकती थी जब यह सारे प्रमुख नेताओं के विचार एक हो जाते लेकिन इन लोगों के आपसी मतभेद ही खत्म नहीं हो रहे थे |
इन चार नेताओं में शामिल थे , पंडित जवाहरलाल नेहरू , गांधीजी , सरदार वल्लभभाई पटेल और जिन्ना | वायसराय का पहला प्रयत्न यही था कि भारत देश के नेता एक हो जाए और भारत का विभाजन रुक जाए अगर ऐसा नहीं होता तो अंग्रेज भारत देश को ऐसे ही छोड़कर नहीं जा सकते थे |
उस स्थिति में विभाजन की एक मात्र उपाय रह जाता था पर विभाजन में सबसे बड़ा अड़ंगा गांधीजी का था | इसीलिए नेहरूजी के , गांधीजी के बारे में विचार जानकर वायसराय ने तय किया कि नेहरूजी को गांधीजी के खिलाफ खड़ा किया जा सकता है | वैसे भी कांग्रेस में उनका कोई ना कोई अपना आदमी तो होना ही चाहिए |
अबकी बार गांधीजी उनके सामने थे | गांधीजी और वायसराय के व्यक्तित्व में जमीन आसमान का फर्क था फिर भी गांधीजी के व्यक्तित्व ने वायसराय माउण्टबेटन पर मोहिनी डाल दी | उन्होंने जान लिया कि इतिहास में गांधीजी को वह जगह मिलेगी जो एक दिन बुद्ध या ईसा को मिली थी |
सरदार वल्लभभाई पटेल इन्होंने भी विभाजन को अपनी सहमति दे दी और जिन्ना तो चाहते ही अलग देश थे | गांधीजी को लगता था कि भारत विभाजन रोकने में कांग्रेस पार्टी उनका साथ देगी लेकिन जैसे-जैसे आजादी पास आ रही थी | वैसे-वैसे कॉंग्रेस नेताओ की महत्वाकांक्षाए बलवान होती जा रही थी | कांग्रेस नेता गांधीजी का सम्मान तो करना चाहते थे पर अब उनके पीछे चलना नहीं चाहते थे |
पहले गांधीजी के पीछे चलने मे उनका अपना एक स्वार्थ था | उन्हें गांधीजी के रूप में एक श्रेष्ठ नेता की जरूरत थी जिसकी आवाज सब लोग सुन सके | अब नेताओं को अपनी मंजिल मिलनेवाली थी | अब उनको गांधीजी की जरूरत नहीं थी |
गांधीजी बार-बार कहते रहे कि विभाजन रोकने के लिए जिन्ना को प्रधानमंत्री बना दो | नहीं तो देश में भयानक अराजकता आएगी , नरसंहार होगा | यहाँ बसे लोगों के बीच जो नफरत है | वह एकदम फुट पड़ेगी | खून की नदियां बहेगी लेकिन किसी ने उनकी बात नहीं मानी |
जिन्ना जिन्हें बाद में पाकिस्तान के पितामह के रूप में जाना जानेवाला था | माउंटबेटन कहते हैं कि अगर उन्हें जिन्ना के लंग कैंसर की बीमारी की बात पता चल जाती तो , वह भारत को आजादी देनेवाले मुद्दे को और थोड़ा आगे धकेल देते | शायद जिन्ना भी यह बात जानते थे | इसीलिए उन्होंने अपनी इस बीमारी को एक सीक्रेट से भी बढ़कर छिपा कर रखा | इस दौरान वह सिर्फ अपनी इच्छा शक्ति के बलबूते जीवित रहे क्योंकि उन्हें अपना लक्ष्य पाना था | लक्ष्य अलग देश का … लक्ष्य पाकिस्तान का |
कभी जिन्ना ने ही रहमत अली के उस सपने को असंभव सपना कहकर नकार दिया था | जिन्ना की जीद के कारण पाकिस्तान बनाने के लिए भारत के दो अति महत्ववाले राज्यों को तोड़ना था | वह थे पंजाब और बंगाल | इन दोनों राज्यों का आधा-आधा बांटा जाना किसी के भी हित में नहीं था क्योंकि एक देश के हिस्से में कोलकाता के कारखाने आ रहे थे तो दूसरे के हिस्से में खेती का उत्पादन |
अब इन उत्पादों से ही कारखाने चलते थे | इस स्थिति में ब्रिटिश सरकार ने निर्णय लिया कि इन राज्यों की जनता को स्वतंत्र बने रहने का अधिकार दिया जाए अगर ऐसा होता तो इसका फायदा यहां के राजा – महाराजा भी उठाते फिर भारत के दो नहीं अनेकों टुकड़े होते |
इस बात से तो जवाहरलाल नेहरू थर्रा गए क्योंकि वही स्वतंत्र भारत के प्रधानमंत्री बननेवाले थे | इसलिए फिर यह तय हुआ कि इन सबको दो देशों में से किसी एक में सम्मिलित होने को कहा जाए | अध्याय सात में आप तत्कालीन राजा – महाराजाओं के बारे में पढ़ पाओगे और उनके अजीबोगरीब शौक के बारे में भी |
कुछ-कुछ राजाओं के शौक इतने घृणास्पद थे की कहने मे भी शर्म महसूस होती है | ऐसे इन राजाओं के बहुत से बदसूरत राज अंग्रेजों के पास फाइलों के रूप में जमा थे | जिन्हें उन्होंने आजादी के कुछ ही दिन पहले आग के हवाले किया ताकि दोनों देशों में से कोई भी एक दूसरे को ब्लैकमेल ना कर सके | कॉरफील्ड एक ऐसा अंग्रेज था जो अंत तक देसी राजाओ को बचाने की कोशिश करता रहा |
अब भारत विभाजन को भी ब्रिटिश सरकार की परमिशन मिल गई थी | विभाजन में सब चीजों को बराबर बाँटा जानेवाला था जिन में शामिल थे बैंकों में रखी नगद राशि , डाकघर में पड़ी टिकटे , पुस्तकालय , कर्ज , उधार , विश्व का तीसरा सबसे बड़ा रेल संस्थान , रेले , जेल में बंद कैदी , स्याही की दवाते , शोध केंद्र , अस्पताल और न जाने कितनी ही विभिन्न चीजे | विभिन्न देशों के पत्रकारों ने जब वायसराय माउंटबेटन से भारत वर्ष की आजादी की तारीख पूछी तो उन्होंने वह तारीख बताई जो उनके नौसेना करियर में उनके लिए बहुत मायने रखती थी |
15 अगस्त !
इस दिन 1 साल पहले उनकी बर्मा के जंगलों में लंबी भटकन समाप्त हुई थी | इस तारीख को जापान सरकार ने बिना शर्त हथियार डाले थे | भारत के आजादी की तारीख थी 15 अगस्त 1947 | इस तारीख के ऐलान से सब लोग स्तब्ध रह गए | खासकर भारतीय ज्योतिषी क्योंकि 15 अगस्त 1947 का दिन भारत की आजादी के लिए बहुत ही अशुभ था | भारत के प्रख्यात ज्योतिषियों के अनुसार 15 अगस्त 1947 का दिन मकर राशि के अंतर्गत आता था | यह राशि शक्तियों का विकेंद्रीकरण करने के लिए कुख्यात है | देश के विभाजन से भी शक्ति का बंटवारा हो गया था |
अगर इस तारीख को आजादी मिली तो देश का बंटाधार हो जाएगा | 15 अगस्त की तारीख पर शनि की भी दृष्टि थी | पता तो है ना कि , शनि देव की सीधी दृष्टि भी किसी जलजले से कम नहीं | इसलिए यह तारीख किसी तबाही से कम नहीं थी | यह नियति द्वारा अभिशप्त दिवस था | इससे बचने के एक ही रास्ता था , आधी रात को आजादी ….
भारत विभाजन की प्रक्रिया अब शुरू हो चुकी थी | भारत और पाकिस्तान के बीच सरहद की लाइन खींचने के लिए इंग्लैंड के होशियार वकील “सीरिल रेडक्लिफ” को बुलाया गया था | यह भारत और यहाँ के लोगों के बारे में पूरी तरह अज्ञानी था | भारत बाबत अज्ञानी रेडक्लिफ को ही इसलिए चुना ताकि वह दो देशों के बीच रेखा खींचते समय कोई पक्षपात न कर सके |
विभाजन के साथ ही भारतवर्ष जैसे महान देश और वहां के लोगों की धड़कन , संस्कृति , प्यार , मोहब्बत , फसले , नदिया , नाले , मैदान , जंगल सब कुछ दो भागों में बँट गया |
इसी के साथ “पूर्व का वेनिस” कहे जानेवाले लाहौर में दंगे भड़क उठे | भविष्य में होनेवाले नरसंहार की झांकी पश्चिम पंजाब से आए हिंदू शरणार्थियों के रूप में सामने थी | उनकी स्थिति देखकर गांधीजी तो भविष्य समझ गए पर बाकी लोग नहीं |
जिन्ना को पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस पर मारने की योजना बनाई गई थी | पर इसका पता ब्रिटिश खुफिया अजेंसी को लग गया था | आखिर माउंटबेटन , जिन्ना के साथ उस कार मे बैठे जिसको तबाह किया जाना था | माउंटबेटन की वजह से उनकी जान बची | सबसे बड़ी बात की इस बात का श्रेय जीन्ना ने खुद को ही दिया |
जिस राज्य का प्रशासन भारत में सर्वश्रेष्ठ माना जाता था | वही दंगों की शुरुआत हो चुकी थी यानी कि पंजाब मे | यहां तो बाउंड्री फोर्स सेना के जोर पर कुछ हो सकता था पर कोलकाता में नहीं क्योंकि कोलकाता का वातावरण ऐसा था जैसा कि वह बारूद के ढेर पर खड़ा हो | एक चिंगारी और सब कुछ स्वाहा | वैसे भी कोलकाता ब्रिटिश साम्राज्य का दूसरा महानगर था जो हिंसा और क्रूरता मे अपना सानी नहीं रखता था |
वहां की स्थिति काबू में करने के लिए लॉर्ड माउंटबेटन को सिर्फ एक व्यक्ति नजर आया और वह थे – “महात्मा गांधी” | नोआखली के हिंदुओं की सुरक्षा का बेड़ा गांधीजी ने उठा रखा था | गांधीजी के व्यक्तित्व के एकदम उलट व्यक्तित्व था शहिद सुहरावर्दी का |
इसने “मुस्लिम लीग”के ” डायरेक्ट एक्शन” के तहत कई हिंदुओं की हत्या की थी | अब उसे अपनी जान का डर बना हुआ था | इसलिए वह सहायता मांगने गांधीजी के पास गया | अब कोलकाता के मुसलमानो को शांत करने के लिए गांधीजी ने उसे अपने साथ लिया |
पंजाब और बंगाल के सैकड़ो गांवो ने 15 अगस्त को आजादी दिवस मनाया क्योंकि उन्हें अब तक पता ही नहीं था की सीरिल रेडक्लीफ़ की खींची गई रेखा के कारण उन्हें उनके घर , खेत – खलिहान , अपनों को छोड़कर स्थानांतरण करना होगा |
भारतीय सेना के सिपाही एक दूसरे के लिए तरह-तरह के कार्यक्रम आयोजित कर के उन्हें भावभीनी विदाई दे रहे थे फिर कह रहे थे कि भले ही हम अलग हो गए हो फिर भी हम भाई-भाई है | भावी पाकिस्तान आर्मी के मुख्यालय से मोहम्मद इदरीस को आदेश मिला कि भारत जा रहे फौजियों के हथियार ले लो | पर इदरीस ने इस आदेश का पालन नहीं किया और इसी कारण वह सैनिक भारत यात्रा के दौरान बच गए क्योंकि उन पर बीच रास्ते मे हमला हुआ था जिसका मुकाबला उन्होंने उन्ही हथियारों से किया था जो इदरीस ने उन्हें रखने की अनुमति दी थी |
14 अगस्त की आधी रात को जब सारी दुनिया सो रही थी , तब भारत देश गुलामी से आजाद हो रहा था | सभा भवन के बाहर बहुत सारे लोग जमा हो गए थे | बाहर बारिश हो रही थी | उनको इसका गुमान भी न था | वह सब सभा भवन के अंदर रखी घड़ी में 12:00 बजने का इंतजार करने लगे |
सब लोग यूं खड़े थे जैसे वह समाधि में हो | जैसे ही बारह बजने की 12वीं टंकार शांत हुई | वैसे ही वहाँ एक जोरदार शंखनाथ गूंज उठा जिसने पूरे भवन में थर्राहट भर थी | यह एक युग के प्रारंभ और यह एक युग के अंत का द्योतक था |
उस दिन “बॉम्बे यॉट क्लब” बंद रहा जो सिर्फ गोरों के लिए था | अब वह नौसेना का भोजनालय बननेवाला था | कोलकाता की सड़कों के नाम अंग्रेजों से भारतीय होनेवाले थे | शिमला में “माल” सड़क पर पहली बार भारतीय नर – नारी अपने पारंपरिक पोशाखो में चलनेवाले थे क्योंकि शिमला स्थित इस रोड पर भारतीयों का चलना मना था |
कोलकाता में “फ़िर्पो”, लाहौर के “फैलेटी” और मुंबई के “ताज” जैसे होटलो में लोगों ने अपनी राष्ट्रीय और मनचाही पोषाखो में प्रवेश किया | इसके पहले यहां ऐसा करना वर्जित था |
राजधानी दिल्ली में आजादी के दिन हर तरफ रोशनियां और जगमगाहट थी | दिल्ली के कनॉट प्लेस के रेस्तराओ और कॉफी हाउस में बैठने की जगह नहीं थी | कानपुर में ब्रिटिश और भारतीय लोग खुले सड़कों पर एक दूसरे के गले मिल रहे थे | जिस नौजवान को 1942 में राष्ट्रध्वज फहराने के लिए जेल भेज दिया गया था | उसी ने आजादी के दिन अहमदाबाद के टाउन हॉल में तिरंगा फहराया |
लखनऊ रेजीडेंसी में मेहमानों के कार्डों पर लिखा था ,” नेशनल ड्रेस धोतियो का स्वागत है |” भारत के हजारों नगरों , गांव और शहरों में लोग अपने-अपने आराध्य के पास उनका धन्यवाद देने गए | आजादी का सबसे बड़ा जश्न मुंबई में मनाया गया | जहां सबसे ज्यादा जुलूस और हड़ताल हुए थे | आजादी के दिन भारत की आम जनता तो बेहद खुश थी लेकिन रजवाड़े नहीं |
15 अगस्त के दिन लोगों का हुजूम दिल्ली की तरफ उमड पड़ा | नए कपड़े और ढेर सारे गहने पहन कर | शहरों की ट्राम और ट्रालीयां सारा दिन फ्री चलती रही | बंदूक की आवाज सुनने की अपेक्षा रखनेवाले लोगों ने पटाखो की विस्फोट सुनी | जहां हमेशा अंग्रेजों का झंडा दिखाई देता था | वहाँ अब तिरंगा लहरा रहा था |
फांसी की सजा पाए सारे कैदी रिहा हो गए थे | अंग्रेजो ने भी अपनी पराजय और ग्लानि को हंसते-हंसते स्वीकार कर लिया था | जिन अंग्रेजो का जन्म ही भारत में हुआ था जो इसे ही अपना घर मानते थे | उनके लिए इंग्लैंड में जाकर बस जाना असहनीय हो गया |
विभाजन की बात जब लोगों को पता चली तो स्थितियाँ इतनी भयावह हो गई की हर तरफ नरसंहार होने लगा | दोनों देशों से आनेवाली ट्रेने लाशों से भरकर आने लगी | इतना नरसंहार की ट्रेन रुकती थी तो , खून बोगियों के बाहर टपकता था | खून इतना की पैर फिसल जाते थे |
हर ट्रेन के आने के बाद भयंकर , वीभत्स सन्नाटा देखने को मिलता था | पुणे में गांधीजी के विचारों से जो लोग नफरत करते थे | उनके विचारों में हिंदू मुसलमान भाईचारे के लिए कोई जगह नहीं थी लेकिन गांधीजी आदर्शवाद के प्रचारक थे | जिस गांधीजी ने आखिर तक विभाजन का विरोध किया | उन्हीं को इस के लिए जिम्मेदार माना गया | अब तक तो यह लोग गांधीजी के विचारों से ही नफरत करते थे | उनके विचारों से हद तो तब हो गई जब गांधीजी ने पाकिस्तान को देनेवाले 55 करोड रुपयो के लिए अनशन की घोषणा की | साथ मे भारत में बसे मुसलमानो का नेतृत्व भी स्वीकार कर लिया क्योंकि जिन्ना के पाकिस्तान जाने के बाद , इन लोगों ने अपना नेता गांधीजी को मान लिया था |
अब उनके विचारानुसार जिनमे नाथूराम गोडसे , नारायण आपटे , विष्णु करकरे , मोहनलाल पाहवा , बागडे और शक के आधार पर सावरकर शामिल थे | गांधीजी को जिंदा रहने का कोई अधिकार नहीं था | आखिर इन लोगों ने योजना बनाकर उस महात्मा को परमेश्वर के पास भेज ही दिया |
गांधीजी की हत्या का षड्यंत्र प्रस्तुत किताब में बड़े विस्तार से दिया है | इसी घटनाक्रम पर आधारित यूट्यूब वीडियो प्रसिद्ध यूट्यूबर “ध्रुव राठी” के चैनल पर उपलब्ध है | आप उसे भी देख सकते हैं | गांधीजी की हत्या की साजिश के पहले प्रयत्न में मोहनलाल पाहवा को गिरफ्तार किया गया था |
उसकी पूछताछ के बाद भी पुलिस प्रशासन ने अपने काम में ढिलाई बरती | नहीं तो उन्हे बचाया जा सकता था | पुलिस प्रशासन की इस ढिलाई के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल पर आरोप लगे क्योंकि वही उन दिनों गृहमंत्री थे | इसका कारण उनके और गांधीजी के बीच मतभेदों को बताया जाता है और कहाँ जाता है की इसी कारण उन्होंने इन बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया |
बहुत दिनों तक वह इन बातों को लेकर चिंतित रहे | आखिर इसी चिंता के कारण उन्हें हार्ट अटैक आया और उनकी मृत्यु हो गई | प्रस्तुत किताब मे सम्मिलित मुख्य पात्रो के साथ उनके जीवन के आखिर मे क्या क्या हुआ | इसका लेखा – जोखा भी इस किताब मे दिया है |
गांधीजी की मृत्यु के साथ ही आजादी का एक पर्व खत्म हो गया था | 15 अगस्त को जब पंडित नेहरू ने राष्ट्रध्वज फड़काया | वैसे ही आकाश में एक इंद्रधनुष खिल उठा | इसके रंग भारतीय तिरंगे के रंगों के साथ मेल खा रहे थे | भारतीय जनता इसे एक शुभ शकुन के रूप में देख रही थी |
राष्ट्रीय ध्वज लहराते समय इतने लोग इकट्ठा हो गए थे की माउंटबेटन की बग्गी एक जगह स्थिर हो गई थी | माउंटबेटन दंपति की बेटी पामेला को लोगों ने सरो के ऊपर ही ऊपर उसके पिताजी की बग्गी तक पहुंचाया ऐसे जैसे की वह मानवरूपी कालीन पर चल रही हो !
इतनी गर्दी में छोटे शिशुओं का कहीं दम ना निकल जाए | इसलिए उनकी माताओ ने उनको हवा में उछालना शुरू किया | छोटे शिशुओ की तो जैसे बारिश हो गई | जुलूस आखिर वायसराय के हाउस तक पहुंच गया था | अब यह भारतीय राजनीति का केंद्र बननेवाला था | यहीं से राजनीति के सूत्र हिलनेवाले थे | भारत के पहले आजादी की इस कहानी को पढ़िएगा जरूर | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते है और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ….
धन्यवाद !!
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नीचे देखें और सबसे आम सवालों के जवाब पाएं।
सवाल है ? जवाब यहाँ है | (FAQs SECTION)
Q.1.आजादी आधी रात को इस किताब के लेखक कौन है ?
A. लैरी कॉलिंन्स और डोमिनिक लैपिएर |
Q.2.प्रस्तुत किताब किस विषय पर आधारित है ?
A.यह भारत की पहली आजादी और भारत विभाजन पर आधारित है |
Q.3.पहली बार अलग पाकिस्तान क विचार किसने रखा था ?
A. अलग देश का निर्माण यह परिकल्पना सबसे पहली बार रहमत अली नाम के व्यक्ति के दिमाग से निकली |
Q.4.लॉर्ड माउंटबेटन की इसमे क्या भूमिका थी ?
A.वह भारत के आखरी वायसराय थे जिनके जरिए भारत पर से ब्रिटिश सत्ता समेटे जानेवाली थी और भारत आजाद होनेवाला था |